Rajeev Namdeo Rana lidhorI

रविवार, 21 मार्च 2021

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद(काव्य संकलन ई-बुक) -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.)



             बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
                  (काव्य संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

             बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
                  (काव्य संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ई बुक प्रकाशन दिनांक 21-03-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965



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अनुक्रमणिका-

1- उमाशंकर मिश्र, टीकमगढ़
2- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
3-राम गोपाल रैकवार, टीकमगढ़
4-अशोक पटसारिया'नादान', लिधौरा टीकमगढ़ 
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर,(निवाड़ी)
6-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
7-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़
8-संजय श्रीवास्तव,मवई 
9-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी
10-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
11- सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़
12- सरस कुमार, दोह (खरगापुर) 
13- गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
14-दीन तुकबंद अज्ञानी,हरदा (मप्र)

🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

1-उमाशंकर मिश्र, टीकमगढ़

कितनों डारो खाद, जौ बँदरा का जानें ।।
तौउ आव नइँ स्वाद, जौ बँदरा का जानें ।।

बड़े चाव सें बव तो हमने जौ अदरक,
कर डारो बरबाद, जौ बँदरा का जानें ।।

खेत खों कितनों खून सें सींचो है हमने,
कैसें भय आजाद, जौ बँदरा का जानें ।।

एकई बेर तौ सुनें ऊँगाई आ गई है,
तुम कर रय इरसाद, जौ बँदरा का जानें।।

रोटीं सबरीं बाँट बाँट खुदई खा लईं,
दै देते एकाद, जौ बँदरा का जानें ।।

पकरा तौ दव हाँत उस्तरा हम सबनें,
अब का ई के बाद, जौ बँदरा का जानें ।।

जे हैं कारे मौं के उर बे लाल के हैं,
बढ़ तइ जात विवाद, जौ बँदरा का जानें ।।
                @उमा शंकर मिश्र, टीकमगढ़

🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

2- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

**बुंदेली दोहे- '*

बँदरा तौ जानत नईं,
है अदरक कौ स्वाद।
मैंक दऔ है चींख कैं,
कर दऔ है बरबाद।।

-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ {मप्र}

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3-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़


क्या है अदरक का स्वाद,
ये बंदर क्या जाने।
करना है किसको याद,
ये बंदर क्या जाने।
दिन भर करता है उछल-कूद,
मन के जैसा।
है उसकी कितनी मियाद,
ये बंदर क्या जाने।।

बँदरा पुरखा हैं पने,
करलो ईखों याद।
फिर तुम उनसें पूछियो,
का अदरक कौ स्वाद।

जिनैं ग्यान-अनुभव नईं
उनै दुआते याद।
बँदरा का जानें भला,
का अदरक कौ स्वाद।।

-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

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     4  -अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़

💐बंदर का जानें💐
  """" """" """""" ""'''' ""'''
हमखों सबसें चाहिए,कुछ पानी कुछ खाद।
धार कलम की तेज हो,  ना हो कोइ विवाद।।
          
गहराई गम्भीरता,शब्दों में हो जान।
 बंदर का जाने अबै,ई अदरक कौ स्वाद।।
         
सबके लाने देत रत,हम तौ भैया दाद।
बंदर का जानें अबै, का अदरक कौ स्वाद।।
      
मीन मेख त्रुटियाँ गिने,विद्वानन कौ काम।           
उछल कूंद कर पटल को,रखते हैं आबाद।।
               
             * * *
बंदर का जानें अबै,राजनीत के दांव।
एक पुचपुटो बीद जै,भग जै उल्टे पांव।।
           
जो माहिर हैं या कहें,हम उनको चाणक्य।
सभी जगह मिल जायँगे,रहे शहर या गांव।।       
              * * *
      -अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़

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5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)

भोग छुडा़वौ ठीक नहीं है ,
                       बँदरा काॅ जानें ।
धुआँ उडा़वौ ठीक नहीं है ,
                      अँदरा काॅ जानें ।

-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)

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6-डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल

          
    'बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद' 
           "  एक सीख" 

अलौकिक दुनियां है आत्मा के अंदर
ज्ञानी सब जानते नहीं जाने  बंदर

हीरे की परख पारखी ही जाने
और सब तो उसे पत्थर ही माने

हल का मूल्य तो हलधर ही करते
बाकी लोगों से कभी हल ना निकलते

बोलियों की बातें करते हैं मनमानी 
बुन्देली बोली का मूल्य जाने ज्ञानी

बेटी बचाओ अभियान सब चलायें 
बेटी की इज्जत कुछ बिरले ही कर पायें 

सारे उदाहरणों से समझ आया मंजर
अदरक का स्वाद क्या जाने बंदर 

'रेणु 'कहती है सीख मिली आज
अनाड़ियों को मत सौंपो कमान। 
             
             ✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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7-प्रदीप खरे मंजुल*टीकमगढ़

बिषय -बंदर क्या जानें...
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बंदर क्या जाने,
अदरक का स्वाद।
यह पूंछ कर लेते क्यों,
बंदरों से विवाद।
बंदर वाली है, 
हनुमान है।
हम इंसानों की 
पहचान है।
उनके कारण ही,
जीते मेरे भगवान।
उनका है, बहुत बढ़ा
एहसान।
बंदर पीते घाट-घाट
का पानी।
यह हम जानी,
और तुम जानी।
बंदर तौ जानत हैं,
 सारी दुनिया दारी।
वे तौ बन गये,
अब अपनी है बारी।

-प्रदीप खरे मंजुल*टीकमगढ़

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8-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)

