Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

बसंती दोहे (हिंदी दोहा संकलन ई-बुक) संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)


                      💐😊 बसंती दोहे😊💐

                   (हिन्दी दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की ८९वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक ०२-०२-२०२२

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-४७२००१
         मोबाइल-९८९३५२०९६५



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊


              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़) 
03-गोकुल प्रसाद यादव,बुढेरा (म.प्र)
04- शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा
05-प्रदीप खरे, 'मंजुल' (जिला-टीकमगढ़)
06-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
07-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा,दमोह
08-एस आर सरल,  टीकमगढ़
09-जयहिन्द सिंह 'जयहिन्द', पलेरा
10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी      
11-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़ (मप्र)
12- रामानंद पाठक 'नंद' नैगुवां, निबाड़ी
13-गीता देवी,औरैया उत्तर प्रदेश
14--कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाडी़)
15-प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष' टीकमगढ़
16-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
17-अमर सिंह राय,नौगांव
18-डां रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल
19-डां देव दत्त द्विवेदी, बडा मलहरा
20-राम लाल द्विवेदी, चित्रकूट,कर्वी

🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊



                              संपादकीय-

                           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' 

               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के द्वय एडमिन के रुप शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज यह ई-बुक बसंती दोहे 89वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन ८९ ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 78 देश के लगभग 60000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह बसंती दोहे ८९वीं ई-बुक लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने मंगलवार दिनांक-०२-०२-२०२२को पोस्ट किये है।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
  ***
दिनांक-०२-०२-२०२२ टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-९१+९८९३५२०९६५

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)




* *हिन्दी दोहा-बसंत*

बसंत ऋतु में खिल उठे,
चारों तरफी फूल।
स्वागत करते सब मिले,
करती प्रकृति कबूल।।
***

मनभावन  ऋतु आ गयी,
बिखरा पड़ा बसंत।
पीले पीले सब दिखे।
जैसे कोई संत।।
***

*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐

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2-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 


💐*😊!!बसंत!!😊*💐
-^-^-^-^-^!!@!!^-^-^-^-^-
 
फागुन का आरंभ है,उठा रँगों में ज्वार।             
नशा घुला है हवा में,उमड़ा दिल में प्यार।।
         
मौसम ने अंगड़ाइ ली,हुआ विरह का अंत।
 प्रेम गीत गाने लगा,अब ऋतुराज बसंत।।
         
भौंरे गुँजन कर रहे,कलियाँ मन मुस्कांय।
 नव किसलय श्रंगार कर,गीत फगुनियाँ गांय।।
         
मन भावन सुंदर सुखद,चलने लगी बयार।             
पेड़ों पर अब आ गया,नव किसलय का भार।।
      
प्रखर हुइ हैं रश्मियाँ,बिगत हुइ है शीत।            
अब आयेंगे लौटकर,होली पर मनमीत।।            

होली की हुड़दंग में,देखें बृज के संत।
विन्द्रावन के कुंज में,रज में सदा बसंत।।
            
             *#!!@!!#*
                            
😊-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
                   
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03-गोकुल यादव,नन्हीं टेहरी,बुढेरा (म.प्र.)


🙏हिन्दी दोहे,विषय-बसंत🙏
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सतत सहायक सृष्टि में,
                 रहता  वीर  बसंत।
रहे  फूल  फल  बीज  से,
               पादप जगत अनंत।
************************
कामदेव  आते  स्वयं, 
             धरि शुचि रूप बसंत।
अलि गुंजन पिक कूक से,
                 मदमाते तिय कंत।
************************
खेतन उपवन वन चमन,
             सुरभित सुमन अनंत।
गुंजत मधुकर मधु रसिक,
               सरसत मदन बसंत।
************************
पुहुप धान्य किसलय नवल,
                बदन मदन उत्कर्ष।
लाता  सतत  बसंत  ही,
                 भारतीय  नव  वर्ष।
************************
गर्म ग्रीष्म शीतल शिशिर,
                 दुखदायी सुख हंत।
अनुपम समशीतोष्ण है,
                ऋतु मदमस्त बसंत।
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍️गोकुल प्रसाद यादव,नन्हींटेहरी(बुडे़रा)

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04-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा




विषय- "बसंत" हिंदी दोहा (70)

