Rajeev Namdeo Rana lidhorI

रविवार, 8 अगस्त 2021

बिन पेंदी कौ लोटा (हास्य-व्यंग्य संकलन ई-बुक) संपादन-राजीव नामदेव'राना लिलौरी', टीकमगढ़ *राजीव नामदेव राना लिधौरी द्वारा संपादित 56वी ई-बुक*


                            बिन पेंदी के लोटा
                 (हास्य-व्यंग्य संकलन) ई_बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                  
                            बिन पेंदी के लोटा
                 (हास्य-व्यंग्य संकलन) ई_बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                                  
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ई बुक प्रकाशन दिनांक 08-08-2021
        टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
         मोबाइल-9893520965

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              अनुक्रमणिका-

01-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
03- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़ (मप्र)
04-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
05-अशोक पटसारिया,लिधौरा (टीकमगढ़) 
06- कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
07- रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
08-गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा टीकमगढ़
09-परम लाल तिवारी,खजुराहो(म.प्र.)
10-राम बिहारी सक्सेना, खरगापुर(म.प्र.)
11-मनोज कुमार, गोंडा,(उत्तर प्रदेश)
12-अवधेश तिवारी,छिंदवाड़ा(म.प्र.)

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1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)


हाइकु-बिन पेंदी के लोटे

*1*
कबै ढडके,
बिन पेंदी के लोटे।
भरोसौ नैया।।
***

*2*
कबै धौकों दें
बिन पेंदी के लोटे।
कै  नईं सकैं।।
***

*3*
चंचल होत,
बिन पेंदी के लोटे।
सिक्के है खोटे।।
***
दिनांक-8-8-2821

*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, टीकमगढ़ (मप्र)

     
 #बिन पेंदी के लोटा#
          #नौटंकी गीत#

नेतागिरी करी भैया ने,उनके कयी मुखौटा हो गय।
बिन पेंदी के लोटा हो गय।।2।।
                     #1#
अगर अल्प मत में सरकार जो पड़ जाती है।2।
बिन पेंदी के लोटा की कीमत बढ़़ जाती है।3।
कीमत बढ़ती सँग में पद भी मिल जाते हैं।2।
भैया भण्डार तब ठसाठस तब ठिल जाते हैं।2।
तब नेता के चेहरे कमल जैसे खिल जाते हैं।3।
फर्क पड़े क्या इससे उनको,नाँय सें माँय करौंटा हो गय।
बिन पेंदी के..........
                    #2#
रकम आने की हो आशा तो जगा होता है।2।
जब भी मिलने को कोई आय तभी सोता है।2।
जब भी मिलने को कोई आय तभी सोता है। 3।
जनता का आदमी हर कोई ठगा होता है।2।
कोई ना कोई सबके साथ दगा होता है।2।
जीवन पर्यन्त न कोई भी सगा होता है।3।
महानगर कयी बँगले बन गय,गांवन में परकोटा हो गय।
बिन पेंदी के...........
                    #3#
बहुरुपिया बनकर जनता को भरमाता है।2।
होय सभा कोई तो हीरो बन जाता है।3।
भले ही अस्त हो रहा हो महोदय कहलाता है।2।
धन के अलावा ना रखे कोई नाता है।2।
पर भगवान की कृपा से बिना मौत ही मर जाता है।3।
जयहिन्द ज्योति जलायें ऐसी,कैऊ जनें लँगोटा हो गय।
बिन पेंदी के.........

