Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

प्रेम के रंग दोहों के संग (दोहा संकलन)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़



                      प्रेम के रंग दोहों के संग
                  (हिंदी दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


                        प्रेम के रंग दोहों के संग
                  (हिंदी दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ई बुक प्रकाशन दिनांक 16-02-2021
        टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
         मोबाइल-9893520965

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              अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
3- एस.आर.'सरल', (टीकमगढ़)(म.प्र.)
4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
5-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
6-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़) 
7-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
8-रामानन्द पाठक,नैगुवा(म.प्र.)
9-परम लाल तिवारी, खजुराहो(म.प्र.)
10-प्रेक्षा सक्सेना, भोपाल(म.प्र.)
11-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
12-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,(म.प्र.)
13-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ (म.प्र.)
14- राम कुमार शुक्ला चंदेरा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
15- आज के समीक्षक- श्री सियाराम जी अहिरवार

####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#######


1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

**प्रेम**

*1*

प्रेम करो ऐसा करो,
मीरा सा हो ध्यान।
आयेंगे दौड़े चले ,
मुरलीधर भगवान।।

*2*

प्रेम हृदय प्रतिबिंब है,
मन के भाव जगाय।
इक दूजे के साथ में,
हर्षित हृदय समाय।।

*3*

बगिया तो महके सदा,
ये फूलों का काम।
मधुप प्रेम करता उसे,
होता क्यों बदनाम।।
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

2-- -कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)


मुख मण्डल पर हो चमक , पुलकित होवै गात ।
सहज मौन अभिव्यक्ति ही , प्रेम-भाव कहलात ।।

प्रेम पनपता है हृदय , खिल उठता है माथ ।
पुलक हुलक प्रफुल्लता , रमत बदन के साथ ।।

अनुशासन है प्रेम में , सदाचार सद्-भाव ।
सविनय सरस विनम्रता , तन्मयता समभाव ।।

प्रेम सुखद अनुभूति है , प्राकृतिक सौगात ।
होता जहाँ अभाव है , वहाँ घात प्रतिघात ।।

प्रेम उमड़ता है स्वतः , स्वाभाविक स्वच्छन्द ।
जहाँ शाश्वत प्रीत है , वहाँ सच्चिदानन्द ।।

 -कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
  ( मौलिक एवं स्वरचित )
####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

3--एस.आर.'सरल', टीकमगढ़

🙏हिंदी  दोहा # प्रेम#🙏

कलियाँ रस गागर भरें,
               प्रेम भँवर करि आश।
भौरा उड़ उड़ रस पियें,
             संग रचावै रास।।
💐💐💐💐💐💐
कलियाँ सीना तानकै,
              जादुइ सो करि देत।
प्रेम मगन भौरा उड़ें,
              कली कली रस लेत।।
🦋🦋🦋🦋🦋🦋
प्रेम मधूरस पान करि,
               को नहि भयउ मतंग।
 स्वाद चखें उडि उडि भगै,
                रस  लेते रति रंग।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
प्रेम कृष्ण राधा करों,
                 वेद ग्रंथ सब गाइ।
राधा रास रचाइ  सँग,
                  प्रेम सुधा बरषाइ।।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
मानव मनव बीच मे,
                 बहे प्रेम रस धार।
'सरल' प्रेम रस छाँव में,
                 फूल खिलें हर द्वार।।
🌷🌷🌷🌹🌹🌹🌹🌹
  🙏मौलिक एवं स्वरचित🙏
        🌷एस आर सरल🌷 🌹टीकमगढ़🌹       
#######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
                    
                    #1#
प्रेम देत परिचय सदा,पुलकित गदगद गात।
बनत प्रेम से निकटता, देत बैर को मात।।
                    #2#
प्यार जहाँ हँसता रहे,प्रेम वहां पर रोय।
प्यार दशहरा है अगर,प्रेम दिवाली होय।।
                    #3#
प्रेम दिवानी हो गयी,मीरा की पहचान।
लैला मजनू बन गये,अमर प्रेम कीशान।।
                    #4#
प्रेम पुटरिया पिया की,बखरी में दो खोल।
जो खोलत बन सके ना,रखियो सदा टटोल।।
                    #5#
प्रेम भगत की शान है,भगत प्रेम उपजाय।
धोखा देती मित्रता, प्रेम मात ना खाय।।

-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

5-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)

