Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

पेरा (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक) संपादन- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)


                      💐😊पेरा 😊💐

                   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                   की प्रस्तुति  79वीं ई-बुक

© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-12-2021

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
         मोबाइल-9893520965



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊


  

🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊


              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02- प्रदीप खरे मंजुल, टीकमगढ़(म प्र)
03-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़) 
04-गोकुल प्रसाद यादव,बुढेरा (म.प्र)
05- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
06-संजय श्रीवास्तव, मवई,टीकमगढ़(म.प्र)
07-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
08-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा, जिला छतरपुर
09-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
10-कल्याण दास साहू पोषक, पृथ्वीपुर,(म.प्र.)
11-एस आर सरल,  टीकमगढ़
12-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा   
13-जयहिन्द सिंह 'जयहिन्द', पलेरा
14-भजन लाल लोधी, फुटेर
15-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ' लखौरा
16-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
17-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)
18-राम बिहारी सक्सेना "राम",खरगापुर जिला टीकमगढ़
19-प्रभुदयाल श्रीवास्तव ,पीयूष', टीकमगढ़ (मप्र)

😄😄😄जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄



                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज यह ई-बुक पेरा 79वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 79 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 76 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह पेरा 79वीं बुक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी रचनाएं पटल के साथियों  ने दिये गये बुंदेली दोहा लेखन बिषय-  पेरा पर शनिवार दिंनांक-13-12-2021 को सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे के बीच पटल पर पोस्ट किये गये नव रचित दोहे हैं।  कमेंट्स के रूप में आशीर्वाद दीजिए।

  अतं में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
दिनांक-13-12-2021 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-9893520965

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)



अनुप्रास अलंकार का अद्भुत उदाहरण-

*बुंदेली दोहा बिषय- पेरा*

पेरा पीरे जब परे , 
       केशर पिस्ता पास।
                प्यारे पुतरा पात है, 
                         पइसा देत पचास।।
                                     ***
13-12-2021

राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐


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02-प्रदीप खरे,मंजुल, टीकमगढ़ (मप्र)

बिषय.. पेरा(बुंदेली दोहा)
*13.12.2021*
*प्रदीप खरे, मंजुल*
*********************
1-
गोरी रूठी होय तौ,
बरुआसागर जाव।
पेरा लैकें आइयौ, 
तुरतयी उये ख्वाव।।
2-
पेरा से मौं में घुरे,
मीठे बोलत बोल।
नीके बैना लगत हैं,
निसरी सी रइ घोल।।
3-
मंदिर में पेरा चढ़ें,
लागै नौनौ भोग।
प्रभु प्रसन्न हो जात हैं,
भग जाबैं सब रोग।।
4-
लडुआ पेरा बटत हैं, 
चलो आव संजोग।
बिन पेरा फीके लगें,
देवन छप्पन भोग। 
5-
प्रियसी पेरा ख्वाय सें,
प्रीति बढ़त दिन-रैन।
 कलेश बढ़ै न घरन में, 
बनौ रबै सुख चैन।।
***
-प्रदीप खरे,मंजुल, टीकमगढ़ (मप्र)
🤔😂😂🤔

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3-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 


😊(((((( पेरा ))))))😊
             **😊**
दस नय में पेरा मिलौ,   
               रूंगन में लय सेव।
जौइ कलेवा रोज कौ,
              खुशी परै सो लेव।।

छुम छुम की गुजिया हती,
             मों में दँय घुर जाय।
बौरे कौ पेरा बड़ौ,
            भजिया सङ्गे खाय।।

बरुआसागर के हते,
                 पेरा बड़े प्रसिद्ध।
कलजुग में ठोकें लुअर,
             व्यापारी भय गिद्ध।।

मों में पानी आ गऔ,
                  पेरा देखत राम।
चिटू चिटू से बनत हैं,
                जोंरा कौ है नाम।।

हरिद्वार में मिलत है,
                देशी घी की चाट।
विन्द्रावन में देख लो,
                पेरन के भी ठाट।।

बेसन में चड़तौ नमक,
               ऊके भजिया सेव।
पेरा की पुट देत रव,
             खुश हो जातइ देव।।
          ***😊***
         *!@!@!@!*
😊-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
                   
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04-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.)



