ठलुआ
ठलुआ
(बुंदेली हास्य दोहा संकलन) ई बुक
संपादक -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 20-04-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
अनुक्रमणिका-
01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
03-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
04-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
05-रामानन्द पाठक,नैगुवा(म.प्र.)
06-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
07- प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष',टीकमगढ़ (म.प्र.)
08-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
09-डां सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
10- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
11- गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
12- संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
13- डी.पी. शुक्ला जी टीकमगढ़ (मप्र)
14- अभिनंदन गोइल, इंदौर (मध्यप्रदेश)
15- राज गोस्वामी, दतिया (मप्र)
16- लखन लाल सोनी, छतरपुर(मप्र)
पटल समीक्षा
21- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
**बुंदेली दोहे बिषय-"ठलुआ**
*१*
ठलुआई करते रये,
जै ठलुअन कौं काम।
लगुआ-भगुआ संग है,
साथ आलसीराम।।
*२*
ठलुआ बैठे पास में,
करवैं टाइमपास।
देवे बारौं राम है,
करवे वे तौ आस।।
***१९-४-२०२१
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
ठलुआ-भइया सूँट रय , जमकें मालइ-माल ।
मैंनत करवे वाय तौ , फिर रय हैं बेहाल ।।
अपने भारत देस में , ठलुआ कर रय मौंज ।
दूर महेरी में रहत , होत खीर में सौंज ।।
राजनीति में देखलो , ठलुआ लडुआ खात ।
रोड़-पती सें जल्द ही , करोड़-पति हो जात ।।
संकट छायौ देस पै , ठीक नहीं हालात ।
ऐसे में ठलुआ कछू , खूब बना रय हाँत ।।
ठलुआ-ठलुआ जुर मिले , करन लगे बतकाव ।
तुमनें भारत देस खों , चूना खूब लगाव ।।
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
3-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#1#
सबरे ठलुआ अवध के ,भरत भरत के कान।
भरत भरत जब थक गये,भरत करी पहचान।।
#2#
धंधा काम न चाकरी,जुआ शरावी नीच।
ठलुआ उनखों कात हैं,चलत नजर लें ख़ींच।।
#3#
बड़े तिकड़मी होत हैं,ठलुआ और दलाल।
बैठेंएक जगह जुरें,काटें अपनों हाल।।
#4#
आलस तामस कामुकी,गप्प सड़ाका काम।
ठलुआ जिनखों कात हैं चाहत सब आराम।।
#5#
ठलुआ ही रडुआ रहें,जिनकें ना परिवार।
विनती करें समाज सें,देव हमें आधार।।
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
4-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
ठलुआ कै रइ जा हमें,
हम ठलुअन में आत।
पत्रकार नेता नहीं,
फिर भी ठलुआ कात।।
ठलुआ फिर रय आजकल,
पड़े लिखे विद्वान।
वैशाखी नंदन कहें,
ठलुआ खा रय प्रान।।
पत्रकार नेता कवी,
सब ठलुअन में आत।
किस्मत जी की साथ दे,
बौ प्रसिद्ध हो जात।।
ठलुआ मिलते हर जगह,
अब दर्जन के भाव।
समय पास हो जात है,
उनकौ देख सुभाव।।
बॉउन तक पुंगा रहत,
साठ लगत सठयात।
आठ साल की जिंदगी,
तौ भी ठलुआ कात।।
***
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
5-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
1
ठलुवा तौ ठिल्लें करें,कछु ना करवें काम।
