संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
💐😊 ससुरार 💐😊
(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) 💐
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 120वीं प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 21-09-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
अनुक्रमणिका-
अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
04-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
05-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
06-कल्याण दास साहू 'पोषक', पृथ्वीपुर
07-वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़
08-मनोज साहू 'निडर', नर्मदापुरम
09-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
10-आशाराम वर्मा नादान,पृथ्वीपुर
11-एस आर सरल,टीकमगढ़ (म.प्र.)
12-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बड़ामलहरा छतरपुर
13-प्रभुदयाल श्रीवास्तव,टीकमगढ़
14-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
15-संजय श्रीवास्तव, मवई, दिल्ली
16-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
17-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,,पलेरा जिला टीकमगढ़
18-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा
19-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा
20*आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
21-समीक्षा-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
##############################
संपादकीय
साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे।
हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के एडमिन के रुप मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) एवं संरक्षक द्वय शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और श्री सुभाष सिंघई जी है।
हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।
हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'ससुरार ( 120वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
यह पटल के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 120 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 82 देश के लगभग 82000 से अधिक पाठक अब तक पढ़ चुके हैं।
आज हम ई-बुक की श्रृंखला में हमारे पटल जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 120वीं ई-बुक 'ससुरार' लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों ने शनिवार दिनांक-19 -9-2022 को बुंदेली दोहा लेखन में बिषय-'ससुरार पर दिनांक-19-9-2022 को पटल पोस्ट किये गये थे।
अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
धन्यवाद, आभार।
***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-21-09-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
मोबाइल-91+ 09893520965
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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
***बुंदेली बिषय- "ससुरार"*
*1*
राना यदि ससुरार हो , रामलला सी सोय |
जनक पिता से हौ ससुर , सास सुनयना होय ||💐
*2*
राना कत ससुरार में , कभउँ न हौतइ ऊब |
साराजै अरु सारियाँ , करतइ खातिर खूब ||👌
*3*
सास- ससुर -साले सबइ , #राना रखतइ ख्याल |
खाबैं खौं ससुरार में , मिलत चकाचक माल ||🥰
एक दौ सला (हास्य में)
*4*
साराजें वा सारियाँ , मलैं मूड़ पै बाम |
राना तब ससुरार में , रुकै रहौ बिन काम ||😂🙏
*5*
दूध दही खौ छौड़ कै, जिस दिन मठा बघार |
राना झोला लै उठा , छौड़ देव ससुरार ||🙏
---
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐
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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)
विषय, ससुरार,
******************************
कृष्ण कन्हैया की सुनत, गलन गलन ससुरार
