वेलेंटाइन स्पेशल व्यंग्य:-
व्यंग्य- ''कवि का पत्नी को प्रेमपत्र" :-
प्रिय 'कविता',
प्यार की एक मींठी शायरी,
जब से तुम मेरे 'साहित्य' रूपी दिल में प्रवेश करके अपने मायके गई हो तब से, मैं तुम्हारी जुदाई का ग़म 'कागज़' पर लिख-लिखकर घर में कागज़ के पहाड़ बना रहा हूँ, मैं जानता हूँ कि तुम मेरी 'ग़ज़ल' का 'मिसरा' बनकर किसी अन्य 'शायर' के दिल (मायके) में इस समय रह रही हो, लेकिन,मेरे दिल से पूछो कि मेरी हर 'ग़ज़ल' तुम्हारी याद में बिना 'काफिये' के तड़प रही है,और एक तुम हो कि अभी आने का नाम ही नहीं ले रही हो.
प्रिय 'कविता',
प्यार की एक मींठी शायरी,
जब से तुम मेरे 'साहित्य' रूपी दिल में प्रवेश करके अपने मायके गई हो तब से, मैं तुम्हारी जुदाई का ग़म 'कागज़' पर लिख-लिखकर घर में कागज़ के पहाड़ बना रहा हूँ, मैं जानता हूँ कि तुम मेरी 'ग़ज़ल' का 'मिसरा' बनकर किसी अन्य 'शायर' के दिल (मायके) में इस समय रह रही हो, लेकिन,मेरे दिल से पूछो कि मेरी हर 'ग़ज़ल' तुम्हारी याद में बिना 'काफिये' के तड़प रही है,और एक तुम हो कि अभी आने का नाम ही नहीं ले रही हो.
मैं जानता हूँ कि तुम 'विलंब से किसी 'संपादक' की 'खेद सहित रचना की तरह ही आओगी, लेकिन तुम मेरे दिल की धड़कन को 'उपन्यास' के पन्नों की तरह क्यों बढ़ा रही हो ?
हे,मेरी 'शायरी' की सुन्दर सी 'ग़ज़ल तुम शीघ्र ही वापस आ जाओ. मैं तुम्हें किसी 'संपादक की तरह बार-बार पत्र डालकर थक गया हूँ. कभी तो तुम मेरी 'रचना की स्वीकृति भेज दिया करो ताकि मुझे थोड़ी सी तसल्ली हो जाया करे.
ओ, मेरी प्यारी 'पत्रिका' रूपी प्रिया, मुझे तुम्हारा 'पेन की तरह कद, 'कहानी' की तरह बोलना और 'अक्षर' की तरह सलोना रूप बहुत याद आ रहा है. मैं जानता हूँ कि तुम मायके में खा-खाकर 'ग़ज़ल' से कोई मोटी 'उपन्यास' बनकर ही मेरी नयी विधा के रूप में वापस आओगी,इसलिए तुम मेरी ग़ज़ल ही बनी रहो और हो सके तो अपना वज़न कम करके मेरी 'लघु कविता' या 'क्षणिका' ही बन जाओ तो मुझे बहुत खुशी होगी.
