Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

बुंदेलखंड की वैष्णो देवी जी-हिंगलाज माता, घूरा,(पलेरा) जिला टीकमगढ़ मप्र शोध आलेख- राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़ (मप्र)


 ‘‘बुन्देलखण्ड की वैष्णो देवी -हिंगलाज माता मंदिर गुफा’’ 

-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
चित्र- हिंगलाज माता ’घूरा’ टीकमगढ़ (मप्र)

भारत ही नहीं वरन् समूचे विश्व में जम्मू की वैष्णो देवी जी के मंदिर एवं गुफा की महिमा बहुत निराली है। लाखों दर्शनार्थी यहाँ हर साल माँ में दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। इसी प्रकार से माता का एक रूप जिन्हें यहाँ के क्षेत्रवासी ‘हिंगलाज माता’ कहते है ये टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से मात्र 47 किलोमीटर की दूरी पर पलेरा तहसील में एक छोटे से गाँव ‘घूरा’ में एक गुफा में विराजमान हैं। यहाँ पर गुफा में माता के दर्शन करने पर ऐसा लगता है कि मानो हम माता वैष्णो देवी के दरवार में आ गये।

             खोज की तो ज्ञात हुआ कि सारे विश्व में हिंगलाज माता के गिने चुने ही मंदिर है। जिसमें सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिर पाकिस्तान के ‘ब्लूचिस्तान’ प्र्रांत में  हिंगोर नदी के किनारे पर एक हिंगलाज माता का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर यह मंदिर इसलिए विशेष है के यह हिन्दू देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। 

चित्र-पाकिस्तान के ‘ब्लूचिस्तान’ 
यहाँ पर स्थानीय लोग ‘हिंगलाज’ या हिंगुला’ देवी भी कहते है इस मंदिर को नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर पाकिस्तान का हिन्दूओं में सबसे बड़ा आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

भारत में कुछ मंदिर ही हिंगलाज माता के है जिनमें प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश के छिन्डवाड़ा जिले में जो कि जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर उमरेठ थाना अंतर्गत ग्राम ‘अम्बाड़ा’ में स्थित है। जो कि बहुत प्रसिद्ध है। इस मंंिदर की विशेषता है कि यहाँ पर हिन्दूओं के साथ-साथ बहुत संख्या में मुस्लिम परिवार भी दर्शन करने नवरात्रि में आते हैं।
(चित्र-हिंगलाज माता मंदिर घूरा,पलेरी, टीकमगढ़)

टीकमगढ़
जिला मुख्यालय से पलेरा तहसील के ग्राम ‘घूरा’ में एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर भी बुन्देलखण्ड में आस्था का केन्द्र बना हुआ है जहाँ पर टीकमगढ़़ छतरपुर, दतिया झाँसी, ग्वालियर,सागर दमोह वं जबलपुर आदि जिलों से दर्शनार्थी आते रहते हैं यहाँ पर नवरात्रि पर मेला लगता है तब यहाँ दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग आते हंै और ंअपनी मनंौती माँगते है। ऐसा कहा जाता अनेक सूनी गोद हिंगलाज माता की कृपा से भरी है।

माता हिंगलाज के विषय में खोज करने पर हमारे धार्मिक ग्रंथों में विशेषतः ‘‘ब्रम्हवैवर्त पुराण’’ उल्लेख मिलता हैं कि जो भी भक्त माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है उसे अपने पूर्व जन्म के कर्मो का फल नहीं भोगना पड़ता है। उसके दंड माफ हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि एक बार जब परशुराम जी द्वारा इक्कीस बार क्षत्रियों का अंत किया गया तो कुछ क्षत्रियों ने माता  ंिहगलाज माता से प्राण रक्षा की प्रार्थना की। माता ने शरणागत क्षत्रियों का महाक्षत्रिय बना दिया था। जिसके कारण परसुराम ने उन्हें अभयदान दे दिया था और वे महाक्षत्रिय बन गये थे। 

