Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

सहेली की डायरी (गीतिका वेदिका)समीक्षक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़

पुस्तक समीक्षा:- सहेली की डायरी (कहानी संग्रह)
लेखक:- गीतिका वेदिका 

समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)
              कवि परिचय-
नाम      :-राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’
जन्म     :-15-06-1972 (लिधौरा)
माता-पिताः-श्रीमती मिथलेश/ श्री सी.एल.नामदेव
पत्नी     :-श्रीमती रजनी नामदेव ।
संतान    :-आकांक्षा एवं अनुश्रुति
शिक्षा   :-बी.एस.सी.(कृषि),एम.ए.(हिन्दी),
पी.जी.डी.सी.ए.(कम्प्यूटर)
विधा     :-कविता,ग़ज़ल,हाइकु ,व्यंग्य, क्षणिका, लघुकथा, आलेख आदि।
प्रकाशन- (1) ‘अर्चना’ (कविता संग्रह,97 
(2) ‘रजनींगंधा’ (हाइकु संग्रह 2008) 
(3) ‘नौनी लगे बुन्देली’ (बुन्देली हाइकु संग्रह-2010)
   (विश्व में बुन्देली का प्रथम हाइकु संग्रह)
(4) ‘राना का नज़राना’ (ग़ज़ल संग्रह 2015)
(5)‘लुक लुक की बीमारी’(बुंदेली व्यंग्य संग्रह 2017)
     (6)‘साहित्यिक वट वृक्ष’ (ईबुक)(गद्य व्यंग्य संग्रह 2018)
(7) ‘अनुश्रुति’ (लघुकथा संग्रह 2020) प्रेस में
संपादित पुस्तकें-(1) ‘आकांक्षा’ पत्रिका (संपादन)(2006 से अब तक)
(2).‘संगम’ (संपादन-2001) (3) ‘सृजन’ (संपादन-2003)
(4)‘नागफ़नी का शहर’(व्यग्ंय संकलन,सपंादन-2003)(5)‘अनुरोध’(संपादन-2004)
(6) ‘दीपमाला (सहसंपादन 2000) (7)‘श्रोता सुमन’(सहसंपादन-2002)  
(8) जज़्बात (सहसंपादन-2004) (9) अभी लंबा है सफर (सहसंपादन-2003)
(10) पं.दुर्गाप्रसाद शर्मा अभिनंदन ग्रंथ (सह संपादन-2016)
  राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग दो़ हज़ार रचनाओं का प्रकाशन, 300 कवि-सम्मेलनांे एवं मुशायरों में शिर्कत। ब्लाग-76 देशों के 15000 पाठक।   अब तक 262 कवि-गोष्ठियों का सफल संयोजन । 
  ग्यारह अप्रकाशित संग्रह
संपादक:- ‘आकांक्षा’ पत्रिका (सन् 2006 से आज तक)
प्रसारण:-  टी.व्ही.-ई टी.व्ही.,दूरदर्शन,सहारा म.प्र.,
प्रसारण आकाशवाणीः- आकाशवाणी के छतरपुर,केन्द्र से ।
सम्मान:-राष्ट्रीय 33,प्रादेशिक 37 एवं स्थानीय 23 कुल 93 साहित्यिक सम्मान प्राप्त। 
        तीन राज्यपालों द्वारा सम्मानित।
 संप्रतिः-संपादक-आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्षः- म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़(सन् 2002 से)
अध्यक्षः- वनमाली सृजन केन्द्र, टीकमगढ़
महामंत्रीः-बुन्देली साहित्य एवं संस्कृति परिषद टीकमगढ़ 
पताः- नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिनः472001 भारत मोेबाइलः-09893520965 
Email- ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogsop.com

पुस्तक समीक्षा:- सहेली की डायरी (कहानी संग्रह)
लेखक:- गीतिका वेदिका 

समीक्षक:- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(टीकमगढ़)
 प्रकाशन वर्षः- सन् 2019  (प्रथम संस्करण)  
मूल्यः-175रु. पेज-104
प्रकाशन-लोकोदय प्रकाशन, प्रा.लि., 65/44 शंकरपुरी, छितरवापुर रोड,    लखनऊ (उ.प्र.) पिन-226001

आज भी घटित होती ये जीवंत कहानियाँ-
  सहेली की डायरी-
                           -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
