-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)भारत
©शोध आलेख प्रकाशित - दिनांक-4-8-2021
मोबाइल-9893520965
बुंदेलखंड वैभव यू ट्यूब चैनल की विशेष प्रस्तुति
©शोध आलेख प्रकाशित - दिनांक-4-8-2021
लघु शोधालेख- मोनाइया (बिजावर) के आदिमकालीन (पाषाणयुगीन) तीस हजार साल पुराए शैल चित्र-
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
30 Thousand Year's old Rock Painting in 'Monasaia'(Bijavar) place
-Rajeev namdeo Rana Lidhori'
इसी प्रकार के शैल चित्र छतरपुर जिले के बिजावर तहसील में ग्राम ‘मानोसाइया’ में भी मिले हैं ये क्षेत्र बकस्वाहा के जंगलों के पास ही हैं। इन शैल चित्रों अभी खोज सन-2010 में गयी थी
अब जब से यह पता चला है कि यहाँ पर भी भीमबैटका के समान आदिमानव द्वारा निर्मित शैल चित्र है जो अब लोगों द्वारा बडे जोर शोर से यह अभियान चला कर मांग कि जा रही है कि इस क्षेत्र को भी पर्याटक स्थल के रूप में घोषित करके एवं विकसित करके संरक्षित किया जाये यहाँ पर पास ही में ‘भीमकुण्ड’ प्राकृतिक कुण्ड एवं ‘जटाशंकर’ बहुत प्रसिद्ध धार्मिक क्षेत्र स्थित है ऐसे में यहाँ ‘मानोसाइया’ में आदिमानव द्वारा निर्मित शैल चित्र मिलना बहुत बड़ी बात है इन शैल चित्रों को संरक्षण एवं संवर्धन की बहुत आवश्यकता है इन पर शोध करने की जरूरत है।पुरात्तव विभाग को इन शैल चित्रों की सुरक्षा करके इन्हें संरक्षित करना चाहिए।
मोनासाइया में मिले शैल चित्र पत्थर की बड़ी चट्टानों पर उकेरे गये है जो कि भीमबैठका से भी प्राचीन लगते है महाराजा कालेज छतरपुर (म.प्र.) के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर श्री एस. के चारी जी का कहना है कि -‘इन प्रोगैतिहासिक शैल चित्रों का अध्ययन कर इस पर शोध पत्र जारी किया है उन्होंने कहा है कि इस अति प्राचीन धरोहर की उपेक्षा की जा रही है जो कि शर्मनाक है।’’
हाल ही में एवरेस्ट फतेह करके आई मेघा परमार शरद सिंह कुमरे नेे कहा कि-‘ये शैलचित्र आदिवासी समाज की धरोहर है और हमारे पूर्वजों की निशानी हैं इन्हें सुरक्षित रखना चाहिए और विश्व धरोहर के रूप में घोषित करना चाहिए। शरद कुमरे जी ने मांग की है कि इसके लिए प्रशासन,सरकार एवं पुरातत्व विभाग को गंभीर प्रयास करना चाहिए इससे भारत की दुनिया भर में प्रतिष्ठा बढेगी।’
‘मोना साइया’ में पाये गये चित्रों में लाल रंग का प्रयोग किया गया है आदिम युग में मआदि मानव द्वारा सबसे पहले चित्र कनाने के लिए लाल रंग का ही प्रयोग किया था फिर बाद में उन्होंने कत्थई, गेरूवा, सफेद, पीला,हरा और काले रंग का प्रयोग करना सीखा था इसलिए हम इन शैल चित्रों को देखकर कह सकते है कि ये शैल चित्र सबसे पुराने शैल चित्र होगे, क्योंकि यहाँ मिले सभी शैल चित्रों में लाल रंगे का ही प्रयोग किया गया है। इन चित्रों में प्रमुख रूप से एक साथ हाथ पकड़े हुए नृत्य करते हुए अनेक मानव आकृतियाँ पत्थर पर उकेरी गयी है कहीं-कहीं पर धनुष बाण लिए हुए शिकार की मुद्रा में भी आदमी की आकृति बनी हुई है एक स्थान पर केवल धनुष वाण का चिह्न बना हुआ है।
यहाँ जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है पैदल ही जाना पड़ता है इसके पास ही एक बहुत सुंदर झरना भी मौजूद है। यहाँ करीब छः-सात स्थानांे पर पन्द्रह से बीस की संख्या में शैल चित्र है जिसमें से लगभग 10 शैलचित्र तो स्पष्ट ही दिखाई पड़ते है।