एक और मान्यता ऐसी सुनी जाती है कि जब रावण के वध के बाद भगवान श्री राम को ब्रह्य हत्या का पाप लगा तब इिस पाप मुक्ति के लिए श्री राम जी भी हिंगलाज माता मंदिर के दर्शन किये थे और यहाँ पर एक यज्ञ करवाया था। पाकिस्तान में बलूचिस्तान का हिंगलाज मंदिर वहीं मंदिर है जहाँ श्री राम जी ने माता हिंगलाज के दर्शन किये थे। यहाँ पर भी बिलकुल वैष्णो देवी जैसी एक गुफा में मातारानी विराजमान है।
ठीक इसी प्रकार से टीकमगढ़ के पलेरा के घूरा गांव में भी माता हिंगलाज एक गुफा में विराजमान हैं गुफा के अंदर जाने पर बिल्कुल ऐसा लगता है कि हम वैष्णव देवी के मंदिर में आ गये है।
चित्र-आराम करते मित्र श्री प्रदीप खरे जी वरिष्ठ पत्रकार टीकमगढ़ एवं जयहिंंद सिंह जयहिंंद गुढा,पलेरा
(चित्र-श्री रामगोपाल रैकवार जी अपने पांव को
तेज धूप में तपती सीढ़ियों से बचाने का उपाय करते हुए)
 इस  ब्लाग के लेखक ‘राना लिधौरी’ ने भी अपनी शरीरिक अक्षमता और अस्वस्थ्य रहने के बावजूद भी जैसे तैसे तपती दोपहर में ऊपर गुफा तक जाकर माता के दर्शन किये है। वर्तमान में एक नया मंदिर भी द्वार के समीप बना दिया गया है फिर लगभग 200 सीढियाँ चढ़ने के बाद गुफा तक पहुँच जाते हैं गुफा लगभग 60-80 मीटर तक होगी लेकिन अत्यंत संकरी है गुफा के अंदर झुककर जाना पड़ता है और कहीं-कहीं पर तो चिकने लाल पत्थरों के बीच लेटकर ही आगे बढ़ना पड़ता है।
(चित्र-हमारे मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार जी गुफा में अंदर जाते हुए )
 एक स्थान पर एल आकार में खतरनाक मोड़ आता है। जहाँ पर मुड़ना पड़ता है तब उस स्थान पर पहली बार जाने वाले अधिकांश लोग आगे बढ़नेे से डर जाते है लेकिन जो पहले यहाँ आ चुके है उसके द्वारा हौंसला देने पर बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ पाते हंै। आगे जाने पर गुफा के गर्भग्रह में पर्याप्त स्थान है एवं ऊँचाई भी है जहाँ पर सीधे खडे़ हो सकते है। गुफा में अंधेरा रहता है हाॅलाकि वहाँ पर एक बल्व लगा हुआ है और थोड़ी प्रकाश की व्यवस्था यदि लाइन रहे तो हो जाती है लेकिन गाँव में बिजली प्रायः नहीं रहती है इसलिए मोबाइल की सहायता से रोशनी करके वहाँ का अदभुद नजारा देखा जा सकता हैं। 
वहीं गुफा के एक कोने से एक छोटा सा छेद दिखाई देता है जिसे यहाँ के लोग ‘चुल’ कहते हंै। इस ‘चुल’ के नीचे अंदर कहते है कि एक पूरा नगर बसा था।
इसी गुफा के अंदर एक बडे से पत्थर पर यदि दूसरे पत्थर से चोट की जाये तो ऐसी आवाज आती है जैसे हम लोहे पर चोट करते है तो आवाज आती है।
(चित्र-अद्भुत पत्थर)

