[31/01, 8:14 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: दिन मंगलवार दि०३१_०१-२०२३ विषय(१२२)अहिंसा।
प्रभु सद् चिद् आनन्द के, सुखद अमित भण्डार।
जिन्हें अहिंसा है प्रिय, उससे करते प्यार।।१।।
जड़ चेतन मैं व्याप्त वह, घट घट करते वास।
जिसके मन रह अहिंसा, उस हिय करें निवास।।२।।
तिरस्कार भी प्राणि का, कभी करें मत भूल।
इसे अहिंसा मानिये,चुभें न हिय में शूल।।३।।
जीवात्मा आत्मा परम, दोनों एक समान।
सदा अहिंसा मन वसे, यह ही कर्म महान।।४।।
"हरिकिंकर"
[31/01, 8:59 AM] Jai Hind Singh Palera: #अहिंसा पर हिन्दी दोहे#
#१#
धर्म अहिंसा है बड़ा,सुखी रखे संसार।
सादा जीवन हो सदा,राखो उच्च बिचार।।
#२#
बापू ईसा बुद्ध जी,महावीर के पास।
राम कृष्ण की धरा पै,रही अहिंसा खास।।
#३#
सत्य अहिंसा धीरता,करुणा की रस धार।
वीर बृह्मचारी रहो,पाओ पावन प्यार ।।
#४#
कर्म अहिंसा कीजिए, मर्म करो सत्संग ।
जीवों की रक्षा करो,जीवन रहे उमंग।।
#५#
सत्य अहिंसा धीरता, गुण अपनायें संत।
भारत के बापू बने,सावरमती महंत।।
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
#पलेरा जिला टीकमगढ़#
#मो०-६२६०८८६५९६#
[31/01, 9:17 AM] Subhash Singhai Jatara: सभी श्रेष्ठ दोहे 👌
बस दूसरे दोहे का तीसरा चरण 122 में चला गया है
धरा की जगह भूमि , करने पर विचार कर सकते है
सादर भैया
[31/01, 9:29 AM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: *बिषय-अहिंसा*
31.01.2023
*प्रदीप खरे, मंजुल*
******************
बढ़ा अहिंसा से नहीं,
जग में कोई धर्म।
जीवन उसका है सफल,
समझ गया जो मर्म।।
*
मार्ग अहिंसा प्रेम का,
चलियौ जा पर रोज।
जो नर भटका मार्ग से,
मिटे उसी का खोज।।
*
सत्य-अहिंसा प्रेम की,
मूरत देखन चाव।
मेरी मानौं तो सुनौ,
धाम बगेश्वर जाव।।
*
हिंसा जो नरहीं करै,
नरक लोक हो धाम।
राह अहिंसा जो चले,
अवश मिलेंगे राम।।
*
पाठ अहिंसा का पढ़ो,
रखो प्रेम की चाह।
महावीर बतला रहे,
हमें धर्म की राह।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
[31/01, 10:19 AM] Asha Richhariya Niwari: प्रदत्त शब्द/अहिंसा
🌹 सत्य अहिंसा प्रेम ही, भारत की पहचान।
यही सनातन संपदा,मूल धर्म की जान।।
🌹
बापू का संदेश है, सत्य अहिंसा प्रेम।
मानवता जीवित रहे, यही धर्म ओ नेम।।
🌹
जिओ और जीवें सभी, ऐसा बने समाज।
रहें अहिंसा भाव से,तभी सफल हो काज।।
🌹
महावीर ओ बुद्ध ने,दिया यही संदेश।
सत्य अहिंसा प्रेम ही,परमो धर्म विशेष।।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏🌹
[31/01, 10:29 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀 हिंदी दोहे 🥀
(विषय- अहिंसा)
दयावान धर्मात्मा,
त्यागी औ गुणवान।
धर्म अहिंसा मानते,
साँचे संत सुजान।।
सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह,
ब्रम्हचर्य, अस्तेय।
स्वाध्याय, संतोष, व्रत,
चित्त वृत्ति कस लेय।।
श्रेष्ठ आचरण शुद्ध मन,
मुक्ति मार्ग सोपान।
सरस अहिंसा के वृती,
का निश्चय कल्यान।।
संकट है सबसे बड़ा,
