[02/01, 7:47 AM] Jai Hind Singh Palera: #चकिया पर दोहे#
#१#
करम धरम जैसै करौ,बहा पसीना खून।
चकिया में जो डारहौ,कड़ै ओइ कौ चून।।
#२#
फसल ओइ की काट हौ, जौन बीज दो बोय।
चकिया चलै सुनार की,चून न सोंनों होय।।
#३#
एक पाट धरती बनौ,दूजौ है आकास।
चकिया है भगवान की,हो रय काय उदास।।
#४#
पाप पुन्न दो पाट हैं,दुनियां बनी गड़ार।
चकिया बेऊ पीसहै,जोन नाज दो डार।।
#५#
चकिया की बेरा भई,पिसनारी तैयार।
पीसत तीं पिसनोंट बे,गांय मंगलाचार।
#६#
पैलां चकियां पीसतीं,हर अलबेली नार।
कभउं न बीमारी भई,चड़ो न कभउं बुखार।।
#७#
चलती चकिया देख कें ,आव भौत आनंद ।
चूर चूर दानें भये,करें सोच जयहिन्द ।।
#जयहिन्द सिंह जयहिन्द#
#पलेरा जिला टीकमगढ़ #
#मो०-६२६०८८६५९६#
[02/01, 8:18 AM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: *बिषय-चकिया*
02-01-2023
*प्रदीप खरे, मंजुल*
^^^^*^^^^*^^^^*^^^^
1-
मनहीं मैल न राखियौ,
रेहें भैया ठाट।
हिये सदाँ येसे मिलें,
जैसें चकिया पाट।
2-
मानी सैं चिपके रहौ,
पाटन में पिस जैव।
चकिया पीसै चून सौ,
झूरन तन कर लैव।।
3-
सेवा मानी पाट की,
काम क्रोध इक रोग।
जग चकिया कौ पाट है,
जामें पिस रय लोग।
4-
अफसर-नेता पाट सम,
जा बिच जो फँस जाय।
चकिया से पीसैं सबै,
सबइ खून पी जाय।
5-
चकिया पीसै चून सौ,
जो ईमें फँस जाय।
साजौ नहिं बच पात है,
सुख सैं नहिं रै पाय।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
472001
[02/01, 8:44 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: चकिया पीसत तीं जनी,भूल गईं हैं आज।
अत: तौंद अब बढ़ गई, करत न नैकउ काज।।
चकिया हर घर पिसत ती, गाउत हती लुगाइं।
तीन बजें जग जात ती,बूढ़ी मोइ मताई।।
चकिया सें ही पिसततौ,कैऊ पैलीं नाज।
व्यावन में पिसनारियाॅं,नइं करतइ जौ काज।।
आटौ चकिया कौ पिसौ, लगत हतौ स्वादिष्ट।।
अब तौ ऐसौ काम सब, मानौ जात अशिष्ट।।
"हरिकिंकर" भारतश्री, छंदाचार्य
[02/01, 9:08 AM] Shobha Ram Dandi 2: शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ (म प्र)०२/०१/०२३
बिषय--चकिया (चक्की)बुंदेली दोहा (१४५) 7610264326
१=डड़ा ठोक चकिया चली,पीस लेत्ती नाज ।
ब्याव काज ओसर परैं,"दाँगी" घर में काज ।।
२=जौ जीवन अनमोल है,पिसरव पाटन बीच ।
धरा गगन दो पाट हैं , भय नैं "दाँगी" मीत ।।
३=ई चकिया में जो परै ,सावित निकल न पाय ।
गैहूँ सौ पिस जाय वौ ,"दाँगी" करम नसाय ।।
४=करमन की चकिया चलै ,जो जैसौं कर लेत ।
"दाँगी" करम सुधार लै,ऊखौं उसई देत ।।
५=समय देख"दाँगी"चलैं ,चकिया सैं बच जाव ।
पकरैं रव प्रभु आसरौ ,पर उपकार बढाव ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[02/01, 9:20 AM] Subhash Singhai Jatara: चकिया कत संसार खौं, सबइ पिसत हैं जात |
कीला पकरौ राम कौ , इतै कबीरा कात ||
डड़ा ठुकी चकिया तकौ , जीखौं पकर घुमात |
