Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

मुरका बुंदेली व्यंजन (बुंदेली दोहा संकलन)- संपादन - राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़



            मुरका -बुंदेली व्यंजन
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


                         मुरका-बुंदेली व्यंजन
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ईबुक प्रकाशन दिनांक 01-02-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
3-अशोक नादान लिधौरा टीकमगढ़ 
4-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
6- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
7-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
8-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
9- रामानन्द पाठक,नैगुवा
10--राम कुमार शुक्ल"राम",चंदेरा
11-परम लाल तिवारी, खजुराहो
12-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
13-संजय श्रीवास्तव,मवई 
14-हरिराम तिवारी 'हरि' ,खरगापुर
15-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
16-वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
17-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
18-इंद्रपाल सिंह राजपूत हरपुरा मडिया
19-समीक्षा-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा

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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*मुरका
*1*
मुरका में गुन भौत है,
मिलै शक्ति भरपूर।
जाड़े में खाओ मुरा,
कैउ रोग हो दूर।।
*2*
मुरका  खाव मुरा मुरा,
मनकौ खूबइ भात।
गांवन में मिल जात है,
जो देखे ललचात।।
**2-2-2021
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
     संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.co
(मौलिक एवं स्वरचित)
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2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
मुरका मुरका देत है लगी की आग।
जाड़न में नौनौ लगै,है गरीब कौ भाग।।
               #2#
भूंजौ मौवा अरु तिली,खूब कुरकुरे होंय।
उखरी में हो कूट कें,मुरका खा सुख सोय।।
               #3#
देहातन कौ कलेवा ,मुरका सें हो जाय।
मुरका सुरका लेत हैं,लटा कूट कें खांय।।
               #4#
मौवा मेवा बेर सें,बनत हमारी शान।
डुबरी फरा बनायकें,खाबै चतुर किसान।।
               #5#
मीड़ मलीदा पनफरा,और बनें रसखीर।
मुरका डुबरी घोउवा,बिरचुन हरबै पीर।।

-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
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3-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 

बंधा बरेठी की तरफ,
महुआ हते बिलात।
मउअन कौ खानों हतौ,
ऐसी है कानात।।

मउआ गुली गुलेंदरे,
 मुरका डुबरी खांय।
भोरइ खांय कलेऊ मैं, 
 डट कें काम करांय।।

पेड़ काट लय बड़न ने,
करे पाप के काम।
नइ पीढ़ी खों का पते, 
 मुरका कीकौ नाम।।

मउआ ने तौ काट दइ, 
कैऊ जिन्दगीं पैल।
कल्प बृरछ कुआउत तौ, 
लगे खेत औ गैल।।

मुरका डुबरी उर लटा, 
 मैनें ख़ूबइ खाय।
आज देखबे नइ मिलत,
 बात समय की आय।।


                  -अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

4-राज गोस्वामी,दतिया
01-मुरका जैसे मुरमुरा
 मुरा मुरा के खाय ।
जइ के संगे चाय संग
 स्वल्पाहार कराय ।।

02-मिला मिला के बनत है
 सबरे चखबौ चात ।
पूरौ बनवे बाद ही 
सही बनत है बात ।।

03-मुरका कौ मुरवायतौ 
खूबइ मन को भात ।
मूली संग निबुआ निचो 
मौ पानी आ जात ।।
-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

5-- -कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
पैलाँ 'मउआ' ही हते , सबके पालनहार ।
मुरका डुबरी लटन की , हती खूब भरमार ।।

घर-घर खूबइं आत ती , मउआ तिली भुजांद ।
भूलत नइंयाँ काउ खों , मुरका की गुरयांद ।।

मौंन-भोग सें कम नहीं , है मुरका कौ स्वाद ।
भोर कलेवा के बखत ,आवै  खूबइं याद ।।

मुरका सें मुरकत हती , पोषक तन की भूख ।
ताकत रत ती देह में , कभउँ न गइ है दूख ।। 

बुन्देली  मेवा  मधुर , साँसउँ  भौत लजीज ।
अब नइं मिलतइ फाँकवे , मुरका जैसी चीज ।।
कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
   ####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़###

