बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-79*
*बिषय- मुंडा दिनांक-17-9-2022*
*प्राप्त प्रविष्टियां:--*
*1* श्री अमरसिंह राय जी
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
पितु आज्ञा मस्तक पर धारो |
सही गलत भी नहीं विचारो ||
कवि का कहना पितु ही देवा |
आज्ञा पालन उनकी सेवा ||
आपने श्रीराम के माध्यम से पिता की आज्ञा मानने का सटीक संदेश दिया है
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*2* श्री एस आर सरल जी
कुँअर कलेवा खौ चले,सखियाँ मन हर्षायँ।
जनक पुरी में राम के, मुंडा धरै दुकायँ।|
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
नेग चार सब होय विवाहा |
साली सखियाँ करती चाहा ||
जनकपुरी में कवि मन रमता |
मन भी हँसता जितनी क्षमता ||
आपने जनकपुरी के माध्यम से अपने दोहे में विवाह की सामाजिक परम्परा का बखूबी चित्रण किया है
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*3* सुभाष सिंघई
का कै दैं ई जीभ की , ठाँटौ जब बक जात |
भीतर घुसतइ जब चलैं , मुंडा घूँसा लात ||
दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
लगती कवि को जीभ सयानी |
बिना सोच जब बोले वानी ||
चल उठती है , घूँसा लातें |
चार तरह की चारों बातें
जीभ की बेलगाम बात का परिणाम बतलाया है
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*4* श्री डा० आर बी पटेल जी
पंगत लागी पौर में, जान लगत सब लोग ।
माते मुंडा पहन कर ,बैठ लगाए भोग ।|
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
बड़ा आदमी इज्जत पाता |
उँगली उस पर कौन उठाता ||
कवि कहता है , आज जमाना |
गलती करता आज सयाना ||
आपने बड़े आदमी की गुस्ताखी पर संकेत किया है
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*5*श्री डा० सुनील त्रिपाठी जी
कौंड़ काट रय रोज़ जे, गलियन में भैमार।
मुंडा हन दे चांद पै, उतरै इश्क़ बुखार।।
(टंकण त्रुटि परिमार्जित)
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
रहें घूमते गाँव गली में |
छैला बनकर रहें छली में ||
मिलते मुंडा जब यह फँसते |
कवि कहता है , तब सब हँसते ||
आपने तथाकथित आशिकों पर सटीक प्रहार किया है
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*6*श्री आशाराम वर्मा नादान जी
पंचन में पापी करै ,निज गलती स्वीकार ।
मुंडा धरबै मूॅंड़ पै , पगड़ी धरै उतार ।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
गलती जो भी नर कर जाता |
पंचायत में शीष झुकाता ||
चार जनों में पगड़ी उछले |
गाँव भरे में बातें छिछले ||
आपने गलती करने का परिणाम अवगत कराया है कि किस तरह शर्मिंदगी उठानी पड़ती है
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*7*श्री प्रमोद मिश्रा जी
मुंडा मारो फेंक कें ,नेता रैगव हेर।
बच गव मौं में घलत सें, तनकइ रव तो फेर।।
(तीसरे चरण की यति परिमार्जित)
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
सभी देखते फिकते मुंडा |
राजनीति बन जाती गुंडा ||
कवि कहता कैसा अब मेला |
मुंडा बनता है अब खेला ||
आपने वर्तमान राजनीति पर जूता प्रचलन पर सटीक तंज संकेत किया है
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*8* श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु जी
निगत गये वे गैल में, सज धज कें तैयार।
कीचड़ में मुंडा सने, पहुंचे जब ससुरार।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
जहाँ गंदगी फैली रहती |
चोटें तन पर पड़नी सहती ||
जहाँ- जहाँ पर जाना होता |
कवि मन कहता होना रोता ||
आपने गाँव गली की कीचड़ भरी गलियो पर सटीक तंज किया है , हास्य के साथ
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*9* श्री अभिनंदन गोइल जी
नय-नय मुण्डा पैरकें, मटकत बाल-गुपाल।
देख किलकवौ लाल कौ,मैया भई निहाल।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
चरण पादुका माता लाती |
बालक को वह खुद पहनाती ||
खुश होती वह मुख को लखकर |
कवि मन कहता ,यह पल सुखकर ||
आपने माता के वात्सल्य रुप का अद्भुत रुप निरुपण किया है
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*10*श्री प्रदीप खरे मंजुल जी
मुंडा मनके पैरियौ, तनक न हलके होंय।
कसके पैरत जौन तौ,मुढ़ी पकर कें रोंय।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
खाना पीना मन का होता |
बेमन का सब लगता रोता |
ढ़ीला कसता काम बिगारे |
सच्ची बातें कवि उच्चारे ||
आपने मुंडा के माध्यम से संकेत किया है कि सभी काम सटीक होना चाहिए , घट बढ़ काम कष्टदायी होता है
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*11* श्री बीरेन्द्र चंसौरिया जी
करिया मुंडा पैर कें , जीजा चले बरात।
जम रव जीजा आज तौ , सबइ बराती कात।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
जीजा यहाँ प्रतीक बना है |
कहने का कुछ भाव घना है ||
रखना सदा लिवास सुहाना |
कहता सबसे आज जमाना ||
आपने सामाजिक परिवेश में जीजा को प्रतीक बनाकर उचित पहनावें व रहन सहन पर बल दिया है
