बिजना
बिजना
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 06-07-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
3- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
4-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
5- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
6- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
7-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
9-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
11- मनोज कुमार सोनी, रामटोरिया,छतरपुर
12-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
13-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
14-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
15- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
16- अभिनंदन गोइल, इंदौर (मध्यप्रदेश)
17--डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
18-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
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1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय- बिजना
*1*
बिल बढ़े न बी.पी. बढ़े,बिजना दे आराम।
बिन लाइट के भी हवा, देतई सुबह शाम।।
***
*2*
बिजना बनतइ बांस कौ, नोनौ रंगइ रूप।
माउर से सिंगार हो, बिजना,डलिया,सूप।।
***
*3*
गांवन में लाइट नहीं,बिजना देता साथ।
भड़का में नोनो लगत,चला रये वे हाथ।।
****
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी"
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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3-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
बुन्देली दोहा बिजना
बिन बिजली बिजना बिना, बढ़ै बिकट बैचेन।
धमका गर्मी अन्ट है, तप रय हैं दिन रैन।।
गरमी से दम घुट रई,धमका भौत सताय।
देहातन बिजली नईं,बिजना रव मन्नाय।।
घबराहट होतइ बहुत,बदै न विल्कुल धीर।
बिजना हाथ डुराइए ,शीतल होत शरीर।।
जब बिजली होती नईं,बिजना आवै काम।
रुच रुच इयै डुराइए,मिलत भौत आराम।।
बिजना नौनौ बाँस कौ,बिकतइ हाट बजार।
सब गर्मी में रखत हैं, बिजना भौत समार।।
***
मौलिक एवं स्वरचित
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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बिजना बनतइ बाँस कौ , रँग सें देत सजाय ।
नीचट-सौ डाँडौ़ लगा , पुंगू देत विदाय ।।
जनाजात बिजना हते , डुला-डुला सुख पाय ।
बसकारे औ ठण्ड में , आगी लइ परचाय ।।
भरी दुपरिया जेठ की , पई-पाँउनें आय ।
खटिया पै बैठार कें , बिजना दयौ डुलाय ।।
बिजना सें टाठी ढँकै , माछी देत विडा़य ।
अंग कुरोरू होंय तौ , लेतइ पींठ कुकाय ।।
दूला मड़वा भीतरै , बिजना लैकें जात ।
सूपा बिजना दौइया , संग विदा में आत ।।
बिजना की महिमा बडी़ , सबके कामें आय ।
जनमकाल सें मृत्यु तक , पूरौ साथ निभाय ।।
***
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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5- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
##बिजना##
1
बिजना की ठंडी हवा,जो डुलाय सो पाय।
थोडी़ मेहनत के करे,सुखी वही बन जाय।।
2
दूला मड़वा के तरें,बिजना फेंकन जाय।
चांवर कन्या मारती,अबै प्रथा दरसाय।।
3
चूले की लकड़ी बुझी,धुआं देय गुमवाय।
बिजना से करके हवा,आगी बारी जाय।।
4