हम शासन,प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों से निवेदन आग्रह करते हंै कि इस स्थान को विश्व धरोहर के रूप में शामिल करने के लिए प्रयास करे तथा इस क्षेत्र पर्याटक स्थल घोषित करके यहाँ उचित संरक्षण किया जाये। यहाँ पर नये शोध की बहुत अवाश्यकता हैं पुरातत्व विभाग को भी इस स्थान पर ध्यान देकर इसकी उचित देखभाल कर संरक्षित करना चाहिए ये हमारी प्राचीन सभ्यता की निशानी है और हमारी अमूल्य धरोहर है। बहुत कुछ नष्ट हो गये और जो शेष है उन्हें संरक्षित कर बचाया लिया जाये तो भविष्य में शोधार्थियों के लिए खोज का विषय बन सकते है। यहाँ पर्याटन की असीम संभावनाएँ इस क्षेत्र में है।
शोध आलेख- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिन-472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
30 Thousand Year's old Rock Painting in 'Monasaia'(Bijavar) place
-Rajeev namdeo Rana Lidhori'
बुन्देलखण्ड की पावन भूमि में अनेक राज छुप हुए है पुरा सम्पदा यहाँ जहाँ-तहाँ पर बिखरी पड़ी हैं। यहाँ पर अनेक प्राचीन मंदिर किला, दुर्ग,महल,बाबड़ी,के साथ-साथ प्राकृति कुण्ड, पहाड़ और गुफाएँ मौजूद है यहाँ पर आदि मानव के रहने के चिह्न भी मिले है। अनेक गुफाएँ जिन्हें यहाँ ‘चुल’ कहा जाता है आज भी इस बात की गवाही देती है कि यहाँ पर आदिमानव सभ्यता इन्हीं गुफाओं में निवास करती थी अतिप्रचीन जिन्हें हम आदि मानव कह सकते है निश्चित ही यहाँ पर रहते होंगे। पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थान के रूप में उनके द्वारा निर्मित गुफाएँ एवं शैल चित्र आज भी दिखाई देते हंै। उनके द्वारा बनाये गये शैल चित्र आज भी मौजूद है जिन्हें बनाये हुए लगभग पच्चीस से तीस हजार साल हो गये होगें। निश्चित ही यह पाषाणयुग की दास्तां बयां करते हैं।
पुरा विशेषज्ञों एवं पुरा वैज्ञानिकों ने भी इस बात कि पुष्टि कि है कि मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में ‘भीमबेटका’ स्थान पर आदिमानव द्वारा बनाये गये शैलचित्र एवं शैलाश्रय है इनके महत्व को देखते हुए भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण भोपाल द्वारा सन् 1990 में भीम बैठका को राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया तथा एा् 2003 में यूनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित कर इसे चार्चित कर दिया। भीम बैठका में लगभग 500 शैलाश्रम चित्र एवं 750 शैलाश्रय है जो कि पाणाणयुग के हैं इस शैल चित्रों कों लगभग दस हजार से बीस हजार पुराना तक माना जाता है।
भीम बैठका के अलावा होशगाबाद के पास बुधनी, रायसेन में ‘चिड़िया टोला’ में, बरीेली के पास पाटनी गाँव, रायगढ़ और अब वमर्तमान में छतरपुर जिले के बिजावर तहसील में बकस्वाहा जंगल परिक्षेत्र के निकट ही ‘मोना साइया’ में तीस हजार साल पुराने शैल चित्र मिले है।
पुरा विशेषज्ञों एवं पुरा वैज्ञानिकों ने भी इस बात कि पुष्टि कि है कि मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में ‘भीमबेटका’ स्थान पर आदिमानव द्वारा बनाये गये शैलचित्र एवं शैलाश्रय है इनके महत्व को देखते हुए भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण भोपाल द्वारा सन् 1990 में भीम बैठका को राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया तथा एा् 2003 में यूनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित कर इसे चार्चित कर दिया। भीम बैठका में लगभग 500 शैलाश्रम चित्र एवं 750 शैलाश्रय है जो कि पाणाणयुग के हैं इस शैल चित्रों कों लगभग दस हजार से बीस हजार पुराना तक माना जाता है।
भीम बैठका के अलावा होशगाबाद के पास बुधनी, रायसेन में ‘चिड़िया टोला’ में, बरीेली के पास पाटनी गाँव, रायगढ़ और अब वमर्तमान में छतरपुर जिले के बिजावर तहसील में बकस्वाहा जंगल परिक्षेत्र के निकट ही ‘मोना साइया’ में तीस हजार साल पुराने शैल चित्र मिले है।
