पनिहारिन
पनिहारिन
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 15-03-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
3-अरविन्द श्रीवास्तव भोपाल(म.प्र.)
4-अशोक पटसारिया'नादान', लिधौरा टीकमगढ़
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
6- एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
7-डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
8-डां. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
9- रामानन्द पाठक,नैगुवा
10-राम गोपाल रैकवार, टीकमगढ़
11-प्रदीप खरे मंजुल*टीकमगढ़
12-संजय श्रीवास्तव,मवई
13-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी
14-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
15- सियाराम अहिरवार, टीकमगढ़
16- सरस कुमार पता,दोह खरगापुर
17- गुलाब सिंह यादव भाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
18- वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र)
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा (म.प्र)
20- रामकुमार शुक्ला,चंदेरा (म.प्र)
21- लखन लाल सोनी, छतरपुर
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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
**बुंदेली दोहे- 'पनिहारी'*
*1*
पनिहारिन पानी भरे,
कमर रई लचकाय।
हिरनी सी कूंदत फिरे,
दिल घायल हो जाय।।
*2*
पनिहारिन गगरी धरै,
पानी छलकत जाय।
तीर चलाय नैनन सें,
दिल जौ मचलत जाय।।
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ {मप्र}
©©©©जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़©©©©
2-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
##1#
पर जाबें जिस गली में,पनिहारी के पाँव।
उन पाँवन की धूर सें,धन्य होय बौ गाँव।।
#2#
प्रान जाँय राखें बचन,जा रघुकुल की रीति।
पानी सें जो लगी है,पनिहारी की प्रीति।।
#3#
सीता सावित्री सती,चलै सरसुती साथ।
पनिहारी डग जब धरत,संग चलत रघुनाथ।।
#4#
पनिहारी की प्रीति है,पनघट पानी दोय।
पानी राखै कुटुम कौ,कुलवंती सुख सोय।।
#5#
पनिहारी पानी भरै,पनघट सें सुकुमार।
चली भवानी भुवन खौं,कलश धरें शिर भार।।
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
©©©©जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़©©©©
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
3-अरविन्द श्रीवास्तव* भोपाल
*पनिहारिन*
बहू बेटियाँ गाँव कीं, जब पनघट पै जायँ,
बोली के माधुर्य में, पनिहारिन कहलायँ।
भये खनन नलकूप सो, सूक गये सब कूप,
अब ना वे पनघट बचे, ना पनिहारिन रूप।
पनिहारिन है आतमा, पनघट है संसार,
नेकी के घट पूर लो, हो जै कबै पुकार।
*अरविन्द श्रीवास्तव* भोपाल
(मौलिक-स्वरचित)
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
4 -अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
💐पनिहारी💐😊बुन्देली दोहे😊
पनिहारिन हैं भौत सीं,
पनघट मिले अनेक।
भांडे सबके अलग हैं,
पानी उनमें एक।।
पानी कैसौ ब्रम्ह है,
सबमें एक समान।
बर्तन जितनों साफ है,
उतनी ऊंची शान।।
पनिहारिन जैसे घड़ा,
धरें एक पै एक।
हिलतीं डुलतीं चालतीं,
जोड़ें सुरत विवेक।।
पानी भरवे जात ते,
घर सें कोसन दूर।
एक हतौ पनयाँ कुँआ,
पनिहारिन मजबूर।।
खतम हुए पनघट सभी,
पनिहारिन की पीर।
बटन दबाने से मिलत,
अब तौ घर घर नीर।।
* * *
-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
5-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
पनिहारी पनिया भरन , जब पनघट खों जात ।
नयी दुलइया है अगर , डग - डग पै सकुचात ।।
पनिहारी हिम्मत लगा , हैण्ड पम्प खों भाँत ।
खन-खन बजतीं चूड़ियां , घुँगटा उड़-उड़ जात ।।
पनिहारी हाँपन लगत , लेन चात है ओत ।
गैलारे सोभा निरख , मन ही मन खुस होत ।।
खेप धरत है मूँड़ पै , पनिहारी डग देत ।
दूनर कम्मर होत है , मन सबकौ हर लेत ।।
पनिहारी जब गैल में , खेप धरें घर आत ।
छिनमिनईंयन निगत है , चार चाँद लग जात ।।
-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
6-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
#दोहा #पनिहारी#
#1#
पनिहारी से प्रान हैं,
गागर तुल्य शरीर।
जीवन पनघट सी डगर,
भाव गगर से नीर।।
#2#
मानव काया गगर सी,
विधि नै दई बनाय।
तन मन घड़ा घमंड का
छिन माटी मिल जाय।।
#3#
बुरे कर्म ज्यौ हवा सी,
चलत गगर डुग जात।
जब जब झौका से लगै,
पनिहारी थमयात।।
#4#
मन मतंग गागर छलक,
जलकत अधजल होत।
मलकत पनिहारी चली,
पानी गगरन ढोत।।
#5#
खेप धरै पानी भरै
लय पनिहारी रुप।
चिन्ता रत परिवार की,
लखै छाँव नइँ धूप।।
मौलिक एवं स्वरचित
-एस.आर.'सरल', टीकमगढ़
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7- डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़
पनिहारी की गैल में !