पैलें बिजना से हमें,भोत परत तो काम।
बिजली जबसे आ गई,बिजना भयो बेकाम।।
5
बिजना,सूपा,दौरिया,हैं दहेज के अंग।
घर के छोटे काम सब,इनसे पाते रंग।।
*****
-परम लाल तिवारी,खजुराहो (मप्र)
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6- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*१*
बनै बाँस सें बाँसुरी,बिजना सुइ बन जाय।
एक हवा सें बज उठे, एक हवा फैलाय।।
*२*
बिजना पौंचे हाँत में, तवइ हवा दै पाय।
बिना डुलाये हाँत के, कदम ना एक बढ़ाय।।
*३*
गरम दिनन में लगत है, बिजना साँचो मीत।
ठण्डन में दुश्मन लगे जा दुनिया की रीत।
*४*
बाँस खपच्ची फारकें,बिजना दियो बनाय।
बूढ़ी काकी बैंचबे ,दोरे - दोरे जायं।।
*५*
बिजना हाँतन के बने,हाँतन-हाँत सुहाय।
रँगे-पुते, फुँदना लगे, हाटन हाट बिकाय।।
संजय श्रीवास्तव, मवई
५जुलाई२१😊दिल्ली
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7-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
नये जमाने की हवा, चली इस तरां यार।
पंखा कूलर सामने, बिजना भय बेकार।।
बिजली ने धोखा दिया, जिस दिन बरखुरदार।
बिजना उस दिन आपके, आवे कामे यार।।
बिजना झलके नारि जब, पति पे झालरदार।
हंसी खुशी फिर प्यार से, खाना खबै अपार
बिजन डुलावैं प्यार से, झूला में सरकार।
धीरे- धीरे हरि हंसें, रिमझिम पडे़ फुआर।।
बिजना गर्मी में सदा, देत रहै सुख चैन।
पुरखन के विज्ञान की, जा है अनुपम दैन।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
बुंदेली दोहे विषय बिजना
बिजना सीं डोलत फिरें, बिजना नईं डुलांयं।
उमस लगै लैबे हवा,अटा ऊपरै जांयं।।
कोमल कर लयं कामनीं, बिजना झालर दार।
डुला डुला कें डोलबें,नई नबेली नार।।
बिजना खजरी बांस के, घर घर शोभा पांयं।
जेठ मास के दिनन में,बड़ौ सहारौ आंयं।।
पैर कचारा ककनवां,कोंचा उठा न पांयं।
धार पसीना की लगी,कैसें बिजन डुलांयं।।
मोरे पिया बजार सें,बिजना दियौ मंगाय।
दगाबाज बिजली भई,कछु तौ काम सटाय।।
***
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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9-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, टीकमगढ़
#दोहे बिजना#
#1#
बिन्द्रावन में गोपियाँ,करने चलीं बिहार।
बिजना डुला लुभाउतीं,माधव मदन मुरार।।
#2#
राधा बैठीं श्याम सँग,रय रस बिजना डोल।
झलक पसीना की गयी,धुन बंशी रय घोल।।
#3#
दवा हवा ना दै सकै,कोटन करौ उपाय।
रस के बिजना जब चलें,हर मन मंगल भाय।।
#4#
मड़वा मारन बर चलै,होय ब्याव में रीत।
मंडप बिजना डोल कें,लै मन दुलहिन जीत।।
#5#
बिजना जैसें डुलत हैं,हाती के दोई कान।
बिन बिजना सूनों लगै,अपनौ स्वयम् मकान।।
***
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
1-
बिजना बिना गरीब खौं,गर्मी में नहिं चैन।
नीम तरै आड़े डरे, दिन कटबै ना रैन।।
2-
बिजना बिना दिन न कटै, गर्मी में हर बार।
बिजली बारे हूक कैं, करबें अत्याचार।।
3-
बिजना बिन नहिं होत है, काउ वर कौ ब्याऔ।
द्वारे दूला पौचतन, बिजना कहत ल्याऔ।।
4-
बिजना, सूपा, दोरिया, बनत नहीं बिन बांस।
बिन बिजना कैसें बनें,घर में लेतन सांस।।
5-
गर्मी परतन पौर में, सबहिं पसीना आत।
बिजना जिदना हो नहीं,आफत सी पर जात।।
***
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
11-मनोज कुमार सोनी रामटौरिया, (छतरपुर)
*********बिजना********
बिजना भौतइ काम कौ ,माछी मसक भगाव।
