बरा (बुंदेली व्यंजन)
बरा- बुंदेली व्यंजन
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 5-04-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
3-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
5-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
06-रामानन्द पाठक,नैगुवा(म.प्र.)
07-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
08-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,(म.प्र.)
09- प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष',टीकमगढ़ (म.प्र.)
10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
12-डां सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
13- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
14- गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
15- संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
16- वीरेन्द्र चंसौरिया जी, टीकमगढ़ मप्र
17- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
18 -राजेन्द यादव कुंवर ,कनेरा,
19- डी.पी. शुक्ला जी टीकमगढ़
पटल समीक्षा
20-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
21- वीरेन्द्र चंसौरिया जी, टीकमगढ़ (मप्र)
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
*बिषय- बरा*
*1*
बरा दई में लोर कें,
गोरों सों कडयात।
नोन,मिरच सें खाइये,
तबियत खुस हो जात।।
*2*
कच्ची पंगत बरा बिना,
होत अधूरी पाय।
सबई खौं नोने लगे,
एनइ मसके जाय।।
**
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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पंगत में मिलवैं बरा , सबकौ मन हरषाय ।
बडे़ शौंक सें खात हैं , करया खों ढिलआय ।।
माडे़ शक्कर दार घिउ , कढी़ बरा उर भात ।
उम्दा कालोंनी बना , खूब हूँक्कें खात ।।
बरा उर्द की दार के , होतइ भौत लजीज ।
पंगत या त्योहार की , मजेदार हैं चीज ।।
बरा तेल में काढ़ कें , देत मठा में बोर ।
फूल जात फिर खात हैं , दुपरै संजा भोर ।।
बरा घाइं गुरुदेव जी , सुजे देत ते खाल ।
चेला के माता - पिता , करवैं नहीं मलाल ।।
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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3-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#1#
बराबरी ना बरा की,बिन्जन बर अनमोल।
बरा खाँय समधी सुजन,गुड़ी पेट की खोल।।
#2#
ब्याव बरातें रुकत तीं,पैल बरा की छाँव।
तरें बरा के बैठ कें,बरा खांय सब गाँव।।
#3#
कच्ची पंगत बरा बिन,तनकौ नयीं सुहाय।
कड़ी बरा घी भात में,दार मिला कें खाय।।
#4#
बिन्जन बुन्देली बरा,बटै उरद की दार।
बरा बनाबे जो मिलै,बहू बड़ी हुशयार।।
#5#
नयी उरद की दार खों,बांटै चतुर खवास।
राइ बरा बिन आय ना,रव बन जाबै खास।।
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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4-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
1****
दऔ बुलउआ मैर कौ ,उर धोबें खां दार ।
दरबटना पै बाँट कें ,बरा बने भर थार ।।
2****
मोरा कौ लैकें मठा ,मैथी दऔ बघार ।
बरा बुजा दय रात में ,भोर भई ज्योनार ।।
3****
बुनदेली व्यंजन बरा ,खात शौंकिया लोग ।
छुकौ,हींग मैथी मठा ,मिला देत है योग ।।
4****
मडवा पंगत कौ मजा ,हम नइं भूलें यार ।
बरा कढी सह भात के ,फुलका मिलतइ चार ।।
5****
ग्यारस उर बरसात पै ,बनवें बरा जरूर ।
सबरे घर भर बैठकें ,मिल खातइ भरपूर ।।
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
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5-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
💐बरा पै बुन्देली दोहा💐
बूरा सें खाओ बरा,
देव खुशी हो जात।
जौ ऐसौ पकवान है,
रोजउ नइ मिल पात।।
ऐसौ मारौ उनन ने,