🙏🌹बुन्देली दोहे🌹विषय-पेरा🌹🙏
*******************************
मथुरा  सें  भय ते  शुरू, पेरा  पैलउँ  पैल।
अबसो उनने देख लइ,दुनियाँ भरकी गैल।

 नकली खोवा सें पटे, सबरे आज बजार।
 घर कौ खोवा होय जब, तौ पेरन में सार।

 खोवा चीनी  घोंट कें,  पेरा  सुगर  बनात।
 केशर पिस्ता लायची,डरें स्वाद बड़ जात।

 बरुआसागर  के हते,  पेरा  माँय  प्रसिद्द।
 नाँय भेलसी के हते,  मिठया खूबइ सिद्द।

 पेरन में अब डारतइ,  जानें  कैसौ  स्वाद।
 जीभ कबै दस ठौल दो, पेट होत बरबाद।

पेरा  ख्वाकें  करत ते, पुटयाबे  कौ  काम।
बे खबरें जब आउतीं,बैठ जात दिल थाम।
********************************
✍️गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुडे़रा)

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05-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा




बिषय- "पेरा" बुंदेली दोहा
1=
भोग लगै भगवान को,पेरा नौनौं प्रसाद ।
खोवा घी शक्कर लगै, भौतइं उमदा स्वाद ।।

2=
 पेरा खावै रोज जो, तन मन रैत दबंग ।
विंदावन में मिलत हतौ, खा खा बदलें रंग ।।

3= 
भजिया संग ये खाइये,चिटपिटौ नमकीन ।
पेरा तन -तन खात रव ,मन होजै तल्लीन ।।

4= 
बरूआसागर मिलततौ,पेरा सुदय स्वादिष्ट।
भजिया के संग खावतौ, तन मन होत बलिष्ट ।।

5= 
कछु जनैं मजदूर खों, घर के काम लगांय ।
दिन भर पैरा  काम में,तनक तरस नइं खांय ।।

6= 
ऐसे निष्ठुर होत हैं ,ई जग के कछु लोग ।
कामन में पैरैं बहुत,होय चाय कुछ रोग ।।

***
शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा जिला-टीकमगढ़

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06-संजय श्रीवास्तव, मवई (जिला-टीकमगढ़)
      
     *सोमवारी बुंदेली दोहे*
विषय -    *पेरा*
*१*
लडुआ,पेरा चढ़ रहे,
     काशी जू में आज।
मोदी जी के काज से,
     खुश है सकल समाज।।
*2*
पेरा सें केरा भले,
       देत रोग न पीर।
स्वस्थ रखै,आयू बढ़ै,
        बनत बड़े बल वीर।।
*३*
बरुआसागर के हते,
          पैलें पेरा जंट।
मौं में धर घुर जात ते,
        मजा मिलत तो अंट।।
*४*
लडुआ  पेरा  रसभरी,
        गुजिया ऐन पुसात।
रोग गुरीरो पालकें,
         मनइं मार रै जात।।
*५*
लडुआ, पेरा ठूँसकें
       पानी लव भर पेट।
मूँछन पे दै ताव फिर,
       चले दुकानें सेट।।
     ***
      -संजय श्रीवास्तव, मवई,१३/११/२१😊दिल्ली

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7-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


पेरा पेरन सें कहे
करले आज किलोर।
खुपट खुपट बटने हमें
काल राम के दोर ।।
,,
पेरा की गुरयाई सें
बीमारी हुरयाइ।
गुरमें खाले घोंट के
सो पिरमोद नसाइ।।
,,
पाखंडी पेरा लियें
भोग प्रमोद बताय।
जिन खइयो चेते रहो
गड़बड़ धरें मिलाय।।
,,
पेरा लयें मंदिर खड़े
विनय प्रमोद सुनाय।
बिना पढ़े भगवान जी
पेलो दरजा आय।।
,,
पेरा ले नेता चलो
भेंट लियो भगवान।
पत प्रमोद की राखदो,
जीते मोर निशान।।
        ***
                   -प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़
                   

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08-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा,छतरपुर



1-
पेरा रुचबें सबइ खों ,
पेरा सब कोउ खाय ।
की खों कैसो लगत है ,
अपनो स्वाद बताय ।।

2-
पेरा खाने होय तो , 
मथरा से मंगवाव ।
जैसो पेरा उते कौ ,
और कहूँ ने पाव ।।

3-
पेरा जिसने जौन खों ,
आपउ खुद पिर जात ।
भलो करो ने कबउ तो,
भलो कबे भव जात ।।

4-
खर-दूषण को धुआँ तक,
लंका पोंची जाय ।
सूपनखा सी बैन कव,
रावन  पेरा काय।।
****
-बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

