💐😊 कनवूजा😊💐
(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 96वीं प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 28-02-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
मोबाइल-9893520965
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
अनुक्रमणिका-
अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-रामगोपाल रैकवार (टीकमगढ़)
03-भजनलाल लोधी ,फुटेर (टीकमगढ़)
04- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
05-संजय श्रीवास्तव, मवई,टीकमगढ़(म.प्र)
06-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
07-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
08-एस आर सरल, टीकमगढ़
09-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़)
10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
11- प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
12-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र)
13-डां. देव दत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा
14- ब्रज भूषण दुवे , बक्सवाहा
15--गीता देवी, औरैया (उ.प्र.)
16-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा
17-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव,झांसी (उ.प्र.)
18--रामेश्वर राय 'परदेशी',टीकमगढ़ (मप्र)
19-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)
🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
संपादकीय-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे।
हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।
हमारे इस छोटे से प्रयास से आज यह ई-बुक 'कनवूजा' 96वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
यह पटल के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 96 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 79 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब तक पढ़ चुके हैं।
आज हम ई-बुक की श्रृंखला में हमारे पटल जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 96वीं ई-बुक 'कनवूजा' लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों ने सोमवार दिनांक-28-2-2022 को बुंदेली दोहा लेखन में दिये गये बिषय 'कनवूजा' दिनांक-28-2-2022को पटल पोस्ट किये है।
अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
धन्यवाद, आभार।
***
प्रकाशन दिनांक-28-02-2022 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
मोबाइल-91+ 09893520965
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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
**बुंदेली बिषय- कनवूजा-*
*१*
कजवूजा सूजो धरो,
कक्का कै रय काय।
कुटवे वारो का करो,
कल्लू कय शरमाय।।
****
*२*
कनवूजा में जब खले,
होश ठिकाने आत।
अक्कल दौरन लगत है
गलती सुधरी जात।।
***
*३*
कनवूजा कय हाथ से,
और दिखावे रोस।
कर्म करो है आंख ने,
हमरौ का है दोस।।
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐
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02-रामगोपाल रैकवार (टीकमगढ़)
चांदी से चमकन लगे,
कनबूजे के बार।
दद्दा बब्बा कन लगे,
अब सबरे नर-नार।।
***
रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
मौलिक और स्वरचित
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03-भजनलाल लोधी ,फुटेर (टीकमगढ़)
(बुंदेली दोहा-कनबूजा)
******************
लरबे पौंचीं खोर में,
मडो़ छोड़ ग इँ चून!
कनबूजे में दो घले,
हुलकाँ डा़रें खून!!
*****************
कनबूजे में मार दव,
टेड़ी हो ग इ चाप!
उल्टधरे की बीद ग इ,
थानें पौंचो बाप!!
*****************
भुंसारे सें किडी़ कौं,
लगी बजाबे दाँत!
कनबूजौ टो डारनें,
अपनों चलनें हाँथ!!
******************
कनबूजे पै कामिनी,
कारी लट लटकाँय!
लख लज्जित भ इ नागिनी,
जे की कीं बहु आँय!!
******************
कनबूजौ कोमल कमल,
दिल-तिल में रव खोय!
मनहुँ पराग सुगंध हित,
भौंरा ब्राजो होय!!
