Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 9 जून 2022

मनु- गीतिका (गीतिका संग्रह)-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

मनु-गीतिका
कवि-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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1- गीतिका-आधार छंद - हंसगति 
(विधान- दोहे का समचरण +324)

निज  में  प्रभु का नाम , दाम भी  ऊँचा |
करते   घटिया    काम , नाम  भी  ऊँचा  |
नहीं   जानते  ज्ञान  , बने  खुद   ज्ञानी , 
करने  को    आराम  , धाम भी   ऊँचा |

आशाओं   के  संत , जेल  के  अंदर  , 
करतूतें  सब  श्याम , काम भी  ऊँचा |
कोई   बना   रहीम , ठगे  वह  सबको , 
मधुरस  होती   शाम , जाम भी   ऊँचा  |

सेवा   से   भी  दूर  , बने   ‌कुछ  नेता , 
करते  सभी प्रणाम , झाम   भी  ऊँचा |
(झाम = छल कपट  , धोखबाजी )
सदा  सुबह  है   शाम , रात  की  मस्ती , 
उन पर   नहीं   लगाम , याम  भी ऊँचा |
(याम = प्रहर , समय )
#राना करता सोच , गज़ब   है   दुनिया , 
लँगडा  जिसका नाम , आम  भी  ऊँचा |
              -राजीव नामदेव " राना लिधौरी"
***

 2-गीतिका - 

आधार छंद हंसगति (11 + 9)
दोहा का सम चरण + 324

दिल की कटुता रार  , हिला  ही  देना ।
कोई अच्छा पुष्प ,  खिला   ही  देना |

करना यहाँ यकीन , वफ़ाओ पर भी , 
अपना हम से हाथ ,  मिला ही‌  देना |

चाहूँ  में   पैगाम , अमन का तुमसे , 
जग में बने मिशाल , सिला  ही  देना |

दुनिया करती घात , नहीं गम करता , 
अपना हमको   नेह , पिला   ही  देना |

रहूँ    तुम्हारे  पास , चाहता  बंधन , 
रहने को दिल आप ,किला   ही देना |

#राना कहता आज , सँवर कर रहना , 
जन्नत जैसा आप , जिला  ही‌    देना |।
***

3-
योग‌  छंद‌ 12 , 8 ( यति चौकल , 
पदांत यगण 122)

आलसी (स्वर - आर , पदांत नहीं है )

आलसियों के मन में  , खार  नहीं  है |
इन्हें  किसी से   कोई ,  रार   नहीं  है |

रखें  काम  से  दूरी ,  करें    बहाना , 
कहते  मेरे    जुड़ते  , तार   नहीं   है |

नहीं  लुभाती   दौलत , मस्त  हमेशा ,
इनके  अंदर लोभी  ,  द्वार   नहीं   है |

लेकर  जग से  पैसा , कौन  गया   है , 
संग्रह  करने  मन  में  , धार  नहीं  है |

बेमतलब  का   पाले  , नहीं   झमेला , 
कुछ कहना भी इनसे  , सार नहीं   है |

रखें  आलसी  अपनी , शान  निराली , 
संत   लगे   यह  सोये , भार   नहीं   है |

रखें  नहीं    दुनियाँ से  ,  नफ़रत 'राना', 
कोई   इनका   दुश्मन  , यार  नहीं   है |

राजीव नामदेव " राना लिधौरी "
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4-योगी छंद गीतिका 


*ग़ज़ल- दिल की किताब में*
***
गुस्ताख़ी बारिश की अपने हिसाब में।
पहली सी वो तपिश न रही आफताब में।।

भौंरे ही चुरा लेते हैं पहले से यहां आकर।
पहली सी वो खुश्बू न रही अब गुलाब में।।

इक बार पढ़के तुम उसे देख लीजिए।
सब कुछ लिखा हुआ है दिल की किताब में।।

नेता, पुलिस और चोर की तो जा़त एक है।
बनते है यही लोग तो हड्डी कबाब में।।

'राना' को दीवाना कहे या कहे पागल।
लोगों ने दे दिया है मुझे कुछ तो ख़िताब में।।
            ***

5
योगी छंद‌ , गीतिका , सभी शब्द समकल
10 - 10 , स्वर अती , पदांत - रहती है 

बारिश भी देखो ,  हँसती   रहती है |
गलियों  में  उसकी,  गश्ती रहती है |

भौंरे  चोरी  भी , करते   फूलों  से , 
पहली खुश्बू की , मस्ती रहती  है |

पढ़के  देखो  दिल , पिछले पन्नों को , 
जिसमें  कोई अब  ,   हस्ती  रहती है |

चुप अब सब दिखते, नेता है तक्षक , 
जिनके  साये   में  ,  बस्ती  रहती  है |

दीवाने   पागल , कहलाते   जग‌   में  , 
जिनकी अपनी ही ,कश्ती  रहती  है |

किस्मत   देखो  जो, पृष्ठों को भरती , 
वह   स्याही   #राना ,  सस्ती रहती  है |
             ***
© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

