कलाकंद
कलाकंद
(बुंदेली दोहा संकलन) ई बुक
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ई बुक प्रकाशन दिनांक 14-06-2021
टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
मोबाइल-9893520965
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अनुक्रमणिका-
1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
3- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़
4-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
5-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
6- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
7-अशोक पटसारिया (लिधौरा, टीकमगढ़)
8- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
9-डां. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)
10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
11-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी(उ.प्र)
12-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़
13-हरिराम तिवारी, खरगापुर
14-गुलाब सिंह यादव'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
15- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़(मप्र)
16-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
17-पं. डी.पी. शुक्ला 'सरस',टीकमगढ़
18-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
19- अभिनंदन गोइल, इंदौर (मध्यप्रदेश)
20-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा (मप्र)
21- डॉ राज गोस्वामी, दतिया
22-लखन लाल सोनी, छतरपुर
23-समीक्षा-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)
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- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)
*बिषय बुंदेली दोहे -"कलाकंद"
*बिषय- "कलाकंद"*
*1*
कलाकंद जो प्रेम सें
प्रसादी है पाव।
मिट जावे ऊके सभी,
तन-मन के फिर घाव।।
***
*2*
कलाकंद तो है इतै,
राम चन्द्र कौ भोग।
उनकी किरपा से इतै,
मिट जाते सब रोग।।
***
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संपादक-आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
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2-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
कलाकंद विषयक दोहे
कलाकंद की का कने,खूबइ खासमखास
खाबौ तौ है बाद में,हिय हर लेत सुबास।।
खोबा में मेबा मिला,मन सें करी घुटाइ।
कलाकंद के रूप में,साजी बनी मिठाइ।।
कलाबती किल किल करें, कलाकंद के काज।
खटिया की पाटी लयें, परीं रिसानीं आज।।
कलाकंद की बास सें,मन में घुरी मिठास।
मन मसोस मों मूंद लऔ,पइसा नइंयां पास।।
राम लला सरकार के, पावन दर्शन पांयं।
कलाकंद कौ प्रेम सें, प्रभु खों भोग लगायं।।
*****
-प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
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3-एस आर सरल,टीकमगढ़(मप्र)
#बुन्देली # कलाकंद दोहा#
भौजी बीच बजार में,कलाकंद रइ बैच।
खूब रुपैया पीट रइ,फसा फसा कै पैच।।
कलाकंद की हाट मे,भौतइ चलै दुकान।
भौजी दम सै बैच रइ,बना बना पैचान।।
बुला बुला भौजी कवै,कलाकंद लै जाव।
भौजी ड़ाढ़ी मार रइ,कर कर रस बतकाव।।
कलाकंद खौ बैच रइ,कलाकार भौजाइ।
औनै पौनै तोल कै, उल्लू रई बनाइ।।
भौजी बोली 'सरल जी',कलाकंद लँय जाव।
अपनो चोखौ माल है,करौ मोल नइ भाव।।
***
-एस आर सरल,टीकमगढ़
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खोवा बूरौ सानकें , मधु-मेवा संजोग ।
ठाकुर-जू खों भौत प्रिय , कलाकंद कौ भोग ।।
जितै बँटत दिख जात तौ , कलाकंद परसाद ।
दौर - दौर कें लेत ते , भूलत नइंयाँ याद ।।
ठाकुर-जू के भोग कौ , भौत अनूठौ स्वाद ।
कलाकंद की काॅ कनें , है प्रसिद्ध प्रसाद ।।
जज्ञ-हवन पूजन कथा , दान-पुण्य उपवास ।
हर इक तीरथ-धाम पै , कलाकंद है खास ।।
कलाकंद मिष्ठान है , कलाकार की दैन ।
सब के लाने है सुलभ , मधुर-मुलायम यैन ।।
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-कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