*१*
प्रेम माँगता समर्पण,
      त्याग और विश्वास।
जिसके हृदय प्रेम है,
      वह धरती, आकाश।।
*२*
प्रेम नही है वासना,
      इसे प्रार्थना मान।
मीरा भक्ति प्रेम की,
     पूजा,जप,तप,ध्यान।।
*३*
क्रोध,जलन,नफरत,जहाँ,
        वहाँ प्रेम मर जात।
जैसे सूखे पेड़ से,
       फूल-पात झड़ जात।।
*४*
मस्तिष्क में बसता नही,
       मन में बसता प्यार।
दिल के आगे विवश है,
      दिमाग के हथियार।।
*५*
हृदयतल का प्रेम ही,
     है अनुपम उपहार।
गुणा भाग चलता नहीं,
     प्यार नही व्यापार।।
*६*
प्रेम पथ विकास का,
      समझो नहीं विलास।
जो तन के तल पर खड़ा,
         प्रेम नहीं है पास ।।

    *संजय श्रीवास्तव* मवई
   स्वरचित,१६-२-२१,दिल्ली
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

6-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 


इस विशाल संसार में,
        प्रेम बड़ा अनमोल।
इसके बिन सूना लगे,
       जीवन का भूगोल।।
                *
मीठा लागे प्रेमरस,
        जिन चाखा भरपूर।
विरह अगन में जो जले,
        हो गय चकनाचूर।।
               *
जीवन का रस प्रेम है,
         जो शाश्वत चेतन्य।
जो डूबे रसधार में,
       उनके जीवन धन्य।।
               *
प्रेम मिलन संयोग है,
              जो देवै दातार।
धरती बादल मोर सा,
       या चकोर सा प्यार।।
               *
प्रेम बिना नर बावरौ,
       दर दर फिरे बिकात।
पढ़े छींट जो प्रेम की,
     पुलकित अंतस गात।।
               *
🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁
               -अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
###जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़##

7-राज गोस्वामी,दतिया (मप्र)


1-प्रेमपत्र के दिन गये, होती सीधी बात ।
मुख सम्मुख हो जात है,मुलाकात दिन रात ।।

2-हंस खिल लेत मुबाइल पै जब मन लेत हिलोर ।
 बाते होती प्रेम की, टूटत नाही डोर ।।

3-जो होते है निषकपट चलत रहत है प्रेम ।  
पूछ लेत मोवाइल पै सदा कुशलता क्षेम ।।

-राज गोस्वामी,दतिया(म.प्र.)
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

8-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,


             पांच हिन्दी दोहा प्रीति 
                  1
प्रीति प्रियतम सें निभत,जग में प्रिय यह रीत।
प्रभु को प्रियतम मानियों, कबहुं न जग विपरीत।
                    2
प्रीती पाठ पढाय को, धरती लय अवतार।
प्रेम सहित हिल मिल रहें, सीख देय करतार।
                      3
प्रीत की रीति अमर जग में, जैसें लोटा वेल।
बृक्ष वेल कौ संग निभै,हैं दोइ अनमेल।
          ‌              4
कपी प्रभु में प्रीति भई, दोई पक्ष ज निभाय।
सब कपि उद्बारित हुए, खोजत सिया सहाय ।
                        5
अंगत कह हनुमान सें प्रभु न विसारें मोय।
मोरी कहियो प्रभु सें ,प्रीति न थोरी होय।

                 -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

9-परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
"प्रेम"
कोई नहीं समर्थ है,कहे प्रेम को गाय।
प्रेम कहत ही कंठ रुध,नैना अश्रु बहाय।।

बिना प्रेम इस जगत में,क्या लखवे है योग।
प्रेम बिना फीके लगें,मानव को सब भोग।।

प्रेम प्रेम सब कोई कहे,प्रेम न जाने कोय।
करे समर्पण स्वार्थ तज,तबहिं प्रेम मुद मोय।।

प्रेम मूर्ति आचार्य ने, सिखलाया यह पाठ।
जो चाहो प्रभु प्रेम को,तजो अहम मम ठाठ।।

बिना लवण के साग का,स्वाद बिगड़ जिमि जाय।
प्रेम बिना तस साधनहुं,कहो कौन रस पाय।।
स्वरचित एवं मौलिक

   -परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

10- प्रेक्षा सक्सेना, भोपाल (मप्र)

राम नाम से प्रेम कर ,मिल जाएँगे राम।
राम सहायक जो हुए,बनते बिगड़े काम।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

जानत भाषा प्रेम की,दुनिया मे सब कोय।
शब्दों का ना मोल है, मोल प्रेम का होय।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मिलना चाहो कृष्ण से,मिलता ओर न छोर।
राधा को मोहन मिले, पकड़ प्रेम की डोर।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

धन के पीछे भागता,सब जग ये अंधी दौड़।
सब सुख मिलता प्रेम में,इसका मिले न तोड़।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