सिगडी़ धौंकौ हवा करौ,दाँद सें साता पाव।
**********************
गरमी की रित में सुनौ,चाय जहाँ तुम होव।
लठिया माचस भरी गढ़ई,बिजना धर कें सोव।
************************
अटका पै पूँछत सबई,वरना पूँछै कौन।
जड़कारें हिनयाय दें,वेइ बिजना वेइ पौन।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
(मौलिक एवं स्वरचित)
✍🏽-मनोज कुमार सोनी रामटौरिया, (छतरपुर)
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12-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
💐बिजना💐
***** *****
बिजना झल रइ बैठ कें,परसो पति खों थार।
बात सुना दइ प्रेम सें,करन लगी मनुहार।।
मंदिर के अंदर लगे,बिजना झालरदार।
खूब झूलाबें भक्तजन,रस्सी गिर्री दार।।
मौड़ी की होबे बिदा,कै फिर ब्याव चलाव।
बिजना भी दव जात है,हो गर्मी कौ ताव।।
किले कचैरी में लगे,बिजना गोटे दार।
गर्मी में मिचकी लगे,बैठे ठलुआ चार।।
घर घर बिजना होत ते,नइ ती बिजली बैन।
हांतन सें पंखा झलो,तबइ परत तो चैन।।
*** ***
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
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13-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा (मप्र)
1-
झाँकी बाँकी राम की, सिंहासन हरसात ।
दास -दासियां बीजना, पल -पल पै ये डुलात।।
2-
रंग -बिरंगे बीजना, बनते गोटा दार ।
कला -कृती है हांत की, ठंड़ी लगै बयार ।।
3-
बीजना बंशज कहा, मानें बूढे लोग ।
बाँस से बंसज बढे, मान इसे संयोग।।
4-
राम -सीता बैठ गए, सभा जुरी दरवार।
बिजना डुलायें दासियां,करते सबइ गुहार।।
5-
शयाम रंग में राधिका, बैठीं हैं नजदीक ।।
मनहर मन का दिरशय,बिजना डुले निर्भीक।।
6- ब्याव भये पै बीजना, सबई जनें यह देत ।
बेटी की गर होय बिदा, लरका वारौ लेत।।
***
मौलिक एवं स्वरचित रचना
-शोभाराम दाँगी नंदनवारा
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14- -वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
विषय - बिजना
------------------
बिन बिजली बिजना चलै, हमने खूब चलाय।
जब जब बिजली जायगी,जेउ काम है आय।।
बिजना हांतन सें चलै, पंखा बिजली होय।
जीलौ नइंयाँ दोइ बौ,सोचौ कैसें सोय।।
घर में जित्ते आदमी,उततै बिजना लाव।
बिजली बिल की का कनें,बढ़ गय ऊके भाव।।
---------------स्वरचित------------
-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
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15- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
बिजना
*********
इक उनकी मालिश करे,इक पानी अन्हवाय।
इक उनकी रोटी पुए,इक उनखे जिमवाय।
इक उनखे बिजना झले,और इक पान लगाय,
इक बोदा के देख लो,हो गए नौ चरवाय।।
*****
-कल्लूके दद्दा
(अवधेश तिवारी)
छिंदवाड़ा
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16- अभिनन्दन गोइल, इंदौर
बिजना ( बुंदेली दोहे )
कांपो बिजना सौ जिया, साजन नियरे आय।
पैली पैली रात कौ , बरनन करो न जाय।।
साजन बैठे जीमनें , सजनी बिजन डुलाय ।
जे लो प्रीतम प्रेम सें , अंखियन लाड़ लड़ाय ।।
बिजना लै छज्जे चड़ीं, कथरी लई बिछाय।
जेठ -मास की रात जा , बातन में कड़ जाय ।।
परे मड़ा में दोऊ जन , गोरी बिजन डुलाय।
अबै न जइयौ हार खों , दुपर लौट तौ जाय।।
ना अब वे बिजना बचे , ना रैगव वौ नेह ।
बिजुरी के पंखा तरें , सो रईं तानें देह ।।
****
मौलिक, स्वरचित -अभिनन्दन गोइल, इंदौर