6-
विष्णुपद छंद (गीतिका )
 16- 10  मात्रा, चरणांत दीर्घ 
समांत -स्वर आ , पदांत- नहीं होता 

कोई यूँ ही   इस  दुनियाँ में , बड़ा  नहीं  होता |
यश का फल भी मीठा होता  ,सड़ा‌‌ नहीं होता |

नजर उठाकर उसकी मेहनत, आकर तो देखो, 
कोई  जिद पर भी बेमतलब , अड़ा नहीं होता।

अगर पारखी  होती थोड़ी , यह नज़र तुम्हारी,
हीरा भी यूँ यहाँ  जमीं पर ,  पड़ा   नहीं  होता।

कंकण   में  पहचाना होता , हीरा   को  तुमने , 
पिसकर  मिट्टी में वह कच्चा  , घड़ा नहीं होता।

कायर होकर बैठा रहता ,  यदि मानव जग में , 
अगर मुसीबत से वह थोड़ा  , लड़ा नहीं होता।।

ठोकर मिलती 'राना' उसको , अगर  तुम्हारी ,
जिन्दा  रावण  चौराहों  पर ,  खड़ा  नहीं  होता।

-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़
7-
मंगलवत्थू (रोली छंद) गीतिका 

सामांत स्वर - आर  , पदांत - ही हम देखें 

जहाँ रखें वह पैर  , खार  ही‌  हम  देखें |
चलती‌  वहाँ कटार  , वार   ही हम  देखें |

देखें कदम प्रताप , शूल ही अब उगते , 
कैसे   जाते    टूट  ,  तार  ही‌   हम   देखे |

रंग‌    हुए   बदरंग , नाम उनका  सुनकर , 
जो  भी‌  उभरे  बात , गार  ही   हम देखें |

उनका  जहाँ  मकान , उखड़ती  हैं  दीवारे , 
झूठा‌   सब   मनुहार‌, भार ‌  ही  हम  देखें |

अज़ब - गज़ब सब  दोस्त , बनाकर है रखते , 
सबका  अपना  स्वार्थ  , सार  ही ‌ हम  देखें |

भोली  जिनकी शक्ल , वही तो है‌  विषधर‌, 
उगले  पीकर  झाग ‌,  क्षार  ही‌ ‌  हम  देखें |

तोड़‌  दिया  व्यौहार ,   जमाने  से   #राना , 
जैसी   बहती   गंग ,  धार   ही  हम  देखें |

राजीव नामदेव "राना लिधौरी",टीकमगढ़*
8-
चौपई (जयकरी) 
15 मात्रिक , अंत गाल 
(अठकल+ चौकल+ त्रिकल )
अपदांत गीतिका 

बुंदेलों  के     राजाराम |
सभी बनाते बिगड़े काम |

नगर ओरछा करता‌ याद , 
कुँवर गणेशी जिनका नाम |

बोले पति जब  तुमको मान , 
नगर ओरछा   कर  दो धाम |

गई अयोध्या   रानी ठान , 
प्रभु ‌लाएगें   करूँ प्रणाम |

म्ंदिर- मंदिर करती बात , 
सुबह खोजती खोजे शाम |

नहीं मिले है जब रघुबीर , 
सरजू नद में   छोेड़े चाम | 

प्रकट हुए तब श्रृध्दा  देख , 
प्रभु रखते  है तब आयाम |

जब नक्षत्र हो पुष्प महान, 
करूँ गमन फिर लूँ  विश्राम |  

करती  रानी  है   स्वीकार , 
नियम पुष्प का लेती थाम |

लिखी गीतिका #राना आज, 
कथा   जानता   है आवाम्  |।
***
राजीव नामदेव ' राना लिधौरी '

*9*
भिखारी छंद , 12- 12 मात्रा , पदांत गा गा 
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दृढ़ता रखना "राना",  ख्याल  न उनका‌ लाना 
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सदा  विकारों  से अब , रखिए  काफी  दूरी |
यह  छलते है निज मन , आती है   मजबूरी ||
जब विकार भी पनपें ,    उनको दूर  हटाना ||
दृढ़ता रखना "राना", ख्याल  न उनका‌ लाना || 

जहाँ संत जन रहते ,   वहाँ  विकार न आते  |
भजन वहाँ पर भगवत् , सबको करते पाते  |
तब विकार भी भागें , रहे    न उनका आना |
दृढ़ता रखना "राना", ख्याल न उनका‌ लाना || 

सज्जन का मन देखा , रहता निर्मल पानी |
सदाचार  अपनाता , रहता निर अभिमानी ||
सदा  वचन से देता , सरस प्रेम   का  दाना |
दृढ़ता रखना "राना", ख्याल न उनका‌ लाना || 