भई बरा करयाइ।
सूजी फूली बरा सी,
थाने रपट लिखाइ।।
मड़वा पै अक्सर बनत,
कड़ी बरा उर भात।
कालौनी में घी डरत,
फिर बूरे सें खात।।
बरा भैंस बामुन पड़ा,
भींजत है जब दार।
खुश होतइ जल देख कें,
जल जीवन कौ सार।।
बरा मजा देतइ जबै,
चडवै तनक खटास।
बूरे के सँगै जमत,
ई की महफ़िल खास।।
*** ***
🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
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6-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
पांच दोहा बरा
1
बुंदेली व्यंजन बरा,औसर काज बनांय।
छप्पन भोजन छोड कें,कड़ी भात सें खांय।
2
बरा बनें बरसात खों,बटयारे घर आंय।
कड़ी दार उर भात संग,बरा प्रेंम सें खांय।
3
बरा बिना न ब्याह सौ,न कच्ची पंगत मोह।
दार कड़ी व भात संग,बरा सें पातर सोह।।
4
परसी रोटी समूंदी,परस दय बरा चार।
समधी जेवन बैठ गए,खाय मसक कें यार।
5
बरा बूरौ दोइ मिलें ,बड़े चाव सें खांय।
नज़रें जीकी दै परें, मन ही मन ललचांय।
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
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7-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
बनी समूंदी देख कें, खावे खों ललचांय/
दाल भात पापर कढी़, बरा मसक कें खांय//
बुंदेली पकवान की, का कइ जावे बात/
शक्कर संगे बे बरा, खा-खा नईं अघात//
मडवा के दिन व्याव में, कढी़ बरा उर भात/
डार कचरियां घी मिला, बूरो संगे खात//
बुंदेली साहित्य सें, रस में भर भर डूब/
कवियन खों प्यारे लगे, बरा खुआ रय खूब//
एक दिना बन जान दो, बरा कढी़ उर भात/
सब कवियन खों नौत के,दे दो जा सौगात//
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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08-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल, (म.प्र.)
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल
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09-- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
बुंदेली दोहे विषय बरा
कड़ी भात फुलका बरा,उर देवलन की दार।
होत हरे मड़वा तरें,मन भावन ज्योनार।।
दसरव चाय दिबाइ हो,फाग होय बरसात।
बनबें हर घर परब पै, कड़ी बरा उर भात।।
दूद मलीदा कौ सबइ, देवता भोग लगात।
पै दिमान हरदौल खों,कोरे बरा पुसात।।
बूरे के संगै बरा ,पा लय पूरे चार।
का गत हुइयै पेट की,जा दइ खबर बिसार।।
बरा बरी की कोउ कां, बराबरी कर पात।
बरा बरी कौ नाव तौ,सुनतन मों पनयात।।
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
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10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
**बिषय-बरा*
05-04-2021
💐💐💐💐💐
1-
न्यौतै जाबें जौन कैं,
ठूंस ठूंस कैं पांय।
बेर-बेर मांगत बरा,
और कछु नईं खांय।
2-
बरा की नहिं बराबरी,
बरा समान न कोय।
का कानें ऊ भोज की,
भात-कड़ी संग होय।
3-
परमा तिथि बनबै बरा,
बना कलौजी लेत।
गोदन पूजत पैल हैं,
पाछें सबखौं देत।
4-
चार खाय सूके बरा,
चार तींते पाये।
तिसना में तौ पा लये,
पाछुं पेट पिराये।
5-
काऊ कैं नहिं होत है,
बिना बरा कैं ब्याव।
मंडवा नैचें बैठकें,
कहत कै बरा ल्याव।
****
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
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11 -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
उरदा मूँग मिलाय के,सिल बट्टा पे धाव।
भोतइ नोने से बरा, मही मिला के खाव।
पुरी दरूरा संग में,पापर बरा बनाय।
पंगत में पंडत छटो, मांग मांग के खाय।
बरा करारे बन गए, चाची चाट चपेट।
चाचा की चम्मच चपल, चटनी बरा लपेट।
बिन दूल्हा बारात के,बिन पानी सब सून।
बिना बरा पंगत लगे,रूखी रोटी चून।
-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