गीतिका वेदिका जी बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। वे एक बेहतरीन अदाकारा, कहानीकारा, ग़ज़लकारा, लेखिका एवं समाजसेविका हैं। वे साहित्य,संस्कृति और कला को अपने अंदर जीने वाली जीवट व्यक्तित्व की धनी हैं। क्रिकेट की भाषा में कहे तो वे एक बेहतरीन ‘आॅलराउंडर’ हैं। जहाँ एक ओर वे नाटकों, फिल्मों में अपना अभिनय डूब कर करती है के रोने वाले सीन में वे वास्तविक रूप में सजीव रोकर वह सीन करती है यानि कि उनके आँसू भी ओरिजलन होते है नकली गिलिसरीन वाले नहीं। वे उस केरेक्टर के अंदर तक बहुत गहराई तक घुसकर उसे स्वयं महसूस करती है कि वे ही वह पात्र है, तो वहीं दूसरी ओर उनका साहित्य लेखन भी उनका कलमतोड़ रहता है। वे लीक से हटकर कुछ नया लिखने की हमेशा कोशिश करती रहती हंै
भले किन्नर जैसे अछते विषय पर लिखना जिस पर लोग लिखने से भी घबराते है। उन्होंने ने किन्नरों पर बहुत कुछ लिखा है और निरंतर लेखन कार्य गद्य एवं पद्य दोनों में बराबर कर रही हैं।
 मैंने गीतिका जी के अनेक नाटकों को देखा है बहुत आनंद आया ऐसा लगता है जैसे सजीव ही हमारे समाने सब कुछ घट रहा है। उनके कला के प्रति अटूट आस्था विश्वास और लगन है। तभी तो वे एक नारी होकर भी संशक्त पहने पैरो वे खड़ी है वो भी बिना किसी गाडफादर के बिना, बिना किसी के मार्गदर्शन के बिना पूरा एक ‘समर्पयामि फाउण्डेशन’ स्थापित कर दिया स्वयं का समय के साथ-साथ तन-मन-धन सब न्यौछावर कर दिया रंगमंच के लिए। उन्होंने अनेक कार्यक्रम अकेल अपने दम पर सफलता पूर्वक संपन्न किये है जिसे लोगों ने भरपूर सहारा है। आज कल वे किन्नरों जिन्हें अब ‘मंगलमुखी’ कहा जाने लगा है उन पर बहुत कुछ शोध कार्य कर रही है। अनेक नाटक कहानी कविताएँ उन्होंने स्वयं रची है और वर्तमान में लाकडाउन की वजह से अन्य कार्यक्रम नहीं हो पाने के कारण अब वे ‘वेबीनार’ आयोजित कराकर देश भर से अनेक साहित्यकारों,कलाकारों को एक सशक्त मंच प्रदान कर रही है तथा उन्हें पूरे सम्मान के साथ एक बेहतरीन प्लेटफार्म सुलभ ही उपलब्ध करा रही है वो भी निःशुल्क बिलकुल मुफ्त में। 
पूर्व में गीतिका जी का एक काव्य संग्रह ‘अधूरी देह’ प्रकाशित हो चुका है। किन्नरों पर केन्द्रित उनका एक खूबसूरत गीत ‘अधूरी देह क्यों मुझकों बनाया.... बहुत लोकप्रिय हो रहा है। यह गीत उन्होंने स्वयं लिखा है और सुमधुर कंठ से गाया भी है। जिसे बहुत सराहा गया है। विभिन्न सोशल मीडिया पर यह बहुत पंसद किया जा रहा है।
उनका कहानी संग्रह ‘सहेली की डायरी’ हाल ही में छपकर आया है जिसमें उनकी 13 कहानियाँ 104 पृष्ठों में समाहित हैं। पहली कहानी थोड़ा लंबी है बाकी शेष कहानियाँ सामान्य है।
 ‘सहेली की डायरी’ संग्रह की पहली कहानी ‘शुभ’ शीर्षक से है जो कि एक तरफा प्यार की कहानी है जिसमें नायिका अपने प्रेमी शुभ को मन ही मन में चाहने लगती है और उन्हें अपना पति मानने लगती है। शुभ से ही व्याह के सपने देखते हुए उनके गाँव में पुनः वापिस आने की प्रतीक्षा करती रहती है, तथा वह किसी अन्य से विवाह भी नहीं करती, लेकिन उसका प्रेमी कुछ साल बाद जब वापिस गाँव आता है तो वह साथ में अपनी पत्नी और बच्चे को भी लाता है जिन्हें देखकर नायिका का स्वप्न टूट जाता है, वो बिखर जाती है अंदर से टूट जाती है एवं भीतर ही भीतर बहुत दुखी होती है। यह कहानी थोड़ी लंबी है।  लेकिन उसमें ग्रामीण परिवेश का बहुत बढ़िया सूक्ष्म वर्णन किया है तथा इस कहानी में लेखिका ने शुरू में प्रेम का,फिर बाद में विरह का सटीक चित्रण किया है।
दूसरी कहानी ‘नीलू’ शीर्षक से है जो कि एक सहेली की व्यथा-कथा है जिसका ब्याह एक सैनिक से हो जाता है किन्तु वह सैनिक विवाह के तीन महीने बाद ही गलती से गोली लग जाने के कारण एक दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तब नायिका के विधवा होने पर उसे सब जगह से तिरस्कार मिलता है उस पर तरह-तरह से लांछन लगा दिए जाते है।  सैनिक की मृत्यु का सारा दोष उसके सिर ही मढ़ दिया जाता है और अंत में उसे पागल विधवा कहाँ जाता है। एक विधवा बहुत मार्मिक चित्रण इस कहानी में किया गया है। इस कहानी इस संग्रह की एक बेहतरीन कहानियों में से एक है।
वह’ एक अनाथ, लाचार औरत की कहानी है जो कि मृत बच्चा पैदा करती है और अपने मृत बच्चे को ठीक से देख भी नहीं पाती है।  गांव में प्रसव वेदना के समय ऐसे ही सैंकड़ों किस्से आपको आज भी देखते को मिल जायेगे। सरकारी स्वास्थ सेवाओं और सुविधाओं की खामी को दर्शाती यह कहानी बहुत अच्छी लिखी गयी है। एक बेवस माँ की ममता तथा एक मूक करूण वेदना को शब्दों में ढालकर कहानी गढ़ी गयी है इस कहानी का अंत दुखांत है, लेकिन कहानी पाठकों को बांधे रखती है अंत में भावुक कर देती है।
विदाई’ कहानी भाई-बहिन के प्यार की अनूठी कहानी है। भाई अपनी बहिन को होस्टल छोड़ने जाता और फिर बाद में विवाह के समय उसकी विदाई करता है तब का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है।
गिरहे’ कहानी में पति एवं ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित एक बहू कि कहानी है जिसमें उसे बहुत अपमानित किया जाता है, वह ससुराल और मायके दोनों जगह पर उपेक्षित की जाती है। ऐसी अनके घटनाएँ प्रायः हमारे आसपास ही देखने को मिल जाती है, लेकिन मुझे इस कहानी का अंत मुझे अच्छा नहीं लगा मेरे हिसाब से इसका कहानी का अंत कुछ और होता तो बेहतर होता। खैर लेखिका के अपनी सोच, अपने विचार है और उसके विचार मत, अलग-अलग होते है।
कहानी ‘जलदान’ एक अच्छे सुखांत वाली कहानी है जिसमें बाबा अपनी मृत्यु के बाद भी अपने परिवार की रक्षा करते हंै, देखभाल करते हैं और उनके घर के कामों के मदद करते हैं। बहू द्वारा जब जलदान करते हुए कहा जाता है कि ‘अब मत आया करो बाबा’’ संवाद बहुत भावुक कर गया। तब बाबा उनका मान रखते हुए चले जाते है लेकिन फिर उसी बहू के पेट में एक नए रूप में जन्म लेने आने के लिए पुनः उसी घर में आने की तैयारी कर लेते है। मुझे यह कहानी बहुत बढिया लगी। इस कहानी में भाव बहुत अच्छे है। बाबा का प्रेम, बुजुर्ग को अपने घर परिवार की रक्षा करना आदि बहुत कुछ सीख व संदेश देती यह कहानी है।
सफारी’ यह कहानी एक बस यात्रा के दौरान कुछ समय के लिए एक पढ़ने वाली बच्ची के साथ बिताये कुछ क्षणों की मधुर यादों को अपने में समेटे है। लेखक बस यात्रा के दौराना अपनी वगल की सीठ पर बैठी बच्ची से बाते करते हुए उसकी बातों उसे प्रभावित हो जाती है बच्ची भी उनसे घुलजमिल जाती है यह क्षणिक मुलाकात को याद करते हुए यह कहानी का तानावाना बुना गया है। यह कहानी बहुत छोटी हैं, इसका अंत भी स्पष्ट नहीं है। पाठकों काा यह समझ में नहीं आता कि इस कहानी को लिखने का क्या उद्देष्य है। और यह हमें क्या षिक्षा देती है। मेरे हिसाब से इस कहानी को पुनः संषोधित करते हुए लिखा जये तो यह एक बेहतरीन कहानी बन जायेगी। 
‘‘लाली’ कहानी त्रिकोण प्रेम की कहानी है लाली द्वारा अपने पति के तीन-तीन महीने गायब रहने के बाद उसे एक अन्य आदमी से प्यार हो जाता है और फिर अंत में उसका पति उसके प्रेमी की हत्या कर देता है। इस प्रकार लाली को दूसरी वार भी भरपूर प्यार नहीं मिल पता, जिसके लिए उसने अपने पति से विद्रोह करके दूसरे से विवाह किया था। वह अंत में फिर अकेली रह गयी।
‘‘धोखेबाज बेटियाँ’’ यह कहानी एक कालेज की लड़की की है जिसका पिता उसकी शादी उससे अधिक उम्र के बूढे आदमी से तय कर देता है और उसकी सगाई भी हो जाती है लेकिन वह अंत में कालेज के प्रोफसर से विवाह कर लेती है। तब यहाँ पर उसका पिता और एक अन्य आदमी शराब के नशे में यह कहता है कि- हमारी अपनी बेटियों ने हमे धोखा मिला है। तब दूसरा कहता है कि- हाॅ भाई! अपना कोई नहीं होता, इस पापी संसार में सब के सब धोखेबाज है। इसी से प्रेरित होकर शायद लेखिका ने इसका शीर्षक ‘धोखेबाज बेटियाँ रखा है लेकिन यह उचित शीर्षक नहीं हैं कि एक तो वे दोनों शराबी पिता अपनी बेटियों के साथ अपने स्वार्थ के लिए स्वयं गलत कर रहे थे। एक पिता अधिक उम्र के बूढे से अपनी बेटी शादी करा रहा था तो दूसरा पिता अपनी ही बेटी का घर  उजाड़कर उसकी कमाई से ऐश करना चाहता था और फिर दोनों ही पिता अपनी-अपनी बेटियों को ही दोषी ठहराते हुए उन्हें धोंखेबाज कह रहे थे। ये कहाँ तक उचित है।
 एक महिला लेखिका होते हुए भी लेखिका को हमेशा एक नारी का मजबूत पक्ष रखना चाहिए उसे कमजोर और गलत सिद्ध नहीं करना चाहिए। कहानी हमेशा सकारात्मक लिखनी चाहिए कोई संदेश देती हो। इस कहानी का शीर्षक ‘चतुर बेटियाँ’ या चालाक बेटियाँ, समझदार बेटियाँ आदि हो कुछ भी हो सकता था। लेकिन 
‘‘धोखेबाज’’ शब्द गलत संदेश देता एक चोट करता है। पाठक को विचलित करता है  सारे बेटी वर्ग को बदनाम करता है। खैर लेखिका की अपनी सोच होगी, समीक्षकों और पाठकों की अपनी, लेकिन सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए।
शीर्षक देना एक कहानीकार का कार्य है ना कि उस कहानी के पात्र का और इस शीर्षक को पढ़कर और फिर कहानी को पढ़कर पाठक को ऐसा लगता है कि कहानीकारा बेटी के पिता की बात का समर्थन कर रही है। अर्थात उसे उनके पिता की बात मान लेनी चाहिए थी। भले की वे गलत करे रहे हो।
‘‘तीन पग’’ यह कहानी बहुत रोचक है इस कहानी की पात्रा आत्महत्या करने के मकसद से घर छोड़कर अज्ञात जगह पर जाने के लिए बाहर निकल जाती है। वहाँ उसे एक बाबा मिलते है जिससे उसका आत्महत्या करने का इरादा बदल जाता हैं और वह वापिस घर आ जाती है जहाँ उसका सभी लोग इंतजार कर रहे होते है। 
एक यायावर जीवन जीने वालों के पर केन्द्रित यह कहानी जीवन में अचानक से क्या कुछ घटित हो जाता है कुछ सुखद होता है तो कुछ दुखद भी उस पर बहुत बढ़िया सूक्ष्म चित्रण किया गया है।
लेखिका स्वयं इसमें कहती है कि- ‘‘मैं इस धरती के दूसरे छोर पर जाना चाहती थी। पता नहीं वह दूसरी धरती थी या आकाश? मैं बस चलती चली जाना चाहती थी बहुत दूर.....इस धरती से दूर............ मैं धरती मापने चल पड़ी थी। न प्रारंभक बिंदु ज्ञात था, न दिशाएँ, न मोड़। अंत मंे उसको जीने की राह सही व उचित मिल जाती है। यह एक बहुत अच्छी कहानी है जो कि मोटीवेट करती है। मुझे भी यह कहानी बहुत पंसद आयी।