ऊखौ जानौ है करम , सबइ जनै बतलात ||
चकिया जौ संसार है , करम धरम दो पाट |
नौनों डारौ नाज तो , खाबै कौ हौ ठाट ||
सुभाष सिंघई
[02/01, 9:28 AM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय- चकिया*
*1*
चूला चकिया थी पिड़ी , खपरा छप्पर ठाट |
#राना आज दिखात कम , तखत गैंडुआ खाट ||
*2*
छूमंतर #राना हुयै , अब तौ घेला राट |
चकिया भई मशीनरी , कौ टाँकत अब पाट ||
*3*
चकिया #राना आज है , पीसत अब भी नाज |
डड़ादार की है जगाँ , अब बिजली कौ काज ||
*4*
चकिया चूले बिक गयै , बिक गय खपरा ठाट |
सुनत कहावत सब जनै , #राना टूटी खाट ||
*5*
दादी -ओरी बैठ कैं , चकिया जब भी भाँय |
गाती थी #राना भजन , सुर भी साथ मिलाँय ||
*** दिनांक-5-12-2022
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[02/01, 9:33 AM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली दोहे
विषय:चकिया
चकिया के दो पाट हैं,धरती उर आकाश।
कछू पिसै कछू पिस रहे,ठाॅंड़े कछू उदास।।
जाॅंते सें पिसबौ करौ,चकिया दरबै दार।
कुॅंदवा दरै कुनेयतौ,सबनै दए बिसार।।
जाॅंते और कुनेयते,घूमन कहूं नै जांय।
चकिया दरबे दार खों,जोनइॅं चाय मगांय।।
जाॅंते चकिया आजकल,अब नइॅ क्यांउॅं दिखात।
गीद छोड़ गय देश ज्यों, नइॅं दिख रय मड़रात।।
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"हटा दमोह
[02/01, 10:37 AM] Asha Richhariya Niwari: बुंदेली दोहा दिवस दिनांक 02.01.2023
प्रदत्त शब्द चकिया
🌹
माया की चकिया अजब, चलत रहत दिन रात।
जो मनुआ हरि सुमर ले, निरमल हो जे गात।।
🌹
चकिया करमन की चले, ईसुर राखे लेख।
दीनन की सेवा करो, बने भाग की रेख।।
🌹
नेकी की चकिया चले, तो समझो हरि पास।
जो ही सांसो धरम है, मन न रहे उदास।।
🌹
चलती चकिया देख कें, आंखें भर भर आंय।
जनम मरण के चक्र सें,साबुत बच नहिं पांय।।
ओरी चकिया ओर लयी,टांखन ललना पार।
झूला जाने लाड़लो,सोवे गोड़ पसार।।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी 🌹🙏
[02/01, 10:49 AM] Dr. Devdatt Diwedi Bramlehara: 🥀बुंदेली दोहा🥀
(विषय- चकिया)
जानकार बनकें सदाँ,
माँगत सबसें मान।
अंतस चकिया सें कडें,
लोभ, मोह,अग्यान।।
कूटनीति चकिया चली,
पिसौ प्रेम बेभार।
बोट बोट में बाँट दय,
गाँव पुरा परबार।।
जात धरम के भेद की,
चकिया खूब चलाइ।
भैयाबन्दी की इतै,
चौंरी कर दइ खाइ।।
ओझा, गुनियाँ, नाँवते
जी के आँगन जायँ।
पाखंडी पाखंड की,
चकिया खूब चलायँ।।
मन में जो सन्तोस सुख,
और सान्ति तुम चाव।
चकिया पीसौ प्रेम की,
गम्म गुरीरी गांव।।
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ामलहरा छतरपुर
[02/01, 12:59 PM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
विषय ,,चकिया,,
****************************
पिसनारी पीसत पिसी , पिसकें भइ पिसनोंट
चकिया को हुमसो डड़ा , सइ प्रमोद दरमोंट