लौटाओ ना द्वेष को ,रख दो कहीं उतार।
क्षमा हृदय में राखिए, प्रेम न रखो उधार।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
                  - *प्रेक्षा सक्सेना*, भोपाल
######जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#####

11-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी

प्रेम तत्व पर मैं लिखूँ, दोहे शारद मात/
'इंदु' सफल कर लेखनी, धरो कृपा को हाथ//

प्रेम- प्रेम की बात कर, नित्य प्रेम में ध्यान/
'इंदु'प्रकृति के रूप में, समझ प्रेम नादान//

प्रेम सभी से कीजिये, पावन हो घर द्वार/
'इंदु' प्रेम से कर यहाँ, सबका तुम सत्कार//

प्रेम सुधा पावन सरस, करत मनुज जो पान/
'इंदु'सकल कारज सफल, बनी रहे मुस्कान//

प्रेम रहित जीवन सदा, समझो मृतक समान/
'इंदु' मान सम्मान भी, खोते अपनी शान//

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

12-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल, (म.प्र.)
      
प्रेम 

प्रेम महिमा बहुत भली ,
माँगे त्याग का दान ।
मीरा की भक्ति बनी ,
प्रेम कथा की शान ।।

राधा किसन का प्रेम भी ,
अनुपम पवित्र  कहाय ऋ
जगत के मानस जन को ,
प्रेम सीख दे जाय ।।

सरल बड़ा ये भाव है,
जाने है सब कोय ।
रूप अनेकों धार के ,
मानव हित ही होय।।

बड़ी  सरस रस धार है ,
जो डूबे सो पाय ।
प्रीत बिना जीवन नहीं ,
व्यर्थ जन्म हो जिय ।।
स्वरचित 
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल   
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़######

13-सियाराम अहिरवार , टीकमगढ़ 
            🥰विषय -प्रेम 🥰

           1****
अमर प्रेम जिनका रहा ,लिखे गये इतिहास ।
पग कुपंथ जिनने धरे ,बने पात्र परिहास ।।
           2****
प्रेम पनपता भाव से ,हो जाता अनमोल ।
वशीकरण है मंत्र ये ,मधुरस देता घोल ।।
            3****
विष का प्याला पी गई,हो प्रेम वशीभूत ।
बन गइ मीरा जोगनी ,छोड़ पति और पूत ।।
           4****
सदा सुहावन रूप का ,करते सब सत्कार ।
प्रेम सदा बँटता रहे ,कुदरत सा उपहार ।।
           5****
जब अपनापन है नहीं ,इस दुनियाँ में यार ।
 प्रेम बिना सब व्यर्थ है  ,सब झूठा संसार ।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
#####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####

14- राम कुमार शुक्ला चंदेरा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
        प्रेम

प्रेम डोर पागे रहो,
                प्रेम जगत अनमोल।

प्रेम बिबश भय "राम" जी,
              दय सबरी पट खोल।।
राम कुमार शुक्ल, चंदेरा, टीकमगढ़

####जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####
आज की समीक्षा- श्री सियाराम जी अहिरवार टीकमगढ़
जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़
         हिन्दी में दोहा लेखन 
विषय-प्रेम दिन -मंगलवार,दिनाँक 16/02/2021