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12- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
जय बुंदेली साहित्य समूह
🌹विषय - बरा 🌹
बुन्देलन की थार में, बुन्देली पकवान
बरा नाम जीने सुनो, पढ़ते बरा पुरान
जिज्जी आई दूर से, बरा बने मनयाय
मैं पिया में बीद गई, सौत बरा ले जाय
बरा बढ़ाई जो करे, सो मन के खा पाय
सूको, फूलो मठा को, के शक्कर को खाय
✍️- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
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13- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
जय बुन्देली साहित्य समूह
🌸दोहा बुन्देली🌸
बिषय- बरा (खानेबाला)
1- कड़ी बरा और भात सग
चुपरे फुलका चार
पैला पंगत होत ती
घी शक्कर दये डार
2-घर में आये पावने
बरा कड़ी और भात
रूच के जे भोजन करै
बड़े मजे से खात
3- बरा कड़ी और पनफरा
मिरचन मुरका कूट।
सतुवा डुबरी जे लटा
गये कर्म अब फूट।।
4-मिर्च मशाले तेल से
अब तो पेट भरा।
बफा सफा कर पेट खो
अब तो पेट बरा।।
5-निगतन में हापी भरे
होये न करा धरा।
बरा देह को तेज तप,
धरो शरीर मरा।।
**
-✍️- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
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14- संजय श्रीवास्तव,मबई, हाल दिल्ली (म.प्र.)
बुंदेली व्यंजन *बरा* पर दोहे
*१*
गोरे-नारे बरन में,
होरव जो बतकाव।
रत्ती भर हम बरे नहीं,
बरा धरो है नाव।।
*२*
बरा बनाये बुआ ने,
दये मठा में डार।
फूफा खों साता नहीं,
भगे चाँपकें चार।।
*३*
सूखे बरा मुरें नहीं,
तींते टैम लगायँ।
ब्याव-बरातन ऐइसें,
दही बरा मन भायँ।।
*४*
बातें दै-दै बब्बा ने,
बरा मसक दय आठ।
मनमानी मन की चली,
छूटे तन के ठाठ।।
***
संजय श्रीवास्तव, मवई
५/४/२१, दिल्ली,🌹
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15- वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
विषय -- बरा
----------------
कड़ी भात नौंनौ लगै,अगर बरा मिल जाय।
पातर पै फिर सांनकेँ,मजा आय जो खाय।।
कच्ची पंगत में मिलत,बरा कड़ी उर भात।
दार मिला फिर सांनकेँ,सबइ जनें हैं खात।।
बरा हमेशा खाइये,कड़ी भात में सान।
खुद भी खाओ सूट कें, संग खाँय मेहमान।।
कड़ी भात में सांनकेँ,चार बरा हम खात।
जब जब हमने खाय हैं,तब तब जागे रात।।
----------------स्वरचित--------------
वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया
-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
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16- - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
दोहे- विषय 'बरा'
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1 कालोनी जब बनत है,
कड़ी दार औ भात।
शक्करके संग ले बरा,
स्वाद रसीलो आत।।
2 कोरोना की मार में,
की खों बरा पुसात।
खाबे को रोटी नहीं,
खा रै रूखे भात।।
3 बरा नाम बो भूल गौ,
गोरी से बतयांय।
मार मार के सुजा दइ,
कहत बरा हम खांय।।
4 अब जा शहरीकरण में,
बरा बरत से जात।
मोड़ी मोड़ा आज तो,
बरगर पीजा खात।।
***
✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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17-राजेन्द यादव कुंवर ,कनेरा,
दिनांक = 05/04/2021
विषय = बरा
1. सुनत बरा की बात खों, मों में पानी आय।
लगत कबे मिल बैठ कें, सबके संगें खाय।।
2.कड़ी बरा के संग में, जब चांउर मिल जांय।
बिन दांतन के लोग भी, घुटीं दबा कें खांय।।
3. जितनी भी पकवान हैं, जे सबके सरताज।।
कडी महारानी बनी, और बरा महराज।।
-राजेन्द्र यादव "कुँवर"
कनेरा (बडा मलहरा)
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18--डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
बुन्देली - बरा
देवलन दार संग बरा,
कालौनी बना लेत !