राजीव नामदेव " राना लिधौरी" 
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10
मुक्तक त्रयी   (-आधार  - सरसी  छंद )
मात्रा भार - 16 -  11 , यति चौकल , पदांत गाल 

खुले नहीं  मुख उनका गोरा   , लम्बा  रहे   नकाब |
कहाँ  बैठ अब  उनसे कर लूँ, अपना सही हिसाब |
बहुत   बड़ी है  चाहत हमको ,  हो   जाए   दीदार ~ 
बड़े   गौर  से  देखूँ  उनका   , #राना  जरा  शबाब |

बंद  लिफाफा-सा सब रहता, खुलती नहीं  किताब‌ |
होते   रहे   इशारें चुपके  ,   मिलते    रहें    जवाब |
नहीं सनम कुछ कहती हमसे  , आड़े  आती   लाज - 
#राना    कैसे देगें    उनको   , पूरा   बना   हिसाब |

गली- गली में   चर्चा   होती  , उठता   नहीं  नकाब |
लोग बोलकर  जाते जब भी ,   लगता   हमें खराब | 
तरह - तरह की   बातें   करते ,  अंजाने   में   लोग - 
बिन देखे ही #राना कातिल ,   मिलने  लगे खिताब |

राजीव नामदेव " राना लिधौरी " ( टीकमगढ़ ) म० प्र०

11-
आधार - सार छंद 16- 12 , यति और पदांत चौकल 
गीतिका - समांत - आने   ,पदांत वाले 

जुड़े  हुए  हैं  पास  हमारे ,  आज   रुलाने   वाले |
नहीं  चूकते  अवसर  पाकर , हमें   सताने   वाले |

कातिल होकर काबिल बनते ,जिनने हमको घेरा , 
हर घटना की  पहले से ही  ,  खबर  छपाने वाले |

एक खोजता मिलें हजारों , पास रखूँ मैं किसको , 
एक परीक्षा  में सब  निकलें , गाल   बजाने वाले |

दमखम की सब बातें करते, आगे-आगे   चलते , 
समय देखकर  पीछे होते , सभी   बहाने  वाले |

जरा तरक्की हमने कर ली , उनको पड़े  फफोले
मिलजुल कर सब आगे आए , मुझे   हराने  वाले |

जिनको हमने ज्ञानी समझा , पोल खुली जब उनकी , 
ठग निकले सब इस दुनिया में ,   मूर्ख  बनाने  वाले |

#राना उनको सदा बुलाता,  जिन पर रहा भरोसा ,
दूर   दोस्त अब जाते   दिखते , हमें  हँसाने  वाले |

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
12-
निश्चल छंद ( मुक्तक ) मात्रा भार 16- 7  पदांत ताल 

             (1)
'राना' हँसता रहता जग में , मिलते यार |
दिए  हाथ से फूल किसी ने, बाँटी खार |
सुख-दुख का मैं जानू मेला, समझू खेल -
अच्छा नाविक बनना सीखू , इस संसार | 

            (2) 

क्या लेना - क्या देना  जग    में , जानू   बात |
कभी जीत मिल जाती हमको , या फिर मात |
हर्ष  विषाद रखें मत  मन में ,    चलता   राह - 
'ईश्वर    देता   जाता " राना"  , खुद  सौगात |

राजीव नामदेव " राना लिधौरी "
13-
अपदांत गीतिका ,,
आधार छंद - मनमोहन छंद
 ( अठकल + त्रिकल + नगण )

 उनको करता , सदा  नमन |
जो रखवाली  , करें  वतन |

सीमा पर जो, डटे सजग , 
करें देश को , सदा चमन |

रक्षक बनकर, निशा गहन , 
रखें चौकसी , सहें   तपन |

करें  शीष को , सदा कमल , 
अर्पित करने  , मात्   चरन |

रक्षा   करते , सभी   प्रहर , 
सैनिक होते , वीर स्वजन |

'राना' सैनिक , फर्ज  डगर , 
सदा निभाते , दिया  वचन |

राजीव नामदेव " राना लिधौरी "
***
14*
मनमोहन छंद (अठकल + त्रिकल + नगण ) 
गीतिका 

दुनिया में है ,अजब  चलन |
अपना  माने  , सही कथन ||

झुठलाते  है , बात   सहज, 
दूजों से  जो  , रखें  जलन |

अपना मतलब , रखें अजब , 
स्वारथ  साधें , करें   जतन  |

दूजों  को दें , सदा  गरल , 
कटुता जैसै  , कहें   वचन |

सबको   काँटे  , कहें महज , 
खुद बनते है , पुष्प   चमन , 

"राना" जिनका , नहीं सुयश , 
वें  बनते   है , आज गगन |
***
राजीव नामदेव " राना लिधौरी"
*15*

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