6-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़

💐बुन्देली  मुरका
मउआ भूँजे जतन सै,लये चरइ मे डार।
तिली मिलाइ संग मे, कूटौ बारम्बार।।

महुआ कौ मुरका बनौ, घर भर करै पसंद।
खा रय मुरका चाव से, कत आ रव आनंद।।

देहातन में आज भी, मुरका कूट बनाँय।
जडकारै में चाव सै, घर भर मुरका खाँय।।

मउआ मुरका ठंड में,रखतइ गरम शरीर।
बुन्देली व्यंजन बना, खात गरीब अमीर।।

तंदुरुस्ती की इक दबा, मउआ मुरका जान।
और दबा है ठंड की,मुरका  रोग निदान।।
***
 मौलिक एवं स्वरचित
 -एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

7- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़


लडुवा मुरका उर चना।
भूँज भर्र जो खात।।
वौ रोगी नैं होत है।
तगड़ौ तनैं दिखात।।

    ..🌷2🌷
मउवा डुबरी जब बनें।
डार किनानों काट।।
मुरका बिन दाँतन मुरै।
बूढ़े जाउत लाट।।

         🌷3🌷

मुरका सौ खानों मिलै।
मिलै मठा सौ धौन।।
चना भूँज केंइ खात जो।
दवा करावे कौन।।

         🌷4🌷

मउवन कौ मुरका बनें ।
कूट चरै में लेत ।।
भूँज तिली है डारकें।
हम फक्कौ है देत।।

        🌷5🌷

जुनै मका फूला बने।
मउवन मुरका खात।।
धान बिचारी कूटकें।
बना लेत हैं भात।।

डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
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8-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
- 'मुरका' 
      ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️  
1 - महुआ तिली मिलाय के, 
  कूटत हैं  घी साथ। 
  हरछट में खा लेत हैं, 
  मुरका लै कै हाथ।। 

2- डुबरी मुरका जब बनै, 
   महुआ चाने आत।
   पेड़ कटत सब जात हैं, 
   कां से मुरका खात।। 
 
3-मुरका से मुरकौ नहीं, 
  जेउ पुरानी शान। 
  पीजा बरगर खात हौ, 
  करौ न तुम अपमान।। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
                
              - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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9 -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
महुआ सें मुरका बनें, खातन जी ललचाय ।
जी ने मुरका खाव‌ हुए ,वोइ स्वाद
वताय।
मउवा भूंजौ चाव सें कूटौ उखरी बीच ।
तिली डार मुरका बनें खाऔ आंखैं  
मीच।
करो कलेउ भोर सें लो मुरका कौ संग।
दूध घीव खाय विना ,जी हो जावै चंग ।
मउवा बीनन जातते ,आबै मुरका काम ।
बखत परे पै पेट भर, वे फिर देखें साम।
जडकारें सेवन करौ ,होवै जीवन पार।
निरदोखल काया रहे, हुए न कोइ
बीमार ।
रामानन्द पाठक नन्द नैगुवां
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
-#########
10-राम कुमार शुक्ल"राम",चंदेरा
       🌷बुन्देली दोहे "मुरका"🌷
खपरा महुआ डार के,
               भूंजिये चित्त लगाय।
 मिला तिली फिर कूट लें,
         सो "मुरका" बन जाय।।1।।
चूरन महुआ तिली कौ,
                      बारे बूढ़े खाय।
"मुरका" के फक्के लगा,
             सौ सौ  डड़े लगाय।।2।।
बेटी बनी अंगूर की,
              सब जग खौ बौराय।
"मुरका" महुआ से बनें,
               बड़े चाव से खाय।।3।।
काष्ठ चरइ धर सामने,
                महुआ भुजवां डार।
कूट कूट बारीक हो,
               अब "मुरका" तैयार।।4।।
व्यंजन बुन्देली बनो,
                "मुरका" बाकौ नाम।
गरम गरम तासीर है,
          "राम"भजौ औ छान।।5।।
-राम कुमार शुक्ल"राम",चंदेरा
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11-परम लाल तिवारी, खजुराहो
              मुरका
तिल को पहले भूंजिये,कूटो मुसल चलाय।
महुआ भूजो पीस के,दीजे दोउ मिलाय।।   