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*12* श्री डा० देवदत्त द्विवेदी जी
चरन सरन प्रभु राखलो,ओर कितै मैं जैवँ।
मुन्डा मालक आपके,रुच- रुच पोंछत रेंवँ।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
कवि मन प्रभु का दास सुहाना |
भक्ति अपनी करे बखाना ||
चरण शरण की इक्छा रखता |
भाव भावना , पावन चखता ||
आपने भक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचकर , भगवान के चरणों में रहने का वरदान माँगा है
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*13* श्री श्यामराव धर्मपुरीकर जी
मुंडा मोरे घिस गए, मिलत चाकरी नाय।
अरजीं दे-दे का भओ, सबरी उमर नसाय ।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
बड़ी समस्या आज दिखाती |
नहीं नौकरी अब मिल पाती ||
कवि कहता है देकर अरजी |
कभी न होती मन की मरजी ||
आपने वर्तमान वेरोजगारी पर सटीक तंज किया है
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*14* श्री शोभाराम दांगी जी
बिन मुुंडा जब हम निगत , लगत पांव में सूल ।
पाउन की रकछा करें , चढे पाव नै धूल ।।
(पहला चरण परिमार्जित )
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
कवि कहता खुद रक्षा कीजे |
नहीं वदन पर संकट लीजे ||
रखो ध्यान अब लगे न काँटे |
शूल हमेशा होते चाँटे ||
आपने स्वयं की रक्षा व ध्यान रखने का संकेत किया है
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*15* आदरणीया आशा रिछारिया जी
मुंडा जूता पनहियां,मतलब एकई आय।
कीरा कांटे धूर सें, मुंडा हमें बचाय।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
दिखे आपदा जग में जितनी |
कोन यहाँ पर जाने कितनी ||
लेकर साधन खुद ही चलना |
कंटक काँटे सबसे बचना ||
आपने आपदाओं से सजग रहने का संकेत दिया है
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*16* आदरणीया गीता देवी जी
मुंडा कम नहि आँकियो, पैर पिनै अति सोय।
और खुपड़िया पै परै, याददाश्त सब खोय।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
जिसका जैसा काम सयाना |
जगह देखकर ही अजमाना ||
मुंडा पैरों में ही साजे |
सिर पर आकर नहीं विराजे ||
आपने जगत में सभी को सही आंकलन व उपयोग का संकेत दिया है
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*17* श्री मनोज साहू निडर जी
भगती भूँकी भाव की, जात करम नैं खास।
चदरा बुनत कबीरजू, मुंडा खों रैदास।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
नहीं काम में शरम न लाना |
मिहनत को दीजें पहचाना ||
कर्म न कोई होता खोटा |
सच का बाना रहता मोटा ||
आपने किसी भी न्याय नीति कर्म से लोक जीवन निर्वहन को छोटा नहीं समझने का संकेत दिया है
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*18* श्री संजय श्रीवास्तव जी
परहित में जीवन कटे, पाँवन मुंडा धाम।
काँटे, कीचड़ सब सहे,पियत जेठ को घाम।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
परहित जीवन सुखद बताया |
काँटे कीचड़ सब बिसराया ||
मुंडा तक भी रक्षा करते |
धूल पाँव से , दूरी भरते ||
आपने परहित को श्रेष्ठ श्रेणी में रखा है
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*19* श्री जयहिंद सिंह जी जयहिंद
पियें डरे चाये जितै,आदत सें लाचार।
पीवे बारे जो मिलें,मुंडा मारौ चार।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
दुर्गुण जिनको आ जाते है |
कवि हालत तब बतलाते है ||
इज्जत उनकी धुल जाती है |
मुंडा सिर पर धुन गाती है ||
आपने दुर्गुणी आदमी की हालत पर संकेत किया है
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*20* श्री अंजनी कुमार चतुर्वेदी जी
गयते मेला देखवे, पौंचे बीच बजार।
तनक नैन मटका धरे,मुंडा घले हजार।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
विषय विकार जहाँ पर रहते |
कवि यहाँ पर सीधा कहते ||
नैन कहें तब सब परिभाषा |
मिलते मुंडा जितनी आशा ||
आपने आशिक मिजाज लोगों की हालत पर तंज किया है
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*21*श्री रामानंद पाठक जी
पा मुन्डा गुन्डा भगैं, नई समाजै ठौर |
अधोगती जा है जगत ,जीवन करत न गौर।।
(तीसरा चरण की यति परिमार्जित)
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
गुंडा भी भय अब खाते है |
ठौर जगत में नहिं पाते है ||
मिले न इज्जत नहीं समाजी |
करे अधोगति उसको राजी ||
आपने गुंडों की अधोगति पर सटीक बात कही है
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*22*श्री भगवान सिंह अनुरागी जी
मुंडा बाहर छोड़कें, दर्शन करबे जात।
तनक नजर भगवान पै,तनक बायरें रात।।
आपके दोहा की भाव समीक्षा चौपाई छंद में 👇
मंदिर में अब होती चोरी |
करते रहते मुंडा खोरी ||
पाप पुण्य नहिं वह अब जाने |
कवि कहता सब काम नसाने ||
आपने मंदिर तक पहुँच गये चोरों पर सटीक तंज किया है
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समीक्षक - सुभाष सिंघई जतारा
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