( मौलिक एवं स्वरचित )
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5-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(मप्र)
#दोहा#
#1#
कलाकार सब लेत हैं,कलाकंद आनंद।
बरफी बेटी आइ सो,कलाकंद भव बंद।।
#2#
शक्कर मावा घोंट कें,मेवा देव मिलाय।
कलाकंद की कला में,भौत मजा आ जाय।।
#3#
हर काजन में बनत तीं,पाँच मिठाइ नबेर।
कलाकंद सँग चार धृर,कात हते पचमेर।।
#4#
कलाकंल मुख में घुरै,लो आनंद बिहार।
ऐइ मिठाई सें हतो,स्वागत अरु सत्कार।।
#5#
लेत बरातीब्याव में,कलाकंद आनंद।
अब रस्में जे हो गयीं,ँगभंग बिलकुल बंद।।
****
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)
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6- श्री परम लाल तिवारी,खजुराहो(मप्र)
## *कलाकंद* ##
1-लख मिठाई दुकान में,कलाकंद को ढेर।
मूं में पानी भरत है,खा लें होय न देर।।
2-कलाकंद कौ स्वाद भल,खावे सो बतलाय।
पइसा जेब निकाल कै,लै चटकारे खाय।।
3-खोवा के पेड़ा मिलें,बरफी कइयक भांत।
कलाकंद के स्वाद की,महिमा वरनि न जात।।
4-कलाकंद अच्छो वही,जो हो दानेदार।
खावो सब मिल बैठ कै,बढै प्रेम परिवार।।
5-कलाकंद खाते रहो,जब तक मिले उधार।
यही नीति का वाक्य है,कर लो हृदय विचार।।
परम लाल तिवारी
खजुराहो
-परम लाल तिवारी, खजुराहो
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7-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ (मप्र)
😊 कलाकंद 😊
** ** ** ** **
अबै ओड़छे में लगत,कलाकंद कौ भोग।
भोग लगा सरकार खों,पाते हैं सब लोग।।
अब सो कूंडा देव में,कलाकंद भरमार।
बंदरन सें बच जाय सो, पाव पाल्थी मार।।
बौरे के ख़ूबइ बिके, कलाकंद उर सेव।
देशी घी की जलेवी,खुशी परै सो लेव।।
कलाकंद नामी हतौ,खूब मसक कें खाव।
शोंक सबइरे छूट गय,जब सें भओ बियाव।।
हते जबै बे भी दिना,डारत ते रूमाल।
छुप छुप कें देखत हते,कलाकंद से गाल।।
** ** **
-अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
विषय- *कलाकंद*
*१*
मंदिर में कुपरन चढ़त,कलाकंद कौ भोग।
भगवानन के देश में,खाबे तरसें लोग।।
*२*
कलाकंद मौं में धरत,मिस्री सो घूर जात।
मधुमेह के मायँ ससुर,मन मसोस रै जात।।
*३*
कलाकंद सीं लगत तीं,अब नइं रइं गुलकंद।
घर,गिरस्ती के जाल में,आभा पर गइ मंद।।
*४*
कलाकंद सौ भाव हो,मीठो होय स्वभाव।
मन में मिश्री घुरी हो,होत सरस बतकाव।।
*५*
कलाकंद सौ आदमी,जौन दिना हो जाय।
लगे गुरीरौ रामधइ,भीतर घुर-घुर जाय।।
***
- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
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9-डां. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)
दोहे विषय 'कलाकंद'
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
1- कलाकंद जा बनत है, बड़ी कला के साथ।
पकरें पकरें डेउआ, ठिठुर जात जे हांथ।।
2- कलाकंद को भोग जो, भोले बाबा खांय।
संगे भांग चढाइयो, वे गदगद हो जांय। ।
3- कलाकंद सो दइ जमो, ग्वालन बेचन आइ।
लेलो मोरो सब दही, जिज्जी औ भोजाइ।।
4 - कलाकंद जा बन गई, बुन्देलन की शान।
और दूसरे शहर में, ई की ना पहचान।।
✍️ डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
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10-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
बिषय..कलाकंद
1-
मौ में पानी आत सुन, कलाकंद कौ नाम।
सबसें नौनौ मिलत है,चलौ ओरछा धाम।।
2-
अधाधुंध ये तो बिके,मची रये भरमार।
कलाकंद नौनौ लगे, टपकावत सब लार।।
3-
रामलला खौं लगत है, कलाकंद कौ भोग।
दरश करत मिट जात हैं,तन के सबरे रोग।।
4-
कलाकंद सरकार की,सुनियौ पैलि पसंद।
भक्त भाव सें भेंटता, छूट जात भव फंद।।
5-
बिगरे काम बनात है, सेवा अरु उपहार।
कलाकंद लै सौंप दो,समझौ बेड़ापार।।
***
-प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़ मप्र💐
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11- रामेश्वर प्रसाद गुप्त 'इंदु', झांसी
जय बुंदेली साहित्य समूह.