आज देश में एक।
दया, अहिंसा कम रही,
सोया वोध विवेक।।
सत्य अहिंसा के लिए,
जो था जग विख्यात।
जिंदा पशुधन काटकर,
करे मांस निर्यात।।
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[31/01, 10:35 AM] Promod Mishra Just Baldevgarh: मंगलवार हिंदी दोहा दिवस
विषय ,, अहिंसा,,
*****************************
चले अहिंसा का लिए , नेमिनाथ संकल्प ।
त्यागे प्रेम प्रमोद पद , जप तप मात्र विकल्प ।।
*******************************
अडिग अहिंसा आस्था , बनी मूल सिद्धांत ।
मांसाहार विकार तज , लिखे "प्रमोद" वृतांत ।।
*******************************
शिवि नरेश दानी हुए , पड़ी अहिंसा जान ।
दिया मांस निज देह का , जीव दया पहचान ।।
********************************
महा आत्मा जग विदित , रही अहिंसा धार ।
आजादी सौंपी हमें , बापू बने हमार ।।
*******************************
लिए अहिंसा चल पड़ी , मानवता संदेश ।
जिओ हमें जीवित रखो , यही सरल उपदेश ।।
********************************
दीप अहिंसा का जले , सबके हृदय "प्रमोद" ।
वात्सल्य प्रमुदित रहे , हर माता की गोद ।।
*******************************
अगर अहिंसक हो गया , अब "प्रमोद" संसार ।
पशु जीव जंतु कहैं , धन्य धन्य करतार ।।
********************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
,, स्वरचित मौलिक,,
[31/01, 11:16 AM] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय अहिंसा
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1 सत्य *अहिंसा* प्रेम की,
हो जाती है जीत।
बापू जी से सीख ली,
सबने सबसे प्रीत।।
2 हिंसा कोई ना करो,
ये होता है पाप।
करो *अहिंसा* प्रेम से,
खुश होंगे प्रभु आप।।
3 करी *अहिंसा* राम ने,
अवध पुरी में देख।
पूजे जाते है सदा,
रामायण का लेख।।
4 महावीर स्वामी सदा,
करें *अहिंसा* बात।
सब उनका आदर करें,
बेटी. बेटा तात।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
सादर समीक्षार्थ 🙏
स्वरचित मौलिक 👆
[31/01, 11:17 AM] Gokul Prasad Yadav Budera: हिंदी दोहे,विषय-अहिंसा🌹
***********************
आज अहिंसा का नहीं,
जग में तनिक प्रभाव।
इसीलिए डगमग दिखे,
सकल विश्व की नाव।।
***********************
पावन भारत भूमि पर,
जन्मे जितने धर्म।
सभी अहिंसा मार्ग का,
बतलाते शुचि मर्म।।
***********************
स्वार्थ सदा हिंसा लहे,
लहे अहिंसा त्याग।
स्वार्थ दहकती आग है,
त्याग महकता बाग।।
***********************
तन मन वाणी कर्म से,
पर का हो न अनर्थ।
कहें अहिंसा का यही,
सुधिजन व्यापक अर्थ।।
***********************
धर्मस्थापन युद्ध हो,
अथवा कोई और।
नहीं अहिंसा का वहाँ,
रहता किंचित ठौर।।
***********************
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[31/01, 11:53 AM] Subhash Singhai Jatara: हिंदी दोहा दिवस , विषय अहिंसा
(विशेष-- मैं अहिंसा को धर्म के सिद्धांतानुरुप
परिभाषित करने का प्रयास कर रहा हूँ )
नहीं अहिंसा जानना , होती है डरपोक |