डरे डड़ो़रा रात !!
खेत की मेड़न पै चलै!
पायल छनकत जात !!
गागर घर गागर चलै!
हिलै डुलत वा नॉहिं!!
डग डग पनिहारिन भरै!
उठा उतारत वाँह!!
जल भर पनिहारिन चली!
लै कुनई उर डोर !!
पाठ कुँअला खेंचती!
लाती गागर बोर!!
गावन बिच कुअँला बने!
देतइ मृदुल मिठास !!
पनिहारिन भर गागरै!
बेऊ आउत रास!!
गागर सिर पै धरें खड़ी!
घंटन करतीं बात!!
पनिहारिन अब ना दिेखें!
भोरईं सें कढ़ जात!!
डी.पी.शुक्ल 'सरस', टीकमगढ़ (मप्र)
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
8-डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
1 खेप धरें सिर पे बड़ी,
पनिहारी बा नार।
अबे काम भारी डरो,
साफ करौ जा सार।।
2 पनिहारी अब दिखत हैं,
बस फोटो में आज।
अब सब नारी करत हैं,
ऊंचे ऊंचे काज।।
3 पानू भरबे कड़ चली,
पनिहारिन की फौज।
बिमला कमला कर रही,
आपस में जे मौज।।
✍️- डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
9 -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
पांच दोहे,
घट धर सिर पनियारि चलि, दूजौ कर में होइ।
सर्प गती सी चलै जब, धरां रती सी सोइ।
2
भोर सांझ पनियां भरन, जातीं कर वे साज।
बतियातीं निज बात कंय , जौ भव जिज्जी आज।
3
गांवन दर्शन होत हैं, पनिहारिन के आज ।
शहरन नल सुविधा भई, सुख में नारि समाज ।
4
दूरन गहरौ जल रहै ,पनिहारिन बस नांय।
पुरुष भी उनकौ संग दै, दोऊ भरवे जांय ।
5
सगुनी पनिहारी भई ,पूरित घट दिख जाय ।
रोक घड़े में नेंग दो , काज सफलता पाय।
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
10-राम गोपाल रैकवार, टीकमगढ़
रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मौलिक-स्वरचित
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
11-प्रदीप खरे मंजुल*टीकमगढ़
*बुंदेली दोहे बिषय पनिहारी*
1-लाल चुनरिया पैरकें,लाली अधर लगाय।
लाल गगरिया सिर धरें,पनहारिन है जाय।।
2- पनिहारी पछतात है, करे कान्हा उत्पात।
गगरीं फोरत गलिन में, ऊधम खूब मचात।।
3- छाती गतकौ सौ लगे, जब निकरै पनिहार।
लट झटकत लटकत चली, कर सौरऊ ऋंगार।।
4- ओठन लाली लाल है, आंखन काजर कोर।
दमकत मुखड़ा भान सौ, रतियां लागें भोर।।
5- गांव के नीरें भरत हैं, पनिहारिन नित नीर।
मंजुल निरखत भीर खौं, मन हो जात अधीर।
-प्रदीप खरे मंजुल*टीकमगढ़
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
12-संजय श्रीवास्तव,मवई (दिल्ली)
*बुंन्देली*दोहा*
विषय- *पनिहारी*
*१*
पनिहारिन भईं यात्री,
पनघट एक सरायँ।
पंछी आबैं घाट पे,
पानी पी उड़ जायँ।।
*२*
पनिहारी घट लै चली,
करकें बंद किबार।
जौ लौं घट खाली रहे,
आऊँगी न द्वार ।।
*३*
पनिहारिन पुण्य आत्मा,
घर भर प्यास बुझाय।
चौका-चूल्हा साधकें,
रुच-रुच भोज कराय ।।
*४*
पनिहारिन हिल-मिल चलीं,
हँस-हँस करतीं बात।
बतकाव को अंत नहीं,
घण्टन कड़ -कड़ जात।।
*५*
पनघट पे बतरस बहे,
पनिहारिन के बीच।
छैला कछु उबरा परे,
मची बीच में कीच।।
-संजय श्रीवास्तव,मवई स्वरचित, १५/३/२१दिल्ली
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
13-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
सूना पनघट आजकल,
सूना- सूना गाँव/
पनिहारिन दिखती नहीं,
लगा महावर पांव//
पनघट जर्जर हो गये,
सूखा उनका नीर/
आतप में इस बात की,
है पनिहारिन पीर//
.रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
14-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,
आआओ बसंत झूम कै,
लै फूलन कै रंग ।
बाग बागन महकत हैं,
