होरी
होरी
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 29-03-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
3- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
5-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
6-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
07-रामानन्द पाठक,नैगुवा(म.प्र.)
08-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
09-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,(म.प्र.)
10- प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष',टीकमगढ़ (म.प्र.)
11-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
12-डां सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
13- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
14- गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
15- संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
16- वीरेन्द्र चंसौरिया जी, टीकमगढ़ मप्र
17- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
18- एस आर सरल, टीकमगढ़
19- डी.पी. शुक्ला जी टीकमगढ़
20- अरविंद श्रीवास्तव, भोपाल
21-लखन लाल सोनी, छतरपुर
😄😄😄 बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
*बिषय बुंदेली दोहे -होरी*
*1*
होरी ऐसी खेलियौ,
ज्यौ राधा गोपाल।
मन से मन हैं रंग गऔ,
गालन लगी गुलाल।।
*३*
होरी सी तौ नंहि लगै,
गाल होय ना लाल।
कारै,पीरे या हरे,
या फिर लगे गुलाल।।
*3*
रओ न होरी कौ मजा,
न लगतई त्यौहार।
कोविड सें बचने अगर,
घर बैठो सब यार।।
***
*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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होरी खेले राम जी , वैदेही के संग ।
पुष्प-वाटिका में खिले , अमर प्रेम के रंग ।।
होरी खेले भरत जी , महिमा कही न जाय ।
राजपाट तज कें बसन , भगवा रंग रँगाय ।।
होरी खेले लखन जी , वन में सिय के साथ ।
फूलन की बौछार कर , चरनन टेकौ माथ ।।
होरी हनुमत लाल जी , खेले सागर पार ।
रावण खों डरवा दियौ , लंका डारी बार ।।
होरी तुलसीदास जी , खेले अपरम्पार ।
राम-रसायन रंग में , रँग डारौ संसार ।।
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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3- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
फागुन कौ हम का करें,
भाबै नईं बसंत।।
होरी होरी में गई,
घर जब नइँयाँ कंत।।
मन मथुरा, मन जमुन-जल,
मन ग्वालिन, मन ग्वाल।
मन होरी, मन रंग है,
मन राधा-गोपाल।।
बही बसंती मद भरी,
सोंधी मस्त बयार।
होरी के रस रंग में,
डूबे हैं नर-नार।।
रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मौलिक-स्वरचित।
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4-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
#1#
होरी मन की मौज है,अधरन की मुस्कान।
सबके मन चाहत भरी,प्रेम भरे अरमान।।
#2#
होरी खेलत मन मिलत,तन होबै रंगीन।
सातों सुर संगीत के,गूँजत मन की बीन।।
#3#
तन सें होरी खेलबे,मन सें गोरी आइ।
तन मन होरी सें सनें,बजने लगी बधाइ।।
#4#
चित्त चुरायें राधिका,भर पिचकारी मार।
चित्र चितेरे हो गये,देखत नंदकुमार।।
#5#
होरी बरजोरी करें,गोपिन संग ग्वाल।
किन्नर सँग गंधर्व हैं,राधा सँग नँदलाल।।
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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5-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
1***
समता और बन्धुत्व कौ ,जितै होत है राज ।
मनत उतै होरी सदा ,सुधरत हैं सब काज ।।
2***
होरी के त्योहार पै ,गलें मिलत सब लोग ।
जाति धरम खों भूल कें ,सबइ खात मिल भोग ।।
3***
हमजोली अपनें जुरे ,सबरे खेलत फाग ।
लकडी़ कंडा जोर कें ,लगा होलिका आग ।।
4***
मथुरा की गोरी चली ,लैकें रंग गुलाल ।
पकर मदन गोपाल खां ,भिडा़ दये हैं गाल ।।
5***
सब होरी पै झूमवें ,गालन लगा गुलाल ।
गलियन में लोटत फिरें ,कीचड़ रये उछाल ।।
-सियाराम अहिरवार,टीकमगढ़
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6-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
😊💐हो"री💐😊
होरी में फगुआ जुरे,
बजे नगड़िया ढोल।
रँग गुलाल सें नइ बचे,
बिजली तक के पोल।।
होरी की हुड़दंग में,
पी लइ इतनी भांग।
नाली में ओंदे डरे,
ऊपर दिख रइ टांग।।
लद्दफद्द होबे लगी,
हुरयारन की टोल।
चीन न पाबें कोउये,
छोटे बड़े मझोल।।
गलबइयाँ डारें मिले,
दानिश उर परिजात।
गंगा जमनी सभ्यता,
होरी में दिख जात।।
फगुनाहट में चढ़ गई,
ठंडाई की भंग।
में मतवारी हो गई,
देख सभी के रंग।।
लठ्ठमार होरी खिली,
धरतीं हो गई लाल।
वरसाने की गोपियां,
गोकुल के थे ग्वाल।।
* * * *
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
