हमाये पुरखे
(बुंदेली दोहा संकलन)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
मोबाइल 9893520965
प्रकाशन- प्रथम संस्करण- दिनांक 1-9-2020
अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़ (म.प्र.)
2-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़ (म.प्र.)
3-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल
4-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा
5-रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़ मप्र
6-संजय श्रीवास्तव, मवई,
7--अभिनन्दन गोइल,इंदौर
8-- राजगोस्वामी, दतिया
9- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
10 --- कल्याण दास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर
11-संतोष नेमा "संतोष",जबलपुर
12-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा, नरसिंहपुर
13-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बडा मलहरा,
14-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
15--संजय जैन *बेकाबू*,मबई, टीकमगढ़
16--सालिगराम 'सरल', टीकमगढ़
17 -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
18-- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ मप्र
19--वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
20-शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ एम पी
21- डी पी शुक्ला, टीकमगढ़ (मप्र)
22- समीक्षा- रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़
23 *पितृ श्राद्ध के बारे में विस्तृत जानकारी
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(म.प्र.)
1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़
पुरखन के आसीस सें, बंस-बेल हरयात।
घर में रत सुख चैन सब, दुख बिपदा टर जात।।
करय दिनन तरपन करौ,धरियो नित कागौर।
पुरखा भूके भाव के,उनै न चानै और।।
*-राजीव नामदेव "राना लिधौरी",टीकमगढ़ (मप्र)*
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2-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ
पुरखन खों पूजन चले ,कौआ ल्याये घेर ।
जियत दई नइ गांकरें, मरें लगा रय टेर ।।1।।
गया घाट पै पोंच कें ,पिण्य परा रये पूत ।
दान दक्छना दै रये ,मरे बुला रय भूत ।।2।।
पुरखन के पिरताप सें ,बढतई बौलबेल ।
नाम सदा उनका चलै ,रयै वंश में मेल ।।3।।
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ
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3-अशोक पटसारिया नादान, भोपाल
पुरखन के तप त्याग पै,हमें नाज़ है आज।
उनकी करनी सें बनो, घर परवार समाज।।
पुरखन की यश कीरती, अब लौ खूब भंजाइ।
आंगे के लानें कछु, तुम भी करौ कमाइ।।
पुरखा पुण्य प्रताप पै, करत हते गुनताव।
जब समाज नौनें चली, ईकौ आज अभाव।।
जियत जियत सेवा करौ, जीते जी सुख देव।
पुरखन की आशीष खों, गांठ बांध धर लेव।।
पुरखन के बलदान सें, हो गय हम आज़ाद।
सबखों शत शत नमन है, सबकी जिंदाबाद।।
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4-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा
परम प्रीति पालें पकर,पुरख़न के पद पूज।
समर समर सतसंग सें,सोहे साजी सूज।।
पग परमेसुर पगें,पाई पुरखन प्रीति।
राम रमैया रम रहें, रग रग राबै रीति।।
कछू जनन ने करी ना, पुरखन की परवाह।
कहत सुजान समार केंं, बे सब भये तबाह।।
-जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा, टीकमगढ़
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5-रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़ मप्र
पुरखा देत असीस हैं, करय दिनन में आत।
दूद पूत एबात धन, सबइ कछू दै जात।।
करम करौ नोनो सबइ, रय पुरखन की शान।
नाव रवै कुल को सदा, नइ होवै अपमान।।
-रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़ मप्र
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6-संजय श्रीवास्तव, मवई,
रोम-रोम पुरखा बसे, रग-रग दौरे खून।
चकिया उनकी चल रही, खा रय उनको चूँन।।
सपनन पुरखा पूँछतइ, करत भौत अफसोस।
काँ हिरा गओ प्रेम धन, काँ मन को संतोष ।।
पुरखन के करमन भईं,भारत माँ आजाद।
आजादी फूले-फलै,देस रहे आबाद।।
पुरखन कौ तरपन करें, कौअन भोज करायं।
जियत जिनें पूँछो नहीँ,उनइको दुख जतायं।।
- संजय श्रीवास्तव, मवई,
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7--अभिनन्दन गोइल,इंदौर
कौन धुंद में बिला गय, अपनें पुरखा आज।
पैरी खों आँगें बढ़ा, कर गय नौनें काज।।
हमकों पाछें छोड़कें, कड़ गय अपनें धाम।
उन पुरखन के ज्ञान सें, सुरजें सारे काम।।
अपनें तन के तंतु हैं, निज पुरखन की दैंन।
धारें उनकी सीख तौ, पावेंगे सुख चैंन।।
-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
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8-- राजगोस्वामी, दतिया म0पृ0
पुरखन कौ आशीष उनइ पै,जिन को पुरखा चात ।
जो ना मानत हैं पुरखन को,पुरखा जीभ चिरात ।।
करए दिनन में सबके पुरखा, चक्कर काटन आत ।
जो उनको पहचान न पातइ ,घनचक्कर हो जात ।।
पुरखा बैठे पौर में,मिलन पुरा के आत ।
घर के पूछत नैया ऊ को,फिर पाछैे पछतात ।।
- राजगोस्वामी, दतिया (म.प्र.)
