डुबरी
डुबरी
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 28-06-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
3- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
4-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
5- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
6- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
7-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
9-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
11- डां रेणु श्रीवास्तव, भोपाल (मप्र)
12- मनोज कुमार सोनी, रामटोरिया,छतरपुर
13-रामानन्द पाठक,नैगुवा(म.प्र.)
14-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़)
15-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
16- अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल(मप्र)
17- राम कुमार शुक्ला,चंदेरा,(मप्र)
18-हरिराम तिवारी, खरगापुर (मप्र)
19-सरस कुमार, दोह खरगापुर (मप्र)
20-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
21-डी.पी.शुक्ला, टीकमगढ़,(मप्र)
22- राज गोस्वामी, दतिया ,(मप्र)
23-नीता श्रीवास्तव ,रायपुर (छत्तीसगढ़)
24- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
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1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी" , टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय- डुबरी*
*1*
डुबरी,मुरका अरु लता,बुंदेलों की शान।
बिजी,बेर, महुआ,चना,बुंदेली पहचान।।
***
*2*
डुबरी महकें भौतई,देख भूख बढ़ जात।
खाबे कौ माने नई,देख लार टपकात।।
***
*3*
डुबरी डुक्को खात है,बड़े चाव से आज।
खातन ताकत मिल गयी,कर रइ घर के काज।।
***
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी"
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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3-एस. आर. सरल, टीकमगढ़ (मप्र)
***
मौलिक एवं स्वरचित
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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डुबरी मउँअन की बनत , खात हते सब कोय ।
उम्दा स्वाद मिठास रत , भौत पोष्टिक होय ।।
पैलाँ मउआ ही हते , सबके पालनहार ।
नातेदारन कौ भओ , डुबरी सें सत्कार ।।
मउआ फरा किनावनें , पानी संग चुराँय ।
जब डुबरी बन जाय तौ , सिरा-सिरा कें खाँय ।।
उशे बेर बिरचुन लटा , मुरका डुबरी खीर ।
लपटा सतुआ गुलगुला , खाकें बनों शरीर ।।
डुबरी गुर मुरका लटा , भौत फायदेमन्द ।
पोषक तन ताकत मिलत , मन खों भी आनन्द।।
***
-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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5- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
# *डुबरी* #
1-डुबरी महुआ से बनें,खाबें चतुर सुजान।
बुन्देली व्यंजन भलो,देत हमें पहचान।।
2-हडियॉ पे डुबरी बनें,गरी चिरोंजी डार।
अच्छे अच्छे देख कै,टपकावत हैं लार।।
3-पैले सबके बनत ती,डुबरी सदा सुकाल।
टाढी भर सब खात ते,बूढे जुआन बाल।।
4-डुबरी की सोंधी महक,दौरे तक लौ जात।
सतुआ मिलाय सान कै,दद्दा मजे सै खात।।
5-मीठे महुआ होंय तो,तनक हमें दै देव।
सतुआ चकिया को पिसो,बदले में लै लेव।।
*****
-परम लाल तिवारी,खजुराहो (मप्र)
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6- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
*१*
डुबरी चूले पे चढ़ी,महक उठी चहुँ ओर।
हूँक भूँख की उठ रई,कूँदे लड़कपचोर।।
*2*
महुआ, गुली, गुलेंद्रो,अरु डुबरी की खीर।
मुरका, पउआ अरु लटा,दै महुआ धर धीर।।
*३*
दुनिया भर में नइं मिलत,डुबरी जैसी खीर।
बनत बुंदेली धरा पै,जिते बुंदेला वीर।।
*४*
बुंदेली पकवान में,है डुबरी की शान।
सजा थार में परस दो, जब जेबैं मैमान।।
*५*
तन महुआ सो फूलबै,मन डुबरी हो जाय।
बिरखा महुआ सो बनो,सबको मन हरसाय।।
- संजय श्रीवास्तव, मवई
२७ जून २१😊दिल्ली
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7-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी
बुंदेली- डुबरी.
डुबरी की चर्चा रये,बुंदेली पकवान।
खाई अब तक है नईं,हमें न ऊको ज्ञान।।
कबहूँ कितऊं बनवाय कें, डुबरी स्वाद चखाव।
फिर तुम ऊको बैठ कें, करो खूब बतकाव।।
जिनने डुबरी खाय कें, दव मूंछन पे ताव।
बेई अब गुणगान कर, चिढा रये बतकाव।।
डुबरी अब नइ जानती, नईं बहू घर दुआंय।
सुन-सुन घूंघट में खडी़, बस केबल मुस्कांय।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव 'पीयूष', टीकमगढ़
दोहा लेखन विषय डुबरी
मउआ मेबा होत हैं,भौतइ भरी मिठास।
जिन सें जा डुबरी बनीं,खूबइ खासमखास।।
जब तक बउआ जू रईं,रुच रुच रोज बनाइ।
कांसे की टाठी भरी ,सिरा सिरा कें खाइ।।
मउआ मादकता भरे,मतवारौ कर देत।
डुबरी खइयौ प्रेम सें ,रइयौ तनक सचेत।।
डुबरी खाबे की ललक,मन में हती हमाइ।
जा पोंचे जब गांव में ,तब पूरी हो पाइ।।
अरपन कर भगवान खों,जौ डुबरी कौ भोग।
पा रए प्रभु परसाद जो,बे बड़ भागी लोग।।
***
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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9-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, टीकमगढ़
#दोहे#
#1#
डुबरी मुरका अरु लटा,मौवा बिरचुन बेर।
कौंइ फरा अरु महेरी,खाखा होबें शेर।।
#2#
बुन्देली बिंजन भलौ,मन में देत तरंग।
डग डग पै जा देत है,हर गरीब कौ संग।।
#3#
दिन डूबत डुबरी बनें,खाय सबै परिवार।
दूध डार कें खाय जो,आलस देत उतार।।
#4#
डुबरी में डोबर फरा,कारी मिर्च महान।
गरी चिरोंजी मखाने ,बना देत हैं शान।।
#5#
डुबरी सें दुबरी हरै,रोजौं अपनी पीर।
है अमीर की शौक जा,है गरीब की खीर।।
-***
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
1-
सतुआ, डुबरी अरु लटा, मयरी बिरचुन खाय।
खातन में नौने लगें, इनसें नौनौ नाय।।
2-
डुबरी सी फदकत रबै,थूतर रही फुलाय।
गटा लटा से काढ़बै, गरिया मोय बुलाय।।
3-
डुबरी खा पानी पियौ, लेऔ भूख मिटाय।
जो चैन सें रये सदा, बोइ परम सुख पाय।।
4-
डुबरी लगै मिठाई सी,गरीब खाय ललचाय।
लटा संग फिर का कनें,जो न खाय पछताय।
5-
नाम लटा, डुबरी सुनत, मौ में पानी आय।
एक बेर जो खात है, बेर-बेर बौ खाय।।
***
*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐
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11- डां रेणु श्रीवास्तव, भोपाल (मप्र)
दोहे विषय 'डुबरी'
✍️✍️✍️✍️✍️
1-डुबरी महुअन की बनै, सबखों भोतइ भाय।
बब्बा कक्का चाव सें, सूट सूट के खाय।।
2-बनो महेरो रात के, डुबरी भोर बनाइ।
ऐसे व्यंजन आय जे,कितउ मिलै ना भाइ।।
3-पीजा मैगी खात हैं, मोड़ी मोड़ा आज।
डुबरी वे जानै नहीं, करै मताई नाज।।
***
✍️ डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
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12-मनोज कुमार सोनी रामटौरिया, (छतरपुर)
दिनाँक,28-6-21सोमवार
बिषय-डुवरी बुंदेली।
🌴🌴🌴डुवरी कौ व्याव🌴🌴🌴
चौका में मडवा गडो़,बजरव खूव बधाव।
थपिंयाँ गारीं गा रईं,है डुवरी कौ ब्याव।
**********************
डुवरी लाँगा में सजी,नौंनीं खूब दिखात,
सतुआ जू दूला बने,लैकें आय बरात।
*******************
फुआ महेरी माँग भरी,बरा नें जोरी गाँठ।
डुवरी के फूपा फरा,फंदकत भरें कुलाँट।
*******************
थोपा जू पंडत बने,लटा नें बैदइ धान।
बरी,कडी़ डुबरी सखीं,बनी फिरत अगवान।
********************
नेंगचार करवारई,आज खीर भौजाई।
पेडा़ मम्मा आन कें,डुवरी बिदा कराई।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
(मौलिक एवं स्वरचित)
✍🏽-मनोज कुमार सोनी रामटौरिया, (छतरपुर)
***
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13-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
डुबरी पर पांच दोहा
बुन्देली
मउवा की डुबरी बनें,वा में रहत मिठास।
बुन्देली बिन्जन बनौ,बनबै जेठन मास।।
2
मउवा पानी में फुला, दय हडिया में डार।
चना चिरौंजी गरि घनी, डुबरी भइ तैयार।।
3
बोजौ भर ईंदन बरै तब हुइऐ वा लाल।
समय दाग लो कब मिलै , आवै अगली साल ।।
4
विपत कटाउन वे हते, आवें कड़की काम ,।
मुरका डुबरी लटा सब, विंजन बनत तमाम ।।
5
स्वा रथ में मउआ कटे कांहै गुलिया तेल ।
मुरका डुबरी लटा सब ,देते आफत ठेल।।
*****
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवा,
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14-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़
💐डुबरी💐
** *** **
बुन्देली व्यंजन बने,कड़ी बरा उर भात।
मार पाल्थी खाइये,जा डुबरी को खात।।1।।
पिज़्ज़ा बर्गर माँगतइ,ऐसी पजी लडेर।
कां डुबरी मुरका लटा,कांकौ बिरचुन बेर।।2।।
मउअन की दारू बने,पियें चाव सें लोग।
डुबरी मुरका कै लटा,को कर रव उपयोग।।3।।
मउआ काटे रोड के,भट्टा लगे हजार।
अब डुबरी कां सें बनत,भैया करौ विचार।।4।।
हमखों हल्के की खबर,डुबरी खाबे आइ।
बड़े प्रेम सें पा गए,फिर सो राम धुआइ।।5।।
***
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
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15-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा (मप्र)
1- मौका डुबरी कौ यह, बसकारें में होय ।
चना बनफरा डालकैं, यह बनाय जो कोय ।।
2- खाई डुबरी मस्त भय, दिन में कछु न खाँय ।
गर इच्छा होय तनक, तौ रोटी जे खाँय ।।
3- मउअन कि डुबरी बनें, जे असाढ के माह ।
खावै में नौनीं लगै, खातन नइ उमाह ।।
4- डुबरी खायें जो सदां, पाचन क्रिया भाय ।
रोग -दोग व्यापैं नहीं, स्वस्थ सदा तन राय ।।
5- मउआ सबरे काट लय, बचे न एकउ पेड ।
कैसें जा डुबरी बनैं, लगाय नईयां पेड ।।
***
-शोभाराम दाँगी नंदनवारा
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16- अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल(मप्र)
*डुबरी*
बड़ौ नाव डुबरी सुनो, स्वाद कभउँ नइँ पाव,
इतनी नौनी होत तौ, जीकैं बनै खुवाव ।
खाई नइयाँ आज लौं, दोहा नइँ लिख पाय,
बिना खायँ कैसैं लिखें, जा डुबरी का आय ।
सबके दोहा जो पढ़े, मौं में पानी आव,
डुबरी तौ खानैं परै, बढ़ गव मन में चाव ।
***
*अरविन्द श्रीवास्तव* भोपाल
मौलिक-स्वरचित
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17- राम कुमार शुक्ला,चंदेरा,(मप्र)
🌸डुबरी की सौगात🌸
ना जाने लरका आज के,डुबरी कौ है नाव।।
सेवन ईकौ जो करै,भूल जात हैं गांव।।
दिन डूबे से हैं चढ़़ै ,डुबरी कौ जौ घान।।