मुरका तब बन जाय भल,है इमरत के तोल।
चबा चबा के खाइये,यह मिठाई अनमोल।।

जो  मुरका को खात है,वो ही जाने स्वाद।
जो ई की निंदा करें, सो जानो बकवाद।।

अमरावति में है नहीं,मुरका जैसो द्रव्य।
ललचें खावे देव सब,बनो गुडानो भव्य।।

अब बनवाबी हम घरे, मुरका यह गुनवान।
देवे न्योतो सबईं को,आओ अवसर जान
-परम लाल तिवारी, खजुराहो
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12-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
मुरका को जो स्वाद तो,
     भोतइ मन को भाय।
भुंसारे उठ खाय जो,
     ता घर बेद न जाय।

मुरका में मउआ डरो,
     निब्बू दओ निचोर।
अगर मिरच मो में लगे,
      खावे लडुआ फोर।

मुरका चूरा डार के,
     काकी फरा बनाय।
संग महेरी दूध के, 
   कक्का के मन भाय।
-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
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13-संजय श्रीवास्तव,मवई 

बुंदेली व्यंजन *मुरका* पर दोहे 💐

*१*
बब्बा मुरका कूटबें,
डुबरी बऊ बनायँ ।
आँगन खटिया डारकें,
बड़े चाव सें खायँ।।

*२*
लरका बिटियाँ आज के,
पढ़े-लिखे हैं भौत।
मउआ तक  देखे नही,
कत, मुरका का होत ?।।

*३*
मउआ के बिरखा भले,
खड़े गैल औ खेत।
मउआ ,गुली, गुलेंदरो,
डुबरी मुरका देत।।

*४*
करो कलेउ मुरका को,
दुपरे डुबरी खीर।
दिन डूबे सें ठर्रा खों,
मन हो जात अधीर।।

*५*
मउअन सें मुरका बनत,
गुली देत है तेल।
एक बिरखा फल दो लगें,
अचरज बारो मेल ।।

 -संजय श्रीवास्तव,मवई स्वरचित, १/२/२१दिल्ली
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14-हरिराम तिवारी 'हरि' खरगापुर
        ***जय बुंदेली सहित्य में " मुरका" पर दोहे ***
सबसें पेला दोहा छन्द के बारे में
1- दोहा लेखन की विधा, है अति ही प्राचीन।
छन्द शास्त्र अनुसार ही, दोहे लिखें नवीन।।
2- मात्राएँ चौवीस हों, गति-लय ना हो बंद।
तेरह-ग्यारह पर यति,
दोहा मात्रिक छन्द।।

** मउआ - मुरका ***

1: 
मउआ तिल खां भूंज कें, मुरका कूट बनाय।
मिला चिरौंजी खोपरा,
लटा बनाकें खाएँ।।
2:
बुन्देली व्यंजन भलो,मउआ की है शान।
डुबरी मुरका लटा सब,
खाबें स्वाद बखान।।
3:
महुआ प्यारो पेड़ है,
भौतउ आबे काम।
लकड़ी पत्ता फूल फल,
चारउ सुख के धाम।।
4:
लकड़ी सें फाटक बने,
बरगा करी म्याईं ।
मउआ, महुआ फूल है,
तेल गुली पिरवाइ।।
5:
मउआ सें मदिरा बने,
जो करती नुकसान।
बात 'हरी' की मान लो,
करो न मदिरा पान ।।
हरिराम तिवारी 'हरि' खरगापुर
###############
15-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
      