1.ऋतु बसंत मन भावनी,करती   सब पर राज ।
   सब ऋतुओं में श्रेष्ठतम,और परें पुखराज ।।

2.माघ मास में बसंत ऋतु, कि होती शुरुआत ।
   मधुर मनोहर दृश्य से,मन उमंग हो जात ।।

3.अंगअंग गोरी धना,लए बसंत उमडात ।
   जैसे बागों बैल यू,ऊँचे लक्ष्य बनात ।।

4.नारी यौवन खिल उठे,ज्यो बसंत भरआय ।
   अधरन नयनन पोरनों,पै बसंत चढ़जाय ।।

5.झूला झूलें राधिका,कृष्णा जिन्हें झुलांय ।
   राग बसंती गा रही,मन मोहन मुस्कांय ।।

6.कूलन केरी कछारनन,बसे बसंत युवराज ।
   कुंजन क्यारिन में बसे, ले डारन सिरताज ।।

     मौलिक रचना         
***
शोभाराम दाँगी , इंदु, नदनवारा जिला-टीकमगढ़

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05-प्रदीप खरे, 'मंजुल' (जिला-टीकमगढ़)
*दोहा..बसंत*

1-
न धन प्रभु मोहि चाहिए,न मांगू खुशी अनंत।।
 कृपा करहुँ प्रभु मोहि पर, रह घर सदा बसंत।।
2-
लखत मनही पुष्प तरू,गाये गीत मल्हार।
अमुआ कोयल कूकती, छाइ बसंत बहार।।
3-
नाचत गावत नारि सब,नभ में उड़ रही धूल।।
चारहुँ ओर हैं फल रहे,पेड़न में नित फूल।। 
4-
सब मिल गाओ गीत रे,द्वारे खड़ा बसंत।।
चौक पूर स्वागत करो, खुश होते भगवंत।।
5-
रंग बसंती तन रँगा,मन में बसा बसंत।
प्रेम बसा नर नारि में,हिय में बसते कंत।।

-प्रदीप खरे, टीकमगढ़*
      

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6-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)

            
मातु सरस्वती  पूजते,
          विविध पुष्प भर रंग।
प्रमुदित राज वसंत भय,
               पाय प्रमोद प्रसंग।।
,,,,,,,,
समाधिस्त शिव जगाने, 
                 आया काम बसंत।
खुला तीसरा चक्षू जब, 
                 हूआ रति पति अंत।।
,,,,,,,
सिया चरण पायल बजी, 
                      गई हृदय को वेध
विजय वसंत कि हो रही,
                           लक्ष्य रहा है भेध।।
,,,,,,,,
विश्वा सन्मुख सुवज्ञा, 
             बोली वचन विनीत
दस वसंत मेरे गए ,
                  पाई कंत न प्रीत।।
,,,,,,,
नियत बिगड़ गइ नार की, 
                     शर्मसार भए कंत
सेनापति साजिश रची, 
                  फस गय रूप बसंत।।
,,,,,,,,
ऋतुओ के मुखिया मधुर, 
                    आय शिशिर के अंत
प्रेम प्रमोद सराहते, 
                    जय ऋतुराज वसंत।।
,,,,,,    ,      ,,,,        ,,,,,,
              
          ***            
   -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
        स्वरचित मौलिक
                                
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7- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 


  **********विरह*********
गर्मी बरसा सीत ऋतु,आलि भयो हिम ‌अंत।
बाट निहारत शिशिर ग‌इ,‌लागो आन बसंत।।

लता‌ शुमन अरु पात में,आलि आऔ‌ बसंत।
बिलम बिदेशे कंत रय, चलें मंत्र ना तंत्र ।।

अलियन की भीरें परीं,कलियन पै चहुंओर।
ऋतु बसंत आवन सुनी,बोलत चातक मोर।।

वन बेलन अरु पात में, फूलन ‌फूल‌ बसंत।
पनिहारी के पगन में,है ऋतुराज‌ अनंत।।


खग मृग बकन मराल अरु,काग कीर वन राज।
पाली डाली  बोल गइ, आन ‌लगे ऋतुराज।।

पिया परे परदेश में, नहीं पीर का अंत।
मदन जोर तन पर करत,आ रय सुनी ‌बसंत।।
                  🙏🌹
-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा, दमोह
 