          आज की समीक्षा करने से पहले सभी मनीषी विद्वानों को सादर प्रणाम ।आज ऐसा विषय दिया गया ,जिसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है ,शब्दों से इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है ।फिर भी सभी साहित्यकारों ने अपनी कलम के माध्यम से बहुत ही शानदार दोहे रचे ।सभी को बसंत पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएं ।
             साथियो प्रेम एक ऐसा शब्द है ,जिसके बारे में सदियों से कवियों ने कविताएं रची , गीतकारों ने गीत लिखे ।.प्रेम एक अवस्था है ।प्रेम किया नहीं जाता हो जाता है ।समुद्र की गहराई नापी जा सकती है ,लेकिन प्रेम की नहीं ।हर युग में प्रेम था और रहेगा ।प्रेम इबादत है ,प्रेम ही पूजा है ।प्रार्थना है ,एक नशा है ,जो उतारे नहीं उतरता ।समय के साथ साथ और गहरा होता जाता है ।प्रेम एक बंधन है ,इसी के सहारे सारा संसार टिका है ।
           आज पटल पर बहुत ही शानदार दोहों के साथ पटल पर ,आदरणीय अशोक पटसारिया जी नादान ने अपनी उपस्थिति दर्ज की । आपने लिखा कि इस संसार में प्रेम बडा़ अनमोल है ।इसके बिना जीवन और भूगोल दोनों ही सूने है ।साथ ही आप लिख रहे कि-
मीठा लागे प्रेम रस ,जिन चाखा भरपूर ।
बिरह अगन में जो जले ,हो गय चकनाचूर ।।
बढिया लिखा बधाई ।
श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता जी ने भी बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित पाँच दोहे रचे ।जिसमें तीसरे दोहे में आप लिख रहे हैं कि -
प्रेम सुधा पावन सरस ,करत मनुज जो पान ।
इंदु सफल कारज सफल ,बनी रहे मुस्कान ।।बढिया लिखा आदरणीय ढेर सारी शुभकामनाएं 
 श्री संजय श्रीवास्तव जी ने भी स्वरचित पाँच दोहे लिखे ,जो मजेदार और सार्थक है ।
आपने लिखा कि जहाँ क्रोध ,जलन,नफरत है ,वहां प्रेम मर जाता है ।बहुत ही नीतिपरक बात कही है ।ढेर सारी शुभकामनाएं आपको अच्छा लिखा ।धन्यवाद ।
आदरणीय जयहिन्द सिंह जयहिन्द जू ने अपने मौलिक दोहे लिखते हुये गदगद कर दिया है ।आप लिख रहे कि-
प्रेम पुटरिया पिया की,बखरी में दो खोल ।
जो खोलत बन सके ना ,रखियो सदा टटोल ।बहुत ही मजेदार और शानदार दोहा रचा ।सादर नमन ।
श्रीमान रामानन्द जी पाठक नैगुवाँ ने भी बेहतरीन दोहे लिखे ,जिसमें आपने लिखा कि-
प्रीति प्रियतम से निभती है ।बढिया मार्मिक रचना की आपने ।आपको सादर नमन ।
श्री राजीव नामदेव जी राना लिधौरी जी ने भी प्रेम शब्द को परिभाषित करते हुये बहुत ही बढिया दोहे रचे ।आप लिख रहे कि -प्रेम हृदय प्रतिबिंब है ,मन के भाव जगाय ।
इक दूजे के साथ में ,हर्षित हृदय समाय ।
बहुत ही मजेदार दोहा है ।धन्यवाद ।
श्री एस.आर. सरल जी ने भी बढे ही मनभावन दोहे लिखे ।जिसमें आपने लिखा कि -कलियाँ रस की गागर भरे है ।और भौंरा उड़ उड़ कर रस पीकर रास रचा रहा है ।  
आपने बसंत ऋतु के आगमन पर सभी रोचक दोहे लिखे ।धन्यवाद सहित बधाई ।
श्रीमती हंसा श्रीवास्तव जी ने भी बढिया सारगर्भित और मजेदार दोहे लिखे जिसमें आपने प्रेम की महिमा को भला बताया है ।धन्यवाद ।
प्रेक्षा श्रीवास्तव जी ने भी बहुत ही अनुपम ,मजेदार दोहे गढे ।जिनमें आपने राम के नाम से प्रेम करने की बात कही है ।जो प्रेरक भी है और नीतिपरक भी ।बधाई आपको अच्छा लिखा ।
परमलाल तिवारी जी खजुराहो अपने पाँच मौलिक दोहे लिखे ।जो सार्थक हैं ।आपने प्रेम को परिभाषित करते हुए सभी दोहे लिखे ।जो कसौटी पर पूर्णतः खरे है ।धन्यवाद ।
रामकुमार शुक्ल जी ने भी एक मात्र दोहा लिखा जो बढिया ,सार्थक है ।बधाई ।
श्री कल्याण दास साहू पोषक जी ने भी बहुत ही मजेदार ,दमदार दोहे लिखे ।जो श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति का उदाहरण है ।एक बानगी देखें -
प्रेम पनपता है हृदय ,खिल उठता है माथ ।
पुलक हुलक प्रफुल्लता, रमत बदन के साथ ।।
अच्छा लिखा ढेर सारी शुभकामनाओं सहित बधाई ।
श्री राज गोस्वामी जी ने भी सुन्दर दोहे रचे ।आपको भी धन्यवाद सहित बधाई ।
मैने भी दिये गये विषयानुसार पाँच दोहे लिखे ,जो आप सभी की समीक्षा हेतु प्रेषित है ।
      इस तरह से आज पटल पर 14 साहित्यकारों ने अपनी सहभागिता निभाई जो सभी बधाई के पात्र हैं ,सभी ने उम्दा लिखा ।इसी तरह से पटल पर हमेशा और भी आगे लिखते रहें जिससे हिन्दी भाषा समृद्ध होती रहे । एक बार पुनः आप सभी को नमन ।
समीक्षक-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ ।🙏🙏
########जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़####



                  प्रेम के रंग दोहों के संग
           (हिंदी दोहा संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

         ईबुक प्रकाशन दिनांक 16-02-2021
            टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
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