              ###
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)

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3-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)


 
       
🙏बुन्देली गजल🙏

बिन पैदी के लौटा हो गय
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
अब नेता मसमोटा हो गय।
बिन पैदी के लोटा हो गय।

जीनै  दव  मंत्री पद  लालच ।
सो दल बदल सपोटा हो गय।।

नेतन की पोषाक बदल गइ।
बाबा भेष  लगोटा हो गय।।

जनता  खौ भरमावै नेता ।
गावै अनूप जलोटा हो गय।।

गिरगिट जैसौ रंग बदल रय।
लैवै  वोट  पलोटा  हो गय।।

देश हितेषी  अब  नेतन के।
सरल देश मे टोटा हो गय।।

        -एस आर सरल,टीकमगढ़          

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04-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)

 
कविता.. बिन पैंदी कौ लोटा
💐💐💐💐💐💐💐 

बहरूपिया बनकर नेतन ने,
जनता को हरदम घोटा है। 
कहता कुछ और कुछ करता,
यह बिन पैंदी का लोटा हैं। 
1-
माहिर होते यह हर फन में,
उठा-पटक और दांव पैंच में।
हथकंडे इनके क्या कहिये,
राजनीति के हर एक मैंच में।।
कलाबाजियां खाते यह तो,
चेहरे पर नया मुखौटा हैं।
कहता कुछ और करता ....
2-
नेता प्राणी बढ़ा अजब है, 
कभी किसी का सगा नहीं है। 
भैया शायद ही कोई ऐसा हो,
जिसे इन्होंने ठगा नहीं है।।
इतना जहर सर्प के फन में,
फिर भी इनसे छोटा है।
कहता कुछ और करता ....
3-
 कामी अरु लोलुपता इनमें, 
कूट कूट कर भरी हुई है। 
भ्रष्ट तंत्र  में भूखी जनता, 
देखो कितनी डरी हुई है।।
काम सटत दुख बिसरत भैया,
लेता तुरत करौंटा है।
कहता कुछ और करता ....
***
-प्रदीप खरे मंजुल,टीकमगढ़ (म.प्र.)💐
           
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5-अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 


 😢बिन पेंदी के लोटे😢
%%%%%%%%%%%%
         😢😢😢
बिन पेंदी के लोटों की,
              कीमत बढ़ जाती है।
कभी अल्पमत में जब भी,
                 सरकारें आतीं हैं।।

ये रसूख गुंडागर्दी के,
                   दम पर चुनते हैं।
भडुओं की सरकारें,
             जब स्नेह लुटातीं हैं।।

जाति वर्ग को उकसा कर,
                   हिंसा फैलाते हैं।
कुछ भी होता नहीं कभी,
             ना रपट लिखाती है।।

दाव धौंस भय फैलाकर,
               कब्जा कर जाते हैं।
फिर इनकी दहशत में, 
        जनता हुकुम बजाती है।।

फिर जिस दिन नादान,
           कोई सन्यासी आता है।
तब इनकी औक़ातें,
          मिट्टी में मिल जातीं हैं।।
           😢😢😢

           -अशोक पटसारिया 'नादान' ,लिधौरा, टीकमगढ़ 
                   
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6-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)


           
ढड़क नीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा।
स्वार्थ नीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।।
राजनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।
ताजनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।।

हूटनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।
फूटनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।।
झूँठनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।
लूटनीति में बहुत जरूरी,बिन पेंदी के लोटा ।।

                ***
 -कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
  ( मौलिक एवं स्वरचित )
             
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07-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी


जय बुंदेली साहित्य समूह.
दिनांक-8/8/2021.

चौकडि़या.

बे तो, बिन पेंदी के लोटे, 
करत काम सब खोटे।।
नईं भरोसो कब दें धोखो, 
बडे़ बनें कऊं छोटे।।
ढड़क जात वे तनक बात पे, 
पक्के नहीं लगोटे।।
राजनीति में जाने कितने, 
देखे गये मुखोटे।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)

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08-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा (टीकमगढ़)


कुछ शब्दों के जोड़ 

🌹बिन पेंदी को लोटा 🌹

1-बिन पेंदी को लोटा 
  साधु तन हो लगोटा 
  बुढे के होये बो घोटा 
   कछु काम के नईया 

2-पेंदी बिन जो लोटा 
   नेता होये जो खोटा 
    मर्द होये जो छोटा 
   कछु काम के नईया 