यहाँ पर हिंगलाज माता के मंदिर के बारे में कुछ किंदंतियाँ भी यहाँ के ग्रामीणों द्वारा सुनी जाती हैं ं यहाँ पर गुफा में एवं नीचे देवी के मंदिर में पूजा अर्चना करने एवं साफ सफाई आदि करने करने के लिए एक लखेरा (चूड़ियाँ बेचने वाला,मनिहारी) है।  पुजारी लखेरा जी ने हमें यह मंदिर के जन्म एवं इतिहास में जो थोड़ी बहुत जानकरी दी वह इस प्रकार से है।
बहुत साल पहले लगभग एक हजार साल पूर्व में एक लखेरन जो कि चूड़ियाँ बेचने का काम करती थी वह इसी गुफा के नीेच एक तालाब है वहाँ से किनारे-किनारे होकर घूरा गाँव से पाली गाँव जो कि यहाँ से पाँच किलोमीटर दूर है जा रही थी कि वहाँ अचानक से हिंगलाज माता जी ने एक महिला को वेश बनाकर लखेरन के पास आकर बोली कि हमें भी चूड़ियाँ पहनना है हमें भी चूड़ियाँ पहना दो। तब लखेरन ने साधारण महिला समझ कर उनकेे एक हाथ में चूड़ी पहना दी फिर दूसरे हाथ में चूड़ी पहना दी तब महिला ने तीसरा हाथ आगे कर दिया तो लखेरन घबराके वहाँ भागने लगी तब महिला ने कहा कि घबराओं नहीं हम तुम्हें पैसा देगंे। इस प्रकार उसे लखेरन ने हिंगलाज माता के चारो हाथों में चूड़ियाँ पहना दी तो माता बोली तुम थोड़ा यहीं रुकों हम पैसा लेकर आते हैं तब हिंगलाज माता के पीछे-पीछे वो लखेरन भी उनके साथ गुफा में अंदर चली गयी उधर देखा तो एक पूरा नगर बसा था। अब हिंगलाज माता ने उस लखेरन को लभगभ तीन महीने तब उसी गुफा में अंदर ही रखा। उधर गाँव में इस लखेरन को बहुत ढूँढा गया पर वह नहीं मिली थककर गाँववालों से सोचा कि लखेरन इस तालाब में गिर के मर गयी होगी।

उधर तीन महीने बाद हिंगलाज माता के उस लखेरन को गुफा से बाहर निकल कर उसी स्थान पर ले आयी जहाँ उन्होंने चूड़ियाँ पहनी थी और फिर लखेरन को चेतावनी दी कि किसी को हमारे इस गुप्त स्थान के बारे में कभी नहीं बताना, लेकिन लखेरन कुछ दिन तो शांत रही लेकिन एक दिन उसने अपने घरवाले को सारी किसा बता दी। फिर क्या था कुछ दिन बाद ही उस लखेरन की मृत्यु हो गयी। बाद में गाँव के लोगों ने उस गुफा तक जाकर उस गुप्त नगर की खोज की लेकिन उस गुप्तनगर का द्वार एक चुल में बंद दिखा केवल गुफा ही दिखाई दी जहाँ देवी माँ की पूजा की जाती है। आज भी यह रहस्य बना हुआ है।
 (चित्र गुफा चुुल)
ग्रामीण गुफा में जाकर देवी की पूजा करने लगे धीरे-धीरे वह प्रसिद्ध स्थान बन गया। यहाँ माता की कृपा का एक किस्सा और सुनने को मिलता है। कि एक बार गाँव में किसी गरीब के एक बच्चा हुआ जो होते ही वह बिल्कुल भी रोया और नही चिल्लाया नहीं। तब उसके माता-पिता ने सोचा है यह तो गूंगा है इसे पाल पोस कर क्या करेंगे। इसलिए वे इस बच्चे को माता की गुफा में कपडे़ में लपेटकर छोड़ आये। फिर दो दिन बाद जब माँ ममता नहीं मानी तो वो पुनः वह माता की गुफा में गयी तब उसने देखा कि बच्चा तो बहुत आवाज करके हँस खेल रहा है जैसे कोई उसे खिला रहा हो, उसे बहुत आश्चर्य हुआ तब उस औरत ने दौड़कर बच्चे को गोद में उठा लिया बहुत प्यार किया फिर माता के चरणों के लोटकर उनसेें माफी माँगकर अपने बच्चे को ले घर वापिस आयी पूरे गाँव ने यह सुना तो माता की प्रसिद्ध और अधिक बढ़ गयी।