हते कुआँरे रामधइ,लिखी प्रमोद विचार
*****************************
जब हम गय ससुरार मैं , साराजें जु़र आँइ
हंस बुलया कें देत रइ, केउ बन्न की गांइ
******************************
ढैरा ढैरत ससुर जू , सास झारती द्वार
सारी लौटी खैप धर ,गय प्रमोद ससुरार
*****************************
गैर फैर नोनो लगे , सबरे जीजा कात
सुख सारे ससुरार में, रय प्रमोद दो रात
*****************************
दिन पैले परसीं लुचइ, भाजी रोटी दार
अब प्रमोद हारे चलो , सारो कात पुकार
****************************
ब्याइ करी ससुरार में , ढंके पर नइ पाय
घुस गय भड़या सास के,गुरा गुरा ढिलयाय
*****************************
-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
स्वरचित मौलिक
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3- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
बुन्देली दोहे
विषय ससुरार
जीजा जू ससुरार खों,निग दये होतईं भोर।
रुख चड़ो रिछवा मिलो,भगत दिखाने ढोर।।
पानी की गंगा जली,सारी जीजे ल्याइ।
नोंन डार कें चाय में,जीजा लो धरयाइ।।
जादा दिन ससुरार में,ऐ जू रव नइॅं जात।
नईंतर टांगें पोतला,हारे जात दिखात।।
सारी बिन ससुरार में,परै न पल भर चैन।
बखर उतै कइ हांक रय,सुन सारी के बैन।।
नए मुंडा नई पर्दनी, पैर गए ससुरार।
सारी नै किलकोट में,करिया रॅंग दव डार।।
🌹🌹🌹
✍️ भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह(मप्र)
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
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4*-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
बुंदेली दोहा दिवस , विषय -ससुरार
साथियों मैने बेटी की ससुरार पर केन्द्रित दोहे लिखे है
बिटियाँ आबै मायके , या जाबै ससुरार |
दौइ जगाँ खौं लै निभा , बनकर कै हुश्यार ||
सास- ससुर खौं मान लै , बाप मताई आन |
तब बिटियाँ ससुरार में , पात सबइ से मान ||
सबइ जनै ससुरार के , बऊ खौं दैबें मान |
बिटियाँ सौ जाने उयै , कृपा करत भगवान ||
बिटियाँ आ ससुरार में , परदा में जब होय |
लछमी के तब रूप में , पाती इज्जत सोय ||
सास ससुर अरु नंद कौ , मिलै खूब जब प्यार |
गुइयन सै बिटियाँ कहै , सोने सी ससुरार ||
***
-सुभाष सिंघई,जतारा
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05-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर
बुन्देली दोहे
विषय- ससुरार (ससुराल)
वर्षा ऋतु घनघोर ती, गय तुलसी ससुरार।
ज्ञानदायनी बन गई, हुलसी की फटकार।।
गए हते ससुरार जब, खातिर भइती खूब।
महबूबा निकरी नहीं, ठंडे भय मनसूब।।
आउत हैं जब पाउने, खुशी होत है सास।
जी निकार जी-भर करै,पहुना की बरदास।
सारी- सरजें बैठ कैं, जब जीजा जिमवाँय।
जीजा भी ससुरार में, मुश्की दै - दै खाँय।।
कहत कैदखाना कछू, और कहें सुखसार।
ज्यादा रहबो ठीक नहिं, रहो दिना दो-चार।
चढ़ौ गधा या फिर रहौ, पत्नी घर ससुरार।
उठत भोर गारीं मिलें, लड़हौ कितनी बार।
सास ससुर सारी सरज,तबइ तलक ससुरार।
जीजा से फूफा भए, फिर समझो बेकार।।
अजहुँ न पानी पियत कछु,बिटिया की ससुरार।
अपने संगै जायँ ले, आटा सब्जी दार।।
मौलिक
***
-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर
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6-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर
मजा आत ससुरार में , मिलतइ खुसी अपार ।
खातिरदारी होत है , साँसउँ सुख की सार ।।
जाँ नतैत मनदार हौं , वइ उम्दा ससुरार ।
खान-पान सम्मान की , रत खूबइं भरमार ।।
चैंन मिलत ससुरार में , हो इतराजी माफ ।
सारे-सारीं साससुर , होवें दिल के साफ ।।
सजे-धजे ससुरार में , लाला जू जब जाँय ।
आवभगत सारे करें , साराजें मुस्काँय ।।
साराजें उर सारियाँ , करें मसकरीं यैंन ।
जीजा खों ससुरार में , मिलत टका भर चैंन ।।
---- कल्याण दास साहू "पोषक"
पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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07-गोकुल प्रसाद यादव (नन्हींटेहरी)