प्रतिरोधी हिंसा सहज , कर सकता यह लोक ||
भाव वचन निज के करम, और सहज व्यापार |
यहाँ अहिंसा पालना , कहे धर्म का सार ||
दुश्मन आए सामने , रखे देश पर खोट |
यहाँ अहिंसा त्यागकर , करना उस पर चोट ||
नहीं अहिंसा बोलती , हिंसा है स्वीकार |
देश धर्म की आन पर, उठ सकती तलवार ||
प्रतिरोधी हिंसा जहाँ , वहाँ अहिंसा शान |
तथ्य सही रखता यहाँ , और धर्म का गान ||
आए भारत भूमि पर , जितने भी अवतार |
किया अहिंसा भाव से , दुष्टों का संहार ||
कायरता मत जानिए , जहाँ अहिंसा चित्र |
आभूषण यह वीर का , समझो मेरे मित्र ||
अनाचार दुश्मन करे , हम जपते प्रभु नाम |
नहीं अहिंसा यह कहे , कर ले आप विराम ||
सारांश - धर्मानुसार , संत और साधु को - भाव हिंसा - वचन हिंसा - व्याापार हिंसा - प्रतिरोधी हिंसा , यह चारों हिंसा त्याज्य है
पर धर्म के अनुयायी गृहस्थ को - भाव - वचन - व्यापार हिंसा त्याज्य है , पर अनाचारी से प्रतिरोधी हिंसा ग्राह है | प्रतिरोधी हिंसा में अहिंसा धर्म की रक्षा का प्रतिनिधित्व होता है |
सुभाष सिंघई
[31/01, 1:10 PM] Subhash Singhai Jatara: सुंदर भाव है , संजय जी
पहला दोहा , दूसरा चरण , =12 हो गया है , कारण कलन से भटकाव
"नहीं दूसरा और " हो सकता है
पांचवा दोहा , दूसरा चरण
न हो सोच विचार = 10 मात्रा ,व एक वर्ण से चरण का प्रारंभ नहीं होता है
करिए सोच विचार "
कर सकते है
सादर
[31/01, 1:10 PM] Shobha Ram Dandi 2: शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (म प्र)३१/०१/०२३
बिषय-"अहिंसा"हिंदीदोहा (१२२)
१=दया धर्म तप त्याग में ,"दाँगी" हैं तल्लीन ।
और अहिंसा के धनी ,रहें सदा अासीन ।।
२=बनो अहिंसा के धनीं ,संतों का हो संग । पर जीवों कि दयाकरो, कर"दाँगी" सतसंग ।।
३=पारब्रहम को चाहिये ,तो हो अहिंसा बान ।
जीव जंतू जानवरों , कर "दाँगी"
कल्याण ।।
४=बनो अहिंसा के धनी ,होय मानवी ध्येय ।
हिंसक त्यागो भावना , सबसे होए सनेह ।।
५=बापू अहिंसा बान थे,राष्ट्र पिता
कहलाय ।
"दाँगी" इनसे सीख लैं , सावरमती सुहाय ।।
६=तन मन धन अर्पण करो, बनो
ना हिंसा बान ।
"दाँगी" अहिंसा बान हैं ,दया धर्म ईमान ।।
७=लाख चुरासी योंनियाँ ,मानव मिला शरीर ।
जियें अहिंसा धर्म से ,"दाँगी" है
गम्भीर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[31/01, 2:04 PM] Subhash Singhai Jatara: आदरणीय निम्न तरह हम कुछ परामर्श दे रहे है
सादर
१=दया धर्म तप त्याग में ,"दाँगी" हैं तल्लीन ।
और अहिंसा के धनी , रहें सदा आसीन ।।
२=बनो अहिंसा के धनीं ,संतों का हो संग । पर जीवों कि दयाकरो, कर"दाँगी" सतसंग ।।
दया करो सब जीव पर , दाँगी रखो उमंग ||
३=पारब्रहम को चाहिये , बनो अहिंसावान ।
जीव जंतु संसार के , कर "दाँगी" कल्यान ।।
४=बनो अहिंसा के धनी ,होय मानवी ध्येय ।
हिंसक त्यागो भावना , सबसे करो सनेह ।।
५=रहे अहिंसा बान थे,राष्ट्र पिता कहलाय ।
"दाँगी" इनसे सीख लैं , सावरमती सुहाय ।।
६=तन मन धन अर्पण करो, बनो न हिंसा बान ।