इसी प्रकार के शैल चित्र छतरपुर जिले के बिजावर तहसील में ग्राम ‘मानोसाइया’ में भी मिले हैं ये क्षेत्र बकस्वाहा के जंगलों के पास ही हैं। इन शैल चित्रों अभी खोज सन-2010 में गयी थी
महाराजा कालेज छतरपुर (म.प्र.) के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर श्री एस. के चारी जी ने इनकी खोज की थी उन्होंने ने इस पर बहुत शोध कार्य भी किया है और इस क्षेत्र को प्रकाश में लाया है। किंतु शासन,प्रशासन और जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार हो रहा है यह क्षेत्र पुरासंपदा से भरपूर है।
हाल ही में बकस्वाहा क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में हीरो के भंडार होने का पता लगने पर इन जंगलों से लगभग तीन लाख की संख्या में पेड़ काटकर वहाँ खनन करके हीरे निकाले जायेंगे। जब से इस लाखों पेड़ों को कटनेे जाने का पता चला है तब से ही इस क्षेत्र के साथ-साथ पूरे मध्यप्रदेश से ही इन अमूल्य जंगलों को बचाने के लिए अनेक समाज सेवी एवं पर्यावरण पे्रमियों द्वारा मुहिम चल रही है। ‘सेव बकस्वाहा फारेस्ट’ अभियान बृहद स्तर पर चलाया जा रहा है।
अब जब से यह पता चला है कि यहाँ पर भी भीमबैटका के समान आदिमानव द्वारा निर्मित शैल चित्र है जो अब लोगों द्वारा बडे जोर शोर से यह अभियान चला कर मांग कि जा रही है कि इस क्षेत्र को भी पर्याटक स्थल के रूप में घोषित करके एवं विकसित करके संरक्षित किया जाये यहाँ पर पास ही में ‘भीमकुण्ड’ प्राकृतिक कुण्ड एवं ‘जटाशंकर’ बहुत प्रसिद्ध धार्मिक क्षेत्र स्थित है ऐसे में यहाँ ‘मानोसाइया’ में आदिमानव द्वारा निर्मित शैल चित्र मिलना बहुत बड़ी बात है इन शैल चित्रों को संरक्षण एवं संवर्धन की बहुत आवश्यकता है इन पर शोध करने की जरूरत है।पुरात्तव विभाग को इन शैल चित्रों की सुरक्षा करके इन्हें संरक्षित करना चाहिए।
मोनासाइया में मिले शैल चित्र पत्थर की बड़ी चट्टानों पर उकेरे गये है जो कि भीमबैठका से भी प्राचीन लगते है महाराजा कालेज छतरपुर (म.प्र.) के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर श्री एस. के चारी जी का कहना है कि -‘इन प्रोगैतिहासिक शैल चित्रों का अध्ययन कर इस पर शोध पत्र जारी किया है उन्होंने कहा है कि इस अति प्राचीन धरोहर की उपेक्षा की जा रही है जो कि शर्मनाक है।’’
हाल ही में एवरेस्ट फतेह करके आई मेघा परमार शरद सिंह कुमरे नेे कहा कि-‘ये शैलचित्र आदिवासी समाज की धरोहर है और हमारे पूर्वजों की निशानी हैं इन्हें सुरक्षित रखना चाहिए और विश्व धरोहर के रूप में घोषित करना चाहिए। शरद कुमरे जी ने मांग की है कि इसके लिए प्रशासन,सरकार एवं पुरातत्व विभाग को गंभीर प्रयास करना चाहिए इससे भारत की दुनिया भर में प्रतिष्ठा बढेगी।’
अभी हाल ही में दिनांक 1 अगस्त सन् 2021 को हमारे यू ट्यूब चैनल ‘बुन्देलखण्ड वैभव’ की टीम मोनासरिया स्थान पर गयी थी वहाँ पर इन शैल चित्रों का गहन और सूक्ष्म अध्ययन किया था टीम के प्रमुख संरक्षक सदस्य श्री रामगोपाल जी रैकवार, टीम के हेड श्री विजय कुमार मेहरा, श्री उमाशंकर जी मेहरा एवं चाँद मोहम्मद जी ‘आखिर’ आदि ने इस क्षेत्र स्थान का भ्रमण किया है। हमारी टीम ने वहाँ पर बहुत कुछ खोजा है।
शिक्षक एवं भूगोलविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार ने इस शैल चित्रों के बारे में बताया है कि ये भीमबैठका से भी प्राचीन है और लगभग तीस हजार साल पुराने है। लाल रंग से उकेरे गये ये चित्र इतने प्राचीन होने के बाद भी स्पष्ट दिखाई देते है। जो कि आदिमानव द्वारा निर्मित किये गये थे। हमारे साथी श्री विजय कुमार जी मेहरा जो कि यू ट्यूब चैनल ‘बुन्देलखण्ड वैभव’ के प्रमुख है उन्होंने इन पूरे शैल चित्रों के चित्र भी खींचे है और उनकी पूरी डाक्यूमेंटी फिल्म भी बनायी है जिसे आप हमारे यू ट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।