🌹बुन्देली दोहे -ससुरार🌹
**********************
सब रिस्तों कौ मूल है,
शादी उर ससुरार।
ई रिस्ते में भूल कें,
करिऔ नहीं बिगार।।
**********************
पतनी अरु ससुरार हैं,
गुरु मंदिर सें खास।
कालिदास भय कविरतन,
तुलसी तुलसीदास।।
**********************
भूल बिसर ससुरार में,
करिऔ नैं उतपात।
कय जिन हाँतन खुर पुजत,
पींठ सोउ पुज जात।।
**********************
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
08-मनोज साहू 'निडर', नर्मदापुरम
बुंदेली दोहा दिवस (19/09/2022)
विषय :- ससुरार
***********************************
*कौन चासनी में पगौ, लड़ुआ जो सुसरार।*
*है, तै के असुआ ढ़रै, नइयां ऊकी लार।।*
************************************
*तीनई सक्कर घीं चुरे, सास सुसर सुसरार।*
*सुदबंगन खों खैर है, अड़बंगन खों खार।।*
************************************
*बिना नगीना मूंदरी, गरे बिना ज्यों हार।*
*तैंसइ फीकी सी लगै, सारी बिन ससुरार।।*
************************************
*एक दिना के पही भये, पाहुन दोक दिनाय।*
*चार दिना ससुरार में, लगै पनौती आय।।*
***********************************
*अनासट्ट में जा फंदे, होरी पै ससुरार।*
*गोचा खायै डोबना, गदही पै असबार।।*
***********************************
*पांँव-पांँव पौनई कड़े, सारे की सुसरार।*
*भड़या मिल गय गैल में, लट्ठ पेल दये चार।*
************************************
(मौलिक व स्वरचित)
-मनोज साहू 'निडर', नर्मदापुरम
***
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09-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
बिषय--ससुरार (ससुराल )बुंदेली दोहा (131)
भज्जा की ससुरार में, गए हम पैैलउं पैल।
उमा रमा बिंहाँणी जे, मन मैं रखै न मैल ।।
###########
नइ दुलैन पीहर चली, भइ सूनी ससुरार।
बुरव लगै घर दोर में, बिसुरै नइ बिसुरार।।
##########
जनकपुरी में राम की, सुंदर है ससुरार।
सास ससुर सुंदर मिले, सुखी भओ संसार।।
##########
मिलै सबै ससुरार में, मान पान सममान।
सरल सलौनें पावनें, गाये सब गुनगान।।
##########
गए जीजा ससुरार में, मुँह में पान दवांय।
सारी सैं बतयात हैं, रुच रुच वियाइ पांय।।
#########
ससुरार सुक कि सार है, रह जो दो दिन चार।
हाँतन हसिया मूड पै, लऐ फिरै वे जार।।
##########
मौलिक रचना
-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
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*10*-आशाराम वर्मा नादान,पृथ्वीपुर
बुंदेली दोहा ---विषय -- ससुरार
(१)
लरकन की ससुराल कौ,लिखौ सबइ नें हाल।
बिटियन की ससुरार कौ,काय करौ ना ख्याल।।
(२)
सास ससुर ससुरार में,बाप मताई जान।
नारी धरम निभाउतीं,पति परमेश्वर मान।।
(३)
मात पिता विनती करैं,कर कैं कन्या दान।
बिटिया खौं ससुरार में,सुख दइयौ भगवान।।
(४)
कुलबंती नारी वही , देवी कौ औतार ।
विपत परै ससुरार में ,कभउॅं ना मानें हार।।
(५)
सबकौ गोंनों होत है, सबइ जात ससुरार।
कहता कवि नादान है,करौ न सोच विचार।
***
आशाराम वर्मा "नादान"पृथ्वीपुर
( स्वरचित )१९/०९/२०२२
***
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
11-एस आर सरल,टीकमगढ़
बुन्देली दोहा #ससुरार #
*******************************
आव भगत कों द्वार है, प्रेमनगर ससुरार।
सास ससुर आदर करें, सारी करवै प्यार।।
खूब भये ससुरार में, जीजा के सत्कार।
जीजा जू गुण्डा बनें, मूंछे रये समार।।
घनें घनें ससुरार गय, कम हो गईं रबूज।
जीजा शर्मिंदा भये, कोरे रै गय पूज।।
पैलउँ पैलाँ सोस में, बिन्नू गइँ ससुरार।
जातन ठनगइ सास सें,करके आइँ बिगार।।
फटफटिया पै बैठ क़े, *सरल* गये ससुरार।
सास ससुर दौरे भगे, करबे खौ सत्कार।।
***
- एस आर 'सरल'
टीकमगढ़
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🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
12-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बड़ामलहरा छतरपुर
🥀बुंदेली दोहे🥀
(बिषय -ससुरार)
सारे सारी कौ मिलौ,जी भरकें जब प्यार।
सरस लगी ससुरार तौ,साँसउँ सुख की सार।
दिल्ली सें लौटे अबै,फिरें लगायें टोप।
सरस बनें ससुरार में,बल्दोगढ की तोप।।
प्रेम और आदर मिलो,भये खूब सत्कार।
बिसरै नें बिसराय सें,भैया की ससुरार।।
दारू पीबौ छोड़ दो,समजारव घर- बार।
माइ बाप हैरान हैं,हलाकान ससुरार।।
***
-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बड़ामलहरा छतरपुर
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
13- -प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
बुंदेली दोहे विषय ससुरार
गय भौजी के मायकें , भइया की ससुरार।
आगय हल्के पांवने , होन लगे सत्कार।।
भइया की ससुरार में , सारी मिल गइ एक।
गोरी नारी चुलबुली , सबइ गुनन की नेक।।
टेरन हेरन मन हरै , मन मन में मुसकात।
सारी सें ससुरार की , सांन सोउ बड़ जात।।
करम अभागे हम कड़े , सारी नइँ मिल पाइ।
चार सरज ससुरार में , खातिर करें हमाइ।।
बुंदेली कांनात पै , जनबा करें विचार।
नोंनीं के नों मायके ,गलन गलन ससुरार।।
***
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
-14-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
बिषय.. ससुरार 19.09.2022
1-
बूढ़े दद्दा कात ते, सुखहिं सार ससुरार।
जब जब पौचत पाउने,होत खूब सत्कार।।
2-
ससुरारे जब जात हैं,देख परौसी आत।
जीजा जू नौने लगै,सारी जू बतियात।।
3
कितनउ धन दौलत रबै,कितनउ हो परिवार।
बिन सारी के नहिं लगै,साजी जा ससुरार।
4-
सारी सजधज आत है,करै खूब सिंगार।
होरी तौ ससुरार की,बाकी सब बेकार।
5-
तीन दिना ससुरार के,बढ़े बिकट हो जात।
हरिया खेत भगात हैं,बासी रोटी खात।।
***
-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
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15-संजय श्रीवास्तव, मवई, दिल्ली
*सोमबारी बुंदेली दोहे*
विषय - *ससुरार*
*१*
हिलक-हिलक रोबे लगो,दद्दा बारम्बार।
पानी को दै दौरकें,बिन्नू गईं ससुरार।।
*२*
उड़ी चिरैया फुर्र सें,सूनी डरी डगार।
डार हींड़ रइ देखबे,नई डार ससुरार।।
*३*
प्रानन प्यारी पुतरिया,लै गइ प्रान निकार।
काय आइँतीं मायके,काय गईं ससुरार।।
*४*
बाइ करेजो सौंप कें,करन लगीं मनुहार।
मोड़ी खौं खुश राखियो,भरो रबै ससुरार।।
*५*
साले, सलहज, सालियाँ,हरी-भरी ससुरार।
हँसी, ठिठोली, मसकरीं,संग होत सत्कार।।
***
संजय श्रीवास्तव, मवई
१९-९-२२ 😊 दिल्ली
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16-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
निगत गये वे गैल में, सज धज कें तैयार।
कीचड़ में मुंडा सने, पहुंचे जब ससुरार।।
मंदिर द्वारे में रखे, मुंडा देख ललात/
मौका लगते बेइ फिर, उनखों मिले चुरात//
चाल चलन घटिया जितै, लवरा बनो गवांर/
गली -गली मुंडा मिले, उनको जो व्यवहार//
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
17--जयहिन्द सिंह जयहिन्द,,पलेरा जिला टीकमगढ़
#संशोधित दोहे#
#१#
सेवक हैं ससुरार में,सास ससुर साराज।
सारे सबरीं सारियां,सेवक सबइ समाज।।
#२#
चक्कर है ससुरार में,चकराबें चहुं ओर।
परें पछारी सारियां,रै गय दांत निपोर।।
#३#
शोंक फोंक सें पावने,गय अपनी ससुरार।
मान पान जीजा मिले,सारीं सब रसदार।।
#४#
मिथला सी ससुरार में,आई अवध बरात।
चार चार दूला सजे,लगै सुरग सी रात।।
#५#
कुंवर कलेवा राम कौ,जुरीं नवेलीं नार।
तरयाबें श्रीराम खों,,संगै भइया चार।।
**
#मौलिक एवम् स्वरचित #
***
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,,पलेरा जिला टीकमगढ़
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
18-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा
दोहा -ससुरार
१
बांद कलेऊ कड चले,भय नदिया के पार।
खा पी कें फारिग भये,पोंचे फिर ससुरार ।
२
माते गय ससुरार खों,घरवारी के संग।
सारे सारी देख कें, पुलकित होवें अंग।
३
सबइ मिले ससुरार में,आकें करी जुहार।