******************
✍️भजनलाल लोधी फुटेर टीकमगढ़
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04-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
1-
बिना डाट मानत नहीं,करै भौत उतपात ।
कनबूजा में घलतनइं,बौ जलदी डटजात ।।
2-
काम विगारै जो पनौं,सो डाटत सब कोइ ।
कनबूजा में दैंय हम,बात मान लै मोइ ।।
3-
कनबूजौ कनपटी खौं,कतई कछुजन लोग।
ऊदम बाजी करत जो,ऊखौं डाटत जोग ।।(जोग मानें समय)
4-
लरका गर कइ न करैं, डाट पिलाई जात ।
कनबूजैं रापट घलै,बंद करै उतपात //
5=
तोरे कनबूजैं पडै,हांत दोइ जब मोय ।
फै कबउं उबराव नइं,घरै जैव फै सोय।।
6=
कनबूजे में घलै सो,झकी खुल जै तोइ ।
जासैं ऊदम नै करौ,बात मान लै मोइ।।
****
मौलिक रचना
शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा जिला-टीकमगढ़
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05-संजय श्रीवास्तव, मवई (जिला-टीकमगढ़)
*सोमबारी बुंदेली दोहे*
विषय- *कनबूजा*
*१*
कनबूजा पूजा हती,
पैलउँ लोकाचार।
घरै पुजतते आय दिन,
गुरुअन कौ अधिकार।।
*२*
कनबूजे की का कनें,
अबलौं तक सन्नाय।
बचपन की करतूत बा,
आँखन में उतराय।।
*३*
पैलउँ कनबूजो पुजो,
फिर पूजी करयाइ।
गुरा हुमस गय ठिया सें,
ऐसी करी दुचाइ ।।
*४*
करयाई कल्ला रही,
कनबूजो भन्नात।
दया करो मालिक तनक,
नँग-नँग टूटो जात।।
*५*
कनबूजो सूजो धरो,
ठनी ठसक में न्याव।
तन तन पे बमकत फिरत,
तन में तनक न ह्याव ।।
***
-*संजय श्रीवास्तव* मवई
२८-२-२२😊 दिल्ली
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6-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)
,,सोमवार बुंदेली दोहा दिवस,,102
,, विषय कनबूजा,,
,,,,
थापर कनबूजा परी,आंख तिलमिली छाइ
सिसकत सो गय मोंग कें,आज नी करी ब्याइ
,,,,,,
कनबूजा पर जब घलत, रापट झनना जात
चोरी उछरत चोर सब, कैसे करी बतात
,,,,,,
सबरे बंदरा गेंत गय,लंका पति के दूत
कनबूजा कर लाल दय, दियो रापटन खूंत
,,,,,,,
कालनेमि को सेंक दव, कनबूजा संग कान
सपर खोर कें आयते, नरवा सें हनुमान
,,,,,
घरवारी ने सुजे दव, इततो मारो काल
कंडा कनबूजा घलत, परों सिओंरो गाल
,,,,,
कनबूजा लौ काट गव,हिकका बंदरा आज
अब प्रमोद कूलत परें,हती पैल सें खाज
***
-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
स्वरचित मौलिक
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7- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
जय बुन्देली साहित्य समूह टीकमगढ़
विषय:-कनबूजा पर बुन्देली दोहे
********************************
कई जनों के मों सुनी,हने थपाड़ा तौय।
कनबूजा टूटे तुरत,खबर भये की हौय।।
कनबूजे में जौ अगर,तनक चोट लग जात।
कान तड़कबे जौर सें,बनत नहीं है खात।।
कनबूजे सें कनपटी, कनबूजो भी कात।
कनपट्टी पै धर तुबक,डांकू सब लै जात।।
कनबूजा सें कान कत,भये काय नै पीठ।
घलत लपाड़ा जब हमें,बिगर जात है दीठ।।
कनबूजे में घलत ही,झमा तुरत आ जाय।
डरौ कलारै खाट पै,घनों-घनों मों बाय।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
सुप्रभात जय महाकाल जय बुन्देली
-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
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08-एस आर सरल, टीकमगढ़
बुन्देली दोहा
#कनबूजा#
बदरचटा कछुअक़ जनें,लेत गैल में छैक।
ऐसन खौ बकसों नईं, दो कनबूजा सैक।।
सुड़ बिल्ला सिर्री बनें, जैसें होवें झक्क।
