*बुंदेली व्यंग्य कविता- "राजनीति मिदरवा हो रयी""*
जब सें दई है हमने उदारी।
वे ईद कौ चांद हो रय।।
वापिस मांगो तो खिसिया रय।
घर पौचों तो दुकत फिर रय।।
राम-श्यामा अब नई हो रयी।
मोबाइल पै बात नै हो रयी।।
रिश्तों में अब खटास पर रयी।
मैंगाई जा भारी पर रयी।।
कीसें कय अरु कौ है सुन रऔ।
लाठी बारे की भैंस हो रयी।।
पेट्रोल देखो हवा में उड़ रऔ।
फटफटिया घरै धरी रो रयी।।
आ गऔ देखो कैसों ज़मानौ।
जींस पैर कै मौंडा हो रयी।।
इक दूजे के गोड़े ताने।
राजनीति मिदरवा हो रयी।।
***
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
(मेरी उपरोक्त रचना मौलिक एवं स्वरचित है।)
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