भोजन भरपेट कर,रात दिना आराम।।
2
काम न करें छिदाम कौ,साजौ साजौ चाऊत।
ठलुवा तौ दे सटल्लें,मेखें कइ विदाउत।।
3
ठलुवा ठोके ठांक कें, लगा लेय दरवार।
ठसक सें मूंछ ताव दे,फिर पडवै अखवार।।
4
ठलुवा सें ठिठकत रहें, घरै बाल गोपाल।
लाड प्यार उनें करें, देखत वे मोबाल।।
5
सज धज कें वे कड चले,घर की ना परवाह।
दाम टका हों गांठ में, नइयां कौनउं चाह।।
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
6-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
ढलुआ पंथी में कहीं, जायें और न आंय।
दो गज की दूरी रखें, मौं पे मास्क लगांय।।
ठलुआ ठेंकर सें बने, काय फिरत हो यार।
कछू काम खों रव करत, कछू करो व्यापार।।
ठलुवाई में हम गये, इक नेता के संग।
बने विधायक आप तो, बदलो उनको ढंग।।
ठलुआ गीरी में फिरे, बने रहे बेकार।
अन्न बढानों जब घरे, दिखो न कौनउ यार।।
ठलुआ सबरे जान कें, ठेंगा रहे दिखाय।
मान और सम्मान फिर, कितउं नहीं वे पाय।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
07- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
ठलुआ
पैल कभउं मिल जात ते,ठलुआ बस दो चार।
अब तौ ठेलमठेल हैं,भइ भौतइ भरमार।।
ठूंस ठूंस कें ठेंठरा, और ठड़ूला खांयं।
ठलुआ नइं कछु काम के,गैल गैल गर्रांयं।।
ठलुआ करबें ठलमसे,तन में तनक न ह्याव।
अपनों पेट न भर सकें,कत करवादो ब्याव।।
करत करत हैरान हैं,कैसें पलत लड़ेर।
ठलुआ हलुआ सूंटबें, दिन में छै छै बेर।।
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
08-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
*🙏🏻 *बिषय..ठलुआ*
💐💐💐💐💐💐💐
1-🌹
बेमन जन हो जात हैं,
ठलुआ सामू आत।
कांसें जे पबरे इतै,
अब कैसें जे जात।
2-🌹
बिना काज गैलन फिरें,
नायं-मायं बतियाय।
ठलुआ बेइ कहात हैं,
धेला नहीं कमाय।
3-🌹
ठलुआ ठलवाई करें,
जितै चाय ठस जात।
उल्टी सीधी हांकवें,
काऊ नहीं पुसात।
4-🌹
हाड़न खौ हरदी नहीं,
ठलुअन खौ लग पाय।
छाती होरा भूंजबै,
कुल खौं रहे लजाय।
5-🌹
मन मलीन रहबै सदा,
न मुख पै मुस्कान।
ठलुयै सब दुतकारबैं,
न पायै सम्मान।
***
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
09 -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
ठलुआ सो जीवन बनो,
घर में हेंगें बंद।
सुभे शाम बासन मजें,
फिर रोटी के फंद।।
ठलुआ से घर में रहो,
तभै बचे जे प्रान।
जा कोरोना काल में,
जीवन कठन कमान।।
ठलुआ जो शासन बनो,
बंद करे है कान।
दर दर रोगी घूम रए,
भर रय सब श्मशान।।
ठलुआ तो ठन ठन रहें,
नापत रहते गैल।
ठूँसत रोटी सोत हैं,
ज्यों गर्रानो बैल।।
***
-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
10- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
दोहा - ठलुआ
..............................
दोरन - दोरन बैठ गय ,
ठलुआ दो - दो - चार !
पढ़े - लिखे अनपढ़ सबइ ,
घूमत फिरत बजार !!
***
✍️- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
11- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
बुन्देली दोहा
बिषय ठलुआ
1-ठलुआ हलुआ खात है
मन में भरे उमंग
करता धरता रो रहै
उनको जीवन चंग
2-खून पसीना कररहै
सूके कूरा रात
मजा मोज ठलुआ करे
दै के झटका खात
****
-✍️- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
12- संजय श्रीवास्तव,मबई, हाल दिल्ली (म.प्र.)
*दोहे* विषय- *ठलुआ*
*१*
ठलुअन की ठलुआगिरी,
ठनक-ठनक ठनकाय।
ठसक,ठाँस ठस-ठस भरी,
ठौर- ठाँव ठसकाय।।
*२*
ठलुआ घूमत ठसक में,
काम-धाम सब छोड़।
समय कुचरबे की लगी,
इनके बीचाँ होड़।।
*३*
ठलुआ ठाँड़े चौक पे,
मइं सें देश चलायँ।
राजनीति अरु धरम पे,
थोथो ज्ञान बतायँ ।।
*४*
ठलुआ-ठलुआ जुर-मिले,
करें हास-परिहास।
गलन-गलन डोलत फिरत,
भूख लगे न प्यास।।
*५*
कोरोना के काल मे,
अंधी भइ सरकार।
रैली पे रैली करें,
ठलुअन की भरमार।।
***
संजय श्रीवास्तव, मवई
१९/४/२१, दिल्ली💐
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
13--डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
🌺बुन्देली दोहा 🌺
1
आज चुनावी खेत में!
ठलुवन लगो बजार!!
बिना माँस्क दूरी बनौ!
कोरोना गव हार!!
2
ईकी ऊकी बिगारै!
ठलुवा रैकें भौत!!
पउवा की जुगाड़ भरै!
आउत इनैं न मौत!!
3
ठलुवा सें ठलुवा मिलै!
जुर मिल करें उत्पात!!
ठकुर ठैंसइ विदैयकें!
रैजें मांगत खात!!
4
बैठ अथाई हाँककें!
ठलुवा समय वितात!!
रातन आउत घरै नईं!
घरैनी ढूंढ रात!!
5
काम करें नइं घर कौ!
औरन धरतइ खाट!!
ठलुवा लगेठइ फिरें!
कामइ देखें बाट!!
****
स्वरचित एवं मौलिक दोहे
डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
14-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
बुंदेली दोहा ( विषय - ठलुआ )
---------------------------------------
बातूनी ठलुआ करें , जीवौ आज हराम।
खबरन के दो पाट में,पिसवें खासौ- आम।।
ठलुआ चिरकुट चुटकया, देवें थोथौ ज्ञान।
अंड-गंड कौ नइं पतौ,करवें नीति बखान।।
व्हाट्सएप अरु फेस बुक,हो गय वेद पुरान।
सांच झूठ कौ कूत नइं ,ठलुअन की जे जान।।
चाय चैन हो देस में, चाहे विपद अपार।
ठलुआ पागें गुर-पुआ, करें व्यंग बौछार।।
कोरौना की मार है , विकट काल की चाल।
ठलुआ! ठलबाई तजौ, जान लेव निज हाल।।
मौलिक, स्वरचित -अभिनन्दन गोइल, इंदौर
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
15--राजगोस्वामी दतिया
1- ठलुअइ ठलुआ देश मेे या नेता दो चार ।
ठलुअइ हल्ला बोल के बना बिगारत बात ।।
2-ठलुआ जा संसार मे भात भात के होत ।
कछू आत है काम मे इतै उतै कछु रोत ।।
3-ठलुआ हलुआ खात है दै दै बाते मार ।
करत न कौनउ काम वे ना करतइ इनकार ।।
-राजगोस्वामी दतिया
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
16- लखन लाल सोनी, छतरपुर
🚩 नांय मांय की करत है,
"ठलुआ" दो की चार ।
🚩 जितै सुई को काम हो,
डारत वे तलवार ।।
🌹: लखन लाल सोनी, छतरपुर 🌹
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
17-शोभारामदाँगी नंदनवारा, टीकमगढ़
हैं ठलुआ जो ई समय,
वे बडे अभागे आंय ।
वो बैठे -बैठे खात रत,
नांय -मांय इठलांय ।।
ई कोरोना की बजय,
हो गय ठलुआ आज ।
कोरोना की बजय सैं,
सबखां लगरइ खाज ।।
-शोभारामदाँगी नंदनवारा, टीकमगढ़
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
✍️समीक्षा-
*190-आज की समीक्षा*
✍️- राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 19-4-2021
*बिषय- *ठलुआ (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *ठलुआ* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज भौत जनन ने दोहा रचे उर भौतई नोने दोहा रचे गये, पढझ कै मन खुश हो गव।सो जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो।
आज सबसें पैला *१*- *श्री अशोक पटसारिया 'नादान, लिधौरा* ने नोने रचे- वर्तमान हालात पर नौनो व्यंग्य करो है बधाई-
ठलुआ फिर रय आजकल,पड़े लिखे विद्वान।
वैशाखी नंदन कहें,ठलुआ खा रय प्रान।।
मिलते हर जगह,अब दर्जन के भाव।
समय पास हो जात है,उनकौ देख सुभाव।।
*२* *श्री संजय श्रीवास्तव जू मवई, दिल्ली जू* अपने दोहे में अलंकार का बहुत बढ़िया प्रयोग किया है- बधाई।
ठलुअन की ठलुआगिरी,ठनक-ठनक ठनकाय।
ठसक,ठाँस ठस-ठस भरी, ठौर- ठाँव ठसकाय।।
ठलुआ-ठलुआ जुर-मिले,करें हास-परिहास।
गलन-गलन डोलत फिरत,भूख लगे न प्यास।।
*३*- *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु जी.बडागांव झांसी* उप्र. कै रय कै ठलुअन खां कोउ मान सम्मान नइ देत है-
ठलुआ सबरे जान कें, ठेंगा रहे दिखाय।
मान और सम्मान फिर, कितउं नहीं वे पाय।।
*४*- *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा जिला टीकमगढ़* से ठलुअन की परिभाषा बता रय है-
धंधा काम न चाकरी,जुआ शरावी नीच।
ठलुआ उनखों कात हैं,चलत नजर लें ख़ींच।।
आलस तामस कामुकी,गप्प सड़ाका काम।
ठलुआ जिनखों कात हैं चाहत सब आराम।।
ई दोहा में यमख अलंकार कौ भौत नौनो प्रयोग करो है- बधाई दाऊ।
सबरे ठलुआ अवध के ,भरत भरत के कान।
भरत भरत जब थक गये,भरत करी पहचान।।
*५*- *श्री रामानन्द पाठक नन्द जू नैगुवां* ने भी अपने दोहे में अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है देखे-
ठलुवा ठोके ठांक कें, लगा लेय दरवार।
ठसक सें मूंछ ताव दे,फिर पडवै अखवार।।
ठलुवा सें ठिठकत रहें, घरै बाल गोपाल।
लाड प्यार उनें करें, देखत वे मोबाल।।
*६*- *श्री डी. पी. शुक्ल,, सरस जू* ने सोउ अलंकार से सजे भये दोहा रचे-
ठलुवा सें ठलुवा मिलै, जुर मिल करें उत्पात !
ठकुर ठैंसइ विदैयकें, रैजें मांगत खात !!
*७*- *श्री प्रदीप खरे,मंजुल, जू ,टीकमगढ़* से ठलुआन कौ स्वभाव बता रय है- बधाई नोने दोहा है।
बिना काज गैलन फिरें,नायं-मायं बतियाय।
ठलुआ बेइ कहात हैं, धेला नहीं कमाय।।
ठलुआ ठलवाई करें, जितै चाय ठस जात।
उल्टी सीधी हांकवें,काऊ नहीं पुसात।।
*८*- *श्री अभिनन्दन गोइल जू इंदौर* - जै ठलुआ करत का है बता रय है- आपने बढ़िया दोहे लिखे है। बधाई।
ठलुआ चिरकुट चुटकया, देवें थोथौ ज्ञान।
अंड-गंड कौ नइं पतौ,करवें नीति बखान।।
व्हाट्सएप अरु फेस बुक,हो गय वेद पुरान।
सांच झूठ कौ कूत नइं ,ठलुअन की जे जान।।
*९* - *श्री लखन लाल सोनी जू छतरपुर* से एक ही दोहा रचो है पै नोनो लगो। बधाई।
नांय मांय की करत है,"ठलुआ" दो की चार ।
जितै सुई को काम हो, डारत वे तलवार ।।
*१०*- *श्री सरस कुमार जू* ,दोह खरगापुर ने एक दोहा लिखौ है नोनो है-
दोरन - दोरन बैठ गय , ठलुआ दो - दो - चार !
