पुस्तक समीक्षा:- उकताने
‘‘बुदेली साहित्य में नव वृद्ध:दोहा संग्रह ‘उकताने’’
समीक्षक:- अजीत श्रीवस्तव(टीकमगढ़)
श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ जी का नवसृजन बुन्देली दोहा संग्रह ‘उकताने’ अवलोकनार्थ प्राप्त हुआ। लगा कि बुन्देली साहित्य में देाहा छंद पर पूरी पुस्तक एक उपलब्धि है जिसे बुन्देली साहित्य उन्नयन समिति द्वारा डॉ. पुनीत बिसारिया जी (अध्यक्ष हिन्दी विभाग बुन्देलखण्ड विश्वविद्याालय) द्वारा चयनित किया जाकर बुन्देलखण्ड के साहित्यकारों के सामने लाने का अभिनव प्रयास संस्थान प्रकाशन में मिला।
राना लिधौरी जी बहुमुखी लेखन कार्य एवं साहित्य सृजन से जुड़े रहते हैं उनका यह काव्य सृजन सूत्रों के निर्माण और गठन काव्य साधन और सिद्धि से लघुछंद स्वरूप में आया है। जिसमें समाज के बहिरंग और अंतरंग पक्षों पर सशक्त चिंतन,विवेचन, विश्लेषण, निरीक्षण, परीक्षण झलकता है। परोक्ष और प्राकृत क्रियाओं के शब्द चित्र रेखांकित हुए हैं। तीन सौ दोहों में समग्र विषय समाहित होने से वर्गीकृत करना श्रम साध्य है, इससे रहस्यवादी कवि के अप्रियतम प्रतिभा से उसके मनीषी और दृष्टा पर अनुकूल व्यवहारिक व्यवस्था को काव्य मर्म से पाठकों को सुबोध सुगम अक्षरत्व प्रदान किया गया है कि अल्पज्ञ भी गेय हो पठनकर सकता है।
दोहा लेखन दर्शनिक और कवि के बीच गहरी दृष्टि जीवन की धूरी पर देखने से होता है तभी वेद की ऋचाएँ जैसी वैज्ञानिकता लिए श्रुत,पाठ्य,दृश्य दो पंक्तियाँ हो उठती है, रचनात्मक प्रक्रिया में अंतर्मुखी और बहुर्मुखी प्रहार, अगम्म, रहस्यों द्वारा होकर अनुपम सौंदर्य और अखण्ड आनंद का रस समुद्र से पाठक अभिषेक करता है,सार्वजनिक उपभोग का साधन बना विवेक ही पाठक बुद्धि द्वारा मंथन कर चिंतन करता है एवं वह सृष्टि के रहस्यों को सहज रूप से आपकी संस्कृति का सहयात्री बन अपूर्व संग कर समदर्शी दृष्टि से व्यवहारिक चमत्कार सा पाता है। जीवन व्यवस्था से दोहों से परिचित हो जाता हैं राना लिधौरी जी ने कमाल की सृष्टि की है। हिन्दी पाठकों थोड़ी अटक जरुर होगी पर बुन्देली साहित्य की बड़ी उपलब्धि है।
राना जी के दोहों के पठन से परस्पर विरोधी वृत्तियों पर चोट, संघर्षण प्रज्जवलित होता है। गलत धारणाओं से टकराकर चूर होती हैं क्योंकि कवि विज्ञानी व्यक्तित्व भी क्षेत्र की प्रतिभा प्रस्फुटन में समाज का पथ सुगम करने की योजना रखता है। कवि की मेघा सदा परोक्ष की यात्रा प्रारंभ से हो उसे काव्य वाक् सिद्धि द्वारा काव्य के विस्तृत क्षेत्र का परिमापन कराने बुद्धिबल, मनोबल प्राप्त होता है जिससे कवि की आत्मा के बिंब का प्रतिबिंब समाज के दर्पण पर सुगम/सशक्ति/मार्गदर्शन की परिपाटी सड़ा कर देता हैं रचनाएँ जीवन दर्शन का स्पष्ट करने व्यवहारिक रूप देने प्रकट होती है। राजीव जी का प्रयास स्तुत्य है।
