Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

गंगा (हिन्दी दोहा संकलन) ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

गंगा (हिन्दी दोहा संकलन) ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
     नौटंकी (बुंदेली दोहा संकलन) ई-बुक

संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
                 
  
                💐😊 गंगा💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 129वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 17-1-2023

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎊       
              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
04-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र) 
05-विद्या चौहान (फरीदाबाद)
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
07-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
08-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी
09-श्री राम लाल द्विवेदी, (चित्रकूट, कर्बी)
10-प्रदीप गर्ग 'पराग' (फरीदाबाद)
11-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
12-एस आर सरल,टीकमगढ़
13-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
14-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर
15-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
16- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
17-संजय श्रीवास्तव* मवई  (दिल्ली)
18-जयहिन्द सिंह जय हिन्द,पलेरा
19-बृजभूषण दुबे बृज, (बक्सवाहा)
20-कल्याण दास साहू पोषक, (पृथ्वीपुर)
21- गोकुल यादव (बुढ़ेरा)
##############################
        

                     संपादकीय


               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के  एडमिन के रुप मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) एवं संरक्षक द्वय शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और श्री सुभाष सिंघई जी है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'गंगा ' ( 129वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 129 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 83 देश के लगभग 98000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 129वीं ई-बुक 'गंगा '  लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। 
ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने मंगलवार दिनांक-17-1-2023 को बुंदेली दोहा  प्रतियोगिता-88 मेंदिये गये बिषय 'गंगा   पर दिनांक- 17-1-2023 को पटल पोस्ट किये गये थे।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
            ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-17-1-2023 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965 

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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ (मप्र)



**हिंदी दोहे बिषय- गंगा (नदी)*

तीन दोहे , मेरे मन की पीड़ा के है |👇

*1*
आज विषय गंगा रखा , #राना  करे   विचार |
मैया  सबको   तारती ,  हम   भूलें   उपकार ||

*2*
गंदी हम गंगा करें , रखते   कभी न   ख्याल |
मानव के इस कृत्य पर  , #राना रखे मलाल ||

*3*
गंगा जी के नाम का , बनता बजट  करोड़  |
#राना होता लापता , यहाँ   वहाँ   ले मोड़ ||
***
 (अब पांच दोहे गंगा माँ की महिमा पर  )
*4*
गंगाजल पावन रहे ,  सदा करे कल्याण |
#राना शुचिता नीर से , पावन   होते  प्राण ||
*5*
महादेव   के  शीष    पर , हर   गंगा है नाम |
#राना  इस उपमान से,करते सभी प्रणाम ||
*6*
गंगा   भारत   देश    में ,   देती   है   संदेश |
#राना पावन खुद बनो, भक्ति मार्ग परिवेश ||
*7-
ब्रम्ह कमंडल-विष्णु पग , शिवा शीष  शृंगार  |
#राना तारण को प्रकट,  माँ  गंगा  अवतार  ||
*8*
गंगा यमुना शारदे , जहाँ   मिलन  अनुभाग |
#राना जानो तीर्थ  वह , पावन राज प्रयाग ||

*** दिनांक-17-1-2023

*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
🥗🥙🌿☘️🍁💐🥗🥙🌿☘️🍁💐


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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


     *
सरिता सुखद सुहावनी, निर्मल धवल तरंग ।
पथ "प्रमोद" प्रमुदित चली , गंगा लिए उमंग ।।
******************************
पातक नाशक शुद्ध जल , गंगा किया प्रदान ।
स्वच्छ रहे सदियों तलक, यही "प्रमोद" प्रमान ।।
*******************************
गंगा गोरी गाय की , कीरत परम पुनीत ।
कर "प्रमोद" वंदन नमन , इनके पुलकित गीत ।।
*******************************
नभ जल थल चर ग्रहण कर , गदगद हुए "प्रमोद" ।
जलवायू गंगा लिए , अद्भुत इसकी गोद ।।
********************************
शैल सुता बहती चली , गंगा श्रद्धा नाम ।
उपजाऊ करती धरा , कीन्ह "प्रमोद" प्रनाम ।।
********************************
हर गंगा गावत रहे , बसुदेवा नित भोर ।
भरि "प्रमोद" उत्साह की ,रीती मुदित किलोर ।।
*******************************
       
       -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
           स्वरचित मौलिक
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   3-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
हिंदी दोहा दिवस , विषय -गंगा 