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17-डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
मन को बिजना जब झले ,झरे प्रेम संगीत।
खकरा महुआ फूल के ,याद दिवावें मीत।।
गर्मी में बिजना बड़ो ,काम परत है यार।
झलत झलत ठंडी हवा ,मख्खी देवे मार।।
गाँवों में बिजली कहाँ ,बिजना झालरदार।
कसरत हाथों की करे ,सोख पसीना धार।।
भौत काम बिजना करे ,बड़ो है नंबरदार।
गुस्सा जब मन में चढ़े ,दे बलमा के मार।।
***
-डॉ सुशील शर्मा , गाडरवाड़ा (मप्र)
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18-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
🌲बुन्देली दोहा🌲
बिषय बिजना
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
बिजना जानो देह खो,देबै सुख आराम।
गरमी खो ठन्डो करे,दै सेजन पै काम।।
2
आन जान सम्मान में,सबसे पैला आय।
बिजना जिदना है नई,जो जीवन घबराय।।
3
बिजली छटका दैत है,बिजना कामे आय।
रिस्तेदार भोजन करे,अन्लो देत ढुलाय।।
***
-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा टीकमगढ़
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*226 -आज की समीक्षा*
*समीक्षक - राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 5-7-2021
*बिषय- *"बिजना" (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *बिजना* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला *श्री अशोक पटसारिया नादान जू लिधौरा* से लिखत है कै पति से अपनी बात मनवाने के लाने पत्नी बिजना झल के खुस करवे में लगी है। अच्छे दोहे रच है बधाई।
बिजना झल रइ बैठ कें,परसो पति खों थार।
बात सुना दइ प्रेम सें,करन लगी मनुहार।।
मंदिर के अंदर लगे, बिजना झालरदार।
खूब झूलाबें भक्तजन,रस्सी गिर्री दार।।
*2* *श्री एस आर सरल जू ,टीकमगढ़* से के रय कै बिजली जावे के बाद बिजना ही काम आत है। सुंदर दोहे लिखे है। बधाई।
गरमी से दम घुट रई,धमका भौत सताय।
देहातन बिजली नईं,बिजना रव मन्नाय।।
जब बिजली होती नईं,बिजना आवै काम।
रुच रुच इयै डुराइए,मिलत भौत आराम।।
*3* *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा* ने बिंद्रावन कौ नौनौ वरनन करो है। दाऊ कौं बधाई पौछे ।
बिन्द्रावन में गोपियाँ,करने चलीं बिहार।
बिजना डुला लुभाउतीं,माधव मदन मुरार।।
राधा बैठीं श्याम सँग,रय रस बिजना डोल।
झलक पसीना की गयी,धुन बंशी रय घोल।।
*4* *राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़* लिखत है कै बांस के बने बिजना जीमे माहुर से सजावट करी भयी है भौय नोने लगत है।
बिल बढ़े न बी.पी. बढ़े,बिजना दे आराम।
बिन लाइट के भी हवा,देतई सुबह शाम।।
बिजना बनतइ बांस कौ,नोनौ रंगइ रूप।
माउर से सिंगार हो,बिजना,डलिया,सूप।।
*5* *श्री 'प्रदीप खरे,मंजुल',जू टीकमगढ़* से लिखत है कै बिजना के बिना नीम तरे आडे डरे रत है। शानदार दोहे लिखे है। बधाई मंजुल जी।
बिजना बिना गरीब खौं,गर्मी में नहिं चैन।
नीम तरै आड़े डरे, दिन कटबै ना रैन।।
बिजना बिना दिन न कटै, गर्मी में हर बार।
बिजली बारे हूक कैं, करबें अत्याचार।।
*6* *श्री परम लाल तिवारी,खजुराहो* सें लिखत है कै व्याब कें टैम मडवा तरे बिजना फेंकवे की रसम सोउ होत है। बढ़िया दोहे है बधाई महाराज।
बिजना की ठंडी हवा,जो डुलाय सो पाय।
थोडी़ मेहनत के करे,सुखी वही बन जाय।।
दूला मड़वा के तरें,बिजना फेंकन जाय।
चांवर कन्या मारती,अबै प्रथा दरसाय।।