हे,मेरे 'साहित्य' की जननी, मुझे विश्वास है कि तुम मेरे पत्र को 'संपादक' की नज़र से न देखकर अपने प्यारे पति के रूप में ही देखोगी और ठीक उसी तरह वापिस आ जाओगी जैसे 'संपादक मेरी रचना को शीघ्र ही वापिस लौटा देते है. मुझे उम्मीद हैं कि तुम मेरी पत्र रूपी रचना को अपने दिल रूपी 'पुस्तक' में अवश्य ही 'प्रकाशित' करोगी।
हे, मेरे 'काव्य' की अनमोल कृति प्रिया, तुम शीघ्र ही वापिस आा जाओ. जाने कब तुम्हारे पिता रूपी 'प्रकाशक' मेरी इस 'ग़ज़ल' को अपने रखेगे. वहाँ तुम्हारे मायके में तुम्हारी माँ और सहेलियाँ न जाने क्या-क्या सिखा कर अपनी 'समीक्षा' रूपी सलाह देकर तुम्हें कब ससुराल भेजेगी. तुम उनकी 'आलोचना' पर ध्यान न देकर सीधे मेरे पास चली आओ. मैंने तुम्हारी याद में 108 नयी रचनाएँ लिखी है, यदि तुम शीघ्र नहीं आयी तो, मैं प्रत्येक रचना को 108 बार सुनाऊँगा,फिर मत कहना कि हमें पहले से बताया ही नहीं था.इसलिए भलाई इसी में है कि तुम यहाँ पर मेरे पास रह कर ही रोज़ एक-एक रचना ही सुनो. आगे तुम्हारी मर्जी.
हे,मेरी 'शायरी' की सुन्दर सी 'ग़ज़ल तुम शीघ्र ही वापस आ जाओ. मैं तुम्हें किसी 'संपादक की तरह बार-बार पत्र डालकर थक गया हूँ. कभी तो तुम मेरी 'रचना की स्वीकृति भेज दिया करो ताकि मुझे थोड़ी सी तसल्ली हो जाया करे.
ओ, मेरी प्यारी 'पत्रिका' रूपी प्रिया, मुझे तुम्हारा 'पेन की तरह कद, 'कहानी' की तरह बोलना और 'अक्षर' की तरह सलोना रूप बहुत याद आ रहा है. मैं जानता हूँ कि तुम मायके में खा-खाकर 'ग़ज़ल' से कोई मोटी 'उपन्यास' बनकर ही मेरी नयी विधा के रूप में वापस आओगी,इसलिए तुम मेरी ग़ज़ल ही बनी रहो और हो सके तो अपना वज़न कम करके मेरी 'लघु कविता' या 'क्षणिका' ही बन जाओ तो मुझे बहुत खुशी होगी.
हे,मेरे 'साहित्य' की जननी, मुझे विश्वास है कि तुम मेरे पत्र को 'संपादक' की नज़र से न देखकर अपने प्यारे पति के रूप में ही देखोगी और ठीक उसी तरह वापिस आ जाओगी जैसे 'संपादक मेरी रचना को शीघ्र ही वापिस लौटा देते है. मुझे उम्मीद हैं कि तुम मेरी पत्र रूपी रचना को अपने दिल रूपी 'पुस्तक' में अवश्य ही 'प्रकाशित' करोगी।
हे, मेरे 'काव्य' की अनमोल कृति प्रिया, तुम शीघ्र ही वापिस आा जाओ. जाने कब तुम्हारे पिता रूपी 'प्रकाशक' मेरी इस 'ग़ज़ल' को अपने रखेगे. वहाँ तुम्हारे मायके में तुम्हारी माँ और सहेलियाँ न जाने क्या-क्या सिखा कर अपनी 'समीक्षा' रूपी सलाह देकर तुम्हें कब ससुराल भेजेगी. तुम उनकी 'आलोचना' पर ध्यान न देकर सीधे मेरे पास चली आओ. मैंने तुम्हारी याद में 108 नयी रचनाएँ लिखी है, यदि तुम शीघ्र नहीं आयी तो, मैं प्रत्येक रचना को 108 बार सुनाऊँगा,फिर मत कहना कि हमें पहले से बताया ही नहीं था.इसलिए भलाई इसी में है कि तुम यहाँ पर मेरे पास रह कर ही रोज़ एक-एक रचना ही सुनो. आगे तुम्हारी मर्जी.
कोई ग़लती हो गयी हो तो सौरी।
तेरे प्यार में पागल 'राना लिधौरी'।।
प्रेम से बोलो जय 'वैलेंटाइन माता'...
जय 'बेल-इन-टाइन' बाबा...
***
-व्यंग्यकार- राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक “#आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘#अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
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