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7-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
1
होरी के दो पक्ष रंय,हिरनकशिपु पैलाद ।
होरी होली जल गई,भक्त भऔ अपवाद ।।
2
प्रेम रीत अवतार भय ,राधा नंद किशोर ।
जगत प्रेम में बंदत है,निरख जुगल छवि ओर ।।
3
रै रै मन मोव करत है, जांव विन्द्रावन धाम।
प्रेम रंग सरवोर हों,देख छवि घनश्याम ।।
4
इत्तौ रंग मो पै गिरै,फीकौ कभउं न होय,।
कृपा रयै छविधाम की,न चाहौं रंग कोय ।।
5
हो ली छवि मन में अमिट, मन में राखौं गोय।
हर होली रंग खेलवें,पाऊं दरसन दोय ।।
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
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8-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
होली की शुभकामना, लेकें रंग गुलाल/
कोरोना को भय इते, मलन न देवे गाल//
होली मस्ती में भरी, करती फिरे धमाल//
गोरी के अब गाल खों, चूमे रंग गुलाल//
होली खेलें प्रेम की, राधा नटवर संग/
दो गज की दूरी रखें, और उडावे रंग//
बुंदेली साहित्य के, कवि सब भरे उमंग/
होली पर बरसा रहे, वे कविता के रंग//
होरी होरी में गई, होरा दे आनंद/
खेत और खलिहान में, होंय फाग के छंद//
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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09-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल, (म.प्र.)
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल
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10-- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
बुंदेली दोहे विषय होरी
होरी खेलत दृगन में, भरे गुलाल गुपाल।
धोयें कड़ो गुलाल पै,कैसें कड़त गुपाल?
निस दिन मन में धधकबै, होरी कैसी आग।
जौ जीवन फीकौ रहौ, खेल सके नइं फाग।।
ना सारी ससुरार में,ना घर में भौजाइ।
की संग होरी खेलबें,कोउ न देत दिखाइ।।
होरी में कछु तन रंगे,कछु मन रंगे दिखायं।
कोरे के कोरे रहे, हमें न रंग पुसायं ।।
होरी श्यामा श्याम की, धूम मचारइ ऐंन।
तन झूमें मस्ती भरे,नचें नशीले नैंन।।
- प्रभु दयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
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11-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय..होरी* 💐*29.03.2021* 💐
1-
ग्वालिन धुनकें लठ्ठ सें,
कुटत ग्वाल-गोपाल।
बरसाने में बरस रई,
खूबइ रंग -गुलाल।
2
माँग, गोद सूनी भई,
ई कोरोना काल।
होरी बदरंगी लगै,
बिगरे सब के हाल।।
3
'मंजुल' मन भारी करैं,
होरी खेलन जाय।
कैऊ कलपत जब दिखें
मन बरबस भर आय।।
4
होरी हर की हरत है
हरदम देखो पीर।
तन-मन रँग में रँग गऔ,
अंबर रँगत अबीर।।
5
धानी चुनरी ओढ़ कें
सजी धरा इस बार।
होली आई रँग गई,
बरसाने की नार।।
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
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12 -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
होरी खेलन हम गए,ले के रंग गुलाल।
कोरोना बाहर खड़ो, पूछ रयो थो हाल।
खाकी वर्दी 'रंग' में, होरी के नइँ ठठ्ठ।
बिना मास्क जितने मिले, परे दनादन लठ्ठ।।
कोरोना ने कर दओ, सबकछु मटियामेट।
रंग भंग होरी भई,परे हैं खटिया लेट।
लॉक डोन जबसे भओ, भैयाजी हैरान।
होरी में अब ने मिले, मनभावन पकवान।
लाल गुलाबी अधर पे,मन मोही मुस्कान।
रंग लगा के कर गई, होरी पै पहचान।
-डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा
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13- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
😄 💐होरी है💐 😁
होरी की हुड़दंग में, देखत नही चिनार ।
निरधन, धन्नासेठ हो,या हो लम्बरदार। ।
लीलौ, पीलौ जामुनी,और हरीरौ-लाल।
रास-रंग में रँग गये,प्रेम रंग खों डाल।।
गोकल मथरा में खिले, औ बरसाने धाम ।
गोपी संगे ग्वाल भी , राधा संगे श्याम ।।
दोष, दुश्मनी, दुष्टता, होरी में बर जाय ।
प्रेम, पवित्रता, दोस्ती, जन जन हृदय समाय ।।
पिया मिलन की आस में, बरसत निस दिन नैन ।
आसुन की होरी गई,मिलो न अब तक चैन।
- सरस कुमार, दोह, खरगापुर
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14- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
🌸 भक्ति में शक्ति
1-होरी जन खो चेतना
दैती है हर साल
फुवा आग में जा बरी
बचे प्रेलाद से लाल
2-भक्ति में शक्ति बड़ी
हेरनाकुश की हार
भये भक्त प्रलाद से
होरी का त्यौहार
3-सत्य बिजय की भई
अधर्म की है हार
होरी पर्व बताऊत है
पाप पुन्य को भार
4-होरी में मदरा पिये
मचा रहै हुरदंग
रंग में भंग मचाऊत है
हिरनाकुश बन संग
5-
डारौ ऐसौ रंग तुम,
जो देही चढ़ जाय।
स्याम रंग हो जाय मन,
न फीकौ पड़ पाय।
- गुलाब सिंह यादव भाऊ, टीकमगढ़
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15- संजय श्रीवास्तव,मबई, हाल दिल्ली (म.प्र.)