शक्कर डारत सानकें!
भर- भर बक्टौ देत!!
बरा नौंनौ ना लगै!
जब तक नइँ खटयात्!!
रात बोजौ भोर खवै!
खूब मजा है आत!!
बरा खास पानी पियौ!
पेट डबरया जात !!
स्वादन नोंनों है लगै!
मसक मसक कें खात!!
कच्ची पंगत सुनतई!!
जात बरा है खान!!
दार भात संग मीढ़ कें!
होत स्वाद गुन गान !!
भौत दिनाँ से नईं बनें!
फूलन डारौ दार!!
नौनें वरा वनावनें!
मैं तौ खैहों चार!!
***
डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
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पटल समीक्षा
-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
🌹-आज की समीक्षा** *दिनांक -5-4-2021* 🌹
*समीक्षक- प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़* 👏
*बिषय-बरा, बुंदेली दोहा लेखन*
आज पटल पै *बरा बिषय पै बुंदेली में दोहा लेखन कर* पोस्ट करने हते। सभी जनन ने भौतई नौनी रचनाएं पटल पै रखीं। पढ़ने में भौतइ आनंद आ गऔ। सभई साथियन कों हार्दिक बधाई। समीक्षा में गल्तियां तौ हुईयै अकेलैं अपन सब जनै अपनौ जान कैं क्षमा सोई कर दैव।
आज सबसें पैला पटल पै ..
*(१) श्री अशोक पटसारिया नादान जी* ने बरन की धमाके दार बढ़वाई करी, नौनी लगी।
अक्सर, महफिल भूरा लगे,
पकवान खास हैं भात।
पढ़ मिलौनी दोहे पनै,
उर आनंद समात।।
बहुत बहुत बधाई जू...।
*2*- *श्री राजीव नामदेव "राना लिधौरी*-
अपन ने गागर में सागर भरबे कौ सार्थक प्रयास करो। बरा में दई लोर कें...वाह चिंतन तारीफ के काबिल है।
सराहनीय... बधाई हो।
*3*- *श्री सरस कुमार ,दोह खरगापुर* ने बुंदेली दोहन की खूबई बढ़वाई बगारी, नौनी लगी और मैं तौ जेई कै सकत कै देखत में छोटे लगत, घाव करत गंभीर।
*4*- *डॉ सुशील शर्मा, जी गाडरवाड़ा* से बरा की बढ़वाई में लिखत हैं कै-
चाची चाट चपेट... अद्वितीय और रोचक लगा। बधाई हो।
*5*- *श्री राज गोस्वामी जी* ने अपने दोहन में बरा की नौने ढंग सैं बढ़वाई करी।
सुनत बरा कौ नाव,
मौं में पानी आत।
बरा पै दोहा नौने लिखे,
भैया क्या है बात।
बधाई हो भैय्या जू.।।
*6*- *रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु* ने बुंदेली दोहा पेश करकें मजा बांध दव। दोहा बहुत बढ़िया लगे।
दार भात पापर कढ़ी,
सुन पानी भरयाऔ।
बरा की महिमा जो पढ़ी,
मन भारी ललचाऔ।।
बधाइयां भैयाजी...।
*7-श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा,* ने सुंदर बुंदेली दोहन के संगै अपनौ समदियानें जावे की हालफूल सोई दोहन में दिखाई.. नौनी लगी -।।
बहू खवास बांटत नहिं,
अब मिक्सी कौ दौर।
कजन अपन खौ मिलत हैं,
दाऊ बात है और। शानदार दोहन की जानदार बधाई..।
*8- हंसा श्रीवास्तव जी भोपाल* ने..