9-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
 


पेरा सें नोंने लगत,बेर मकोरा‌ आम।
शबरी आश्रम आन के,जूठे खायें ‌राम।।

बे पेरा ‌अब न‌ईं‌ मिलत,खोबा‌‌ बारे‌ शुद्ध।
नकली मावा के बने,खातन होत अशुद्ध।।

असली ‌कै‌ कें बेंच ‌रये,दया धरम ‌गये‌ भूल।
पेरा अब पेरन लगे,पैसा हो गये मूल।।

घर में खोबा‌ ओंट कें,पेरा‌ लैव बनाय!
पेलें हरि खों ‌सौपकें,ता पीछे रयो खाय।।

पेरा‌ की जांगां अगर,हवा भोर की खैव।
बंदरा जैसे कूंद हो,बैध ना कभ‌ऊं‌ बुलैव।।
****
मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित दोहे सभी विद्वानों से प्रार्थना है कि मुझे मात्राओं का ज्ञान नहीं है अतः कम ज्यादा  हो जाएं तो मार्गदर्शन देने की माहिती कृपा करें।🙏🙏
***
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 
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10-कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,(निवाडी़)

 पेरा  की  महिमा  बडी़ , है पावन संजोग ।
ओरम सें  लगवे लगौ , ठाकुर जू खों भोग ।।

बनवौ है भौतइ सरल , शक्कर खुवा जुटाय ।
मिठया  सबरे  हाँर  के , पेरा  लेत  बनाय ।।

खोवा  बूरौ  सेंक कें , मेवा लेत मिलाय ।
सांचे  में  पेरा  बनें , गरी  देत  बिरराय ।।

पेरा की गुजिया बहिन , कलाकंद है भाइ ।
रबडी़  प्यारी  लाड़ली , बरफी  है  भौजाइ ।।

पेरा  तीरथ  धाम के , सबखों  भौत  पसंद ।
ग्रहण करत परसाद तौ , आत खूब आनंद ।।

   *** 
 -कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर,निवाडी़(मप्र)
      
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*11-एस आर सरल,  टीकमगढ़


बुन्देली दोहा# पैरा #

जियें पैल मौका मिलौ, बौ खा खा इठलाय ।
सबरे पैरा खा लये ,बचे खुचे  को खाय।।

पैरा खा खुश होत मन,मिलत भौत संतोष।
गुस्सा सब मिट जात है,जात ठंडया तोष।।

जय बुन्देली पटल पै,कविगण पैरा खाँय।
'सरल'पछौने हो गये, खावे खौ ललचाँय।।

सबइ जनन खौ रय सुना,एक दफै की बात।
खा गय पैरा साँटकै, चङो  पेट सबरात।।

खइयों नइ नादान जू, पैरा टटिया टोर।
करें अजीरन बाद में, पेट में उठें मरोर।।
****
    एस आर सरल,  टीकमगढ़
     ***

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*12*-डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलेहरा

बुंदेली दोहा - ( पेरा )

पेरा, बरफी के लगे,
         जिंनें लगाबे ढेर।
प्रेम भाव सें खात हैं,
          बे सबरी के बेर।।

मथरा के पेरा बनें,
           बरसांनें की खीर।
कै बृज कौ माखन मिलें ,
           तृप्त होंयं यदुबीर।।

लडुआ,पेरा,दइबरा,
        कुसलीं ,बतियाँ सेव।
सरस इंदरसे माँग हौ,
          तनक और तौ देव।।

लमटेरा पेरा सरिस,
       बरफी जैसी राइ।
चौकड़ियां,फागें सबइ,
          बुन्देली गुरयाइ।।
***
डां देव दत्त द्विवेदी,बडा मलहरा, छतरपुर

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13-जयहिन्द सिंह जी 'जयहिन्द', पलेरा

                    #1#
सबै देव खुश होत हैं,पेरा भोग लगाँय।
मंदिर दर्शन खों चलें,तब पेरा लै जाँय।।
                    #2#
मावा शक्कर घोंट कें,पेरा लेव बनाय।
मेवा उनें लटोर कें,बूरौ देव सनाय।।
                    #3#
पेरा पेरत सबै खाँ,बूड़ौ बारौ ज्वान।
नेता अफसर चाकरी ,होय मजूर किसान।।
                    #4#
लुकलुकात है जीभ जब,पेरा हो बेपीर।
इनके आँगें छोड़ दें, बरसानें की खीर।।
                    #5#
मथुरा में पेरा बनें,खुरचन खात अगात।
सबखों बे साजे लगें,होबै कौनौ जात।।

***
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द
#पलेरा जिला टीकमगंढ

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14-भजन लाल जी लोधी, फुटेर (टीकमगढ़)