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9-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
पुरखन पुन्न प्रताप सें, पुलकित प्रति परिवार।
सदां सुकृत सबके करै, सुभ सपने साकार।।
जी पगडंडी पै चले,अपने पुरखा पैल ।
झरी फुकी रस्ता चलौ,रखौ न मन में मैल ।।
पुरखा आय असीसबे , रखियौ उनकौ मान।
करियौ श्रृद्धा भाव सें ,तरपन बलि उर दान।।
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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10 --- कल्याण दास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर
पुरखन के प्रति रउत है ,मन में श्रद्धा-भाव ।
संरक्षक परिवार के ,खलतइ भौत अभाव ।।
खूब फलत-फूलत हमें ,पुरखन की आसीस ।
"पोषक" नित्य झुकात हैं ,श्री चरनन में सीस ।।
पुरखा गैल बतात हैं ,चलबौ अपनों काम ।
' जी ' नें चलबौ सीख लव ,"पोषक" सुन्दर धाम ।।
--- कल्याण दास साहू "पोषक"
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11-संतोष नेमा "संतोष",जबलपुर
पुरखों शें पहिचान है,उनको हो सम्मान।
पितर दिनन में हम सभै, उनको रखवें मान।।
पितरों के आसीस शें,बनहें बिगरे काम।
वो ही तो जा जगत में,सांचे चारों धाम।।
जे पन्द्रह दिन पूज लो,आपन पितर महान।
हो जीवन"संतोष"मय,कर लो अब गुणगान।।
@संतोष नेमा "संतोष",जबलपुर
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12-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा, नरसिंहपुर
पुरखों को जो खून है,पुरखों को है नाम।
पुरखा ही पूरन करें,हमरे सबरे काम।।
नोने करम करत रहो, पुरखा मन संतोष।
सेवा पुरखों की करो,भरलो धन के कोष।।
तिरे नहीं पुरखा अगर,देते भारी तन्स।
नहीं सुफल जीवन रहे,तरसत मन को हंस।।
-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा, नरसिंहपुर
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13-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बडा मलहरा,
पुरखन के तप तेज सें, हमखों मिलो सुराज।
सरस उनइं के पुन्न फल, सुखी भये सब आज।।
पुरखा जो करकें गये, धरम करम सब कल्ल।
सरस आज भी होत हैं, बइ मूसर बइ दल्ल ।।
-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस,बडा मलहरा,
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14-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
रखियो सदा सँभार कें, पुरखन के संस्कार।
सबके पुरखा एक हैं, रिसी-मुनी औतार।।
पुरखा हम में जियत हैं, हम पुरखन के अंश।
रिसि- मुनियन सें हैं बने,भारत के सब वंश।।
-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
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15--संजय जैन *बेकाबू*,मबई, टीकमगढ़
बिन पुरखन आशीष के, जौ जीवन निर्जीव,
हम सब एक मकान हैं, पुरखा ई की नीव ।
दुनिया खों ओंजक लगे, चलो न ऐसी चाल,
पुरखन ने जा सीख दी, भौतइ भौत कमाल ।
-संजय जैन *बेकाबू*,मबई, टीकमगढ़
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16--सालिगराम 'सरल', टीकमगढ़
पुरखन कौ सम्मान जाँ, बे घर रत खुशहाल।
उनके दुआ प्रताप सै, होत न बाँकौ बाल।।
जब तक पुरखा जियत हैं,रय सेवा सम्मान।
मरे बाद सब ढोंग है, कविरा कही बखान।।