  इस प्रकार से अनेक इस चमत्कारिक मंदिर के अनेक किस्के यहाँ के बूढ़े बुजुर्गो से सुना जा सकते हैं। अफसोस है कि इस मंदिर के बारे में अब तक बिल्कुल भी नहीं लिखा गया है कहीं भी पढ़ने को नहीं मिलता है। वो तो यहाँ के बुजूर्गो द्वारा ही  थोड़ी बहुत जानकारी मिल पाती हैं।
लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि इस मंदिर के दर्शन करने तो बहुत से नेता और अधिकारी आते रहते है यहाँ मेला भी हर साल लगता है लेकिन यहाँ व्यवस्थाओं का बहुत अभाव है यह मंदिर अभी भी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। यहाँ पर सीढ़ियों पर टीन सेड लगवा दिये जाये एवं बीच-बीच में आराम करने के लिए बैंचों की व्यवस्था, पीने के लिए पानी की व्यवस्था कर दी जाये तो दर्शनार्थियों को अधिक कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। यहाँ वृक्षारोपण करके की यहाँ हरियाली लायी जा सकती है।

यह स्थान पर्यटन और धार्मिक रूप से बहुत बढ़िया है। इस क्षेत्र को ‘बुन्देलखण्ड की वैष्णो देवी’ कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मुझे तो यह स्थान बहुत अच्छा लगा शासन और प्रशासन से आशा करता हूँ कि वे स्थान के विकास के लिए कुछ ठोस कदम उठाये।
(चित्र-ऊपर गुफा के बाहर से सेल्फी लेते लेखक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ साथ में टोपी पहने मित्र श्री विजय मेहरा जी लाइब्रेरियन, टीकमगढ़)
शासन एवं प्रशासन जनप्रतिनिधियों से अनुरोध-

टीकमगढ़ जिले में देवी जी का प्रसिद्ध अछरूमाता मंदिर अब निवाड़ी जिले में चला गया ऐसे में हिंगलाज माता का यह क्षेत्र एक प्रसिद्ध पर्याटक स्थान बन सकता है। यहाँ अपार संभावनाएँ हैं। यहाँ पर तालाब का गहरीकरण एवं सौंदर्यकरण करके यहाँ का कायाकल्प किया जा सकता है। मैं राजीव नामदेव‘राना लिधौरी’ टीकमगढ़ (म.प्र.) से इस आलेख के माध्यम से शासन एवं प्रशासन, नेता, जनप्रतिनिधियों सभी से कर बद्ध अपील करता हूँ कि कृपया इस क्षेत्र के विकास के लिए उचित कदम जरूर उठाये तो यहाँ के क्षेत्र की जनता का कुछ भला हो जाये और हमें जिले में एक और नया देवी जी का तीर्थधाम मिल जाये।
‘‘जय हिंगलाज माता की’’
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नोट-हिंगलाज माता के सभी चित्र लेखक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा ही खींचे गये।
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शोधालेख-©राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
  अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
  जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
 E Mail-   ranalidhori@gmail.com
      Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
धन्यवाद
 आपको मेरा यह शोध आलेख कैसा लगा अपकी आपकी टिप्पणी का इंतजार है।
- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़

7 टिप्‍पणियां:

Ranu Singh ghosh ने कहा…

Bahut badhiya bhaisab ati uttam

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

धन्यवाद डॉ रेणु जी

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद

ऊँ. ने कहा…

जय हिंगलाज माता जय हो

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

जय हो

साहित्य-मूल्यांकन || Sahitya-Mulyankan ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत 👌👌💐💐

Anshu ने कहा…

Jai hinglaj mata di