भू  पर  गंगा  अवतरण , भागीरथी   प्रयास |
देवलोक का मिल रहा  , धरती पर आभास |

वर्णन कलम न कर सके , माँ गंगा  गुणगान |
कृपादायनी है सदा , अमरत जल शुचि मान  ||

अनुष्ठान  प्रतिरुप   हैं , भागीरथ  परिणाम |
कहते सदा   त्रिदेव हैं , गंगा  हैं  खुद  धाम ||

पतितो को पावन करें ,   भक्तों   को  दें  मान |
चलकर वह रविदास के , दिखीं कठौता आन ||

जब तब नभ में सूर्य है , चंद्र सितारे शान |
गंगा जी भू लोक में , सबको    हैं  वरदान ||

***

        -सुभाष सिंघई,जतारा

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04-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर


हिंदी दोहे - गंगा (नदी) संशोधित 

गंगा है इक संपदा, आस्था की आधार।
वैतरणी कहते इसे, लगवाती भव पार।

पाप  नाशनी है  सरी, गंगा  धोती  पाप।
गंगा मैली मत करें, मिले पुण्य अनमाप।

गंगा यमुना सरस्वती,चंबल झेलम सिंधु।
केन बेतवा नर्मदा, तरें  नहा  अजबन्धु।।

भगीरथ ने तप किया,कर मन यही विचार।
तर जाएँ पुरखे सभी, हो सबका  उद्धार।।

गंधक  होता  है  प्रचुर, गंगा  जी  के  नीर।
औषधीय गुण से मिटे, चर्मरोग जन पीर।।

गंगा का जल शुद्ध अति,रखते सालों साल।
आवश्यक अनुकाल में, रखते लोग सँभाल।

गंगा जल की खासियत, रख छाया या धूप।
कितने दिन तक भी रखो,रहता अपने रूप।

***
                
मौलिक/                                                    
             -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर                         
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05-विद्या चौहान (फरीदाबाद)

हिंदी दोहे
~~~~~~
विषय- गंगा (नदी)
~~~~~~~~~~~

१)
जल  दर्पण में  गंग के, रश्मि  निहारे  रूप।
चाँद  नहाये  रात को, काया  दिखे  अनूप।।

२)
गंगा जी  के तीर  पर, बैठ  हुआ  यह  भान।
कठिन  बहुत ठहराव है, बह जाना आसान।।

३)
गंगा जी के तीर पर, खड़े लखन सियराम।
तृप्त हुये केवट नयन, देख  दृश्य अभिराम।।

४)
मन  को  गंगा  मानिये, लहरें  शुद्ध  विचार।
सत्य  कर्म  में डूब कर, जीवन  को कर पार।।

५)
गंगा  सा विस्तार  हो, भावों   की  हो  थाह।
संयम के  हों तट बँधे, मिले लक्ष्य को राह।।

**
✍️ विद्या चौहान,फ़रीदाबाद, हरियाणा

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा



 १=गंगा
परम पवित्र है ,जाते जो इस धाम ।
"दाँगी" जाऐं प्रति वर्ष , पाप उतारें राम ।।
२=गंगा
नदी महान ये ,महिमा अपरंपार  ।
पाप नाशक मोक्षपिदा ,"दाँगी" भव से पार ।।
३=गंगा
का अवतार है ,राज हिमालय खोह ।
"दाँगी" निर्मल नीर की ,धारा अविरल सोह ।।
४=गंगा
शुद्ध पवित्र नदी ,त्रिवेणी के संग ।
शक्ति पूर्ण है जल प्रबल ,"दाँगी" मस्त मतंग ।।
५= गंगा
सरिता पावनी ,करती भव से पार ।
देव दनुज मानव करें ,सब अपना उद्धार  ।।

       ***

                 -शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा

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7-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
1-
पवित्र पावन है नदी,गंगा जाकौ नाम।
जासैं निकरी पावनी,बन गय तीरथ धाम। 
2-
जो मानैं सो मातु है,ना मानौं सो नीर।
बिना दवा के हरत है,सारे जग की पीर।।
3-
कोई क्यों ना जाति हो,मातु करत नहिं भेद।
मैला गंगा नीर को,करत करहिं नहिं खेद।।
4-
अविरल बहती है धरा,गंगा पावन धार।
नहा लेत जो नीर से,होता भव से पार।।
5-
पूजा विधि जानूँ नहीं,विनय करहुँ कर जोर।
माँ गंगा करियौ कृपा,मैं बालक हूँ तोर।।

***
             --प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

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  8-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी

पापमोचनी श्री गंगा जी
***********************
      गंगा

गंगा  जी का अवतरण, पावन परम पुनीत।
परम सुखद,भव भय हरण,सब जग सदा विनीत। 

 भागीरथ ने तप किया, लिया गंग अवतार।
 सब  पापों से  मुक्त हो, होगा जग  उद्धार। 

 गंग दशहरा पुण्यतिथि, धरा प्रगट भइ आय।
 पाप ताप संताप दुख, सकल नष्ट हो जाय।। 

 सदा सुहागिन भामिनी, पूजत गंग उमंग।
 देती है आशीष माँ, रहे सजन का संग।। 

 अति पावन भागीरथी, है अमृत की धार।
 शरण आपकी जो गहे,  हो  उसका उद्धार।। 

 गंगा  दर्शन  आरती,  हरिद्वार   में  पाय।
 पावन जल से आचमन, जन्म सफल हो जाय।। 

 पाप  नाशिनी  मातु  तुम, परम पुण्य दातार।
 सदा शरण मैं आपकी, कर दो भव से पार।।

***

   -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकान्त निवाड़ी

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9-श्री राम लाल द्विवेदी, (चित्रकूट, कर्बी)
🌷  दोहे ( गंगा )🌷

गंग यमुन संगम करें, राजा तीर्थ प्रयाग।
जग जाहिर जहॅ कुम्भ हो, जो नहाय बड़भाग।1

माघहि मकर प्रयाग में ,कल्पवास कर तीर ।
जप तप गंगा गोद में, भोर नहाते नीर ।2

भारत का सौभाग्य है ,पतित पावनी देश ।
गंगा तप से नृपति के, आईं सहा कलेश ।3

पापनाशिनी  संग हम, करते भीषण पाप ।
बजट करोड़ों खा रहे, करें सफाई जाप।4

 गंगा के तट जो बसे, सिद्ध हो गए सन्त ।
गंगा मां ने की कृपा , फैली कीर्ति दिगंत।5

जग में गंगा ही नदी ,जो हरती है पाप ।
विश्व अचंभा मानता, अद्भुत जल की छाप।6
***
स्वरचित एवं मौलिक 

      रामलाल द्विवेदी प्राणेश
      कर्वी चित्रकूट



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10-प्रदीप गर्ग,'पराग' (फरीदाबाद)

गंगा (भागीरथी)

इतनी हैं नदियाँ यहाँ नदियों का यह देश
चमक रहा है गंग से भारत का परिवेश।

विश्व पटल पर हिंद की गंगा है पहचान
युगों-युगों से पुज रही गंगा मातृ समान।

सगर पुत्र उद्धारक बनीजग में पूजी जाय
स्वर्गउतर गोमुख निकल जा बंगाल समाय।

गंगा माँ गंगा बनी,काटे जग के पाप
शीतल जल में स्नान  कर मिट जाएँ सँताप।

उत्तराखंड  से निकल यह गिर खाड़ी बंगाल
बहती पावन गंग माँ सब पापों का काल।

विष्णुपदी का जगत में गौरवमय इतिहास 
है सलिला भागीरथी,सब नदियों में खास।

किया विवाह शांतनु से,दिया भीष्म सा पुत्र
भीष्म प्रतिज्ञा चर्चित है गाँव शहर सर्वत्र। 

गंगा यमुना सरस्वती बनी त्रिवेणी रूप
खेतों को सिंचित किया बनी सुनहरी धूप।

है जग में भागीरथी अनंत महिमावान
गाओ इसकी आरती करती यह कल्याण। 

गंगा मैली हो रही, इच्छा मेरे राम
गंगा निर्मल हो बहे युगों-युगों अविराम।

है पराग महिमा अतुल गंगाजल  की धार
भवसागर  से तार दे बनकर यह पतवार। 

           प्रदीप गर्ग 'पराग'




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 11-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर


हिंदी दोहे -विषय -गंगा
(१)
जगती के हर जीव पर, करती  है उपकार।
युगों -युगों  से बह रही, गंगा जी  की धार ।।
(२)
गंगा उतरी स्वर्ग से, करती कल -कल गान।
बहती भारत भूमि पर , देती  जीवन  दान ।।
(३)
गौ  गंगा अरु संत का , रहे  सदा  ही  मान ।
सकल संत समुदाय ने,महिमा करी बखान।।
(४)
जो भी  आता  तीर  पर , हर लेती  संताप ।
गंगा  अब  दूषित  हुई  , धोते - धोते  पाप ।।
(५)
गंगा  यमुना  सरस्वती  , बहे  नर्मदा  कैन ।
सोन बेतवा सिंध भी , हैं नदियाॅं सुख दैन।।
***
आशाराम वर्मा  "नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 17/01/2023
                   ***
                    
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12-एस आर सरल,टीकमगढ़


हिन्दी  दोहा  विषय - गंगा 

अति पावन गंगा नदी,कलकल करे निनाद।
करती  पावन नीर  से, जन-जीवन आबाद।।

बहे  अलकनंदा  नदी , संगम   देवप्रयाग।
गंडक  कोसी  घाघरा, यमुना  गंगा  भाग।।

झारखंड  बंगाल अरु, यू पी और  बिहार।
बना  उत्तराखंड  तक, गंगा  का विस्तार।।

गंगा  धुलती  पाप को, करते  लोग प्रचार।
लेकर श्रद्धा  भाव को, जाते  हैं  नर  नार।।

 हिमनद  गंगोत्री  गुहा, गंगा  उद्गम   द्वार।
कई  नदी  मिलके हुई, गंगा  पावन धार।।
       
        ***

                 -एस आर सरल,टीकमगढ़

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*13*-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा

हिंदी दोहे
विषय:-गंगा
बहे  धवल पीयूष सी, माँ गंगा  की  धार।
भेद-भाव तज पाप हर,सबको देती तार।।

जटाशंकरी  नाम  से,  गंगा  भू  पर  आइ।
कीरति वेद पुराण में,ऋषि-मुनियों ने गाइ।।

गंगा निकली स्वर्ग से, शंकर जटा समाइ।
तेजबेग जब कम हुआ,धारा धरा पठाइ।।

दरश नर्मदा के करें,गंगा-जल में स्नान।
पाप दूर होते सभी,  करते वेद बखान।।

गंगा जल दूषित नहीं, होता सालों-साल।
नहीं मिलेगी विश्व में,दूजी कहीं मिशाल।।

***
-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
                         ***           
             
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14-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर

गंगा पुण्य प्रदायिनी,करती नर उद्धार।
"हरिकिंकर"जल पान कर , नर हो जग से पार।।
**
-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर

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*15*आशा रिछारिया जिला निवाड़ी



प्रदत्त शब्द**गंगा
हर हर गंगे
🌹
माघ मास अति पावन,बस लो गंगा तीर।
हरि हर को सुमिरन करो,मिट जैहे भव पीर।।
🌹
भागीरथ ने तप करो,भू पर गंगा आंइ।
पैलें अपने वेग बस,शिव के जटन समांइ।।
🌹
पाप मोचनी नाम सें, जग में हैं विख्यात।
अस्थि विसर्जन हेतु सब, दूर दूर सें आत।।
🌹
गंगा पावन सुरसुरी,हरि नख निकली धार।
आंइ जग तारन धरा,पावन भव संसार।।
🌹

 
-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी

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16- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

हिन्दी दोहे    विषय   गंगा

सगर सुतों को तारने , जो  थे  साठ  हजार।
भागीरथ लाये  यहां  , पावन गंगा धार।।

प्रकटी श्री हरि विष्णु के, पद से  गंगा धार।
उलझ ग‌ई शिव  केश में,  कैसे  पाएं  पार।।

गंगा उतरीं  स्वर्ग  से ,  शुभ   गंगोत्री  धाम।
कल कल कर बहने ‌लगी , धारा  ललित ललाम।।

भक्तों  के  कल्याण  को, हरदम  हैं  तैयार।
हर युग में बहती रही ,पावन  गंगा  धार।।

गंगा    आईं   तारने ,  यह  भटका  संसार।
उनको  ही  गंदा  करें , कुछ   पापी  मक्कार।।

माघ मास में सूर्य जब , मकर राशि में आयँ।
तीर्थ राज प्रयाग में  , गंगा रोज  नहायँ।।
***
           प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

17-संजय श्रीवास्तव, मवई  (दिल्ली)


**
   विषय - *गंगा*

*१*
 सुरसरिता, भागीरथी,
        देवनदी कहलाय।
विष्णुपदी, मंदाकिनी,
          गंगा के पर्याय।।

*२*
गंगा, जमुना, सरस्वती,
      नदियाँ बड़ी महान।
इनकी पूजा अर्चना,
     करता सकल जहान।।
***
         संजय श्रीवास्तव, मवई 
          १७-१-२३😊दिल्ली
     

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18-जयहिन्द सिंह जय हिन्द,पलेरा


#गंगा पर दोहे#

                :,मन की उलझन मौंन।
दोनों में पावन बड़ी,आप बतायें कौन।।

                    #२#
साक्षी तो गोपाल हैं,बृज में राखी संग।
पावन जिस से गाय है,गंगा घटी उमंग।।

                    #३#
शिव के सर पर बास है,निर्मल मेरी धार।
गंगा बोली राम के,पुरखा दीन्हें तार।।

                    #४#
गंगा बोली गाय से,पानी जीवन दान।
पाप सभी कट जात हैं,गंगा जल के पान।।

                    #५#
गंगा के गुणगान का,है कलयुग में शोर।
गाय सुहागन है बड़ी,गंगा क्वांरी कोर।।

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जयहिन्द सिंह जय हिन्द,पलेरा

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19-बृजभूषण दुबे बृज, बक्सवाहा


दोहे
विषय - गंगा
1-
कितना भी यदि पातकी,गंगा जाय नहाय।
बृजभूषण यदि सत्य है,पाप मुक्त हो जाय।।

2-
कहलाती भागीरथी,बो ही तप कर लाय।
करने कुल तारन तरन,गंगा माई मनाय।।

3-
गगन से आई सुरसरी,धरन पे गंगा माई।
जटों में शिव धारण करी,बड़ा अचंभा भाई।।
4- 
विश्व नाथ का तप किया,भागीरथ भरपूर।।
गंगा शंभू बहाय दीं,भई समस्या दूर।।
5-
गंगा जगतारण भई,तरन लगा संसार।
पतित पावनी नाम बृज,बहती पावन धार।।
***
- बृजभूषण दुबे बृज, बक्सवाहा

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20-कल्याण दास साहू पोषक, (पृथ्वीपुर)
गंगा उतरीं स्वर्ग सें , शिव के जटा समाँइ ।
वेद-पुराणों में लिखित , देवनदी कहलाँइ ।।

नृप भागीरथ तप कियो , गंग धरा पर लाय ।
गंगा  माता  जान्हवी , भागीरथी  कहाय ।।

सुरसरिता  नंदीश्वरी , विष्णुपगा कहलाँय ।
गंगा तारणहार है , जिये-मरे तर जाँय ।।

उद्गम  गंगोत्री  गुहा , हिमगिरि खंड महान ।
गंगा मैया कर रहीं , जीवों  का  कल्यान ।।

गंगा यमुना सरस्वती , सींच रहीं भू-भाग ।
त्रिवेणी  संगम  बना , तीरथ राज प्रयाग ।।

आते देश विदेश से,अगणित भक्त अनन्य ।
गंगा पूजन आरती , डुबकी लेकर धन्य ।।

उत्तर  से  पूरब  बहे , हर-हर गंगे माइ ।
महा तीर्थ सागर बना,गंगा जहाँ समाइ ।।

   ---- कल्याण दास साहू "पोषक"
      पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)

          ( मौलिक एवं स्वरचित )


           ( मौलिक एवं स्वरचित )
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21- गोकुल यादव (बुढ़ेरा)
🌹हिन्दी दोहे विषय-गंगा🌹
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भागीरथ नृप ने किया,
             भागीरथी    प्रयास।
तब  हर  गंगाधर  बने,
        जह्नु बने ऋषि खास।।
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ग्रीष्म-काल में भी बहे, 
             गंगा जल अविराम।
करे ग्रीष्म में हिम द्रवण, 
            जलापूर्ति का काम।।
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खनित हुआ नलकूप पुनि,
            पानी  दिया  दिखाइ।
निकल पड़ा समवेत स्वर, 
             जय हो  गंगा माइ।।
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नदियाँ देतीं मृदु सलिल,
             लातीं मृण में जान।
अति उपजाऊ देश में,
              गंगा  का  मैदान।।
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करने  होंगे  कारगर,
            सत्प्रयास   संयुक्त।
जिससे माँ गंगा बहे,
           सतत प्रदूषण मुक्त।।
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✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी

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                          संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

               

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               💐😊 गंगा 💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 129वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 17-1-2023

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965

2 टिप्‍पणियां:

Vidya Chouhan ने कहा…

गंगा पर बहुत शानदार संकलन राजीव जी👌 उत्कृष्ट दोहे एकत्रित कर संपादक राजीव की द्वारा ई बुक तैयार की गई। आपके अथक प्रयासों के लिये साधुवाद 👏👏💐💐

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

धन्यवाद आदरणीया विद्या जी