जी घर में पुरखा सुखी, बिगड़े बन तइ काम।
जेई तीरथ'सरल' के, जेई चारों धाम।।
-सालिगराम 'सरल', टीकमगढ़
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17 -अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
जो पुरखा ना होयते, हम ना होते आज,
उनकौ रोपौ रूख जौ, फूलौ-फलौ समाज ।
कल हम भी पुरखा बनैं, जैं पुरखन के पास,
पितरन में पूजा करें, रै लरकन सें आस ।
बड़ी अनूठी रीत है, और धरम में नाय,
पुरखन खौं भी पूजबे, कछु दिन गये बनाय ।
- अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
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18-- सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ मप्र
कागा आऺॅगन आय कें,खीर जात हैं खाय।
मन खों जौ संतोस है, पुरखा दय अफराय।।
-सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़ मप्र
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19--वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
करय दिनन में होत है,पुरखन कौ जलपान।
शेष दिनां कैसें कटत, जानै यह भगवान।।
जब तक लौ हम जियत रय,नईं रखौ गव ध्यान।
जैसइ मर पुरखा बने,खूब मिलौ सममान।।
-वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़ मप्र
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20-शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ़
पुरखों की छोडो नइं ,चली आई जो रीत ।
जैसो पैलां मानतते, ऊसइ करिये प्रीत ।।
टेरैं पुरखा मानकैं, खुआयें कौअन भात ।
जीयत नैं सेवा न करी, पानी खाँ तरसात ।।
पुरखन के उपदेश सैं, सजौरात घर द्वार ।
दाँगी कहत समाज हित, परसौ जियत कंगार ।।
गंगा तीरथ खूब गया, पुरखा उतै तराय ।
अगर बुडापौ समारदे जीवन सफल बनाय ।।
-शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ
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21- डी पी शुक्ला, टीकमगढ़ (मप्र)
उन पुरखन को नमन है ,जो दो गए हमें असीस।
पैरी अपनी छोड़ कें, पौैंच लिगाँ जगदीश।।
उनईं पुरखन की दैन है मजा मौज रय छान।
धन दौलत और टपरिया, दै गए बनेों मकान।।
पुरखन प्रीतई देख कें,करक रात है आज।
बैठौ उठबौ ओइकौ,चाउत जिए समाज।।
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22-समीक्षा दिन-मंगलवार 1-9-2020
-रामेश्वर राय 'परदेशी', टीकमगढ़(म.प्र.)
आल्हा
सुमरन करकें मात शारदा,
सुमरौ श्री गनेश भगवान।
छत्रसाल हरदौल जू भूषन,
तुलसी केशव भये महान।
नमन करौं बुन्देली भूमि,
छायो देश विदेशन नाम।
बनी अजुदया इतै ओरछा,
काशी जू कुंडेश्वर धाम।
बेकाबू नादान कुँवर इंदू,
पाली पाठक अरविंद।
सरस सरल पोषक पीयूष जी,
भाऊ कँवल राना जय हिंद।
सुशील शर्मा जी नेमा जी
जैजिनेंद्र गोयल पिरनाम।
सीमा उर्मिल बेन गुसांई
चंसौरिया जू जय सियाराम।
अपनो जान छमा करियौ जू
जो कछू भूल चूक होजाय।
करत समीक्षा मंगलवार की
परदेशी रामेश्वर राय।
कोउ काऊ सें कम हैं नईया
एक सें एक हैं साहित्यकार
बैठीं कलम पै मात शारदा।
शब्द कोष कौ है भण्डार
रचनायें सबकी हैं उम्दा
की कौ का लौ करौ बखान।
किरपा मिलत जिये पुरखन की
बौ न कभऊ होबे हैरान।।
-रामेश्वर राय परदेशी टीकमगढ़
#######################
और अंत में......
