Rajeev Namdeo Rana lidhorI

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

राजीव नामदेव 'राना लिधौरी का व्यंग्य स्तम्भ-शर्म इनको मगर आती नहीं (8) (9)

राजीव नामदेव 'राना लिधौरी का
व्यंग्य स्तम्भ-शर्म इनको मगर आती नहीं (8)


(सन्दर्भ-डौडिंयाखेड़ा के सोने का खजाना)
(8)-क्षणिका-''सपने


सपने गर सच हो गये होते।
देश में इतने गरीब नहीं होते।।
आलसियों की होती फिर दुनिया।
फिर कोर्इ कर्मवीर नहीं होते।।
        888

राजीव नामदेव 'राना लिधौरी का
व्यंग्य स्तम्भ-शर्म इनको मगर आती नहीं (9)

(सन्दर्भ-बाबा के सपना मे सोने का खजाना)

(9)-क्षणिका-'बाबा के चक्कर मे

बाबा के चक्कर में बन गये बाबा।
मंदिर मिला न गिरिजा,न मिला काबा।।
बर्तन गवाही दे रहे,था वहाँ पे पहले ढाबा।
अपनी तुकबंदी पूरी हो गयी पढ़ लो बाबा।।
इस देश के बाबाओं को न जाने क्या हो गया।
अब तो कर लो तौबा कह दो न बाबा न बाबा।।
        888
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरीसंपादक 'आकांक्षा पत्रिका अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़(म.प्र.)भारत,पिन:472001 मोबाइल-9893520965

कोई टिप्पणी नहीं: