Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

यात्रा संस्मरण (बुंदेली)- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

*यात्रा संस्मरण-*
*‘‘बुन्देलखण्ड कौ वैष्णोदेवी धाम-हिंगलाज माता मंदिर गुफा घूरा’’* 

*-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’* दिनांक 14 अप्रैल 2021 कौ हमाय अग्रज वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षक श्री रामगोपाल रैकवार जू ,मित्र श्री विजय मेहरा जू लाइब्रेरियन जिला शासकीय पुस्तकालय टीकमगढ़, और वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रदीप खरे ‘मंजुल जू  और मैं राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ की चैकड़ी ने ‘ंिहंगलाज माता’ जू के दर्शन करवे और गुढ़ा के साहित्यकार श्री जयहिंद सिंह जयहिंद दाऊ से मिलवें के लाने कि जोजना तो भुंसरा 8 बजे टीकमगढ़ से कड़वें की बनाइती पै तनक झैल हो गइ हम ओरे टीकमगढ़ से साढे़ नो बजे लो कड़ पाय, सो जैसई हमओरे श्री विजय जी की कार से अंबेडकर चैराहे पे पौचे सो उतै बाबा साहेब अंबेडकर जू की मूर्ति पै कछु जने फूल, गजरा पैरा रयते काय से के आज 14 अप्रैल हती सो आज अंबेडकर जयंती हती सो हमओरन ने सोउ बाबा साहेब की मूर्ति के अगाउ अपनों मूंड झुकाऔ,उनै सम्मान दऔ और उने याद करत भये अगाउ अपनी यात्रा पै कड़ गये।
                 टीकमगढ़ से घूरा गाँव 47 किलोमीटर की दूरी पै है सो हम आराम से हँसंी-मजाक करते भये ग्यारह बजे लो उतै घ्ूारा गाँव पौच गये सो सोसी के पैला प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जयहिंद ंिसह ‘जयहिंद’ दाउ खौं लुबा ले सो घूरा में उनके क्लीनिक पै पौच गये, सो दाउ हमऔरन खौ देख के भाइ खुस भये कायसे कें दाउ बिलात दिना के हमऔरन खौं बुला रयते और उनने बरा बना के धरे हते सो हमने कइ के चलो हिंगालत माता के दरसन करवे चले सो पैला तो उनने जल पियाओ फिर समोसा आदि कौ नाश्ता कराओं फिर हम औरे निकर परे माता के दर्शन करवे के लाने हिंगलाज माता कौ मंदिर दूरइ से भौत नोनो लगत है टोरिया के ऊपर गुफा में देवी जी विराजमान है एक नऔं मंदिर नैचे सोउ बना दओ गओ है। मंदिर के बगल में ही एक तला है जो कै तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैलो है। सो तालाब और टोरिया से देखके भौत नोनो प्राकृतिक दृष्य लगो। नैंचै माता के दर्शन करे  परसाद चड़ाऔ फिर कई के ऊपर गुफा में चलने है सो हमाय हात पाँव ढीले पर गये कायसे के हम तनकइ भी  पैदल नइ निग पाउत हमाइ हार्ट की बायपास सर्जरी सन् 2012 में हो चुकी हती सो हमाय भाईसाहब कन लगे के अरे जा तो तनकइ दूर पै है सौ तो जीना है  हरां-हरां आराम से चढ़ जाओ। और सासउ नीचै से देखवे के लिंगाइ लगत है वो तो जब चढ़ों जब पतौ परत है। हमने दम बांदी सो जैसइ जीना चढ़ लगे सो हमाय गोडे चिकन लगे ऐन ततूरी पररइती अप्रैल की भरी दुपरिया साढे ग्यारह बजे सूरज बिल्कुल सीदो मूंड पै पररऔ तो ऊपरे से तेज घामो लग रऔ तो और नैचे गोड़े चिक रयते ऐसो जैसे तैसे पचासक जीना चढ़े हुइए कै ततूरी के मारे बिलकुल गोडे नैचे नई धर पा रयते कउ पेड़ अरू छाया तक नइ हती तनक अगाई कछु छेवले पे पेड़न की तन-तन छाया लगी सो हम, जयहिंद ंिसंह दाउ और प्रदीप खरे जू उतई बैठ गय और सुसतान लगेे। उते विजय मेहरा जू और रामगोपाल जू दोउ जने मोजा पैरे हते तो घुरवा की नाई दौर के ऊपर गुफा लो पौच गये और आवाज देके पूछी कै काय रूक गये अब तो तनककइ रै गऔ, हमने कइ कै भौत ततूरी लग रई गोडे नइ धर पा रय इतइ बैठ के देवी जू कौ मंत्र सौ दार पड़ लेत, अब तो अगाउ बिल्कुल गोड़े नइ धर पा रय। 
