व्यंग्य स्तम्भ-शर्म इनको मगर आती नहीं
(3)''चुनावी काँव-काँव
फिर से होने लगी है
काँव-काँव।
पास आने लगे हैं,
चुनाव-चुनाव।
जो घूमते है,
कारों और जहाजों में,
वे फिरने लगे हैं,
पाँव-पाँव।
लेकर झूटे वादों का जाल,
दौरा करने लगे हैं,
गाँव-गाँव।
शहरों में आदमी के
जंगल है बहुत घने,
मिलती नहीं अब
वृक्षों की शीतल
छाँव-छाँव।।
000000
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़(म.प्र.)
भारत,पिन:472001 मोबाइल-9893520965
(3)''चुनावी काँव-काँव
फिर से होने लगी है
काँव-काँव।
पास आने लगे हैं,
चुनाव-चुनाव।
जो घूमते है,
कारों और जहाजों में,
वे फिरने लगे हैं,
पाँव-पाँव।
लेकर झूटे वादों का जाल,
दौरा करने लगे हैं,
गाँव-गाँव।
शहरों में आदमी के
जंगल है बहुत घने,
मिलती नहीं अब
वृक्षों की शीतल
छाँव-छाँव।।
000000
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़(म.प्र.)
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