मौं फुलाबौ
मौ फुलाबौ
(बुंदेली काव्य संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
एवं मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक ११-०४-२०२२
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-४७२००१
मोबाइल-९८९३५२०९६५
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
3- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
5-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
6-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
07-राज गोस्वामी, दतिया (म.प्र.)
08-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
09-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
10- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
11- गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
12- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
13- संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
14- वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.)
15- लखन लाल सोनी,छतरपुर (म.प्र.)
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.)
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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मौं फुलाँय केकइ फिरी ,
दशरथ जी हैरान ।
जीवौ मुश्किल हो गयौ ,
बचे न उनके प्रान ।।
***
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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3- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
तनक-तनक-सी बात पै,
मौ जो लेत फुलाय।
ऐसै विकट सुभाव कौ,
कोऊ नईं सुहाय।।
***
रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मौलिक-स्वरचित।
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4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#रविवार#बिशैष लेखन बुन्देली#
#बिषय... मौ फुलाबौ#
*************************
#बुन्देली गीत गारी#
मौ फुलाबौ और चलाबौ नैंयाँ,गोरी नौने ढंग।
सुनकें सब रै जाबें दंग।।
#1#
देखत पुरा मुहल्ला बारे।बातें करबे करें इशारे।
अपने मौ पै डारें तारे।
सोचत देखत की बहु साजी,पर लच्छन की तंग।सुनकें सब.....
#2#
सास पै कुत्ता सी दर्राबे।ससुर खों पूंछत नैंयाँ खाबे।
लगी रय खुदखों रोज सजाबे।
तदोई बंश लजा दय ऊने,मिलो ना कौं सत्संग।सुनकेंसब......
#3#
मौ में ऊमर जैसै ठूंसै।चैरा घूँघट मेंखों घूँसै।
मो पै नागिन जैसी फूँसै।
भरी तलैया पथरा मारें जैसैं उठै तरंग।सुनकें सब.......
#4#
जबसें चली गयी है नंद।हो गय अब पूरे आनंद।
टैरै जर जर कें जयहिन्द।
चाल चलत में लेत लहरियां, जैसें उड़ै पतंग।सुनकें सब........
***
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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5-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
शिक्षक ज्ञानी होत है ,
सब पर देता ध्यान ।
मौ फुलांय वे ही फिरत ,
जिनको नइयां ज्ञान।।
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
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6-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
💐मौं फुलाबो💐
मौं फुलांय बैठे कछू,
कछू बिक़ट नाराज़।
जिनके अपने छींन लय,
कौरौना ने आज।।
*
मौं फुलांय बैठी बहू,
करत रात दिन काम।
तौउ नदारौ नइ इतै,
तनक नहीं आराम।।
*
मौं फुलांय बैठी बहू,
सास टोंचना देत।
चार साल भय व्याव खों,
काय फरौ नई खेत।।
*
मौं फुलांय की कौ भलौ,
करौ झमक कें काम।
चुगली के बिन सास खों,
नइ मिलतइ आराम।।
*
हँसबो औ मौं फुलावौ,
दोइ संग नइ होत।
कै घर में रै अंधेरौ,
कै फिर जलहै जोत।।
****
🙏🏾🍁🙏🏾🍁🙏🏾
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
7-राज गोस्वामी, दतिया
खूबइ तौ खाए है हराम के पुआ ।
फिर रए हौ काए अब फुलाऐ गलसुआ ।।
अपनेइ नहि सुनतइ अब
देख मुस्करात ।
कै कै के तिलीलिली
मौढा चेटात ।।
लुट गव है ददखानौ खेल लव जुआ । फिर रए हौ काए अब फुलाऐ गलसुआ ।।
लमछर्री देत कभउ
कभऔ सिकुड जात ।
बात करत गोलमोल
तुर्त पलट जात ।।
चली चाल ऐसी ज्यो चलत केचुआ । फिर रए हौ काए अब फुलाऐ गलसुआ ।
छोडो सब उल्लपन
करो भले काम ।
गारी ना देय कोउ
लै लै कै नाम ।।
छुप छुप के मारे कइ मसक टेटुआ । फिर रए हौ काए अब
फुलाऐ गलसुआ ।।
***
-राज गोस्वामी , दतिया मप्र
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8-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
एक दोहा.
मौं फुलांय भर सांस खों,
गुब्बारे में आज।
बिटिया रानी बेंचती,
बचा-बचा कें लाज।।
******
बिषय-मौं फुलांय.
चौकडिया.
फिरती, मौं फुलांय घरवाली,
संवरे नईं संवारी।
का चाहें है जान न पा रय,
भकुरी भकुरी भारी।
भौत धरे पर मांग बढा रइ,
गानौ उन्ना सारी।
करें 'इंदु' ईसुरी भी हारे,
ऐसी जिद में नारी।।
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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9-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
तर्ज..बूंदा लै गई मछरिया...
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*बिषय.. मौ फुलाय* 💐
11-04-2021💐
*प्रदीप खरे मंजुल*
💐💐💐💐💐💐💐
जो मांगौ सो लियान दें,
सुन लो गोरी हमार।
भकुरी ना नौनी लगौ,
उठौ करौ सिंगार।
मौ फुलाव न मौरी, महारानी....।।
1-
खिलखिलात नौनी लगैं,
मौ फुलात बेकार।
टोरत धागा प्रेम कौ,
कछू न निकरत सार।
मौ फुलाय न.....।।
2-
गुइयां नौनी जब लगै,
घड़ी-घड़ी मुसकाय।
मौ फुलाय जब लौ रबै,
तब लौ नईं पुसाय।
मौ फुलाय न.....।
3-
धुतिया नइ गौरी धना,
मौसें रही मंगाय।
करयाई नाईं हमें,
बैठी मुंह फुलाय।
मौ फुलाय न......।
4-
मुसका दो सब भूल कैं,
भकुरी अब न नहिं राऔ।
मौ भकुरौ नहिं रान दो,
गीत प्रेम के गाऔ।
***
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
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10- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
शीर्षक - जीवन से हार न मानो
..................................
जीवन से हार न मानो
न बैठो मौ फुला के
विपत्ति को नाम है जीवन
कब लो रहो लुका के
राजा हरिचन्द बचे नइया
का का विपत गुजारी
पांडव पे आई गिरानी
राज द्रौपदी हारी
खुद पे करो भरोसो तुम
आत्मविश्वास बढ़ाओ
मन में ठानो लक्ष्य अर्जुन सो
बढ़ो और लक्ष्य पाओ
सुख दुःख जीवन के
सब संसाधन
हिलमिल रहो घर बाहर
सुखमय होजे जीवन
न रुको खाई देख
पूरो मलवा डारो
तनक मनक में डरने नइया
केवल लक्ष्य निहारो ।।
***
- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
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11- गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा,टीकमगढ़
बिषय मौ फुलाना/फुलावौ
*1*
मौ फुलावौ न सटे,
मसको न तुम सान।
रावण भी विद्धान था,
मन था अभिमान।।
*2*
बेटा बिगरत कुसंग में,
नहीं फुलाना गाल।
न्यारे खो मचले फिरे,
खाटी खे हो काल।।
***
-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ' ,लखौरा (टीकमगढ़)
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12- - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
दोहे- मुंह फुलाना
✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1-मुंह फुलाय बैठी बहू,
कितना करुं मैं काम।
इस घर में इज्जत नहीं,
होती हूँ बदनाम।।
2-कितना भी आदर करो,
अतिथि गणों का भाइ।
मुंह फुलाय वे बैठ के,
करते सदा बुराइ।।
***
✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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13-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
तीन दोहे
विषय- - *फुलाना*
*१*
गाल फुलाकेँ बैठ गयी,
बिटिया रानी आज।
कत, हम कचरा से लगें,
भइया हैं सरताज।।
*2*
फूँकना सो फूल जात,
सुन-सुन कें बड़वाइ।
जो कउँ साँची कै धरी,
तुरतइं धरी लराइ।।
*३*
फुला-फुलाकेँ खा रहे,
मक्खन और मलाई।
केवल तलवा चाट कें,
अपनी दाल गलाई।।
*४*
राई जैसी बात पे,
फूफा मौं फुलाएं।
मना-मना सब हार गय,
फुआ पास न जाएं।।
***
संजय श्रीवास्तव,मवई
११/४/२१, मुम्बई🌹
मन कौ धन नइं होंन दें ,
कितनऊं तुम मौं फुलाव।
मर्यादा में नइं रनें ,
तौ घर सें भग जाव।।
*2*
अगर रनें है ई घरै ,
तौ मौ अपनौ पिचकाव।
रूखौ सूखौ जो मिलै ,
बड़े प्रेम सें खाव।।
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-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया (म.प्र.)
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15- लखन लाल सोनी, छतरपुर (म.प्र.)
रात दिना जो चले मुवाईल,
कोऊ तो पूछत नईयां।
तनक काऊ ने इनसे पूछी,
मौं फुलाऐ वे गुईयां।।
- लखन लाल सोनी, छतरपुर
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