सभी अहिंसा बान बन , दाँगी रख ईमान ।।
७=लाख चुरासी योंनियाँ ,मानव मिला शरीर ।
जियें अहिंसा धर्म से ,"दाँगी" है गम्भीर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[31/01, 2:18 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *हिंदी दोहा दिवस*
विषय - *अहिंसा*
*१*
धर्म अहिंसा से बड़ा,
नहीं दूसरा और।
गाँधी जी सिखला गए,
राष्ट्रपिता सिरमौर।।
*२
सत्य अहिंसा प्रेम का,
हो जग में विस्तार।
कटे क्रोध नफ़रत मिटे,
रहे न अत्याचार ।।
*३*
चलें अहिंसा ओढ़कर,
मन में हिंसा भाव ।
छुप-छुप कर देते सदा,
मन को गहरे घाव ।।
*४*
करते हिंसा स्वयं से,
ऐसे भी हैं लोग।
बात अहिंसा की करें,
दिखे न मन के रोग।
*५*
हिंसा का ना भाव हो,
ना हो कलुष विचार।
चलो अहिंसा की गली,
मन में भरकर प्यार।।
*संजय श्रीवास्तव* मवई
३१-१-२३😊दिल्ली
[31/01, 2:27 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *हिन्दी दोहै- बिषय - अहिंसा*
*1
जहाँ अहिंसा भाव है , कर्म करे उपकार |
अच्छाई की राह का , #राना समझो सार ||
*2*
परम धर्म ही जानिए , सत्य अहिंसा गान |
#राना पालन जो करे , मिलता उसको मान ||
*3*
#राना करुणा उर रहे , जीव दया के भाव |
वहाँ अहिंसा जानिए , है वैतरणी नाव ||
*4*
जीवन में उत्कर्ष नित , #राना है आनंद ।
जहाँ अहिंसा मन रहे , वहाँ पुण्य मकरंद ||
*5*
सदा अहिंसा पथ चले , गांधी के सिद्धांत |
आजादी #राना मिली , कष्ट हुए विश्रांत ||
***
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[31/01, 2:33 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: हिन्दी दोहे विषय अहिंसा
हिंसा करें न भूल के,प्राणी सभी समान।
श्रेष्ठ अहिंसा धर्म है, सबसे बड़ा महान।।
सत्य अहिंसा से मिला, हमको यह जनतंत्र।
गोरों को झुकना पड़ा, फूंका ऐसा मंत्र।।
जैन धर्म की तो टिकी, इस पर ही बुनियाद।
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, करें न कभी विवाद।।
सत्य अहिंसा भावना , जीवन में अपनायँ।
मनसा वाचा कर्मणा, कष्ट नहीं पहुँचायँ।।
सभी अहिंसा मार्ग को, बतलाते हैं ठीक।।
यद्यपि चलना है कठिन, कभी न छोड़ें लीक।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[31/01, 3:23 PM] Shobha Ram Dandi 2: शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (म प्र)३१/०१/०२३
बिषय--"अहिंसा" हिंदी दोहा (१२२)मो०=7612264326
1=दया धर्म तप त्याग में ,"दाँगी" हैं तल्लीन ।
और अहिंसा के धनी ,रहें सदा आसीन ।।
२=बनों अहिंसा के धनी ,संतों का हो संग ।
दया करो सब जीव पर ,"दाँगी" रखो उमंग ।।
३=पारब्रहम को चाहिये ,बनो अहिंसावान ।
जीव जंतु संसार के ,कर "दाँगी" कल्यान ।।
४=बनो अहिंसा के धनी ,होय मानवी ध्येय ।
हिंसक त्यागो भावना ,सबसे करो सनेह ।।
५=रहे अहिंसा बान थे, राष्ट्र पिता
कहलाय ।
"दाँगी" इनसे सीख लैं , सावरमती सुहाय ।।
६=तन मन धन अर्पण करो,बनो न हिंसा बान ।
सभी अहिंसा बान बन,"दाँगी" रख ईमान ।।
७=लाख चुरासी योंनियाँ ,मानव मिला शरीर ।
जियें अहिंसा धर्म से ,"दाँगी" हैं गम्भीर ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[31/01, 5:02 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: दोहा सृजन के वारे में अपनों से अपनी बात 🙏
*************************************
दोहा के विषम चरण की यति जब हम आत्मा, आस्था,रास्ता,वास्ता, ऊर्जा,ब्राह्मी, भार्या, नाश्ता,दोस्ती, वार्ता, बाल्टी, डेल्टा इत्यादि शब्दों से करते हैं तो बोलने में ये शब्द पाँच मात्राओं का समय लेकर चरण को गेय तो बना देते हैं, परन्तु मात्रा विधान के अनुसार इन या इन जैसे सभी शब्दों में चार मात्राएंँ ही गिनी जाती हैं। इसीलिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग चरण के प्रारंभ में अथवा बीच में किया जाना उचित रहता है। ऐसा करने से दोहा छंद सभी दृष्टियों से उत्कृष्ट रहता है।एक उदाहरण से इसे और अच्छी तरह से समझा जा सकता है 🙏
*"वह भूलेगा रास्ता,जो होगा अनभिज्ञ।"*
यह गाने में सही इसलिए प्रतीत हो रहा है, क्योंकि हम रास्ता को रासता बोल रहे हैं। जबकि मात्राएंँ 13 की बजाय 12 ही हैं।अब इसका दूसरा रूप देखते हैं। अर्थात रास्ता शब्द को प्रारंभ में रखकर-
"रास्ता भूलेगा वह,जो होगा अनभिज्ञ।"
अब हमें स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि प्रथम चरण में एक मात्रा कम है।अब मात्रा की पूर्ति करके देखते हैं -
*"रास्ता भूलेगा वही,जो होगा अनभिज्ञ।"*
(वह=2,वही=3)
कुछ और उदाहरण देख लेते हैं -
वह पावन है आत्मा, जो है हरि के पास।
आत्मा पावन है वही, या
पावन आत्मा है वही, जो है हरि के पास।
ढँग से करिए नाश्ता, (ढँग=2)
नाश्ता करिए ढंग से,
करिए नाश्ता ढंग से, (ढंग=3)
सबसे रखिए वास्ता, (सबसे=4)
वास्ता रखिए सर्व से,
रखिए वास्ता सर्व से, (सर्व से=5)
निवेदन यही है कि ऐसा प्रयोग करने से हमारे दोहे हर कसौटी पर उत्कृष्ट रहेंगे।
***************************
सादर 🙏
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
[31/01, 6:41 PM] Swami Prasad Shriwa Stabs Chatrepur1: हिन्दी दोहे - विषय- "अहिंसा"
दिनांक- 31/01/2023
महावीर अरु बुद्ध ने, दिये मंत्र अनमोल ।
सत्य-अहिंसा राह चल, पियो मधुर रसघोल ।।
किया अहिंसक पथ गमन, सत्याग्रह दे नाम ।
जीत लिया बापू सहज, स्वतंत्रता संग्राम ।।
अस्त्र - शस्त्र हिंसा दमन, देते दुष्परिणाम ।
सत्य-अहिंसा शस्त्र अस, जो दे शांति सुखाम ।।
जीव-आत्मा एक है, नर पशु खग जलमीन ।
रखो अहिंसा भाव हिय, हिंसा तजो धुरीन ।।
हिंसा कुत्सित कर्म है, अधम पाप अभिशाप ।
भव तारण पावन धरम, अहिंसा पुण्य प्रताप ।।
-- स्वरचित/मौलिक
-- स्वामी प्रसाद श्रीवास्तव
-- छतरपुर मध्यप्रदेश ○○○○○
[31/01, 6:47 PM] Subhash Singhai Jatara: आदरणीय दादा जी
सर्वप्रथम पटल पर स्वागत है
श्रेष्ठ दोहे सृजित हुए है
बस अंतिम दोहे का अंतिम चरण बारह मात्रा भार ले गया है व जिसका कारण पंचकल से चरण प्रारंभ हो गया है
पर आपका सृजन 👌👌👌🙏💐
[31/01, 6:47 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहे
विषय-अहिंसा
1- सत्य अहिंसा धर्म है,
हिंसा है अति पाप।
बृज प्रेमी समझें नही,
होगा पश्चाताप।
2- सत्य अहिंसा निमित यदि,
प्राण भले लग जाय।
बृजभूषण त्यागें नही।
रहे सदा अपनाय।
3-कहीं कोई हिंसा कभी,
हमसे न बन जाय।
सदा अहिंसा के लिए,
हम सब नरतन पाय।
4- सत्य अहिंसा राह पर,
कहते रहे सदैव।
बृजप्रेमी पातक कटें,
सत्य मान बस लेव।
5-चले न हिंसक राह पर,
अपना भारत देश।
बापूजी पालन किया,
दिया यही उपदेश।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[31/01, 7:14 PM] Swami Prasad Shriwa Stabs Chatrepur1: आदरणीय श्री! अंतिम दोहे के
सम और विषम चरण दोनों इस
तरह सुधार कर प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
मुक्ति दायिनी अहिंसा, पावन पुण्य प्रताप ।।
[31/01, 7:46 PM] Subhash Singhai Jatara: जी दादा , तब तेरह की यति अहिंसा से 122 हो जाएगी
मुक्ति अहिंसा दायनी, पावन पुण्य प्रताप
शायद सही रहेगा
सादर
[31/01, 7:50 PM] Subhash Singhai Jatara: दूसरा दोहा -सत्य अहिंसा यदि निमित
करना सही रहेगा
तीसरा दोहा , पहला चरण
अब कोई हिंसा कभी
करना सही रहेगा
सादर
[31/01, 8:23 PM] Subhash Singhai Jatara: बहुत ही सुंदर अनुपम दोहे 👌
अब बहुत ही बारीक तथ्य की ओर ध्यानाकर्षण कर रहा हूँ सर जी
चौथे दोहे का चोथा चरण
चरित्र का निर्माण
मात्रा भार सही है , पर लय क्यों नहीं है ?
कारण - चरित्र (जगण ) से चरण प्रारंभ है (चरित्र = च रि त् र ) अत:
"अब चरित्र निर्माण" करना कैसा रहेगा सर जी ?
[31/01, 8:28 PM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: हिंदी दोहे
विषय :-अहिंसा
मनसा बाचा कर्मणा, से जो रखता ध्यान।
दया धर्म जिनके हृदय,वही अहिंसा मान।।
सत्य अहिंसा का दिया, बापू ने उपदेश।
आजादी की राह का,था वह कार्य विशेष।।
भगवान सिंह लोधी अनुरागी
[31/01, 8:31 PM] Sr Saral Sir: हिन्दी दोहा विषय अहिंसा
नेक नीति सद्भाव से, होता है उत्थान।
सत्य अहिंसा न्याय से, पाते नर सम्मान।
सदा अहिंसा भाव हो,उपजे नहीं विकार।
जीव दया हिय में रहे, निर्मल रहे विचार।।
होती है सदधम्म में, दया अहिंसा मूल।
यही बीज बंधुत्व के ,जीवन के अनुकूल।
सत्य अहिंसा की डगर,से मानव कल्याण।
इनसे ही होता सदा , जन चरित्र निर्माण।।
न्याय मिले हर जीव को,बढ़ें अहिंसा ओर।
जन-जन में करुणा बहे, रहे प्रेम की डोर।।
एस आर सरल
टीकमगढ़
[31/01, 9:45 PM] Subhash Bal Krishna Sapre Bhopal: विलम्बित पोस्ट
अहिंसा पर दोहे
1.
"जीव दया की भावना, जिनके मन को भाय,
राह अहिंसा की चुनो, सुगम रीत हो जाय."
2.
"जीव हिंसा से,पाप के, बनते भागीदार,
अहिंसा पर विश्वास से, मिलता स्वर्ग द्वार."
3.
"कटु वाणी को,जानिये,हिंसा का ही प्रकार,
मीठी वाणी से मिले, अहिंसा का विचार."
4.
"शत्रू सामने ज़ब दिखे, हिंसा ही आधार,
अहिंसा तब त्यागिये, करें न कोइ विचार."
5
"भोजन करना,है हमें, जो है शाकाहार,
अहिंसा के बिना नहीं , होत सुलभ सुविचार."
सुभाष बाळकृष्ण सप्रे
भोपाल