मनवा भरी उमंग ।
कुदरत को रंग निखरौ,
छाओ रूप अपार ।
अमलतास दहकत रयौ ,
बहकत है कचनार ।
स्वरचित
-हंसा श्रीवास्तव, भोपाल,01,02,21
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
15-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़
1****
पनिहारिन मटकत चली ,धर कें सिर पै खेप ।
घरवारे ई काम में ,करत नई हस्तक्षेप ।।
2****
समर समर पग धर रई ,चढत कुआं की पाट ।
पनिहारी अर्धांग सें ,चढवै कैसें घाट ।।
3****
पनिहारी मिलकें सबै ,भरवे जा रइं मैर ।
बिटिया कौ मडवा डरो ,माता रखियो खैर ।।
4****
गर्रा डोरी डार कें ,भर पनिहारिन नीर ।
चलती जा रइ हाँफती ,समझत न कोउ पीर ।।
5****
पनिहारिन खों देखकें ,ठलुवा रये मुस्काय ।
गलियारे में रोक कें ,घंटन नों बतआय ।।
-सियाराम अहिरवार टीकमगढ़
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
16- सरस कुमार पता,दोह खरगापुर
(01)
पनिहारिन पनिया भरन,
गई कुँआ की पाट ।
खैप धरे धीमी चले,
घूँघट वज्र कपाट ।।
(02)
जिठनी, नंद, देरानी,
पानी भर के आय ।
गाँव पुरा की औरते,
देख हृदय जर जाय ।।
(03)
रचो महावर पाँव में,
बूँदा लगो लिलार ।
पनिहारिन पनिया गई,
चुरियन की खनकार ।।
(04)
दूर हार के है कुँआ,
सुन सजन सरकार ।
पनिहारिन लगा लो जू,
तन टूटत सबयार ।।
- सरस कुमार पता,दोह खरगापुर
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17-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़
1-पनिहारी पनियां चली
घुघटा आपने डार
प्रीतम बोर कराये लो
कुॅवा दूर के हार।।
2-छैला छेल छलबे फिरे
घुघटा निरखत जात।
पनिहारी खो गैल मे
देख मन्द मुस्कात।।
3-
खैप धरे द्रोवरे खड़ी
पनिहारी पनहार
लाला खैप उतार दो
दैखत का उनहार
4-गागर की उतराई में
भौजी नेग हमाव
पनिहारी का देत हो
सासी मोये बताव
5-का चाने लाला कहो
दैहो नेग तुमाव
देवरा मोरे लाडलै
मन से न सरमाव
-गुलाब सिंह यादव,लखौरा टीकमगढ़
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
18- वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़ (म.प्र)
धर कें गगरी मूड़ पै, भुनसारे सें जाय।
हर पनिहारी रोजऊँ,पानी भर भर लाय।।
जब सें नल लग गय घरै, तब सें अब का कांयं।
पनिहारी अब छोड़ नल,कबहुँ न कुअला जाँयं।।
पनिहारी ऊखों कतइ, जो जल भरबे जाय।
दो गगरीं सर पै रखे,एक हाथ लटकाय।।
-------------स्वरचित-------------
वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
मटकत लचकत जल भरत,
पनहारन उस छोर।
नयन तीर मारत चलत,
भटकाती मन मोर।
पनघट पे जमघट लगो,
पनिहारिन को शोर।
सर्र सर्र गागर भरें,
चितबें इत उत ओर।
तन पनहारन सो लगे,
जीवन गगरी ढोय।
सुख-दुख छलके नीर सम,
भींजत हृदय विभोर।
19-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा
-🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
20--राम कुमार शुक्ल,चंदेरा
खेप धरें मारग खड़ी,
इक पनिहारी नार।
आपस में बतया रही,
घर की सुरत बिसार।।
-राम कुमार शुक्ल,चंदेरा
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
21-- लखन लाल सोनी, छतरपुर
पानी खों भरवै चली,
मौड़ै टांगै कैंया ।
उनको नैया तनक आसरो,
ऐसै मोरे सैंया ।।
- लखन लाल सोनी, छतरपुर
🌹🍁🌹जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🌹🍁🌹
पनिहारिन
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 15-03-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
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