‘मोना साइया’ में पाये गये चित्रों में लाल रंग का प्रयोग किया गया है आदिम युग में मआदि मानव द्वारा सबसे पहले चित्र कनाने के लिए लाल रंग का ही प्रयोग किया था फिर बाद में उन्होंने कत्थई, गेरूवा, सफेद, पीला,हरा और काले रंग का प्रयोग करना सीखा था इसलिए हम इन शैल चित्रों को देखकर कह सकते है कि ये शैल चित्र सबसे पुराने शैल चित्र होगे, क्योंकि यहाँ मिले सभी शैल चित्रों में लाल रंगे का ही प्रयोग किया गया है। इन चित्रों में प्रमुख रूप से एक साथ हाथ पकड़े हुए नृत्य करते हुए अनेक मानव आकृतियाँ पत्थर पर उकेरी गयी है कहीं-कहीं पर धनुष बाण लिए हुए शिकार की मुद्रा में भी आदमी की आकृति बनी हुई है एक स्थान पर केवल धनुष वाण का चिह्न बना हुआ है।
वहीं पर एक बारहसिंगा की आकृति भी बनी है। आदिमानव द्वारा अपने प्रारम्भिक समय में शिकार से संबंधित चित्रों को ही अधिकांशतः बनाया जाता है चूँकि वे गुफाओं में रहते थे तो उन्होंने उन्हीं गुफाओं चट्टानों में पत्थर और बड़ी-बड़ी शिलाओं के बीच रहकर ये शैल चित्र उकेरे है जो कि उस समय की आदि मानव सभ्यता को प्रदर्शित करके है। उस समय मुख्य रूप से ं बाघ, बारहसिंगा, हिरन, मोर, सुअर, हाथियों, घोड़े, कुत्ता, घडियाल, धनुषवाण आदि के चिह्न बनाये जाते थे।
कुछ चित्र वहाँ पर जानवरों द्वारा रगड़ खाकर भी क्षतिग्रस्त हो गये है। यहाँ एक चट्टान पर छज्जेनुमा गुफा है बरसात एवं धूप आदि से बचने के लिए यहाँ पर आदमी एवं जानवर रूकते होगें है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यहाँ के स्थानीय लोगों को अभी तक इन अमूल्य शैल चित्रों के बारे में जानकारी नहीं है।
कुछ चित्र वहाँ पर जानवरों द्वारा रगड़ खाकर भी क्षतिग्रस्त हो गये है। यहाँ एक चट्टान पर छज्जेनुमा गुफा है बरसात एवं धूप आदि से बचने के लिए यहाँ पर आदमी एवं जानवर रूकते होगें है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यहाँ के स्थानीय लोगों को अभी तक इन अमूल्य शैल चित्रों के बारे में जानकारी नहीं है।
यहाँ जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है पैदल ही जाना पड़ता है इसके पास ही एक बहुत सुंदर झरना भी मौजूद है। यहाँ करीब छः-सात स्थानांे पर पन्द्रह से बीस की संख्या में शैल चित्र है जिसमें से लगभग 10 शैलचित्र तो स्पष्ट ही दिखाई पड़ते है।
हम शासन,प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों से निवेदन आग्रह करते हंै कि इस स्थान को विश्व धरोहर के रूप में शामिल करने के लिए प्रयास करे तथा इस क्षेत्र पर्याटक स्थल घोषित करके यहाँ उचित संरक्षण किया जाये। यहाँ पर नये शोध की बहुत अवाश्यकता हैं पुरातत्व विभाग को भी इस स्थान पर ध्यान देकर इसकी उचित देखभाल कर संरक्षित करना चाहिए ये हमारी प्राचीन सभ्यता की निशानी है और हमारी अमूल्य धरोहर है। बहुत कुछ नष्ट हो गये और जो शेष है उन्हें संरक्षित कर बचाया लिया जाये तो भविष्य में शोधार्थियों के लिए खोज का विषय बन सकते है। यहाँ पर्याटन की असीम संभावनाएँ इस क्षेत्र में है।
शोध आलेख- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
जिलाध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र,टीकमगढ़
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6 टिप्पणियां:
Very nice knowledge
Very good👍 knowledge
धन्यवाद अंशु जी
धन्यवाद अंशु जी
Thanks
Wonderful
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