पढ़े - लिखे अनपढ़ सबइ , घूमत फिरत बजार !!
*११*- *राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़* ठलुअन कौ काम बता रय कि वे करत है-
ठलुआई करते रये,जै ठलुअन कौं काम।
लगुआ-भगुआ संग है,साथ आलसीराम।।
ठलुआ बैठे पास में,करवैं टाइमपास।
देवे बारौं राम है,करवे वे तौ आस।।
*१२*- *श्री कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर* से लिखत है कै ठलुआ भी राजनीति में खूबइ माल बनाउत है-
ठलुआ-भइया सूँट रय , जमकें मालइ-माल ।
मैंनत करवे वाय तौ , फिर रय हैं बेहाल ।।
राजनीति में देखलो , ठलुआ लडुआ खात ।
रोड़-पती सें जल्द ही , करोड़-पति हो जात ।।
*१३*- *श्री शोभाराम दाँगी जू नदनवारा* ने भी दोहा लिखो है-
हैं ठलुआ जो ई समय, बडे अभागे आंय ।
बैठे -बैठे खात रत, नांय -मांय इठलांय ।।
*१४* *डॉ सुशील शर्मा जू*, गाडरवारा - अबै के हालात पे सटीक लिखत है-बधाई।
ठलुआ सो जीवन बनो,घर में हेंगें बंद।
सुभे शाम बासन मजें,फिर रोटी के फंद।।
ठलुआ से घर में रहो,तभै बचे जे प्रान।
जा कोरोना काल में, जीवन कठन कमान।।
*१५*- *श्री राजगोस्वामी दतिया* से बिल्कुल सई कै रय। बधाई
ठलुआ हलुआ खात है दै दै बाते मार ।
करत न कौनउ काम वे ना करतइ इनकार ।।
*१६*- *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष जू टीकमगढ़* ने भौत नौने दोहा अलंकार से सजे भये रचे। बधाई।
पैल कभउं मिल जात ते,ठलुआ बस दो चार।
अब तौ ठेलमठेल हैं,भइ भौतइ भरमार।।
ठूंस ठूंस कें ठेंठरा, और ठड़ूला खांयं।
ठलुआ नइं कछु काम के,गैल गैल गर्रांयं।।
ठलुआ करबें ठलमसे,तन में तनक न ह्याव।
अपनों पेट न भर सकें,कत करवादो ब्याव।।
*१७*- *श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखोरा* से लिख रय कै- ठलुआ मौज कर रय-
खून पसीना कर रये , सूके कूरा रात।
मजा मोज ठलुआ करे,दै के झटका खात ।।
ई तरां सें आज पटल पै १७ कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से ठलुअन खौं समर्पित करे है। पढ़ के आनंद आ गया आज अनेक साथियों ने अपने दोहों में *अलंकारों का भौत नोनो प्रयोग करो है।* उमदा दोहा रचे है निश्चित ही आज कुछ दोहे कालजयी रचे गये है। बुंदेली दोहे के इतिहास में ये दोहे अपना स्थान जरुर बना लेंगे ऐसा मुझे विस्वास है। सभी दोहाकारों को बधाई।
*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*
*समीक्षक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',
टीकमगढ़ (मप्र)*
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़*
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें