ईद का चांद
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 25-07-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
03 प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद (हरियाणा)
04-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
05-राज गोस्वामी,दतिया (मप्र)
06-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
07-जनक कु.सिंह बाघेल, भोपाल
08-श्याम मोहन नामदेव,देरी, टीकमगढ़(म.प्र.)
09-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़)
10- कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
11- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़ (मप्र)
12- सु संस्कृति सिंह, भोपाल (मप्र)
13- रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
14-सीताराम तिवारी 'दद्दा', टीकमगढ़,(म.प्र.)
15-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा टीकमगढ़
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1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
**बुंदेली व्यंग्य कविता- "ईद कौ चांद"*
जब सें दई है हमने उदारी।
वे ईद कौ चांद हो रय।।
वापिस मांगो तो खिसिया रय।
घर पौचों तो दुकत फिर रय।।
राम-श्यामा अब नई हो रयी।
मोबाइल पै बात नै हो रयी।।
रिश्तों में अब खटास पर रयी।
मैंगाई जा भारी पर रयी।।
कीसें कय अरु कौ है सुन रऔ।
लाठी बारे की भैंस हो रयी।।
पेट्रोल देखो हवा में उड़ रऔ।
फटफटिया घरै धरी रो रयी।।
आ गऔ देखो कैसों ज़मानौ।
जींस पैर कै मौंडा हो रयी।।
इक दूजे के गोड़े ताने।
राजनीति मिदरवा हो रयी।।
***
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
(मेरी उपरोक्त रचना मौलिक एवं स्वरचित है।)
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2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, टीकमगढ़ (मप्र)
#रविवार#दिनाँक 25.07.21#
#बिशैष हिन्दी/बुन्देली लेखन#
#बिषय...ईद का चाँद#
*************************
#ईद का चाँद#
धुन....चंदन सा बदन,चंचल चितवन,धीरे से तेरा ये मुस्काना।
ओ मेरे सनम,तुझे मेरी कसम,
जीवन के हमसफर बन छाना।
दिखते दो हैं,पर एक हैं हम,
तुम ईद के चाँद ना बन जाना।।
#1#
जब जब जातीहूँ उपवन में,
मुझे तेरी याद सताती है।
तड़पन मन में तब उठती है,
कोयलिया राग सुनाती है।।
मधुवन की राधा मैं तेरी,
तूं श्याम है मेरा दीवाना।दिखते...
#2#
मुझे याद सताती है दिन भर,
गिन गिन तारे काटें रातें।
तेरी झाँकी झाँकूं में जब,
तस्वीर करे तेरी बातें।।
तब दिल को धीर बँधाता है,
मंद मंद तेरा मुस्काना।दिखते.....
#3#
मन मेरा मान सरोवर है,
मैं उसमें गिरती धारा हूँ।
तूं सरिता का चंचल पानी,
मैं उसके लिये किनारा हूँ।।
मैं लगूं लाजबन्ती तेरी,
शरमाऊं तो मत घवराना।दिखते..
#4#
मैं अगर चाँदनीं हूं तेरी,
तूं चाँद मेरा कहलायेगा।
बो शरद पूर्णिमा कब आये,
जब प्यार सुधा बरसायेगा।।
जयहिन्द शिखा शीतल होगी,
जिसमें न जले कोई परवाना।
दिखते दो..........
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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3-- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद (हरियाणा)
ईद का चांद
तक रहे चांद ईद का,अब्बू हो या मुनिया
दीदार को रहती है बेताब ये दुनिया।
बरसों से किया तरसे ,प्यारी सी दीद के
दे दी है मात तुमने ,चंदा को ईद के।
बाहर भी निकला करो,छोड़ो घर की मांद
बने हुए हो आप तो, मियां ईद का चांद।
- प्रदीप गर्ग 'पराग', फरीदाबाद