बरा के संगे बुंदली कौ खूब बढ़ाऔ मान।
एसई लेखन करत रऔ, येई में सबकी शान। हार्दिक शुभकामनाएं..।
*9*- *श्री प्रदीप खरे मंजुल* **टीकमगढ़* ने-
दोहा लिख दयै बरन पै,
आपई करियौ गौर।
नौनें होयै तौ गटक लियौ,
समझ बरन कौ कौर।।
*10* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष*
बुंदेली कौ अच्छौ प्रयोग भऔ। बरन की बढ़वाई सोई खूब करी। बधाई
नौनी करी बढ़बाई बरा की,
लगै कै कैसें खायें।
बीपी हाई में हटक रहे,
सुनकैं खूब लजायें।।
*11*- *श्री डी.पी. शुक्ल'सरस' जी*
बुंदेली में सनें बरा और भयै नौनें।
खायें इनखों बूढ़े बारे छौनें।।
आपके दोहन ने बुंदेली खौं भौतई गरिमा प्रदान करी। हार्दिक बधाई।
*12*- *श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया* ने बरा पातर में पाउनन के संग में खाबे कौ मजा बताऔ । दोहन में बरन की खूबी सोई खूब बताई। भैया खौ खूबई खूब बधाई...।
*13*- *श्री सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़*
अपन तौ भैया कमाल के दोहा रचे।
एक सैं बढ़कैं एक, सबई मन बसे।।
मोरा कौ लैकै मठा, मैथी दऔ बघार।
भौतई नौनौ लगो, आपकौ आभार।
*14*डां. रेणु श्रीवास्तव*
ई कोरोना काल में भये सबई बेहाल।
नौनौ करो बखान भये सबई कंगाल।।
बरन के संगै बर्तमान हालात कौ बढ़िया बखान करो। अपन की लेखनी खौं नमन करत और अपनी ओर सैं बधाई देत।
*15*- *श्री रामानंद पाठक..*
बरा बनावे के ओसर, जू नें खूब बताए।
बरा बूरौ दोई मिले, बड़े चाव सें खाए।
भैया ने बरन के संगे बुंदली रस की नौनी बरसात करी..अपन खौं बधाई।
*16*गुलाब सिंह यादव*
दोहा नौने भाऊ के, नौनी छोड़ी छाप।
बरा खौं लैकें लिख दयै, दोहा लाजवाब। बधाई हो आपको
*17*संजय श्रीवास्तव*
गोरे नारे बरन कौ, नौनौ लगो बतकाव।
बुआ हाथ कौ नहिं लगो, काये बरा बताव।
इस प्रकार सें आज पटल पर 18 साथियन ने आज दोहा पटल पै पोस्ट करे हैं। वाकई सभई ने एक से बढ़कर एक दोहा रचे और पोस्ट करे है।सभइ कौं बधाई। कजन की दार भूलें बिसरें अपनें कौनउं भैयन कौ नाव बिसर गऔ होय जू, तौ दोई हाथ जोर कैं क्षमा चाउत।
टेम सोई बिलात हो गऔ, अपन सब जनन सें बिदा चाउत। राम राम पौंचे।
✍️ *समीक्षक*
*प्रदीप खरे 'मंजुल'*
संपादक ,
साप्ताहिक त्रिकाल न्यूज, टीकमगढ़
पुरानी टेहरी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893417304
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सुनो ध्यान से आप सबअपनों से अपनी ही बात
खिलवायेंगे एक दिन बरा कड़ी उर दाल भात
----------------------------------------
पटल के सभी सम्मानीय कवि अभिनन्दन व प्रशंसा के पात्र हैं जो एक दूसरे के लेखन की सराहना करते हुये न केवल मार्गदर्शन दे रहे हैं बल्कि मनभावन शब्दों व संकेतों के माध्यम से प्रोत्साहित भी कर रहे हैं जो अभिनंदनीय और प्रशंसनीय है । यह पटल ऐसे ही संचालित होता रहे , यही अनुरोध है ।
आज भी अनेक सम्मानीय कवि महोदयों ने एक दूसरे को शब्दों / संकेतों के माध्यम से प्रोत्साहित करते हुये भविष्य के उत्साहित किया ।
पहले की तरह आज भी मैंने सभी सम्मानीय कवियों के दोहे पढ़े , समझे और उनसे बहुत कुछ सीखे ।
श्री अशोक पटसारिया जी के पांचों दोहे मन पसन्द रहे । सभी दोहे एक से बढ़कर एक रहे । दूसरा दोहा पढ़कर हंस भी लिया।
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श्री सरस कुमार जी ने बरा को बुंदेली पकवान बताया और मठा के फूले बरों की याद दिलाई ।
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श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु जी के सभी दोहों ने मन मोह लिया । आपके दोहे पढ़कर मुंह में पानी आने के साथ साथ भूख की भी अनुभूति होने लगी ।