दो कनबूजा में घलीं,जल्दी हो गय टक्क।।
***
-एस आर 'सरल', टीकमगढ़
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9-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़
*!!😊*कनबूजौ*😊!!*
-^-^-^-^-!!@!!-^-^-^-^-
●●★●●
बिड़ी पियत देखौ हमें,
एक दार की बात।
कनबूजे फोरे गए,
घली खेंच कें लात।।
भूल जायगें गुरु जी,
जोड़ घटाबौ भाग।
कनबूजे ना सेंकियो,
इतै हमाव दिमाग।।
कनबूजे में हो घलीं,
मोय थपरियाँ चार।
गोला लाठी डार कें,
खूब भये सत्कार।।
मास्साब ने एक दिन,
कनबूजौ दय सेंक।
लरका थानेदार नों,
बस्ता देवै फेंक।।
मौ में गुटका दाब कें,
कै रय चौंकें चार।
कनबूजे अब नइ सिकत,
बंद करें सिरकार।।
कनबूजे में खेंच कें,
घलीं थपरिया एक।
नस नाड़ी खुल जात ती,
छूट जात ती टेक।।
**!!@!!**
-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़
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10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
बुंदेली दोहा
28 02 22
विषय- कनबूज़ा
1कनबूज़ा वैरौ हुयै, घलै सपाटा तान।
बात हमाई मान कें,झट्ट पकर लो कान।
कनबूज़ा पै रगड़ दय, चार सपाटा खेंच।
हाँत ड़ार कें जेब में,रुपया लयते येँच।
ढिलया दय सबरे गुरा, पटक टोर दय हाड़।
फिर फटकारे लबोदा, करकें बन्द किवाड़।
कछू जनम के कुटैला,खूब करत शैतान।
कनबूज़ा सिक जात जब,लाल होत तब कान।
अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
***
अंजनी कुमार चतुर्वेदी ,निवाड़ी
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11- प्रदीप खरे, टीकमगढ़(मप्र)
*
पकरैं ठाढ़े गैल में,आंखें रहे दिखाय।
कनबूजे में ऐंठ कें, ककरा रहे लगाय।।
*
कनबूजौ सूजौ धरौ,कैसी करी कमाइ।
कर्रे कुट गय का कितउ, ढूढ़त फिरत मताइ।
*
मजनू ठाड़े गैल में,बिगरी उनकी चाल।
दऔ कान में खेच कैं,कनबूजा भव लाल।
*
कोरोना के काल में,कढ़तन भई कुटाइ।
कनबूजो बैरौ भऔ,कूटत रहो सिपाइ।।
*
कनबूजौ सेंकौ हतौ,घलो झापड़ा गाल।
दोई आंखें मिच गई,हाल भऔ भोपाल।।
***
-प्रदीप खरे 'मंजुल' ,टीकमगढ़ (मप्र)
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12-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर
बुन्देली दोहा - *कनबूजा*
सोमवार, दिनाँक- 28/2/2022
कनबूजा बोलत कियै,लो जन-जन जो जान।
गाल,कान अरु आँख के,बीच भाग को मान।
कनबूजो सूझो धरो, कछू बनै नइं कात।
डाढ़ दरद ऐसो करै, कछुअइ नहीं सुहात।
कहूँ पियक्कड़ जाय मिल,नशे में खूबई होय।
कनबूजे में देतनइं, नशा छुमन्तर होय।।
भड़या भड़याई करै, अगर न रानै बात।
कनबूजे में जड़तनइं, साफ-साफ चिल्लात।
बिनती नइं कोऊ सुनै, डरै मार सें भूत।
कनबूजे जिनके सिके, बने कमाऊ पूत।
कनबूजे थप्पड़ पड़े, धीरे - धीरे रोज।
खूबसूरती जाय बढ़, है वैज्ञानिक खोज।
मौलिक/-
***
-अमर सिंह राय,नौगांव
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13-डां देव दत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा,(छतरपुर)
🥀 बुंदेली दोहा- कनबूजा🥀
जो चुगली कुबडाइ की,
आदत में फस जात।
थौल- थपरिया चाय जब,
कनबूजा पै खात।
जबरइ बारे मर्ज की,
नइंयाँ कितउँ दबाइ।
कनबूजा पै कसें, फिर,
पूँछें को हौ भाइ।।
***
-डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस'
बड़ा मलहरा (छतरपुर)
***
14-ब्रज भूषण दुवे , बक्सवाहा
गलती जब वनजातती ,
कक्का धर खिसयाय ।
कनबूजा हल जात तो ,