23 *पितृ श्राद्ध के बारे में विस्तृत जानकारी-
-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़ मप्र
पितृ दोष क्या है-
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हमारे ये ही पूर्वज या पुरखें ही सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं, और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं, जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद, व्यापार में नुक्सान, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ, देवी, देवताओं की अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृ दोष दो प्रकार से माने जाते हैं-
1-अधोगति वाले पितरों के कारण
2- उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
पांच ऋण और पितृ दोष*
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मुख्य रूप से हमारे ऊपर पांच ऋण होते हैं जिनसे हमें उऋण होना चाहिए। ये ऋण न चुकाने पर हमें निश्चित रूप से कष्ट भोगना पड़ता है। 1-मातृ ऋण,2- पितृ ऋण, 3-मनुष्य ऋण,4- देव ऋण और 5-ऋषि ऋण। इनमें तीन प्रमुख हैं-
1-पितृ ऋण -
पिता पक्ष के अंतर्गत चाचा, दादा-दादी बाबा, ताऊ, आदि आते है इसके पहले की तीन पीढ़ी का प्रभाव एवं श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है एक पिता ही होता है जो आकाश की तरह छत्रछाया देता है, हमारा जीवन भर पालन -पोषण करता है,और मरते तक अंतिम हमारे सारे दुखों को स्वयं सहता रहता है। लेकिन आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ? पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है, इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है, इसमें घर में आर्थिक अभाव, दरिद्रता , संतानहीनता, संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि
2-मातृ ऋण -
माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा, मामी, नाना, नानी, मौसा, मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं, क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है, अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है, तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं, इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।
*।
*देव ऋण*
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माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने। इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ, भगवान विष्णु आदि आते हैं, जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है, हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे, लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान/कुलदेवी/कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट/श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।
पुरखों यदि नाराज है तो वे पांच प्रमुख संकेत हमें देते है-
1- भोजन करते समय भोजन में से बाल निकलना।
2- वार बार सपने में पूर्वजों का आना।
3- शुभ अवसरों पर अशुभ घटना हो जाना।
4- घर में लड़की का विवाह न हो पाना।
5- निसंतान होना।
पितृ दोष शांति के लिए प्रमुख उपाय-
1- पितृ पक्ष में एवं प्रत्येक शनिवार को पीपल के नीचे दिया रखे एवं उसकी परिक्रमा अवश्य करें अगर 108 परिक्रमा लगाने से पितृ दोष अवश्य दूर हो जाता है।
2-विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना, प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।
3- दान का बहुत महत्व है षोडश पिंड दान, सर्प पूजा, ब्राह्मण को गौ -दान, कन्या-दान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बरगद आदि देव वृक्ष लगवाना
4- वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो, शांत हो जाती है अगर नित्य पठन संभव ना हो, तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
5- भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :
मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
6-अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।
7-हरिवंश पुराण " सुने या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
8-अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर/सम्मान करे।
9- प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
10- सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा, रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
11- अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम
दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
कुछ विशेष उपाय -
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1-पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।
2- किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें, उसकी देख -भाल करें, जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा, पितृ -दोष दूर होता जाएगा, क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं। एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें।
3- इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे अगरबत्ती, एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।
4-पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।
5-घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं
6-पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है, दीपक कम से कम एक मिनट नित्य जलना आवश्यक है।
इन उपायों के अलावा हरेक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ के नीचे में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है।
संकलन- राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़
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हमाये पुरखे
(बुंदेली दोहा संकलन)
संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशक-
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
की प्रस्तुति
©कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
मोबाइल 9893520965
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