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*08-एस आर सरल,  टीकमगढ़


हिंदी दोहा बसंत
†******************************
है बसंत खुशियाँ भरें, बहने  लगी  बहार।
कलियों हैं यौवन भरें , करें भँवर गुन्जार।।

कलियाँ रस गागर भरें,लेत बसंत हिलोर।
भँवर अंग मस्ती भरें, करें गलिन में शोर।।

बहुरंगी  ले  ओढ़नी, खेलत  आय  बसंत।
कुहूँ कुहूँ कोयल कहे, कानन  फूकें  मंत।।

जैसे  मस्ती  रँग  चढ़ी ,फिरें  बसंती  नार।
ऐसी  मादकता भरें, फूल  रही  फुलवार।।

जगत  बसंती  रँग चढ़े, बिखरे  रंग अनंत।
दसो  दिशा  रंगीन कर , बगरो फिरें बसंत।।
    ***

    एस आर सरल,  टीकमगढ़

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9-जयहिंद  सिंह जी 'जयहिन्द', पलेरा

##मंगलवार#दिनाँक 01.02.22#
#हिन्दी दोहे लेखन# बसंत#
******************************
बसंत पर दोहे....
                    #1#
बसत बसंत बहार में,पिया हमारौ चैन।
बिरह बेदना झेल कर,नैन रिसत दिन रैन।।
                    #2#
राम रमैया रम रहे,बड़भागी बे संत।
जिनके जिय रमते सदा,बारह मास बसंत।।
                    #3#
शीत जीत ना पा सकी,कड़े कुकर्मी कंत।
साजन साजे सौत सँग,बैरी बनो बसंत।।
                    #4#
बिरह बेदना बन बसी,मन परदेशी कंत।
जर जर जाबै जो जिया,भाय न सखी बसंत।।
                    #5#
जंगल में मंगल भये,फूल पलाशी लाल।
वन बसंत के आगमन,टींका देत गुलाल।।

###
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़

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   10-अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी       


नमन मंच
*********
विषय- बसंत 
दिनांक -1 फरवरी 2022

शीत समर्पण कर गई, आवत देख बसंत।
 चली बसंती पवन अब, चहुँ दिशि खुशी अनंत।।

 मन मयूर नाचत फिरै, सुन कोयल की तान।
 सबके मन मस्ती भरी, है बसंत की आन।।

 प्रगटी माता शारदे, पंचम तिथी वसंत।
 पाटी पूजन जो करे, फैले सुयश दिगंत।। 

भोले बाबा की लिखी, लगुन पंचमी रात।
 है ऋतुराज बसंत की, यही अनोखी बात।।

 बृज में छठा बसंत की, देखत मन हरसाय।
 राधा -माधव युगल छवि, अमृत सा बरसाय।।

रचनाकार -अंजनी कुमार चतुर्वेदी 
वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक 2 निवाड़ी मध्य प्रदेश
          ***
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11-रामेश्वर राय 'परदेशी',टीकमगढ़ (मप्र)

हिंदी दोहा  बसंत

रानी पिय के ह्रदय की
सदा  रहूं मैं संग
सजना के आंगन रहूं
ज्यौं  रति संग  अनंग।।

मन मतंग मद् मस्त है
चले बसंत  बयार।
बृन्दाबन श्री श्याम संग
करें प्रिया जू बिहार।।

सुन बसंत रितु आगमन
मन में  बहुत उमंग।
साजन प्रीतम बलम के
लगी रहूं मैं  अंग।।

जैसा आया लिख दिया
थे मन के  उद् गार।
स्वागत में है बसंत के
शब्दों का उपहार।।
**
स्वरचित एवम मौलिक
रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़ (मप्र)

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12-रामानन्द पाठक 'नन्द', (नैगुवां)

दोहा बसंत
                    1
बसंत रितु की बासना,सबके मनें लुभाय।
सरसों फूले फूल अब,आम गये बौराय।
                         2
बैठी अमुआं डाल पर,कोयल करवै कूक।
पति मिलन की आस में,उठी हिये में हूंक।
                            3
बसंत रितु की जा छटा,फैल गई चहुंओर।
वेर वेरियन लद गये,आमन आगव  मौंर।
                               4
जहां तहां विकसे सुमन,प्रकृति कर श्रिन्गार।
चेतन सारा जग हुआ,शोभा बड़ी अपार।
                              5
कलिन कलिन भोंरा बसे,नित करवैं रस पान।
छटा रंग मय हो गई,नख सें सिर तक जांन।