मुरका बहुत लजीज है,
 सबखों खूब सुहाय  ,
 जैई दिन जो बनत है ,
  औरन  कछु नै भाय ।

भर भर बेला सब  खाय ,
 निचोर रये  निबुआ,
 दादा औ बऊ खाबै ,
और खाबै बबुआ । 

स्वरचित 
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,01,02,21   
##################
16-वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
बिषय- मुरका
-----------------
मुरका खाकें जात ते,हलके में स्कूल
याद आज भी है हमें,नईं गये जा भूल
गांवन में मिल जात है,जौ मुरका भरपूर
सबइ जनें ललचात हैं,खाबे इयै ज़रूर
भौत दिनन सें नइं मिलौ,खाबे मुरका मोय
तनक खबर करियौ हमें,अगर कोउ कें होय
-------------स्वरचित----------------
-वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
       ####################
17-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
        1****
मउवन के डुबरी लटा ,मुरका व्यंजन जान ।
बडे़ प्रेम सें खात हैं ,घर आये जजमान ।।
          2****
पतरी धरती है जितै ,मउवा हैं रसदार ।
मुरका मीठौ लगत है ,टपकत मोंसें लार ।।
           3****
मउवा कूटे भूंज कें ,मुरका लऔ बनाय ।
तिली चबैना डार कें ,मिठया मिठया खाय ।।
           4****
मउवन कौ मुरका बना ,जड़कारे में खाव ।
बब्बा खा रये शौक सें ,मूँछन देवें ताव ।।
           5****
कथरी ओढें घी पियें ,मुरका मन सें खाँय ।
वह समझो मजबूत हैं ,कहीं न माँगन जाँय ।।
-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
##################
18-इंद्रपाल राजपूत,हरपुरा,मडिया
  
  १
दद्दा कै रय बाई सें,
        मुरका देव बनाय।
सब जन बैठे दोर पे,
       कबसें आस लगाँय।।
 
-इंद्रपाल सिंह राजपूत ,हरपुरा मडिया🌹🌹
#####################
#सोमवारी समीक्षा#दिनाँक01.02.21#
#बिषय...मुरका#
#समीक्षाकार... जयहिन्द सिंह जयहिन्द पलेरा /जिला टीकमगढ़#म.प्र.#
*************************
आज दोहे डरबे के लाने बुन्देली मुरका चुनौ गव।आज के जमाने में हमाय बुन्देलखंड के खान पान की भौत सी चीजें बिलात जा रयीं।हमाय साथियन में सें कैऊ जनें कव मुरका सें परिचित ना होंय।पर अधिकांस लोग परिचित हुइयें।पर फिर भी जौ बिषय आज के परिवेश में कठिन तौ लगै कै आखिँरजौ है का। पुराने तौ सब जानत पर आधुनिक संतान अपरिचित हो सकत।तो लोआज की समीक्षा सेंपैला मैया बीणा बारी खों नमन करत भय पटल के सब आदरनीय महानुभावोखाँ नमन।तो लो आज की समीक्षा शुरू कररय।

#1#श्री रामानन्द पाठक जी...
आपने अपने दोहन मेंमुरका सें सबखों परिचित करा दव।बनाबे की तरकीब सब गुनन सें परिचय कराव।मुरका के खाबे कौ जाड़न के आनंद कौ बरनन करो गव।आखिरी दोहा ने मजा बाँद दव।
जड़कारें सेवन करौ......हुये न कोऊ बीमार।जौ दोहा भौत नौनौ लगो।भाषा निरदोखल है।भाषा मेंसरपट रिपटा है।अवरोध बिलकुल नैंयाँ।पूज्य पाठक जी खों नमन।
#2#श्री राम कुमार शुक्ला रामजीःःःःःः
आपने मुरका बनाबे की बिथि बताई,मुरका के फक्के बारे बूढे सब लगाऊत ।मुरका और देशी शराब दोई मौवन सें बनत पर गुन अलग होत।मुरका की तासीर गरम बताई।आपकै सबयी दोहा मजेदार हैं।भाषा मीठी और रिपटदार है।कहीं अवरोध नयीं होत।आदरनीय खों नमन
#3#श्री अशोक कुमार पटसारिया नादान जे........
मुरका  डुवरी खाबे कौ और पास के मौवा उत्पादन क्षे. कौ बरनन करो।पैला मौवन कौ खानौ हतो।
मौवा के सब घटक बताय गय।पैला मुरका लटा खूब खाय अब पेड़ कटबे सेंमिलबौ दुरलभ हो गव।सबरे दोहे अब्बल हैं।लगत कौन पैलै नंबर पै कै दैये।भाषा की जादूगरी नौनी रयी।आपकौ वंदन अभिनंदन