सारी साराजनन नें,खूब करे सरकार।
४
बैठ पालकी में गई,लैकें गये कहार।
विटिया बनीं दुल्हनियां, पोंची वा ससुरार।
५
विटिया गई ससुरार में,गिरस्ती लई समार।
दिन दूनी लक्ष्मी बढ़ी,खुशियां मिली अपार।
***
-रामानन्द पाठक,नैगुवां
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
19-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा
1-
बाप मतारी भूल गए,बिसरा दये परिवार।
बृजभूषण साँची कहें,मिल गइ अब ससुराल।
2-
सारे सारी मगन मन,जीजा संग बतयाय।
बृजकिशोर जा सोच रय,नित ससरारे जाय।
3-
मान पान घट जात बृज,होन लगत तकरार।
नाव धरत है गाँव भर,खूब जात ससरार।
4-
बृजभूषण मानत भली,जानत सुख को सार।
जानै कय पुसात नइ,अपनों घर परिवार।।
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-बृजभूषण दुबे 'बृज', बकस्वाहा
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
*20*आशा रिछारिया, जिला निवाड़ी
बुंदेली दोहा दिवस
ससुरार 🌹
सोन चिरैया उड़ चली,अब अपनी ससुरार।
संग सहेली रोउतीं,अंसुअन लागी धार।।
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बारन कंघा फेर कैं,पैर पेंट ओ कोट।
भैया ससुरारे चले,जेबन डारें नोट।।
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होरी पे तुम भूल कैं,न जइयो ससुरार।
गदा सवारी मो रंगा,जूतन पैरो हार।।
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सैंया जब तुम आइयो,लैवे खों ससुरार।
अकड़ रौब सैं बैठियो,तबई होय सत्कार।।
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आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
🎊🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎊🎊🎇
समीक्षक - सुभाष सिंघई जतारा
समीक्षा , दिनांक 19 सितम्बर 22
बुंदेली दोहा दिवस , विषय - ससुरार ,
समीक्षा हेतु - #भिखारी_छंद का प्रयोग किया है
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भिखारी छंद (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- २४ मात्रा, १२-१२पर यति, सभी समकल, अंत वाचिक गा, ध्यातव्य है कि इस छंद में विषम और विषम मिल कर सम हो जाते हैं |
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1-आदरणीय जयहिन्द सिंह जयहिन्द जी
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सेवा में सब लगवें , सास - ससुर साराजै |
सारी सबरी मिलकै, मुस्की दैवें आजै ||
बरनन करतइ मिथला ,कैतइ अबध वराती |
चार बनै है दूला, फूलै दशरथ छाती ||👌👌
आपने ससुराल का रुतबा व मिथला का सुंदर प्रसंग लिया है
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2- आदरणीय अमर सिंह राय (शिक्षक)
नौगांव, मध्य प्रदेश
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
वर्षा ऋतु घनघोरी , गय तुलसी ससुरारै |
ज्ञान मिलै तुलसी खौं , हुलसी जब फटकारै ।।
अमरसिंह जी कहते , मिलबै मुस्की बौनी |
हेर फेर जब दिखबै ,लौटौ रस्ता नौनी ||👌💐
आपने तुलसी और हुलसी का प्रसंग भी लिया व ससुरार में रहने का समय भी अवगत कराया है
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3- आदरणीय प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
कृष्ण कन्हैया बातें , सँग बातें ससुरारी |
सास ससुर साराजें , याद करीं सब सारी ||
पैड़ सास घर भड़या , गुरा- गुरा टौ डारै |
जय हौ भैया तौरी , काँ सै सगुन विचारै ||🥰🙏
आपने तो आज अपने दौहन से मजा बाँध दव, सासू जी कै गुरा ही टौ डारै 😂🙏
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4- आदरणीय *प्रदीप खरे,मंजुल*जी टीकमगढ़
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सारी साजी लगवें , यह प्रदीप जी कहते |
ससुरारे भी जाकैं , स्वागत रस में बहते ||
जीजा भी सब कहते , रखकर साला नाता |
सार कहै सुक्खन की , जग के सभी जमाता ||
आपने ससुरार खौ सुखौं की सार , व साली को बहार माना है 😂
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5- आदरणीय रामानन्द पाठक नन्द जी
