Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

लघुकथा- शोषण (राजीव नामदेव 'राना लिधौरी')

*लघुकथा-‘‘कोरोना काल में शोषण’’*

                        *-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
         
दिल्ली में मजदूरी करते रामलाल को यूँ कई बर्ष हो गए थे, लेकिन इस साल मार्च में कोरोना महामारी के कारण गंभीर हालात पैदा हो गए और लाॅक डाउन बढ़ने की वजह से लोग वापिस अपने घर नहीं आ पा रहे थे ऐसे के महामारी बढ़ती ही जा रही है तब वहाँ से हजारों प्रवासी मजदूरों ने जब भूखे मरने की नौबत आने लगी तो उन्होंने ने वापिस अपने गाँवों की ओर लौटने में ही अपनी भलाई समझी यही सोचकर रामलाल ने अपने ठेकेदार से कहाकि- बाबूजी हमारा पूरा हिसाब करके जितने पैसा होते है हमें दे दीजिए हम घर जाने चाहते है।
ठेकेदार पहले तो कुद दिन टालता रहा है इस प्रकार से ये सभी वाापिस चले जाएँगे तो फिर आगे काम कैसे होगा मेरी ऊपरी कमाई भी बंद हो जाएगी। तीस हजार रूपए तीन महीने का हो रहा था। मजदूर ने कुछ दिन बाद फिर गुहार लगाई कि मुझे मेरे पैसा दे दो उधर वह ठेकेदार दो-तीन दिन बाद आना फिर देदे अभी हमारे पास नहीं है वे बेचारे फिर लौट जाते। 
जब दो माह लाकडाउन को हो गए ओर कुछ ही आगे निश्चित न रहा तब रामलाल सोच रहा था कि वो यदि यहाँ और दिन रहा तो वह भी बीमारी की चपेट मे आ जायेगा और अब तो खाने के भी लाले पड़ने लगे है जितना थोड़ा कुछ बचा था वह भी खत्म हो गया है। काम धंधा अभी सब बंद है तो वह अंतिम बार ठेकेदार के पास पैसा माँगने जाता है तो ठेकेदार पहले तो उसे अभी देने से मना कर देता है जब कहता है कि बाबूजी अब मैं यहाँ रहूँगा मैं रात में ही वापिस ठेकेदार भी बहुत चालक था उसने मजबूरी का फायदा उठाते हुए कहा कि-देखो भाई मेरे पास फिलहाल तो इतने पैसे नहीं ही कि सभी को पूरे दे सकंू और भी बहुत से लोगों के पैसा देना है।
अपने घर जा रहा हूँ  तो ठेकेदार ने पूछा कि- जब ट्रेन, बस सब बंद है तो फिर कैस जाओंगे, तो वह बोला कि- मैं पैदल ही जाऊँगा और भी हमारे साथी है किसी तरह पहुँच ही जाएगे यहाँ और रहे तो कोरोना होने से पहले, भूखों ही मर जाएगे।
बहुत मिन्नते करने और हाथ-पाँव जोड़ने के बाद वह बोला कि- ऐसा करो अभी तो मैं तुम्हेें पाँच हजार रूपए ही दे सकता हूँ बाकी बाद में ले लेना मैं खा के थोड़े ही भगे जा रहा हूँ। बेचारा मजदूर क्या करता वे पाँच हजार रूपए ही लेकर कि ‘‘भागते भूत की लंगोटी ही भली’’, ठेकेदार को मन ही मन कोसता हुआ कि जिस कोराना की वजह से तुमने मेरे खाये है वहीं तुम्हें हो जाये,बददुआएँ देते हुए वह किसी तरह अपने घर वापिस आ गया। 
ठेकेदार सोच रहा था कि चलो मैंने उसे अच्छा मूर्ख बनाया पाँच हजार ही देने पड़े पन्द्रह हजार अपने हो गए। साला मर जाएँगा रास्ते में, पैदल जा रहा है पाँच सौ किलोमीटर दूर अपने गाँव। कहते कि-‘दुआ कि तरह बददुआ में भी असर होता है’। ठेकेदार कुछ दिन बाद ‘कोरोना’ हो गया और वह मर गया। उसे अपनी करनी का फल मिल गया। 
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*©-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
       E-mail- ranalidhori@gmail.com 
       Blog- rajeevranalidhori.blogspot.com

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