*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-103*
विषय -फाग दिनांक-4-2-2023
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
भॅंगिया के रॅंग में रॅंगे , नंदी नाहर नाग।
गिरिजा होरी खेलबैं , शिव जी गाबैं फाग।।
***
-आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
*2*
फाग राग होवे लगे, देव देहरे द्वार।
होरी को हुडदंग है, नांच रये हुरियार।।
***
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
*3*
सराबोर भइ फाग में ,रमुआ की घरवाइ ।
पिचकारी रँग सैं भरी ,धुतिया दई भिड़ाइ ।।
***
शोभाराम दाँगी, नदनवारा
*4*
होरी को त्योहार जो, सबरे भूल मलाल।
फाग-गात रंगवै लगे, आज धना के गाल।।
- श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
*5*
बुआ हती पृहलाद की,हती न जीखों पीर।
फाग खेल गइ आग में,बर गव तुरत शरीर।।
***
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़
*6*
रँगो फाग के रंग में,थिरकै सब बृजधाम।
हर ग्वालन राधा लगै,हर ग्वाला घनश्याम।।
***
डां देवदत्त द्विवेदी, बडा मलेहरा
*7*
चलौ पिया देखन चलें,आसुन ब्रज की फाग।
दाग लगें तन पै जितै, छूटत मन के दाग।।
***
✍️ गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा)
*8*
धरम रूप प्रहलाद को,जला सकी ना आग।
बैर भाव सब भूल कें, हिलमिल खेलों फाग।।
***
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
*9*
गुइयाँ गाबैं फाग खौं , नचा रयीं गोपाल |
चिकुटी काटै गाल पै , पोतै लाल गुलाल ||
***
-सुभाष सिंघई , जतारा
*10*
ऐसौ रंग उडेलियो, जी में प्रेम प्रमाद।
ध्यान रहे यह फाग की,बनी रहे मरयाद।।
***
आर.के.प्रजापति "साथी" ,जतारा,टीकमगढ़
*11*
प्रेम पूरबक खेलियौ , ई मइना में फाग।
दिल में लगी बुजाइयौ , सब नफरत की आग।।
***
-वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़
*12*
नग नग रँग बूँदा परें , गोरी खेंलीं फाग ।
गोड़ मूंड़ निचुरै खरें , सपरन जारइ भाग ।।
***
प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
*13*
फागें गावें रातभर,बजे नगड़िया चंग।
लै गुलाल रसिया फिरें,हुरयारन के संग।।
***
- आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
*14*
बालम तुमरे संग गय, सबइ राग अनुराग।
"दरसन"बृज या घर रहै,का बिरहन की फाग।।
***
एल.एल.दरसन बूदौर (पलेरा) टीकमगढ़
*15*
उचकत फिर रइँ गोपियांँ,लगें न चुनरी दाग।
पिचकारी लयँ श्याम जू,खेलत फिरवै फाग।।
***
एस आर सरल, टीकमगढ़
*16*
फगुनाहट को दौर है, गाओ भइया फाग।
बिरह गीत नइँ गाइयो,तन मन लागै आग।
***
अमर सिंह राय , नौगांव
*17*
सभी जगा तो खिल गये,,लाल रंग के फूल।
फाग खेलबे के लिये,रंग ज़में अनुकूल।।
***
सुभाष बाळकृष्ण सप्रे, भोपाल
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[04/03, 11:06 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: ।।अप्रतियोगी दोहे।।
लाला खेलें प्रेम सें,रँग गुलाल की फाग।
भौजी के दिल में लगी,होरी कैसी आग।।
लिपट परे जो प्रेम सें,मन कौ मिटो मलाल।
बैर भाव की गाँठ खों,खोलो रंग गुलाल।।
नग नग पै रँग डार कें,करौ हाल- बेहाल।
लाल गाल पैलइँ हतै,घिस दइ और गुलाल।।
होरी के हुरदंग में,जुरी सखन की भीर।
प्रेम पगे ग्वाला सभी,खेलें रंग अबीर।।
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[04/03, 11:42 AM] Rameshver Prasad Gupta Jhanshi: अप्रतियोगी दोहे.
फाग.