सो विजय मेहरा जू ने अपने और श्री रामगोपाल रैकवार जू के अपने मोजे लयाके मोय और प्रदीन भाई साहब खांे दय और जयहिंद दाउ और खुद के लाने उतइ सें छेवले के कछु पत्ता तोर के उनकी चप्पल जैसी बना के अपने दोइ गोडन में बांद लइ जब हमने मोजे पैरे और अगाउ चउलवे के लाने पाँव धरो तो तनक ततूरी से राहत मिली सो जैसे तैसे उपर गुफा के द्वार लो पौचइ गये। उतै तनक सुस्तान लगे तो गुफा को तनक सो मौ देख के और बताई कै इतै नेउर-नेउर कै चलने है सो प्रदीप भाई साहब कि अडिया ढिलया गई भौत घबरा गये कन लगे रन दो  हम तौ जा सोस रय कै हम इतै तक आ कैसे गये अब हम इतइ सें माता के पाँव पर लेत है हम भीतर नइ जा पैहे जैसे तैसे हमओरन कइ कै हम चल रय अगउ कायसें कै रामगोपाल जी एवं विजय मेहरा जी तो पैला भी इतै एक दार आ चुके हते सो उन दोइ जनन खौ किते का है सब पतो है पुजारी जू सोउ संगे है।
                  सो हिम्मत करके जैसे तैसे उ गुफा में भीतर पिडे कै तनकइ दूर पे वा गुफा इतैक संकरी हो गयी कि बैठ के अगाउ जाने परो फिर एक जागा तो एल आकर में खतरनाक मोड़ हतो तनक सी चैड़ाइ हती सो भाई साब कन चले का हो उतर तो जेहे पै वापिस चढ पेहे के नइ? सो बडी मुश्किल से उतरके गुफा लो भीतर पौछे सो उते सीदे ठाड़े होवे के जाने तनक गुजाइस हती सो हम ओरे उतइ ठाड़े हो गये उतै पै निचाट अंदियारों हतो कछु दिखाइतइ नइ हतो वो तो हमऔरन ने अपने अपने मोबाइल की टार्च जला लइती उतइ गुफा के एक तरफ तनक सी एक चुल और दिखा रइ हती जीके बारे में पुजारी जू ने बताई कै इतइ पै हमारी पूर्वज पर दादी भीतर चली गइती सो तीन मइना बाद बायरे कड़ी ती सो उनने बताइती के इतेै भीतरे तो एक पूरो नगर बसो है।
गुफा के भीतरे एक पथरा पे दूसरे पथरा सें चोट करो तो ऐसी आवाज कडत है कै जैसे हम लोहे पर चोट कर रहे है।
(चित्र-आद्भुत लोह जैसी आवाज करनू वाला पथरा )
                पुजारी जू ने हिंगलाज माता कै बारे में एक कहानी सुनाई कै भौत साल पैला एक लखेरन जो कै चूरियाँ बेचवे कौ काम करत्ती वा इ गुफा के नैचे एक तला है उतै से करकेे-करकें घूरा गाँव से पाली गाँव जो कै इतै से पाँच किलोमीटर दूरी पै है उतै जा रइती कै उतै अचानक से हिंगलाज माता जी ने एक महिला को वेश बनाके लखेरन के लिंगा आकै  कन लगी कै मोय सोउ चुरियाँ पैरने है हमें भी चुरियाँ पैरा दो। तब उ लखेरन ने साधारण महिला समजके उकेे एक हात में चूड़ी पेरा दयी फिर दूसरे हात में चूड़ी पैरा दइ तब महिला ने तीसरौ हात अगाउ कर दओ सो लखेरन घबराके उतै भगन लगी तब महिला ने कइ कै घबराओं नइं हम तुमे ऐन पइसा देहंे। इ तरां से लखेरन ने हिंगलाज माता के चारों हातन में चुरियाँ पैरा दयी तो माता बोली तुम थनक इतइ रुकों हम पइसा लेके आत हैं तब हिंगलाज माता के पछाइ-पछाइ वो लखेरन सोइ उनके संगे गुफा में अंदर पिड़ गयी उतै देखौ तो एक पूरा नगर बसौ हतो। अब हिंगलाज माता ने उ लखेरन को लभगभ तीन महीने तक ओइ गुफा में अंदरइ रखौ। उतै गाँव में इ लखेरन को भौत ढूँढौं गऔ पै वा नइं मिली सो थककै गाँववालन से सोचा कै लखेरन इ तला में गिर के मर गइ हुइए।