*१*
संग होलिका के जले,
अहंकार का भाव।
द्वेष,जलन,ईर्ष्या जले,
रहे प्रेम सदभाव।।
*२*
सामाजिक सदभाव का,
है होली त्यौहार।
प्रेम, हर्ष, उल्लास में
सराबोर संसार।।
संजय श्रीवास्तव, मवई। २९/३/२१, दिल्ली💐
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16- वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
रंग बिरंगे दिख रहे,इतै उतै सब लोग
होरी के हुरदंग कौ, लग गव सबखों रोग
जली बुराई रात में,संग होरी की आग
अच्छे मन सें खेल रय,सबइ जनें अब फाग
रंग प्रेम कौ डार कें, होरी खेलौ खूब
करौ मित्रता आज तुम,जाव खुशी में डूब
होरी कौ त्योहार जौ,सबके मन खों भाव
एक दूसरे खों सबइ, रंग सें खूब भिड़ाव
--------------स्वरचित--------------
-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
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17- - डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
1 होरी हो रइ गांव में,
मुखिया की चौपाल।
भौजी घूंघट घाल के,
कड़ गइ नोनी चाल।।
2 होरी के रंग में रंगी,
जा लड़ेर दिन रात।
कर रय खूब उपद्दरौ
की की की सें कात।
3 कड़ो न सैंया बायरें,
कोरोना के काल।
घर में होरी खेल लो,
लाल करालो गाल।।
4 होरी ऐसो परव है,
सब खों शिक्षा देत।
जरै बुराई आग में,
सच्चो परचव लेत।।
5 लाकडान जो लगो है,
का होरी का दोज।
खाबे को रोटी नहीं,
जिनके आँते रोज।
✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
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18-एस आर सरल,टीकमगढ़
बुन्देली दोहा #होरी#
(1)
कवी बृन्द हुरया बने,
रय कविता रँग डार।
जय बुन्देली पटल पै,
बृज सी बहै बहार।।
(2)
हुरया होरी हुलक में,
निकरत खेलन फाग।
गाल गुलालन सै रँगै
लगै चुनरिये दाग।।
(3)
बृज नारीं द्वारै खड़ीं,
पिचकारी लँय भोर।
खेलन होरी आय है,
दुकौ न माखन चोर।।
(4)
श्रैष्ठ रंग रस रंग है।
मानवता रस घोल।
प्यार रंग बर्षा करौ,
हिय कपाट को खोल।।
(5)
त्योहारन के नाम पै,
.. रय कुरीतियां ढ़ोय।
ज्यों धोयें तन ऊजरौ,
मन न ऊजरौ होय।।
मौलिक एवं स्वरचित
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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19--डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
प्रेम रंग तन जौ रँगो,
होरी के 'मैमान'।
लगा गुलाल कपोल पै,
नैनन मारे बान।।
तन-होरी, होरी नईं,
मन की होरी प्रान।
प्रेम रंग तुम डारियो,
बढ़ कें रै है शान।।
अंग वसन होरी भई,
होन लगत है खोट।
सूकौ रँग, माथे तिलक,
नईं लगत है चोट।।
डी.पी शुक्ल'सरस',, टीकमगढ़
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20-अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
'हो' ध्वनि है उल्लास की, 'री' सजनी सम्बोध,
'त्वरा' हर्ष अतिरेक की, 'होरी' उत्सव बोध ।
'हो' हास्य अवधारणा, 'री' में है लालित्य,
दोई के सानिध्य में, 'होरी' कौ अस्तित्व ।
फागुन-चैतै खेत में, गाहै उपज किसान,
करै खुशी में डूब कैं, होरी पै नृत-गान ।
*अरविन्द श्रीवास्तव*,भोपाल
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21-लखन लाल सोनी, छतरपुर
साल भरे में आत हैं !
होली को त्योहार ।
भर पिचकारी मारियो
उड़े रंग बौछार ।।
उड़े रंग वोछार
वचन ना कोऊ पावै।
" लखन " लगानै रंग
छूट कै कड़ ना जावै।।
🕉 कवि- लखन लाल सोनी "लखन"
छतरपुर (म0प्र0)
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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