#4#जयहिन्द सिंह जयहिन्द....
मैनै लिखो मुरका पेट की भूंख मिटा देत।मुरका जाड़न में भौत नौनौ लगत।मुरका बनाबौ बताव गव।लटा कूटकें खाबौ बताव गव।डुबरी लटा मौवा मुरका किसान खूब खात।बुन्देली भोजन सबकी पीर हरत।भाषा कौ आकलन आप सब जनें जानौ।
#5#श्री परम लाल तिवारी जी....
आपने मुरका बनाबे की बिधि स्वाद कौ बरनन करो।ई की जो निन्दा करै समझौ बा बकबास है।मुरका स्वर्ग में नैंया।हम घरै बनवाकें सबकौ नेवतौ करें।
श्री तिवारी जी मुरका बनाकें घरै धरौ,और पतौ लिख दो सब जनै नेवते आजें।दोहन की तारीफ करत थक जैहै।भौतयीं नौनैं लगे।
भाषा संगठन अद्भुत है।आदरनीय खों नमन।
# 6 डी पी शुक्ल सरस जी......
आपने लिखो लडुवा मुरकाचना खाय सें आदमी तगड़ौ हो जात।
मौवा सें डुबरी किनानौ डार कैं बनाव।मुरका बूढे बिना दाँतन के खा लेत।मुरका मठा खाबे सें बीमारी नयीं होत।मुरका बनाबौ बताव गव।मका केफुटका मुरका और धान के चाऊर खाव।भाषा नौनी ढड़कदारदमदार अनौखी है।सबयी दौहे साजे लगे।आदर्णीय शुक्ला जी को नमन।
#7#श्री राजीव नामदेव राना लिधौरी जी 
 हिम्मत देत,और रोग दूर कर देत।मनकौ मुरका मुरामुरा खाव।गाँवन में मुरका देख कें जी ललचात।दोहे दोई जोरदार हैं। भाषा मिठास रोज और मीठी होत जा रयी।आपकौ वंदन ।
#8#डा.रेणु श्रीवास्तव जी....
आपने मौवा तिली और घी सें मुरका बनाव ,घी डारे सें लटा बन जै।मुरका में घी डारे सेंमुरका भुरभुरौ ना बन पाय ।आपने लिखो मुरका डुबरी मौवन सें बनाई जात,सब मौवन के पेड़ कटत जा रय अब मुरका कैसें बनै।आपने लिखो मुरका सें मुरक कें पीजा बर्गर ना खाँय।भाषा साजी है ,सबयी दोहे अच्छे हैं।बहिन जी के चरणों में सादर नमन।
#9#श्री एस.आर.सरल जी.....
आपने अपने दोहन में मुरका बनाबे की बिधि कौ बरनन करो।मुरका घर भर खाकें आनंद लेत।देहातन में जड़कारन में आज भी मुरका बनत।ईखों सब अमीर गरीब खात।मुरका रोगन कौ निदान है,और तगड़े होबे की दवाई है।आपकी भाषा चमत्कारिक और प्रवाह भरी है।
आपखों बेर बेर नमन।
#10#श्री कल्याण दास साहू पोषक जी......
आपने लिखो पैलाँ मौवा सबखाँ पालत ते।ंमुरका लटा डुवरी खूब खबत ते।मौवा तिली सबकें भुजत ते,कलेवा के लानें मुरका मौन भोग हतो।ंईसें भूंक मिट जात ती।ंजौ बुन्दैली मेवा अब मिलत नैयाँ।आपकी भाषा में अपनेपन की झाँकी झाँकबे कौ मौका मिल जात।आदरनीय पोषक जी खों सादर धन्यवाद।
#11#श्रीं राज गोस्वामी जी...
आपने लिखो मुरका कौ स्वाद ंमुरमुरा घाँयीं बताव,ंईखों मुरा मुरा खाना चहिए।ंमुरका कौ नास्ता चाय के संगै भी कर सकत।ंमुरका खों मूली नीबू के संगै मिरच डार कें खाय जो चटपटौ लगै तो लड़ुवा के साथ खाबे की सला दयी।आपने 3 दोहे डारे अच्छे रहे।भाषा में प्रवाह है कोई अवरोध नहीं दिखता है।श्री गोस्वामी जी को सादर नमन।
#12#ंडा. सुशील शर्मा जी...