थप्पड जब घल जाय ।।
कनबूजा सूजो मुलक ,
जबड़ा खूब पिराय ।
रोउत फिरे सेकत फिरत ,
हालत नई कई जाय ।।
कनबूजा झन्नात गओ ,
कान से कमईं सुनात ।
ब्रजभूषण का कर सकत ,
कैसी बनी सियात ।
****
-ब्रज भूषण दुवे , बक्सवाहा जिला- छतरपुर
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15--गीता देवी, औरैया
कनबूजा
दई कनबूजा में अगर, अकल ठिकाने आय।
भौत बोलबौ थम जयै, सबइ नसै खुल जाँय।।
नइ मरियौ कनबूजा मै, जाय थोबड़ा सूझ।
थप्पड़ जाकै हौ पड़ी, ऊसे लैयो बूझ।।
पियत चलत जो गैल में, गिरबै बारंबार।
अब कनबूजा में जड़ी, ठाड़े थानेदार।।
नकल करत पकरै गयै, गुरुजी मारी मार।
कनबूजा सूजौ सबइ, लागै भौतइ भार।।
माँ कनबूजा ज्यौं जड़ी, भयौ थोबड़ा लाल।
ऐसन गलती नहिं करै, बुरै भयै सब हाल।।
-गीता देवी
औरैया (उत्तर प्रदेश)
***
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16--गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा
बुन्देली दोहा
बिषय-कनबूजा
1-
गय जमाने बदल अब
चल रव नव नव दोर
कनबूजे पै ढुलत ते
जे खजरी के मोर
2-
डरी फुदरिया लाल सी
रंग बिरंगे फूल
शीश मोर उपर धरें
कनबूजे पै झूल
3-
कानन झुमकी लटक बै
कनबूजे रइ झूम
बार बार हिल जात है
गोरी गलुवा चूम
4-
बमुन कान जनेऊ है
कनबूजे के संग
हात लगा न पाऊत है
जो लो मिले न गंग
5-
कुन्ड सपर के आये ते
न कनबूजा कान
हनी मुस्टका शीश पै
तुरतइ कडे प्रान
***
-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा
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*17-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
जय बुंदेली साहित्य समूह.
एक दोहा- कनबूजा.
समझ न आई नैक भी,
सारे दिन समझाय।
कनबूजा में जब घली,
तुरत अकल में आय।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.(बडागांव) झांसी (उप्र.)
***
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अनुरागी दादा। भजन,
राना कवल। जू भाउ।
कनबूजा पै लिख दये,
दोहा नौने इकाउ।।
आदरणीय भौत भौत धन्यवाद सर जी नमस्कार
-रामेश्वर राय 'परदेशी',टीकमगढ़ मप्र
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19-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)
🙏🙏🌹बुन्देली दोहे,विषय-कनबूजा🌹🙏
*********************************
कनबूजन में भूल कें, थापर दिऔ न मार।
कत कै परदा कान कौ, भौत होत लाचार।
*********************************
कनबूजे सेंकत पुलिस,लुच्चन के कइ बार।
कभउँ गदा पै भी करत,मूँड़ मुडा़ असवार।
*********************************
कनबूजन सें भौत तो, गुरूजनन खाँ प्यार।
बिन अंजा घलबू करीं, रोज थपरियाँ चार।
*********************************
कनबूजे औ कनपटी, करयाई औ गाल।
संगै गदियाँ पाँच हैं, बुधि विद्या टकसाल।
*********************************
कनबूजौ गैरौ रखत, दारू सें संबंद।
कनबूजे की चोट सें, नशा होत झट मंद।
*********************************
✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुडे़रा)
🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊
💐😊 💐😊 कनवूजा😊💐😊💐
(बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
की 96वीं प्रस्तुति
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 28-02-2022
टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
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