तुलसी और पलाश ले,चंदन टेसू रंग/
राग फाग चौपाल में, बजते ढोल मृदंग//
फागुन के रस रंग मय, फगुआरन की फाग/
काम क्रोध मद लोभ की,दे होरी में आग//
तुलसी मीरा सूर की, करतीं फाग कमाल/
मोहन हाथ अबीर है, राधा हाथ गुलाल//
फाग राग रस रंग की, भारी जुरी जमात/
तुलसी मीरा सूर के,पद फगुआरे गात//
बुंदेली साहित्य में, गा चौकडिया फाग/
जन मन के कवि ईसुरी, छेडें अदभुत राग//
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.
बडागांव झांसी उप्र.
[04/03, 1:37 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय:- "फाग"*
उन्ना सबरै भींज गय , हनकै हौ रइ फाग |
हुरयारन की तक रयै , #राना भागम भाग ||
फागुन कौ मँइना लगो , पसरौ है अनुराग |
#राना हिलमिल कैं करौ , रंग बिरंगी फाग ||
जौन दिना हौ फाग कौ , मचत भौत हुड़दंग |
हुरयारे सब डारतइ , #राना जमकै रंग ||
रंग भरौ सब बालटी , तसले धरौ गुलाल |
#राना खेलौ फाग अब, सबखौं करौ निहाल ||
पिसिया बालैं पक रयीं , फूले फूल पलास |
गाऔ-खेलौ फाग सब , #राना रखौ हुलास ||
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[04/03, 1:44 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: ,, अप्रतियोगिता दोहा ,,
विषय ,,फाग,,
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वैर भाव भूलों मिलों , हँसलो खेलों फाग ।
कब "प्रमोद" मिलबू कितै , कीनें जानों भाग ।।
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गोरी को गोरों बदन , चितकबरा भव आज ।
रँग गव रंग "प्रमोद" के , बजें फाग के साज ।।
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भौजी लुकी अटाइ पै , लयँ "प्रमोद" रँग द्वार ।
गाल गुलाल लगावने , खोलो हँसत किवार ।।
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सहराजै घैरन लगीं , जीजा विद गय भोर ।
रँग गुलाल की मार दइ , ऐन "प्रमोद" लटोर ।।
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करिया मौं कर गधा पै , बाँदें बैठें मौंर ।
भय "प्रमोद" टीका मुलक, रँग गुलाल के ठौंर।।
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,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
,, स्वरचित मौलिक,,
[04/03, 2:28 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: अप्रतियोगी दोहे,विषय-फाग
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कान्हा नें खेली भली,
मोरे संगै फाग।
धोंयँ-धोंयँ नइँ छूट रय,
प्रेम रंग के दाग।।
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भर ज्वानी में सोंप गय,
राधा खों बैराग।
खुद कुबजा सँग खेल रय,
मथरा जाकें फाग।।
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फाग भई हरदौल की,
मची राइ की धूम।
नचनारी चकरी बनी,
फगुवारे रय झूम।।
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गुंजा-चंदन-सी खिलै,
जो सारी संँग फाग।
तौ लग जैहै ब्याव की,
सब रड़ुअन की लाग।।
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भूल बिसर जो फाग खों,
ससरारै बिद जात।
करिया-मों बाहन-गदा,
झाड़ू-मौर सुहात।।
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✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[04/03, 2:30 PM] Jai Hind Singh Palera: #अप्रतियोगी दोहे#
#१#
नर नारी जब खेलबें,लगा रंग की लाग।
भेदभाव सब भूलकें,खेलें दिल सें फाग।।
#२#
गोरी खों रोरी लगा,देबें होरी दाग।
ढुलक नगरिया संग लै,बजा गांय फिर फाग।।
#३#
होरी ओड़ें चूनरी,लगा दई फिर आग।