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श्री राज गोस्वामी जी के दोहे बरा के महत्व पर केन्द्रित रहे जो सही है ।
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श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष जी के पाँचों दोहे पढ़कर आनंद आ गया । सभी दोहे मन मस्तिष्क में अंकित हुये ।
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श्री प्रदीप खरे मंजुल जी के द्वारा दोहे के माध्यम से कही गई यह बात अच्छी लगी कि बरा की बराबरी कोई भोज्य पदार्थ नहीं कर सकता ।उन्होंने यह भी हिदायत दी कि यदि ज्यादा खाये तो पेट दर्द का भी शिकार हो सकते हैं ।
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श्री जय हिंद सिंह जय हिंद जी के सभी दोहे ह्रदय को छूने में सफल रहे । सभी एक से बढ़कर एक दोहे उत्तरोत्तर बाहबाही पाने में सफल रहे ।
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श्री संजय श्रीवास्तव जी के सभी दोहे मजेदार लगे । दोहों को पढ़कर मन ही मन हंसने का अवसर मिला ।
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डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल ने लिखे दोहों के द्वारा कड़ी ,भात दाल ,बरा और शक्कर मिलाके बनें रसीले स्वाद की याद दिलाई । आपने एक बात और बताई जो सही है कि आज के मोड़ा मोड़ी बरा के स्थान पर बरगर ,पीजा खाने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं ।
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श्री राजीव नामदेव राणा जी ने अपने दोहों में मन की बात छीन ली । आपने लिखा कि यदि बरा नौंन मिर्च मिलाके खाया जाय तो तबियत खुश हो जाती है । यह भी सत्य है कि बरा बिना कच्ची पंगत अधूरी है ।
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डॉ. सुशील शर्मा जी ने अपने दोहों में बरा बनाने की विधि सहित बरा के महत्व और बरा के प्रति खाने बाले की नियत को उजागर किया ।
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श्री कल्याण दास साहू पोषक जी के सभी दोहे बेहतरीन लगे । सभी दोहे मन को हर्षित कर रहे हैं ।
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श्री D.P. Shukla ji बरा के संग बनी कालोनी की चर्चा के साथ साथ चार बरा खाने की तैयारी करवा रय ।
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बहिन हंसा श्रीवास्तव ने अपने दोहों में बरा को भोजन का राजा और थाल की आन बताया ।
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श्री राजेन्द्र यादव कुंवर ने अपने पहले दोहा में बरा की बात सुनते ही मुँह में पानी आ जाने की बात कही है । आपने यह भी सही कहा कि कड़ी ,बरा और चावल ऐसा भोजन है जिसे बिना दाँत बाले भी खा लेते हैं ।
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श्री सियाराम सर जी के सभी पांचों दोहे प्रभावशाली है । सभी दोहे मन मस्तिष्क में चल चित्र की तरह घूम गये ।
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श्री रामानन्द जी पाठक ने बरा को बुंदेली व्यंजन बताते हुये अपने दोहों में कहा कि लोग छप्पन भोजन छोड़कर कड़ी भात बरा खाते हैं । बरा बिना कच्ची पंगत नीरस लगती है ।
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वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
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😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
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