दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को नये ऊंचाइयां दी थीं
आलेख - राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़
साहित्य में ग़ज़ल विधा को एक नई ऊंचाइयां दुष्यंत कुमार जी ने दी थीं। आपका हिन्दी एवं उर्दू दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था तथा खासतौर पर हिंदी ग़जलों को साहित्य में उचित मान सम्मान के साथ-साथ खूब प्रसिद्धि दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। दुष्यंत कुमार जी की कुछ ग़ज़लें कालजयी है। देश के लाखों शायरों के वे आदर्श रहे हैं, उनकी ग़ज़लों को पढ़कर हजारों नये शायर बन गये हैं।
दुष्यंत कुमार जी का जन्म-१सितम्बर १९३३ को राजपुर नावड़ा बिजनोर उत्तर प्रदेश में हुआ था तथा
आपकी मृत्यु-३० दिसंबर १९७५ को हुई थी। आपकी ग़ज़लों सैंकड़ों लोगों शोध किया तथा पी.एच-डी.की है। अनेक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में आपकी ग़ज़लों को पढ़ाया जाता है। आपकी याद में हर साल जंयती एवं पुण्य तिथि पर कवि सम्मेलन एवं मुसायरा देशभर में आयोजित किये जाते है।
धर्मवीर भारती को दुष्यंतजी का गजलपत्र-
दुष्यंत कुमार की गजल एवम कवितायें जनांदोलनों का नारा बनकर आज भी उद्वेलित करती हैं . विधानसभाओं और संसद में सबसे ज्यादा उद्धरित किये जाने वाले कोई कवि हैं तो वे दुष्यंतजी ही है. १सितम्बर १९३३ को राजपुर नावड़ा बिजनोर में जन्मे दुष्यंतजी की कर्मभूमि भोपाल रही. ३० दिसंबर १९७५ को वो हमारे बीच नहीं रहे. लेकिन हिंदी शाइरी में जो स्थान उनका है उसके निकट तक कोई नहीं पहुंच पाया. दुष्यंतजी को गंभीर और क्रांतिधर्मी कवि मन जाता है लेकिन उनमे हास्य और मनोविनोद भी भरपूर था. उनका समग्र साहित्य ऑनलाइन व् पुस्तकों, चाहने वालो की जुबांनो पर है लेकिन मनोविनोद से भरा एक गजलपत्र आज धर्मवीर भारती की पत्रकारिता पढ़ते हुए सामने आया. यह गजलपत्र उन्होंने भारतीजी को पारिश्रमिक बढ़ाने को लेकर लिखा था जो धर्मयुग के २३ मार्च १९७५ के अंक में छपा था. धर्मवीर भारती का जवाब भी गजल में ही दिया। पढ़िए.
पत्थर नहीं है आप तो पसीजिए हुजूर
संपादकी हक़ तो अदा कीजिये हुजूर
अब जिंदगी के साथ जमाना बदल गया
पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिये हुजूर
कल मैकदे में चैक दिखाया था आपका
वो हँस के बोले इससे जहर पीजिये हुजूर
शायर को सौ रुपये मिले जब गजल छपे
हम जिन्दा रहे ऐसी जुगत कीजिये हुजूर
लो हक़ की बात की तो उखाड़ने लगे हैं आप
शी..होठ सील के बैठ गए लीजिये हुजूर
निवेदक ..दुष्यंत कुमार
(धर्मवीर भारती का जवाब )
जब आपका गजल में हमें खत मिला हुजूर
पढ़ते ही यकबयक ये कलेजा हिला हुजूर
ये धर्मयुग हमारा नहीं सब का पत्र है
हम घर के आदमी हैं हमी से गिला हुजूर
भोपाल इतना महगा शहर तो नहीं कोई
महँगी का बांधते हैं हवा में किला हुजूर
पारिश्रमिक का क्या है बढ़ा देंगे एक दिन
यह तर्क आपका है बहुत पिलपिला हुजूर
शाइर को यहाँ भूख ने ही किया है यहाँ अजीम
हम तो जमा रहे हैं वही सिलसिला हुजूर
आपका.. धर्मवीर भारती
(साभार-माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि द्वारा प्रकाशित पुस्तक,..धर्मवीर भारती 'पत्रकारिता के सिद्धान्त'..लेखक-साकेत दुबे, में इस प्रसंग का दिलचस्प तरीके से उल्लेख है )
दुष्यंत कुमार जी को हिंदी ग़जलों का प्रथम ग़ज़लकार कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आपकी कही ग़ज़लें आज भी उतनी ही लोकप्रिय हैं जितनी उस समय थीं। आप ग़जलों के सम्राट है।
ऐसे दिव्य महापुरुष दुष्यंत कुमार जी को हमारा शत् शत् नमन हैं बंदन है।
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©आलेख- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
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