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
बाँद कलेवा माते, ससुरारै खौ गयते |
सजी हती थी सारी , लख के वें खुश भयते ||
बिटियन से भी कहते , नौनों रखौ ठिकाना |
दुल्हन बन ससुरारेै , सुख कै गाओ गाना ||
आपने ससुराल सुख व बेटियौ कौ ससुराल सुख का सुंदर वर्णन किया है 👌💐
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6- आदरणीय भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"जी
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
लिख दी जीजा- सारी , बहुत खूब अनुरागी |
रस बहता है जिसमें , मन बनता बड़भागी ||
सारी की किलकोटी , हल भी हकवाँ डाले |
मैमाँ सब ससुराली, लिखै खोल मन ताले ||
आपने जीजा साली पर सुंदर मनोविनोद लिखे है 🥰🙏
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7- सुभाष सिंघई
दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
बिटियाँ की लिख मैमाँ , सबखौं करौ इशारा |
बहू लक्षमी जानो , बन जैहे घर न्यारा ||
बहू बेटियाँ जानो , रखती जब मरयादा |
घर मेंं भी सुख साता , आती है कुछ जादा ||
बेटी की ससुरार पर केन्द्रित दोहे लिखे है
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8- आदरणीय एस आर सरल जी टीकमगढ़
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
प्रेमनगर भी कहते , है ससुरार सुहानी |
लिखे सरल जी अद्भुत, सुंदर लगै कहानी ||
आव भगत जीजा की , मूँछ लिखैं तुर्रानी |
फटफटिया से जीजा , करते रहें दिमानी ||
आपने जीजा की शान पै बहुत ही अच्छौ लिखौ है , व बेटियों को एक दोहे से संदेश दिया है कि सासू माँ से बिगार नहीं करना चाहिए , जैसा कि एक बेटी कर आई है 👌💐
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9 - आदरणीय राजीव नामदेव "राना लिधौरी "
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
कात सबइ से राना , रामलला सी मिलबै |
ससुरारे जाबै खौ ,सबको तन मन खिलबै ||
याद करत सब साली , सँग में सब साराजें |
माल चकाचक छानैं , रुतबा सब पै छाजें ||
आपने रामलला ससुरार की उपमा बहुत सुंदर लिखी है , व ससुरार का मालपानी छाननें का संदेश दिया है 😂🙏
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10- आदरणीय आशाराम वर्मा "नादान" जी पृथ्वीपुर
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सास ससुर खौं अपनो , ,बाप मताई जानो |
नारी धरम निभाकै , पति परमेश्वर मानो ।|
मात -पिता की विनती , बेटी तुम सुन लइयौ |
नाम राखियौ ऊँचौ, साता सबखौं दइयौ ||👌💐
आपने दोहों में बेटियों को बहुत ही उच्च संदेश दिया है
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11- आदरणीय प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष जी टीकमगढ़
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सारी न्यारी हौवें , ताजी करतइ यादें |
टेरन हेरन मुस्की , मन फिरतइ है लादें ||
करम अभागे जिनकी , हौत न कौनउँ सारी |
पीयूष कात है पर , सारी है फुलबारी ||👌💐
आपने साली पर बहुत ही मन से लिखा है , बैसे आप और हम साली के मामले में एकई रास के निकले 😚🙏
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12- आदरणीया डॉ रेणु श्रीवास्तव जी भोपाल
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
जाकें जब ससुरारे , बिटिया बहु बन जाती ।
दोउ घरन की लाजे , मिलकै सोइ निभाती ||
आँय पावने घर में , सबखौ भोज बनाती |
डारे घूँघट लम्बों , करकै परस खिलाती ||👌💐
आपने दोहो से बेटी के बहू बनने पर कर्तव्य बोध का संदेश दिया है
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13 आदरणीय मनोज साहू 'निडर' जी माखन नगर, नर्मदापुरम्।
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
चात नगीना मुदरी, हार गले खौं चाहै |
तैंसइ चाहै जीजा , सारी खौं ससुरारै ।।
पगी चासनी लगबै , लड़ुआ सी है सारी |
घी बूरै सी नौनीं , सारी लगबै न्यारी ||
आपके दोहे साली पर केन्द्रित सुंदर मनोभाव अभिव्यक्त कर रहै है 👌💐