             उतै तीन महीने बाद हिंगलाज माता के उस लखेरन को गुफा से बाहर काड के ओइ जागां पै ले आइ जितै उननेे चूरियाँ पेरी हती और फिर लखेरन कौं चेतावनी दइ कै कौनउ से हमाय इ गुप्त स्थान के बारे में कभउ नइं कइयो, लेकिन लखेरन कछु दिना तो शांत रइ लेकिन एक दिना उने अपने घरवारे कांै सारी किसा बता दयी। फिर का हतो कछु दिना बादइ उ लखेरन की मृत्यु हो गइ। बाद में गाँव के लोगन ने उ गुफा तक जाके उ गुप्त नगर की खोज करी लेकिन उ गुप्तनगर कौ द्वार एक चुल में बंद दिखाइ परो केवल गुफा ही दिखाई दइ जितै देवी माँ की पूजा करी जात है। आज भी जो रहस्य बनौ भऔ है।
              इतरां से हमें माता ंिहंगलाज के जन्म की किसा पता परी। तनक देर उतइ गुफा के बायरे कड़ के आराम करो फिर नैंचे उतर गये। ऐसो सुनो जात है कैं ंिहगलाज माता के गिने चुने मंंिदर ही है इनकौं एक भौत प्रसिद्ध मंिदर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है उतै बिल्कुल वैष्णदेवी जी के जेसइ गुफा में माता विराज मान है उने उतै हिंगला माता सोउ कऔ जात है एक मंदिर अपने भारत में म.प्र. के छिन्डवाड़ा जिले में अम्बाड़ा में स्थित है। इसी प्रकार ये एक मंदिर टीकमगढ़ जिले के पलेरा तहसील के घूरा गाँव में है जितै हम ओरे आज दर्शन करवे आये हैं सासउ दर्शन करके भौत आनंद आ गया।
          माता के दर्शन करके हम सबइ जने जयंिहंद सिंह दाऊ के निवास पर गुढा पाली गये सो पैला तो दाउ से खूब गीत सुने, उनके विदाई गीत और लोकगीतन की का कने सुनके भौतइ आनंद आ गऔ। दाउ कौ गरौ सोउ भोत नोनो है बुलंद आवाज में मिसरी कैसी बुंदेली के गीत सुनके हिंगलाज माता के  जीना चढ़के की सबरी थकान मानों मिट गय हो। फिर जयहिंद दाउ ने भौत प्रैम से कच्चों ंभोजन कराऔ उमें बरा चाउर, खीर राइतों अर घी में चुपरी रोटी दार, भटा की सब्जी, लडुवा, खाके आत्मा तृप्त हो गयी कब पाँच बज गय पतोइ नइ परो। अब हम लोगन ने दाउ खों नौने भोजन और स्वागत सत्कार के लाने भौत-भौत धन्यबाद दऔं और घर खौं वापिस लौट गये लौट के हजूरीनगर में श्री प्रदीप खरे जू के ढाबे पर हम ओरन ने चाय कौ आनंद लऔ और अपने घरे सआनंद वापिस आ गये।
        इ तरां सें माता के दरवाज के अपनी हाजिरी दे आये। लेकिन उतै पे जा देख के तनक दुख भऔं के जौ इस्तान और अबे लो जाने काय उपेक्षित है जबकि जो तनक से प्रयास करे सेंइ एक भौत नोनो पर्याटक बन सकत है। जन प्रतिनिधियन खां और इते के प्रशासन कौं इतै के विकास के लाने कछु सोचवो चइए। जीना खौं टीन सेड से कवर करवों चइए तथा पानी कि व्यवस्था करनी चइए। इतै पर्याटन की भौत संभावनाएँ हैं
*‘‘जय हिंगलाज मइया’’*
###
*-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
  अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
  जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
                                E Mail-   ranalidhori@gmail.com
    Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: