राना बुंदेली दोहावली
*बुंदेली दोहे*
पुरखन के आशीष से,
वंश बेल बढ़ जात।
रहते हम सुख चैंन से,
दुःख विपदा टर जात।।
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पितृपक्ष में श्राद्ध करे,
रखते है कागौर।
धरम पुन्न करकै उने,
जल ढारत है भोर।।
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सिस बेइ नोने लगे,
रखत गुरु कौ ध्यान।
तन मन से सेवा करें,
जे धरती भगवान।।
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सिस्य बनो ऐसे बनो,
गुरु कौ बढ़े मान।
उनके ही आशीष सें,
बनती है पैचान।।
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छमा मांगवे से कभी,
घटत नई सम्मान।
जो जन करवे है छमा,
बेई बनत महान।।
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छमा लराई रोकती,
गम्म खाय है सार।
विपटा टरत है सभी,
बाकी सब बेकार।।
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करम करो ऐसे करौ
बन जाबे प्रमान।
यश कीरत अरु धन बढै,
ऐन मिलै सनमान।।
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पुन्न करम हरदम करौ,
जीसें, सब सुग पाय।
सरग नसैनी फिर मिलै,
जीव मुक्त हो जाय।।
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वीरन के बलिदान कौ,
काँ लौं करें बखान।
उनके सत्करमन बनी,
भारत की पैचान।।
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करज चुका कें भूम कौ,
बन गय वीर महान।
कोटिन उनै प्रनाम है,
धन्य धन्य बलिदान।।
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*राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ
शिवनगर, कालोनी, टीकमगढ़ (म.प्र.)472001
मोबाइल-9893520965
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