पुस्तक का कलेबर क्षेत्रीय काया से अंकित छवि से श्रेष्ठ ढंग से सुसजिज्त एवं प्रकाशित है, हाँलाकि कुठ बफनदली शब्द में कसर रह गई है क्योंकि बुन्देली के भी अनके रूप हे और बुन्देली बोलना सरल है लेकिन लिखना और पढ़ना अत्यंत कठिन होता है। यह पुस्तक एक स्वस्थ परंपरा विकसित करती हुई विकास का मार्ग खोलती है। यह छंद दोहा अपने आप में स्वछंद भी होता हैं इस मुक्तक परंपरा में हँसी से समाहित करते है पर पाठकों को दो लाइन का पठन उपरांत परीक्षण और निरीक्षण करना पढ़ता है तभी उसका आंतरिक रस/स्वाद/भाव एवं चमत्कार को पा सकता है।
राना लिधौरी ने एम.ए हिन्दी विषय से ही किया है तो स्वाभाविक है कि वे ‘हिन्दी’ के ज्ञानी हैं लेकिन वे हिन्दी के साथ-साथ बुन्देली में भी बहुत अच्छी पकड़ रखते हैं। ‘उकताने’ दोहा संग्रह में अनेक दोहे चमत्कार पैदा करते हैं अलंकारों का बहुत सुुंदर प्रयोग किया गया है।
बानगी के तौर पर उनके कुछ दोहे प्रस्तुत है जैसे-
दिव्य दृष्टि से देखिए, दिखे दिव्य दरवार।
दवा, दुआ, औ दान से, देव करे उद्धार।।
पैर पनइयाँ पावने, पौचे पावन धाम।
पीत पजामा पैर के, पीतांबरी प्रणाम।।
इस दोहे में ‘अनुप्रास’ अलंकार के साथ-साथ हास्य का भी अद्भुद प्रयोग देखिए-
कनबूजा सूजो धरो,कक्का कै रय काय।
कुटवे वारो का करो, कल्लू काय कतराय।।
चांउर चुगवे चिरइया,चार चेनुंआ ख्याय।
चारा लाये चोंच में, चपल चंट उड़ जाये।।
एक ही दोहे में ‘अनुप्रास’ और ‘श्लेष’ अलंकारों का बहुत बढ़िया प्रयोग देखे-
कमरा में कमारा लये, कुकरे डरे किशोर।
करया भई कमान सी, कय की से कमजोर।।
बुन्देलखण्ड की खूबी बताते ‘राना’ जी के दो दोहे देखे-
पनौ बुन्देलखण्ड है, सबसे नोनो यार।
हीरा की खाने इते, जोद्धा भये हज़ार।।
धरा बुन्देलखण्ड कौ, पानी ऐनइ तेज।
तनक बात में लर परे, माँगे भौत दहेज।।
कवि ने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, प्राकृतिक, क्षेत्रीय,स्वास्थ एवं वर्तमान की आवश्यकताओं पर कलम चलाकर गागर में सागर भरा है। पाठकगण इस हरेक दोहों में रस बदलती रचनाओं से उकता नहीं सकता ‘उकताने’ बुन्देली शब्द है ‘‘ऊब’ या मन नहीं लगना का आशय रखता हैं इस पर शुरू में कुछ दोहे आ सकते थे। तो शीर्षक सार प्रकट हो जाता। बहरहाल पुस्तक कहीं ‘बोर’ नहीं करती। रचिकता जिज्ञासा, ज्ञान देती श्रेष्ठ कृति है कवि को बधाईयाँ।
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समीक्षक-अजीत श्रीवास्तव, टीकमगढ़
पुस्तक का नाम-‘उकताने’ (बुन्देली दोहा संग्रह)
कवि- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
प्रकाशन- अंजुमन प्रकाशन प्रयागराज मोबाइल-8827192845
मूल्य-450 रूपए
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