      ***
-रामानन्द पाठक 'नन्द' ,नैगुवां

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13-गीता देवी,औरैया (उत्तर प्रदेश)

बसन्त 

 ऋतु बसंत की आ गई, पूजन कर लो भक्त,
 पीत पुष्प की माल से, करें मात आशक्त।।

 प्रिय बसंत रितु आ गई, बहती प्यारी वात।
 फूल वृक्ष सब झूमते, हिले जोर से पात।।

 हरियाली से भू सजी, झूम रहा है व्योम। 
 चले बसंती जो हवा, पुलकित होता रोम।।

 ऋतु बसंत मन भाविनी, नर नारी हरषाँय। 
 सुमिरन प्रियतम को करें, धीरज तनिक न आय।। 

 कोयल गाने है लगी, अब बसन्त के गीत।
 हर मानव है झूमता, लिए संग मनमीत।।

 आये सदा बसन्त जब, लेकर संग समीर।
 कल कल करती है नदी, आनंदित है नीर।

 बेला सजी बसन्त की, कलीं रहीं मुस्काय। 
 है किसान तैयार अब, फसल काटने जाय।। 
***
-गीता देवी,औरैया (उत्तर प्रदेश)

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14--- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़


करते भव्य पदार्पण , जब ऋतुराज बसंत ।
होने लगता है स्वतः , शिशिर शीत का अंत ।।

वन-बागन गिरि कंदरा , सरिता सिन्धु अनंत ।
हार खेत मग हर जगह , व्यापत कंत बसंत ।।

शुभ ऋतुराज बसंत पर , करती धरा गुमान ।
सजा रही हर अंग को , कर  पूरे  अरमान ।।

हर्ष और उल्लास का , है  पर्याय  बसंत ।
इसीलिए कहते उसे , षट ऋतुओं का कंत ।।

कंत बसंत अनंग का , रिश्ता बडा़ अजीब ।
साथ-साथ करते भ्रमण , दोनो बडे़ हबीब ।।
         ***
  --- कल्याण दास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़

         ( मौलिक एवं स्वरचित )

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15-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

हिन्दी दोहे   विषय वसंत

सरसों फूली खेत में , मेंड़न मधुर मधूक।
आली आय वसंत सो,रही  कोकिला कूक।।

धरनी के मुख पै खिली,माघ मास की धूप।
बगरा  भूप  वसंत  का ,देखो  रूप अनूप।।

दल बल सहित वसुंधरा,पै उतरे ऋतुराज।
आय न कंत  वसंत  में ,बने  संत महाराज।।

कमसिन कलियों से करें,मधुप मधुर मनुहार।
छेड़  रहे   हैं   छेड़   के ,राग  वसंत बहार।।

बैठ आम की डाल पै ,रही  कोकिला  कूक।
कंत न आए वसंत में,उठत हिया में हूक।।
               ***
           प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

16-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

*बसंत*

उजले शब्द 'बसंत' मेंं, 'तम' का है 'बस' 'अंत',
'ब' विकार कोइ मैट ले, बन जायेगा 'संत' ।

सरसों फूली गा रही, आमंत्रण के गीत,
लजा रही है खेत में, है बसंत सा मीत ।

साथी जिनके संग है, मीठा लगे बसंत,
जिनका है परदेश में, फीका रहे बसंत ।
***
-*अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
मौलिक-स्वरचित

🎊 🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

17-अमर सिंह राय,नौगांव


 हिन्दी दोहे- बसन्त, 
दिनाँक- 01/02/2022

काह  कहूँ  किससे  कहूँ, कंत बसे  जा अंत।
प्रथम  फरवरी  आ  गई, छाने  लगा  बसन्त।

मन  मतंग  माने  नहीं, मचलत है बिन  कंत।
हे प्रियवर आ जाव अब,निकला जाय बसंत।

कुहू- कुहू  कोयल  करे, बैठ आम की  डाल।
ऋतु  बसंत  आते  दिखें, गदरे  बेर व  बाल।

मस्त मगन मन फूलता, ज्यों सरसों के फूल।
तन बसन्त में झूमता, साजन  यह मत भूल।

पुष्प  प्रेमरस  पान  कर, झूम  रहे  मकरन्द।
ऋतु बसंत तरुणाइ का,अमिट अमर आनंद।

दुनियादारी  देख  ली, देख  पचास  बसन्त।
होते  हैं  कामांध  मद, अच्छे-अच्छे  सन्त।।