कर-कर बँदरा-बाँट अब,
कर रय वाद-विवाद।
कत, बँदरा खों नइं पतौ,
का अदरक कौ स्वाद।

    -संजय श्रीवास्तव,मवई स्वरचित, १५/३/२१दिल्ली

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9-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी


कुंडलिया.
'बंदर क्या जाने'

बैठे रहते आजकल, आंख कान मुंह बंद।
बंदर क्या जाने भला, दुनियाँ का अब द्वंद।।
दुनियाँ का अब द्वंद, बढ़ी जमकर मंहगाई।
बुरा सुनो ना कहो ,न देखो कहते भाई।।
कहता 'इंदु' बिचार, लिये कुर्सी मद  ऐंठे।
होगें हाल विहाल,जहाँ  उतरोगे बैठे।।

.रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी

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10-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
      

बंदर क्या जाने 
अदरक का स्वाद,
बुद्धि का मिला है 
जन जन को प्रसाद।

सोच समझ का फेर है ,
अर्थ भाव को भिन्न जाने ,
वही  मूल्य विशेषता 
अपनी समझ से पहचाने ,।

कोई हीरे को पत्थर समझे ,
कोई तिनके दूब 
कचरा घास भी कहें
समझ रखते खूब ।

परख ज्ञान प्रकाश है ,
हर मानव जन पाता 
अपनी आस्था से  विश्वास से 
तृण में जीवन आता।
  
-हंसा श्रीवास्तव , भोपाल
20,3,21

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11-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
  
समझत रहे जो काम को व्याद
बंदर क्या जानें अदरक का स्वाद ।जीनें करो न खुद का काज 
जो रहे सदा गैर को साद 
वे क्या जाने अदरक का स्वाद ।
खाईं गकइयां गाये गीत 
वे तो चले चैतुआ मीत 
फिर वे करत न अपनी याद 
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
 जो न गये हैं कभी बरातै।
कट गई सोते उनकी रातें 
टारत रहे जो सदा विवाद 
बंदर क्या जानें अदरक का स्वाद
 करी न खेती परे न पंत
घर घर डोले मूसरचन्द 
हर काम की कढी मियाद 
बंदर क्या जानें अदरक का स्वाद ।जे अनुभव से रहे हैं कोरे 
बने रहे जे बिल्कुल भोरे 
इन्हें करत न कोई याद 
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 

-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़ 
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

12- सरस कुमार पता,दोह खरगापुर 

जय बुंदेली साहित्य समूह - 

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद 
यह कहावत आती तब याद 
जब कोई संतरे 
बेरो के भाव में बैचता हैं। 
कोई अंधा बहरे को गीत सुनाता हैं 
और बहरा 
एक स्वस्थ्य आदमी को गीत सुनाता है 
पर उसकी समझ नहीं आता है। 
माटी की कीमत कुम्हार जानता है 
बर्तन खरीदने वाला क्या जाने 
माटी की कीमत सरहद पर तैनात 
सिपाही जानता है 
प्रेम में पागल क्या जाने 
सावन का आनंद मोर, दादुर के अलावा 
कौआ क्या जाने 
कुँआ का मेढक क्या जाने समुन्दर के बारे में ।

 - सरस कुमार पता,दोह खरगापुर 

🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

13-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़

बंदर क्या जाने  अदरक का स्वाद

इसी तरह कुछ लोग 
दैखो जे बरवाद

घर परिवार को बोझ छोड़ दव
मान नही रये बच्चों को कव
-जोड़ नहीं रये लाशन 
पानी जे खाने का खाद
इसी तरह कुछ लोग
दैखो है बर वाद

दिन भर कर रये जे
मजदूरी
फिर भी पेश न पाबै पूरी

वंदर भात अकल है
इनकी 
का जाने फरयाद
इसी तरह कुछ लोग
दैखो है बरवाद

है वंदर से बुरी अकल के
रूप कोरूप नही सकल के

काये को जो जन्म
भाऊ बनो अवाद।
इसी तरह कुछ लोग
दैखो है बरवाद।।

-गुलाब सिंह यादव,लखौरा टीकमगढ़

🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹

14-- दीन तुकबंद अज्ञानी,हरदा

//  क्या जाने अदरक का स्वाद//

वह केवल फल ख़ाता है

अदरक जड़ है मटमैली-सी
गीली गीली एक थैली-सी
बेहद चरका और चिरपिरा
अदरक एक इंसान सिरफिरा

बंदर दूर दूर रहता है
डरता है, भय खाता है

वह केवल फल ख़ाता है

वह शाखों पर लटका रहता
अदरक भू में अटका रहता
घोर अंधेरे में रहता है
सौ सौ घेरे में रहता है

बंदर है स्वच्छंद सदा ही
उसे न बंधन भाता है

वह केवल फल ख़ाता है

अदरक ताकत की दवाइ है
बंदर ने स्वयमेव पाइ है
ज्यादा ताकत ध्वंस करेगी
महानाश, विध्वंस करेगी

दुनिया का दुख और बढ़ाना
बंदर को नहिं भाता है

वह केवल फल ख़ाता है

इसीलिए जाने ना स्वाद
किंतु नहीं है वह नाशाद
अदरक के बिन ख़ुश रह लेता
जग की चरकाहट सह लेता

फल न मिलें तो पत्तों पर ही
कई दिवस रह जाता है

वह केवल फल ख़ाता है !
वह केवल फल ख़ाता है ।

-- दीन तुकबंद अज्ञानी,हरदा(मप्र)
           
     22 मार्च 2021
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹



 बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
                  (काव्य संकलन) ई बुक
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