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14- आदरणीया आशा रिछारिया जी जिला निवाड़ी
आपके दोहो का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सोन चिरैया जाबै , अब अपनी ससुरारै |
संग सहेली रौवै , नैनन बहती धारै ||
सैंया भी जब आते , ससुरारै खौ लैवै ।
अकड़ रौब सैं बैठें , कछू रहत ना कैवें ||
आपने बेटियों की विदा का भाव बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है 👌💐
15- आदरणीय डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस बड़ामलहरा छतरपुर
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सारे -सारी करतइ , जीजा खातिरदारी |
सरस चलै टोपा पहिने , भैया की ससुरारी |
बल्दोगढ़ तोप बने, दिल्ली से थे लौटे |
लौट मलहरा आए , शायद जीजा छोटे ||🥰🙏
आपने जिस तरह बल्दोगढ़ की तोप शब्द पिरोकर सत्य सत्य लिखा है , वह बाकई आनंदकारी है 👌🙏
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16- आदरणीय शोभारामदाँगी नंदनवारा जी जिला टीकमगढ एमपी
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
राम जनकपुर जानो , है ससुरार सुहानी |
सास ससुर है सुंदर , मिलती सुखद कहानी ||
ससुरार गयी सीता , नगर अयोध्या जानो |
सरल सलौना पावन, सभी सुखद क्षण मानो ||
आपने श्री राम की ससुरार का सुखद प्रसंग लिया है 👌💐
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17- आदरणीय संजय श्रीवास्तव, जी मवई दिल्ली
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
जब भी प्यारी बेटी , छौड़ मायकै जाती |
प्रान निकरतइ माँ के , मन से वह अकुलाती ||
जात चिरैया जब भी , प्रीतम सँग ससुरारे |
संजस कहते लिखवें , काँपे हाथ हमारे ||
आपने बेटी की विदा का मार्मिक प्रसंग दोहा में लिखा है 👌💐
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18- --- कल्याण दास साहू "पोषक"जी
पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
मजा आत ससुरारै , खुशियाँ मिले हजारो |
हौवें खातिरदारी , साँसउँ लगतइ प्यारो ||
जाँ नतैत मन बारै ,उम्दा करतइ बातें |
खान-पान सम्मानी , गप्प हाँकतइ रातें ||
आपने ससुरार को बहुत मन से सम्मान देते हुए दोहे लिखे है 👌💐
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19 -आदरणीय रामसेवक पाठक हरिकिंकर जी
आप लिखे सब हटकर , आप सबइ अब जाने |
जो भी मन का लिखते , उसकौ ही हम माने ||
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20- आदरणीय बृजभूषण दुबे जी बृज बकस्वाहा
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
बाप मतारी भूले , बिसरा दय परिवारी |
बृजभूषण साँची कह,सब कुछ अब ससुरारी ||
सारे सारी सब कुछ , जीजा जी कहलाते |
दौड़ जाय ससुरारे , सला वहीं से पाते ||
आपने वह संकेत किया है , जो बहुत बड़ा तंज है 👌💐
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21-आदरणीय गोकुल प्रसाद यादव जी नन्हींटेहरी
आपके दोहों का भावार्थ भिखारी छंद में निम्न प्रकार है 👇
सब रिश्तों में जानो, है ससुरार सुहानी |
करना नहीं बिगारौ , मत बनना अभिमानी ||
नहीं भूल से करना , पत्नी से बड़बोलौ |
तुलसी कालिदास सौ, निज मन खौ खुद तोलौ ||
आपने सुखी जीवन हेतु ससुराल और पत्नी से प्रागणता बनाए रखने का संदेश दिया है 👌💐
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त्रुटियाँ परिमार्जित भाव से पढ़े
सादर
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समीक्षक - सुभाष सिंघई जतारा
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संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
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(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 120वीं प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 21-09-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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