*7* *डॉ सुशील शर्मा जू गाडरवाड़ा* से लिखत है कै मन को बिजना झले से प्रेम संगीत झरत है भौत नौने विचार दोहन में रखे है डॉ साहब कों बधाई ।
मन को बिजना जब झले ,झरे प्रेम संगीत
खकरा महुआ फूल के ,याद दिवावें मीत।
भौत काम बिजना करे ,बड़ो है नंबरदार।
गुस्सा जब मन में चढ़े ,दे बलमा के मार।
8* *श्री रामगोपाल जू रैकवार, टीकमगढ़* ने भौत नौनो व्यंग्य भरो दोहा रचो बधाई।
बिजना रखकें सामनें,अपनों मूड़ हिलाय।
ऊकौ बिजना जनम भर,पूरौ संग निभाय।।
*9* *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र* लिखत है कै आजकाल एसी कूलर के सामने बिजना बेकार हो गये है लेकिन बिजली चले जावे पै बिजना ही काम आत है। उमदा लेखन है बधाई।
नये जमाने की हवा, चली इस तरां यार।
पंखा कूलर सामने, बिजना भय बेकार।।
बिजली ने धोखा दिया, जिस दिन बरखुरदार।
बिजना उस दिन आपके, आवे कामे यार।।
*10* *श्री अभिनन्दन गोइल, इंदौर* से कै रय कै जैठ मास में बिजना भौत काम आत है। बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
बिजना लै छज्जे चड़ीं, कथरी लई बिछाय।
जेठ -मास की रात जा , बातन में कड़ जाय ।।
परे मड़ा में दोऊ जन , गोरी बिजन डुलाय।
अबै न जइयौ हार खों , दुपर लौट तौ जाय।।
*11* *श्री अवधेश तिवारी जू छिन्दवाड़ा* नो-नो जने सेवा में लगे है सो परे परे मुटिया गये है। अच्छे दोहे है बधाई।
इक उनकी मालिश करे,इक पानी अन्हवाय।
इक उनकी रोटी पुए,इक उनखे जिमवाय।
इक उनखे बिजना झले,और इक पान लगाय,
इक बोदा के देख लो,हो गए नौ चरवाय।।
*12* *श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़* लिखत है के जब बिजली झटका देत है तो बिजना ही काम आवे है। अच्छे दोहे है बधाई।
बिजना जानो देह खो,देबै सुख आराम।
गरमी खो ठन्डो करे,दै सेजन पै काम।।
बिजली झटका दैत है,बिजना कामे आय।
रिस्तेदार भोजन करे,अन्लो देत ढुलाय।।
*13* *श्री शोभराम दाँगी नंदनवारा* राम दरवार कौ नोनो चित्रण दोहा में कर रय है। बधाई
झाँकी बाँकी राम की, सिंहासन हरसात।
दास -दासियां बीजना, पल -पल पै ये डुलात।।
रंग -बिरंगे बीजना, बनते गोटा दार।
कला -कृती है हांत की, ठंड़ी लगै बयार।।
*14* *श्री कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर* सभी दोहे भौत शानदार दोहे रचे है बधाई श्री पोषक जी
बिजना बनतइ बाँस कौ , रँग सें देत सजाय ।
नीचट-सौ डाँडौ़ लगा , पुंगू देत विदाय ।।
भरी दुपरिया जेठ की , पई-पाँउनें आय ।
खटिया पै बैठार कें , बिजना दयौ डुलाय ।।
*15* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* ने बिजना सी डोलत फिरे वाह, शानदार दोहा रचे है। बधाई
बिजना सीं डोलत फिरें, बिजना नईं डुलांयं।
उमस लगै लैबे हवा,अटा ऊपरै जांयं।।
कोमल कर लयं कामनीं, बिजना झालर दार।
डुला डुला कें डोलबें,नई नबेली नार।।
*16* *श्री वीरेन्द्र चंसौरिया जू टीकमगढ़* से लिखत है कि बिजली कि बिल समाधान बता रय है।
बिन बिजली बिजना चलै, हमने खूब चलाय।
जब जब बिजली जायगी,जेउ काम है आय।।
घर में जित्ते आदमी,उततै बिजना लाव।
बिजली बिल की का कनें,बढ़ गय ऊके भाव।।
- ईरां सें आज पटल पै 18 कवियन ने अपने अपने ढंग से बिजना झले है। सबई नोनो लिखों है सभई दोहाकारों को बधाई।
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक-
✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
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