( दोहा-बुंदेली-बिषय-पेरा )
.....................................
दोंना में पेरा धरे,
खैबे जी ललचात।
बैरन डाइबिटीज जा,
जियत प्रान लयँ जात।।
......................................
तेरा घेरा ! देत रय,
जौ लौ कें र इ  ज्वाँन। 
कोई कोउ पेरा लयँ दुके,
कोउ केरा कोउ पान।।
......................................
पेरा मीठे  होत  हैं,
जा जानत सब कोय।
दरद डाड़ कौ होय सो,
आधी राते रोय ।।
.....................................
हैं कछु बिर्रे बाछरे,
पेरा के शौकीन।
अब सो कैरय परस दो,
तनक और नमकीन ।।
....................................
पेरा की करतन ख़बर,
चुचा परत है लार।
भजन करें तौ का करें,
नियत बड़ी बेकार ।।
....................................
स्वरचित एवं मौलिक

**
-भजन लाल लोधी, फुटेर, (टीकमगढ़)

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*15*गुलाब सिंह यादव 'भाऊ' लखौरा


❤️बुन्देली दोहा ❤️
बिषय- पेरा 
              1-
पेरा से प्रभु मने
लडुवा माग गनेश।
माखन मिश्री किशन जी
गाजो भाग महेश।।
             2-
पेरा केरा दुद से
पुष्ट होत जा देह।
रोजीना भोजन करें 
थोरा इनको लेह।।
             3-
पेरा से ताकत बने 
बलसाली बलवान।
आँख जोत नौनी रबे 
सुनों खोल के कान।।
             4-
दुद मठा पेरा सदा 
टूटी हढडी जोड़। 
काया में न आलसी 
लगा लेव तन होड़।।
            5-
मोड़ी मोड़ा देख लो 
पेरा में मन जात।
पिया बजारे जात हो 
लैके आव कात।। 
***
गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊


   16-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       


पेरा पर बुंदेली दोहे

लडुआ पेरा जलेबी,देखत जी ललचाय।
खाबे मिलवें फिरी में,चाय लट्ठ घल जाय।।

पलंग टोर पेरा बनत,भौत डरत है माल।
मिलत जिला जालौन में,खायँ माई के लाल।।

छतरपुरी खुरचन गजब,अरु बनारसी पान।
पेरा बरुआसागरी,जानत सकल जहान।।

पेरा देखत जीभ खों,बिल्कुल परै ना चेंन।
इनके लानें गुथ परें, सगे भाई और बेंन।।

खोबा सें पेरा बना,प्रभु खों भोग लगाय।
नित्य नियम सें जो चलै, तर वैकुण्ठै जाय।।

***
-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       
***

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

17-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)


दोहा

पेरा पेरी जिन करो
 हम तुम सें हैरान।
मिलत कितै ऐसे बिषय 
बता देव श्रीमान।‌

मों मोरो पनयात है
सुन पेरा को नाव।
ठाडे़ हते दुकान पै
सो दे गये कनाव।।
***
रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़ (मप्र)


🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

18-राम बिहारी सक्सेना "राम",खरगापुर जिला टीकमगढ़

बुन्देली पेरा भले, दूरई सें ललचांय ।
मुंह में पानी आ गयो, निकरें न बिन खांय।। 1

भेलसी के पेरा हते, एक रुपये के चार।
खुशबू खींचे दूरसें, खाबे में मजेदार।। 2

बरुआसागर गांव के पेरा हते प्रसिद्ध।
स्वाद हतो मनभावतो कारीगर थे सिद्ध।। 3

पूंजीवादी खा गये, पेरन को बो स्वाद।
मिला पाउडर बन रही, स्वाद भयो बरबाद।। 4

राम बिहारी सक्सेना "राम",खरगापुर जिला टीकमगढ़

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19-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
बुंदेली दोहे  विषय  पेरा

खोबा भर खोबा मिला, शक्कर डेड़ छटाक।
सानदार   पेरा    बने  ,खांयं चतुर चालाक।।

तन तन सीं पेरीं बनें ,खातन मों बिचकात।
बे पेरा अब कां धरे , बचपन में रय खात।।

जेवरा की गुजिया पिया,देखत मों मिठयात।
बरुआ सागर   के   बने,पेरा मन ललचात।।

मथुरा के  पेरा  पिया  , चलौ खबादो मोय
  मैं बरसाने की बुंदी  ,  बिसा ल्याई तोय।।

पेरा  सीं  पेरा  दिखीं , घूंघट में मुसकात।
खाबे  मों मिठयात है,पाबे मन ललचात।।

 बरुआ सागर के बने , पेरा  खाने  मोय।
प्रीतम  हमें मंगा दियौ,  फिर जो चाहे होय।।
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           प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

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                              पेरा
                   (बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                   की 79वीं ई-बुक

© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 13-12-2021



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