‘‘आखिर बस’’ यह कहानी एक महिला पत्रकार की है जो कि गाँव में पत्रकारिता हेतु एक स्टोरी कवर करने के लिए जाती है किन्तु उसकी आखिरी बस छूट जाती है तो वह बारह बजे रात्रि में एक प्रेस की जीप में बैठ कर जैसे तैसे डरते हुए अपने घर वापिस पहुँती हैं। एक महिला के लिए कितना जोखिम होता है आजकल रात में सयम में अपना काम करना वह भी यदि फील्डवर्क हो तो और मुसीबत यहीं इस कहानी के माध्यम से बताया गया है। महिला पत्रकार को यात्रा के दौरान उसे हर व्यक्ति से डर लगता है कि क्या पता ये मेरे साथ क्या गलत कर बैठे उसके मन के नकारात्मक विचार आते रहते है।
 वर्तमान समय को देखते हुए यह डर स्वाभाविक है सभी महिलाकर्मचारी को हमेशा बना रहता है। जमाना बहुत खराब है जरा भी ढील दी या असावधानी रखी की दुर्घटनाएँ घट जाती है। उनका बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया गया हैं कहानी का अंत सुखांत है। यही एक अच्छी कहानी है। पाठक दम साधे पढ़ता ही चला जाता है और सोचता है कि इसका अंत कैसा होगा, लेकिन अंत पढ़कर पाठक को भी बहुत संतोष होता है।
एक अप्रेषित चिट्ठी’’ यह कहानी अधिक उम्र हो जाने पर एक अविवाहित की व्यथा को चित्रित करती करती है जो कि अपने मुँहबोले भाई को एक चिट्ठी लिखकर अपने मन की व्यथा को व्यक्त करती हैं। उसकी कामना है कि उसका यह जन्म तो खराब हो गया लेकिन अगले जन्म में उसे उसी के  जैसा ही भाई मिले या पति रूप में भी मिल जाए जो मुझे स्वीकार होगा लेकिन मिले ऐसा ही आदमी, लेकिन उसकी यह चिट्ठी अप्रेषित है। बढिया कहानी लिख गयी है। इस कहानी में बहुत बढिया मनावैज्ञानिक वर्णन किया गया है। वास्तव में ऐसा अनेक अविवाहितांे के साथ अक्सर हो जाया करता है लेकिन वे किसी से अपनी व्यथा को व्यक्त नहीं कर पाती और मन ही मन घुटती रहती है या तनाव में आकर कोई गलत कदम उठा लेती हैं।
मौसी’ यह कहानी एक वृद्ध मौसी की है जो कि बुढापे में अपने ही दोनों बेटों द्वारा उपेक्षित की जाती है। दोनों पुत्र पहले तो उसे तीन-तीन माह बारी-बारी से मजबूरी में रखते है और बाद में उनकी देखभाल सही ढ़ंग से नहीं करते है। एक वृ़द्वा की अंत में क्या दुर्दशा होती है इसका जीवंत उदाहरण है। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हमारे आसपास ही आज भी घटित होती है।
शुरू की कुछ कहानियों में लोकभाषा बुंदेली का अधिक पुट मिलता है तो कुछ कहानियोें में वेदिका जी का काव्य प्रतिभा की झलक भी में बीच-बीच में पढ़ते समय मिल जाती है। भाषा बहुत ही सरल है असानी से समझ में आ जाती है। इस संग्रह में कहानियों के अनेक पात्र वर्तमान में ही आपको आसपास ही मिल जाएँगे। वर्तमान में सामाज एवं ग्रामीण क्षेत्रों में क्या होता है इसका बहुत बढ़िया चित्रण किया गया है। 
सारांश में हम कह सकते है कि यह कहानी संग्रह ‘‘सहेली की डायरी’’ पठनीय है। पाठकों को एक बार इसे अवश्य पढ़ना चाहिए बहुत आनंद की प्राप्ति होगी।
   
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
   संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
      अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
अध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
जिला संयोजक-अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद्
       शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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            Email- ranalidhori@gmail.com
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