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                        -अमर सिंह राय,नौगांव
                             

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18-डां रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल
दोहे - विषय' बसंत' 

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सरसों ने जब ओढ ली,  पीली चूनर जान।
  आ पहुंचे ऋतुराज ये, सखि बसंत है मान ।।

2 आम्र बौर पे कूकती, कोयल गीत सुनाय।
   तैयारी कर ली सभी, ऋतु बसंत अब आय।। 

3 ऋतु बसंत का आगमन,हर्षित हैं सब लोक।
   वीणा पाणि प्रकट हुई, मिटा धरा का शोक।। 

4 शिव शंकर की लगुन में, आइ बसंत बहार।
   पंचम तिथि यह होत है,  पावन है त्योहार।। 
   
5  अब बसंत ऋतु आ गई,  सर्दी का बस - अंत। 
     खड़ी नायिका सोचती, कब आयेंगे कंत।। 
     
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                 डॉ रेणु श्रीवास्तव ,भोपाल 
                 
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19-डां देव दत्त द्विवेदी, बडा मलहरा
🥀  हिंदी दोहे (वसंत)🥀

दिन आ गये बसंत के,
              प्रकृति हुई जीवंत।
तुमसे खिला वसंत है,
            तुम बिन है बस अंत।।

लो बसंत ऋतु आ गई,
               ले फूलों के हार।
कलियों कलियों से करें,
              भंवरे आंखें चार।।

 आये जब ऋतुराज तो,
               हुआ शीत का अंत।
नव आसा उल्लास नव,
                लाये सरस बसंत।।

पीली साड़ी पहन कर,
              सरसों भरी सनेह।
झुक झुक मिले बसंत से,
              स्वागत करे सदेह।।
***
डॉ देवदत्त द्विवेदी 'सरस',बड़ा मलहरा छतरपुर

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20-राम लाल द्विवेदी, चित्रकूट,कर्वी
🌷 दोहे- बसन्त 🌷

प्रकृति नटी पीताभ बसन मय, चूनर फहरे व्योम ।
रोमांचित करती हवा ,खिल जाते हर रोम ।1

शीत शिशिर के दिन लदे, आया मधुर बसंत ।
सज धानी परिधान में, हर्षित प्रकृति दिगंत ।2

पुष्पित सुर भित वाटिका ,भ्रमरों के संगीत ।
हूक कलेजे सालती ,संग नहीं मनमीत।3

माघ शुक्ल की पंचमी , शारद प्रकट बसंत।
 रति काम मदनोत्सव, कांता खुश संग कंत।4

मां शारद के लाल सब, पूजें शारद मात।
पावन दिन में पूजते, हो लेखन विख्यात।5

 पीत वसन मय प्रकृति की,चूनर फहरे व्योम ।
रोमांचित करती हवा ,खिल जाते हर रोम ।1

शीत शिशिर के दिन लदे, आया मधुर बसंत ।
सज धानी परिधान में, हर्षित प्रकृति दिगंत ।2

पुष्पित सुर भित वाटिका ,भ्रमरों के संगीत ।
हूक कलेजे सालती ,संग नहीं मनमीत।3

माघ शुक्ल की पंचमी , शारद प्रकट बसंत।
  मदनोत्सव रति काम का,कांता खुश संग कंत।4

मां शारद के लाल सब, पूजें शारद मात।
पावन दिन में पूजते, हो लेखन विख्यात।5
🌷🌷🌷🌷🌹🌹🌺
 स्वरचित /मौलिक 

रामलाल द्विवेदी प्राणेश 
वरिष्ठ साहित्यकार/समाजसेवी कर्वी चित्रकूट

रामलाल द्विवेदी प्राणेश 
वरिष्ठ साहित्यकार/समाजसेवी कर्वी चित्रकूट

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                           💐😊 बसंती दोहे😊💐

                   (हिन्दी दोहा संकलन ई-बुक)
      संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की ८९वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक ०२-०२-२०२२

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-४७२००१
         मोबाइल-९८९३५२०९६५

1 टिप्पणी:

pramod mishra ने कहा…

बहुत ही सुंदर दो हे लगे