*******************************
मानी मुंदरी मैं सजो , गजब प्रमोद सँजेव
तर के ऊपर पाट धर ,चकिया गेराँ घेव
*******************************
लमटेरा की टेक दऐं ,चकिया सादें राग
लडुअन खाँ पिस रइ पिसी , पिसनारी बड़ भाग
******************************
चौथियाक चकिया पिसो ,उगलन लगो गड़ार
झन्ना झार प्रमोद लव , भुनसारे के पार
********************************
गबनारी पिसनार बउ , धरें टांक सन्तान
चकिया पीस खवाउती , गातीं कतका गान
*******************************
समा लठारा घिसट लव , चना पिसी लय काड़
चकिया पीस मताइ ने , पालो घोरें हाड़
********************************
चकिया भांकेँ गाउतति ,दादी बाबा गीत
तब प्रमोद सो जात ते , सुन एसो सँगीत
********************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
,, स्वरचित मौलिक,,
[02/01, 1:54 PM] Brijbhushan Duby Baxswahs: दोहा
विषय -चकिया
1-जीवन की चकिया चलत,
चला रहे करतार।
साजौ साजौ पीसनों,
चाहत बृज संसार।
2-अडबंगी चकिया चली,
दोई पाट घिस जात।
आटा हो गव किसकिसौ,
खावो नहीं पुसात।
3-चकिया भारी काम की,
हर अनाज पिस जात।
"बृजभूषण "कह जुगत सें,
पीसत भर बन जाय।
4-चकिया की चिंता नहीं,
बृज विचित्र संसार।
एक दिना चकिया बिना,
चलत न कारोबार।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[02/01, 1:56 PM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
~~~~~~~
विषय- चकिया (चक्की)
१)
राजा बन हैं राम जूँ, दसरथ खाँ थी आस।
बिदनाँ की चकिया फिरी, चले राम बनवास।।
२)
ऐन मची दालान में, भइयन की तकरार।
चकिया रोउत देख कै, आँगन बीच दिवार।।
३)
ताली तौ तबईं बजै, जब जुरहैं दो हाथ।
चकिया जीवन की चलै, जोड़ी जब लौ साथ।।
४)
चूला ऊँघत अनमनो, चकिया भई उदास।
सूनी मचिया ताक रइ, घर लुगवन की आस।।
५)
चकिया सो जा जग भओ, नाज बनो इंसान।
पाटन घाईं जिंदगी, फिरा रए भगवान।।
६)
गाउत चकिया पीस रइ, भुज्जी खोलें केस।
पाती बाँचें हम सजन, भेजो तुम संदेस।।
~विद्या चौहान
[02/01, 2:00 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली दोहे विषय चकिया
कुकरा की बोली सुनीं,सो चकिया लइ ओर।
पीसन लगीं नुकांयनों, होन लगी अब भोर।।
चकियां धरीं ब्याव कीं,जुरन लगीं पिसनाइँ।
दो दो जुर कें पीसबें, गारीं गारइँ ठाइँ।।
भुकाभुकें भौजाइ ने , लइ है चकिया ओर।
कातिक गाबें सोंक सें, आ जैहों बड़ि भोर।।
चकिया पीसें चाव सें , गायँ गुरीरे गीत।
गोरी गुइँयां गांव की, मन भावन मनमीत।।
घर की चकिया कौ पिसो, सतुआ मन ललचाय।
गुर कौ सरबत घोर कें , सांन सोंक सें खाय।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[02/01, 2:21 PM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा -चकिया
(१)
संत कबीरा कह गये , पैलउॅं बात निचाट।
धरती अरु आकाश हैं, चकिया के दो पाट।।
(२)
चकिया चींनें नइॅं कभउॅं, देखौ जात कुजात।
पिसिया के संगै सुनों ,घुन सोऊ पिस जात।।
(३)
चकिया में मानीं ,डड़ा , झंन्ना और गड़ार ।
धना पिड़ी पै बैठ कैं , पीसें पांव पसार ।।
(४)
ओरी चकिया भोर सैं , पीसे सबइ अनाज ।
बेइ डुकइॅंयाॅं देख लो ,फिरत कटकरीं आज।।
(५)
चकिया की मेंनत बची , बउअँन के आनंद ।
लरका लै कैं आ रये , आटा बोरी बंद।।
आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 02/01/2023
[02/01, 2:33 PM] Dr. Renu Shrivastava Bhopal: दोहे विषय चकिया
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1 चकिया के दो पाट हैं,
नोने नर औ नार।
दोऊ मिलके पिसत है,
जीवन को है सार।।
2 चूल्हे चकिया विजना,
ब्याब में पूजे जात।
चक्की पंखा गैस से,
नइ लड़ेर पतयात।।
3 चकिया चाची की चलै,
बड़े भोर से रोज।
ओरी पर के सोउतीं,
जेठी बहु की मोज।।
4 भज्जा न्यारे हो गये,
चूले चकिया बाट।
लोरो भज्जा का करै,
बंजी कर रौ हाट।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
सादर समीक्षार्थ 🙏
स्वरचित मौलिक 👆
[02/01, 6:57 PM] Sanjay Shrivastava Mabai Pahuna: *सोमबारी दोहे*
विषय - *चकिया*
*१*
दो पाटन के बीच में,
पिसै जौंन इंसान।
चकिया सौ भेजा घुमे,
घुमे दीन-ईमान।।
*२*
चकिया घाँईं घूमरव,
समय रोज दिन रात।
जो पाछें रै जात सौ,
वो पाछें पछतात।।
*३*
चकिया पथरा की भली,
पेट भरें नर-नार ।
हाड़-माँस को आदमी,
मन पथरा कौ यार।।
*४*
चकिया चलवो भूल गइ,
चूले जले न आग।
चुगवे नइँयाँ चौंच खों,
चूँन ,चना न साग।।
*५*
चकिया रूकै न काउ की,
सबके भरबें पेट।
सब जन कौ उद्धार हो,
हो गरीब या सेट।
*संजय श्रीवास्तव*, मवई
२-१-२३😊 दिल्ली
[02/01, 6:59 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे - चकिया
जतवा चकिया भोर सें, पीसैं पाँव पसार।
उसरी उसरा गाउतीं,खुशी ख़ुशी दुइ नार।
घरन घरन चकिया चलैं, दिन में दोई जून।
सास बहू मिल पीसतीं, पिसै पसेरन चून।।
चकिया पीसैं होत है, एक पंथ दो काज।
मेनत हरवै रोग खां,और पिसत घर नाज।
भाई चकिया पाट दुइ, इक तौ बैठो राय।
घूम- घूम कैं दूसरो, बैठे खाँ खबवाय।।
गोबर पानी जो करै, चुल्हो चकिया काम।
होत हतो परवार में, ओइ बहू को नाम।।
चूल्हो चकिया काम की, हती-ति कर्री पूँछ।
नहीं बनो जी सें अगर,समझत ते उय छूँछ।
अब चकिया सो मो चलै,तनकउ नै गम खाय।
एक सुनै उर दो कहैं, कछू कहौ लड़ जाय।।
मौलिक/
अमर सिंह राय
नौगांव, मध्यप्रदेश
[02/01, 7:28 PM] Sr Saral Sir: बुन्देली दोहा चकिया
चकिया अत्याचार की, दुष्टी रये चलाय।
मानवता मारी गईं , गुंडइ रये बताय।।
पाखंडी पाखंड की, चकिया रये चलाय।
अपनों स्वारत सादके, उल्लू रये बनाय।।
चकिया नौनी प्रेम की, सबके मन खौ भाय।
मुश्किल मानुष तन मिलों,पीसत नईं अघाय।।
जन सेवा चकिया भली, पीसत रव दिन रैन।
जा चकिया मन में बसी,*सरल* भौत सुकदेन।।
एस आर सरल
टीकमगढ़
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