होरी होरी में गई,गाय भतीजौ फाग।।
#४#
हिरनाकुश की बैंन की,ऐसी लग गइ लाग।
बचे भगत पृहलाद जू,होरी जर भई फाग।।
#५#
ढुलक और झांजें बजीं,गाइ रात भर फाग।
ताल नगरिया कौ सुनें,मन हो जाबै बाग।।
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
#पलेरा जिला टीकमगढ़#
#मौ०-६२६०८८६५९६#
[04/03, 3:08 PM] Amar Singh Rai Nowgang: *अप्रतियोगी दोहे* : *फाग*
गात फाग होरी खिलत,और पिबत है भंग।
हुरियारे हुरियात हैं, खूब उड़ावत रंग।।
फाग राग श्रृंगार रस, सुंदरता लालित्य।
बारे बूढ़े गा रये, फागुन मइना नित्य।।
अपने खंड बुँदेल में, गवत ईसुरी फाग।
जिनके दो- दो अर्थ हैं, है अलबेला राग।।
बिना फाग उर रंग के, होरी हो भदरंग।
चार चाँद लग जात जब, चाहत भी हो संग।
फागुनाहट को रँग चढ़त,कहत कहावत ठेठ।
फागुन मइना फाग में, देवर लगवे जेठ।।
रजउ ईसुरी नाँव सें, खूब भए बिख्यात।
फाग तीन सौ साठ लिख,गए जिन्हें सब गात।
अमर सिंह राय
नौगाँव, मध्य प्रदेश
[04/03, 3:55 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दोहा दिवस , विषय - फाग
बृज की देखी फाग है , लठ्ठमार जब हौय |
फगुबारी की मार से , साबुत बचै न कौय ||
गोरी लैकें रंग खौं ,फाग खेलतइ द्वार |
आबड़ में जो है बिदत, रँग देतइ है डार ||
सबइ रंग उमदा लगैं , चिपकै आँग गुलाल |
खैलत गावत फाग हैं , देत नगड़ियाँ ताल ||
गोरी खेलत फाग है , जब प्रीतम के संग |
रोम- रोम मुसकात है , खिलत सबइ हैं अंग ||
बजत नगड़िया फाग में , सबरै दौरै आत |
हौरी है ई बात खौं , रँग डारत चिल्लात ||
बिचकत अब कछु रात है , कैसन खेलें फाग |
कैमीकल रँग में डरौ , लगै गाल खौं आग ||
सुभाष सिंघई
[04/03, 5:46 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: अप्रतियोगी दोहे विषय फाग
फगवानो फागुन फिरै , खेलत सबसें फाग।
रस रँग में रसिया रँगे , छलकत है अनुराग।।
ना सारी ससुरार में , ना घर में भौजाइ।
की सें कैसें खेलबें ,फाग न आबै राइ।।
निसदिन मन में धधक रइ, होरी कैसी आग।
जौ जीवन बे रंग है , खेल सके नइँ फाग।।
नेह घटा घुमड़ी नहीं, ना बरसी रस धार।
राग रंग बिन फाग के, जीवन दिया गुजार।।
जिन फूलों के रंग से , लोग खेलते फाग।
बेचारा टेसू जले , लगी भाग में आग।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[04/03, 7:14 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय-फाग
1-राग सुनत मन ललक रव,
हिल मिल नाचें गाय।
बृजप्रेमी जन प्रेम से,
रंग गुलाल उडा़य।
2-पिया बिना फीकी लगत,
आली मोखों फाग।
कहौ कौन संग खेलिये,
मोरे ऐसे भाग्य।
3-बुंदेली फागें गबत,
लगत अनोखी राग।
बृजकिशोर सुनतन बनत,
रंग रंगीली फाग।
4-अब लो साजन आए नइ,
सामू आ रइ फाग।
होली की मन में हुलक,
रहो प्रेम रस जाग।
5- गलन गलन फागें गबत ,
लगत सुहानी फाग।
ढुलक नगरिया बजत जब,
उपजत मन अनुराग।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[04/03, 7:34 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: *अप्रतियोगी दोहे*
फाग खेलबे आयनें,नटवर नंद किशोर।
आगी सी भीतर ठुकी,गली तकौं दुइ जोर।।१।।
भौजी तुम बाहर कड़ो, हमें खेलनें फाग।
धक-धक छाती हो रही,लगी बदन में आग।।२।।
होरी फगुआ फाग उर,टप्पा कदुआ राइ।
रसिया फागें छंद कीं,भूलत जा रय भाइ।।३।।
भौजी पिचकारी लयें,लाला लयें अवीर।
दौरउआ की फाग संग,गब रय ऐन,कबीर।।४।।
जीजा सारी की खिली, गुबर गोंत की फाग।
राई कहरवा सोइ भये, और वसंती राग।।५।।
भगवान सिंह लोधी अनुरागी जी आदरणीय 🙏🙏
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