3-लोटा में होये न पेदी 
    गोरी के होये न बेदी 
     हाथों में होये न मेदी 
   कछु काम के नईया 

4-लोटा में डोर हो
शासन में जोर हो
उठो बड़े भोर हो 
भौत जरूरी है 

5-लोटा पेंदी दार हो
  वस्तु न उदार हो 
 नेता शान दार हो
भौत जरूरी है 
***
-गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा (टीकमगढ़)

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09--परम लाल तिवारी,खजुराहो



उसका चरित्र हो जाता छोटा।
जो होता बिन पेंदी लोटा।।
बात बात पर बदलता।
यहां ढडकता वहां ढडकता।
यह आचरण बड़ा है खोटा।
जो होता बिन पेंदी लोटा।
जो अग्रसर हैं उन्हें खुद  संभलना है।
जो राह नीति की उसी पर ही चलना है।
संभालो इज्ज्त का कोटा।
जो होता बिन पेंदी लोटा।
***
-परम लाल तिवारी,खजुराहो

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10-राम बिहारी सक्सेना, खरगापुर जिला-टीकमगढ़



आजकल के नेता सबरे, बिन पेंदी के हो गय।
 मौका जिये दिखाय जहाँ पे, औई तरफ खां हो गय।।

 कलजुग आ गव घोर जनन खां, तनकऊ शरम न रे गई।
 मात पिता भ्राता सब छोड़े, ससुरारी गुरु हो गई।। 

घर की सम्पत्ति लेवे खां सब घर में देत घसोटा। 
लुड़कत आबें माई बाप लो, बिन पेंदी के लोटा।। 

अफसर ऐसई होगय करवें, बिन रुपया न चर्चा।
जोनउं काम करत को उनको, औई को चानें खर्चा।। 

जोई दिबावे रुपया ज्यादा, ओई सगो हो जाबे।
 बिन पेंदी के लोटा जैसे, ओई कोद हो जाबें।। 

किन पै करें भरोसो भैया, ऐसी भई संसारी। 
"राम" हरि पै करो भरोसो, लुड़कत दुनियां सारी।। 

स्वरचित मौलिक 
राम बिहारी सक्सेना "राम"
08/08/2021 
खरगापुर जिला टीकमगढ़
-

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11-मनोज कुमार, गोंडा,(उत्तर प्रदेश)


शीर्षक- बिन पेंदी के लोटा ऐसे ही होते हैं।

किसी पर विश्वास मत करना इस दुनिया में।
ये लुढ़क जाते हैं, बिन पेंदी के लोटा के जैसा।
मीठे शब्द बोलकर, कुछ लोग उस पर करते हैं विश्वास।
फिर भी किसी के हाथ न आते हैं वो, पानी भरा लोटा के जैसा।

कुछ कहते है कुछ कहकर, चले जाते हैं लुढ़क कर।
वो अपना पहचान भी नहीं बताते हैं नजर उठाकर।
विश्वास करना क्या योग्य हैं उन पर।
जो चले जाने पर नहीं आते हैं मुड़कर।

जब उसको कुछ मतलब होता हैं वो आते हैं।
प्यार से बोलकर दिल में घुस जाते हैं।
जब अपना मतलब आता है, वो कुछ नहीं बोलते हैं।
वो उदास होकर मुड़कर चले जाते हैं।
***

लेखक/कवि- 
मनोज कुमार, गोंडा
उत्तर प्रदेश  
मो. न. 7905940410

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12-अवधेश तिवारी,छिंदवाड़ा (मप्र)


इत पंगत में देख लो,
गड़ुआ लुड़कत जाय।
उत समधन खे देख खे,
भड़ुआ लुड़कत आय।।

बिन पेंदी के दोई हैं,
लाज-सरम बिसराय,
भड़ुआ गड़ुआ दोई की,
एकई गती कहाय।।
**
कल्लू के दद्दा 
(अवधेश तिवारी)
 छिंदवाड़ा

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                             बिन पेंदी के लोटा
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