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4-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
बिषय..ईद का चांद
चांद ईद का लगते हो तुम,
कितने प्यारे लगते हो तुम।
नजर हटे न चेहरे से तेरे ,
सबसे न्यारे लगते हो तुम।।
बलखा के तेरा यूं चलना।
सुरमयी आंखों का मटकना।।
ओठों पर मुस्कान है बिखरी ,
अब भी क्वारे लगते हो तुम।
चांद ईद का लगते हो तुम,
सबसे प्यारे लगते हो तुम।।
लट काली झटका कर चलती,
अंखियां भी मटका कर चलती।
लाली लगा ओठन पर चलती,
आंखन कोर निकारे हो तुम।
चांद ईद का लगते हो तुम,
सबसे प्यारे लगते हो तुम।।
कभी कभी मुझे तेरा ये दिखना,
प्यार भरे अल्फाज भी लिखना।
दिखना, दिखकर ओझल होना,
अदा खूब, बहारें हो तुम।।
चांद ईद का लगते हो तुम,
कितने प्यारे लगते हो तुम।।
-***
-प्रदीप खरे मंजुल,टीकमगढ़ (म.प्र.)💐
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
5--राज गोस्वामी,दतिया (मप्र)
*चाँद*
*******
सबका मैं आम हूँ सबका मैं खास ।
बच्चों का मामा हूँ चंद्रलोक वास ।।
हूँ शरद की चाँदनी सुरनाद हूँ ।
मैं चाँद हूँ.. मैं चाँद हूँ ।।
होती है राय जहां उगना है कर्म ।
कोई ना जात मेरी भाषा न धर्म ।।
ग्रहण हूँ नक्षत्र हूँ संवाद हूँ ।
मैं चाँद हूँ.. मैं चाँद हूँ ।।
सिर पर न बाल मेरे घुंघट न लाज ।
जान नही पाया है कोई मेरा राज ।।
भाग्यवादी हूँ बड़ा अपवाद हूँ ।
मैं चाँद हूँ.. मैं चाँद हूँ ।।
करवा की चौथ मुझे करते सब याद ।
होती है फलीभूत मनौतियाँ मुराद ।।
ईद हूँ - बकरीद हूँ फरियाद हूँ ।
मैं चाँद हूँ.. मैं चाँद हूँ ।।
मुड़ मुड़ के लोग मुझे देखते अनेक ।
कोई छुपा रुस्तम तो कोई दिलफेक ।।
गुलबदन जौहरा जबी नौशाद हूँ ।
मैं चाँद हूँ.. मैं चाँद हूँ ।।
**
-राज गोस्वामी,दतिया
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6-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
ईद का चांद
छत पर आईं देखने, चांद चांद सी हूर।
उसे देख कर ईद का, चांद हुआ बे नूर।।
रुख से हटा नकाब तो,हुई सुहानी दीद।
चांद दिखा तो मन गई,बे मौसम की ईद।।
चंदा देखन ईद कौ, चंदा छत पै आइं।
हमें ईद के चांद की, उनमें दिखरइ,झांइं।।
भौत दिनन के बाद में,दरसन हो रए आज।
काए ईद के चांद से, हो रए हौ महाराज।।
***
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
7- जनक कु.सिंह बाघेल, भोपाल
आँखों का तारा
है आँखों का तारा मेंरा , राम ये दुलारा मेंरा ,
वल्कल धारण कर , कैसे वन जात है ।।
आकर सुमित्रा देखो , लछिमन साथ देखो ,
चीर वस्त्र धारि कर , सिया चली जात हैं ।।
नहले पे दहला दे , क्रूर ये कैकेयी देखो ,
अंकुश लगाय राज , वन भेजवात है ।।
राम – राम राव रटें , भूमि पे बिहोश पड़े ,
अपना सा मुह लेके , कैसे विलपात हैं ।।
विधि का विधान देखो , मंथरा का ज्ञान देखो ,
अवध का हाल जैसे , नाग डसे जात है ।।
***
-जनक कु.सिंह बाघेल, भोपाल
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
08-श्याम मोहन नामदेव,देरी, टीकमगढ़(म.प्र.)
*नमन मंच – जय बुन्देली साहित्य समूह*
*दिनांक – 25/07/2021, रविवार*
*आयोजन – कविता सृजन*
*विषय – ईद के चाँद*
**********************************
सखी री, श्याम स्वप्न में आये।
कह गए थे प्रतिनिशि सपने में, आऊंगा ना आये।।
बैरन हो गयी नींद हमारी, लेटूँ नींद न आये।।
आज बड़ी उत्कंठा थी मन, विरह बड़ा तड़पाये।।
हो गए *ईद के चाँद* सांवरे, बड़े दिनों में आये।।
*✍️ श्याम मोहन नामदेव, देरी
देरी, जिला – टीकमगढ़, म.प्र.