मन की मिठास है भली,बूढ़े खातै ज्वान ।।
डुबरी के दिन कढ़ गए,मउवन कौभव नास।।
दारू खातिर बिक रये,नइँ लैतै वे साँस।।
लटा महेरी खात हैं,बूरौ बरा सुहात।।
डुबरी से ना नोनो लगै,जी के जो मन भात ।।
मेलजोल जी से रहै,उयै बुला है लेत।।
ब्यारी में जो खात है,डुबरी बा खों देत।।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
-राम कुमार शुक्ल चन्देेरा
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18-हरिराम तिवारी, खरगापुर (मप्र)
डुबरी....बुंदेलखंड की देंन
१:
मीठे मउंअन सें बनी,डुबरी,है रसदार।
भोंतउं,नौंनी,लगतहै,गरी चिरोंजी डार।।
२:
होत भुंसरां खांय जो, गर्मी सब छट जात।
डुबरी जिन्ने खाई नहिं,बे खावे ललचात।।
****
-हरिराम तिवारी, खरगापुर (मप्र)
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19-सरस कुमार, दोह खरगापुर (मप्र)
दोहा - डुबरी
🤲🤲🤲🤲🤲
बुढ़े पुराने के गये, पेला के पकवान।
डुबरी, सतुआ औ लटा, में होत हती जान।।
डुबरी चीखी है नहीं, न जाने कोउ स्वाद।
इ इक्कीसवी सदी, दादा कर रय याद।।
महुआ और चना, फरा, ले के दये चढ़ाय।
डुबरी बन तैयार है, सरस स्वाद ले खाय ।।
जौवन तन बूढ़े भये, डुबरी रइ उफनाय।
नाती पोता खा रये, दादा गजब बनाय ।।
***
-सरस कुमार, दोह खरगापुर (मप्र)
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20- -वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
विषय -- डुबरी
---//////////--
डुबरी खा कें काड़ दय , भैया ने दिन चार।
बहुत गरीबी देश में , मदद करे सरकार।।
मउंअन की डुबरी बनत , उर बटरा की दार।
बड़े प्रेम सें खात हैं , गांवन में परिवार।।
हड़िया में डुबरी बनीं ,ऐंन मसालेदार।
खाबे बैठे सब जनै, पूरी गये डकार।।
---------------स्वरचित------------
-वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया, टीकमगढ़
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22- राज गोस्वामी, दतिया ,(मप्र)
1-स्वर्ण भसम से कीमती डुबरी है इक चीज ।
जा खो खा फूलै फलै रहै न मन मे खीज ।।
2-मते मते से लगत है डुबरी खाके लोग ।
लटा महेरी संग मे लगत पृभू को भोग ।।
3-डुबरी मीठी सी लगत है मिठाइ कौ रूप ।
जंगल मे मंगलनुमा मिलत गाव भरपूर ।।
-राजगोस्वामी दतिया
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23-नीता श्रीवास्तव ,रायपुर (छत्तीसगढ़)
1)
डुबरी सतुआ सँग हमें , बिरचुन सोऊ भाय |
दूर देस में आजकल, जी मोरो ललचाय ||
2)
फीको छप्पन भोग हैं , लड़ुआ, लटा जो भाय |
भौजाई से के दियो, डुबरी सोउ बनाय ||
3)
मोरी भूल बिसारियो, खा डुबरी दिल खोल |
बरस भये बोले हमें , बुंदेली के बोल ||
4)
बुंदेली बोली भली, भले लगत सब गाँव |
तपी दुपरिया में दई , तुम ओंरन ने छाँव ||
-नीता श्रीवास्तव ,रायपुर (छत्तीसगढ़)
***
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24- अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा (मप्र)
बोनी के दिन आ गए,
अब डुबरी बनबाओ।
ढुलकी-पेटी हेर खे,
खूब ददरिया गाओ।।
*****
-कल्लूके दद्दा
(अवधेश तिवारी)
छिंदवाड़ा
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