ंआपने मुरका  की तारीफ करकेंंलिखो जो मुरका खाय बौ बीमार न हुईए।मुरका में नीबू मिर्च डारकें खाबे सेंंअगर चटपटा लगै तौं लडुवा के संग खाय।आपने फरा और दूध महेरी के संगै खाबे कौ बरनन भी करो।
आपके तीनौ दोहे टंच हैंं,भाषा प्रवाह उत्तम है।ंआपको शत शत नमन।
#13#श्री संजय श्रीवास्तव जी...
आपने बब्बा दादी के संगै मुरका डुबरी कौ प्रयोग करो।आपने नयी संतान की चिन्ता करी उनने मौवा के पेड़ नयीं देखे तो मुरका कैसें जाने।ंमौवा के पेड़ की तारीफ करी गयी।ंकलेवा में मुरका दुपरै खीर डुबरी संजा कें ठर्रा पीबे को बरनन करो।मौवा अचरज करो कै जो पेडकौ नग नग काम में आ जात।ंसब दोहा ठीक लगे भाषा प्रवाह मजेदार  है।ंआपका शत शत अभिनंदन।
#14#पं.श्री हरि राम तिवारी हरि जू......
आपने दोहा छंद की रचना दोहा छंद सें पूरी समझायी जो वास्तव में सटीक है।आपने अपने दोहन मेंंमुरका और लटा बनाबे ंकी बिधियन कौ बरनन करो।ंमौवा खां शान बताव गव।मौवा कौ हर अंग काम में आऊत,अंतिम दोहा में नशाबंदी संदेश डारो गव जो कवि कौ मूल धरम है।
आपकी भाषांप्रवाहमयी चमत्कारी मधुर बुन्देली है।
हरि तिवारी कलम पुरानी, सबकी जानी मानी।
कौन दिया कर सको आज तक ,सूरज की अगवानी।।
मैं आपका वंदन अभिनंदन करतसो कृपा करें।
# जू.........
आपने दो दोहे पटल खों भेंट करे।मुरका खों स्वादिष्ट बताव।ौपूरे परिवार के साथ नीबू केसंगै मुरका के आनंद कौ बरनन करो गव।दूसरे दोहे का चरण अंत दीर्घ मात्रा से करना खटकता है।भाई का सुझाव है ।भाषा कौशल ठीक है।आपके चरणों में भाई का नमन।
#16#श्री वीरेन्द्र कुमासौरिया...जी
आपके अपने दोहन मेंअपने अतीत की यादेंमुरका के संगै डारीं गयीं।आपने जौ तक लिखौ कै अगर मुरका बनों होय तौहम उतै जा सकत।आपने बचपन को पचपन के संगै जोरबे की अच्छी पहल कृरी।भाषा भावभरी अनमोल है। आपको नमनं।
#17#श्री सियाराम सर जी.....
आपने अपने दोहों मेंमुरका डुबरी कौ प्रयोग घर आये मेहमानों पै कृरो।पतरी धरती कौ मौवा रसदार मीठौ होत।आपने जड़कारें में मुरका ठीक बताव।मुरका खाबे बारे खों स्वाभिमानी बताव गव।आपकी भाषा रसदार,प्रवाहभरी सरल बुन्देली है।आपको बार बार नमन।
#18#श्री राजपूत जी...
आपके दोहे में सुधार बताया है आप हिम्मत ना हारें कोशिश करते रहें आपके सफलता चृण चूमेगी।
अगर धोके सें किसी सज्जन की रचना धोके सें छूट गयी हो तो अपनो जान कें क्षमा करनें।
आज मुरका पै सबके बिचार लगभग एक से हते। पर विद्वानन ने अपने अपने बिचार र.खे जो स्वागत करवे जोग हैं।सबने एक पै एक रचनायें डारीं।जक बेर सबखों फिर सें राम राम।
आपकौ अपनौ समीक्षक.....
जयहिन्द सिंह जयहिन्द पलेरा
जिला टीकमगढ़ म.प्र.
मोबा.6260886596
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मुरका-बुंदेली व्यंजन
                  (बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन दिनांक 01-02-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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