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
9-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़
💐चंद शेर आपकी नज़र💐
*** * *** * ***
😊ईद का चांद😊
ऐसा भी क्या है ईद के,
उस चांद में मियां।
हमको हमेशा उसकी तरह,
मान रहे हो।।
तुम ईद का हो चांद तो,
बेताब यहां हम।
छत पर कभी आया करो,
दीदार के लिए।।
ए मेहजबीं निकली भी तो,
आफ़ताब की तरह।
हम ईद के भी चांद को,
बेताब बहुत थे।।
मेहरुन्निशा माहेजबीं,
मुमताज महल हो।
ए नाज़नीं फिर ईद का,
क्यूं चांद बनी हो।।
ए नाज़नीं रुखसार से,
चिलमन हटा के देख।
वैसे तो चांद ईद का,
निकला हुआ है आज।।
कहते थे कि तुम ईद के,
हो चांद के मानिंद।
लो हम सरे बाज़ार ,
सरी राह खड़े हैं।।
गुलज़ार चमन था कभी,
सजतीं थी महफिलें।
वो ईद के भी चांद हुए,
गर्दिशों को देख।।
तुम माहेताब महजबीं,
मेहरुन्निशा भी हो।
कहने को तो हम ईद के भी,
चांद नहीं हैं।।
कुछ लोग खुदा बन गए,
कुछ रहनुमा बने।
निकला है चांद ईद का,
दिल्ली से खबर है।।
बैसे तो आबे जम जम भी,
झरता है चांद से।
हम ईद के उस चांद से,
आगे नहीं गए।।
**** * ****
माहेजबीं= चांद सा माथा,
मेहरुन्निशा = खूबसूरत
मुमताज़= विशिष्ठ गणमान्य
नाज़नीं = नखरे वाली सुंदर
आबे जम जम =अमृत
गर्दिश =बुरे दिन
मानिंद = जैसा
रुखसार= गाल
चिलमन =झीना पर्दा
आफ़ताब =सूर्य
रहनुमा = अगुआ मार्गदर्शक
****
-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
चतुराई की खाँद महोदय ।
सबसें बडी़ चिराँद महोदय ।।
उल्टी - सूदी धांदें अपनीं ।
भौत करत हैं दाँद महोदय ।।
हाँत जोर कें दरसन दय हैं ।
भये ईद कौ चाँद महोदय ।।
बंगला गाडी़ वारे होगय ।
बगरावें ऐंठाँद महोदय ।।
पैल गरे सें लगा लेत ते ।
अब करतइ घिनियाँद महोदय ।।
भाषा मजहब जाति वाद की ।
फैलावें छिछराँद महोदय ।।
कभउँ-कभउँ मुरगा-दारू की ।
छोड़त हैं झुक्काँद महोदय ।।
***
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
11-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
🌷ईद की चाँद 🌷
अखियाँ तरस गई दर्शन खौ।
ऐसी का खटयाँद हो गई।
मात पिता की भौत लाड़ली,
बिन्नू ईद की चाँद हो गई।।
का ऐसी कर्री कौरी भइ,
कै बातन में झल्लाँद हो गई।
कौन बात पै कबै बिगर गई,
सो सबसे चटकाँद हो गई।।
बँग्गा कौन बनौ नइँ बिन्नू,
सो ऐसी घिनयाँद हो गई।
चन्दा से मुखड़ा पै बिन्नू,
अब कैसी छुछराँद हो गई।।
कौन बात पै तनातनी भइ,
काय पै कूँदा फाँद हो गई।
सो भौत दिनन में आई बिन्नू,
सबखौ ईद की चाँद हो गई।।
###
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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12- सु संस्कृति सिंह, भोपाल (मप्र)
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13-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
जय बुंदेली साहित्य समूह.
25/7/2021.
गजल.
मीत जाने कहाँ खो गये।
ईद के चांद वो हो गये।।
महफिलें आज सूनी पडी़।
दोस्त आते नहीं जो गये।।
वक्त बदला यहाँ इस तरह।
कैद घर में स्वयं हो गये।।
मिल रही है सजा हर तरफ।
बीज जैसे जहाँ बो गये।।
कांच पत्थर बटोरे बहुत।
जिंदगी सिर्फ हम ढो गये।।
दर्द किसको सुनायें यहाँ।
जो सुने और खुद रो गये।।
अब जगा दो मुझे इंदु यूँ।
हम अगर जो कहीं सो गये।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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14-सीता राम तिवारी दद्दा टीकमगढ़(मप्र)
बिषय..ईद का चांद
ईद का चांद निकला,
आया मुस्काता छत पर।
इठलाया, कुछ इतराया,
देखा पल भर मुझे नजर।
न जी भर के देखा,
न बात की।
आरजू बन गई है,
अब मुलाकात की।।
बेदर्द बड़ी जालिम,
बरपा गई कहर।।
बला की थी उसकी,
हेरन तिरछी नजर की।
सुध भूल गये अब तो,
अपनी डगर की।
क्या खूब है ईद का चांद भी,
मिल न सकी हमारी,
उससे कभी नजर।।
***
-सीताराम तिवारी, टीकमगढ़
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
15-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा (टीकमगढ़)
🌹बुन्देली 🌹
चौकडिया
बिषय ईद का चाँद
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
सब अपनी नजर लगारये
न ईद चाँद दिखारये
भीड़ लगी है सड़क दोर पर
उठा के हात बतारये
कोऊ कहत अबै न दिखबै
कोऊ कहत दिखारये
कहत भाऊ जो चाँद दिखे न
हम नई खाना खारये ।।
***
गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा( टीकमगढ़)
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😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
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3 टिप्पणियां:
बहुत ही उम्दा प्रयास है राजीव जी ई बुक इतनी जल्दी तैयार हो गई सभी के नाम औरछवि के साथ आपकी लगन और मेहनत को नमन । मैं ईद का - चाद शब्द सेतु नहीं ध्यान दे पाई थी मुझे समझ में आया कि मुहावरो की रचना हो अतः ईद का चांद शब्द प्रयोग नहीं किया गया फिर भी आपने मेंरे रचना को भी शामिल किया इसके लिए आपको तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ । बहुत बहुत धन्यवाद
जनक कु . सिंह बाघेल
जी धन्यवाद मैम
बीच बीच में थोड़ा सुबह से बनाते रहे है।
Very nice collection of doha
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