14/6/2021.
बुंदेली दोहा- कलाकंद.
कलाकंद नामी रहो, बडागांव में यार।
मामा की दूकान पे, मची रई भरमार।।
कलाकंद में रय रवा, गुलाब पंखुरी डार।
किसमिस और चिरोंजियां, ऊ में परी हजार।।
कलाकंद जो खात ते, मैंनत करें अपार।
पचा जात ते प्रेम सें,आधा किलो संवार।।
अब कै कैवें खों युवा, कलाकंद ना खांय।
गर कऊँ वे जो खांय लें, पचा नहीं वे पांय।।
कलाकंद देहात में, बर्फी शहर बिकाय।
दाने दार सुवाद खों, कोई भुला न पाय।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)
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12-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़
विषय - कलाकंद
----------------------
कलाकंद खानें हतौ, पैसा नइंयां पास।
मजबूरी जा सामनें, मन है बडौ उदास।।
कलाकंद कौ नाव सुन,मौ सें टप कत लार।
खाबे जो देगा मुझे,उसकी जय जयकार।।
भोग लगाबे लेव तुम,कलाकंद दस पाव।
भोग लगाकें बाँटबे,सबखों लिंगा बुलाव।।
कलाकंद कौ स्वाद तौ , सबखों खूब सुहात।
घर पै लै कें आत हैं,जब भी दतिया जात।।
***
-वीरेन्द चंसौरिया, टीकमगढ़
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13-हरिराम तिवारी, खरगापुर
शीर्षक *कलाकंद*🍪🍪
बुंदेली दोहे- कलाकंद विभिन्न अर्थ में...
१:
खोवा शक्कर मिला के मिठया देत बनाय।
कलाकंद मीठो लगे, जो खाबे हरषाय।।
२:
कला+कंद मिलके बनों, कलाकंद है नाम।
अर्थ अलग है दोउ के, अलग-अलग हैं काम।।
३:
काम, क्रिया जितनी करें, कला+कंद जुड़जात।
कलाकार या चित्रकार, गीतकार बनजात।।
४:
गायन, वादन, नाचना, कला कंद संगीत।
लिखना, पढ़ना, बोलना, कला की नोनी नीत।।
५:
कंद अर्थ भी बहुत हैं, कलाकंद के संग।
फल, समूह, रस, मूल गुण, हरि हैं रामानंद।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
-हरिराम तिवारी 'हरि'
खरगापुर जिला टीकमगढ़ मध्य प्रदेश
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14- गुलाब सिंह यादव 'भाऊ', लखौरा, टीकमगढ़
❤️हिन्दी दोहा❤️
बिषय-कलाकंद
♡♡♡♡♡♡♡♡
कलाकंद कलदार में, सबसे मागे भाव।
भोग लगाव राम को, पाछे फिर तुम खाव।।
2
कलाकंद की बैन है,ज्ञमलाई बर्फी एक।
कलाकंद से कम नई, भईया खाके देक।।
3
सबको दददा दुध है, जो माखन बन जात।
कलाकंद परिवार है,बर्फी लड़डु खात।।
4
कला जानलो हाथ में,कलाकंद बन जात।
कामधेनु माता बड़ी, जो कलजुग मैं खात।।
5
तन में ताकत देत है, दुध माल जो खात।
रहे निरोगी देह जा,कभऊ रोग न आत।।
***
-गुलाब सिंह यादव भाऊ,लखौरा टीकमगढ़
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16-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
बिषय - "कलाकंद" बुंदेली दोहा
1- ओरछा में आज सोउ, खाते हैं श्री राम ।
कलाकंद मेवा पुआ, दुपरै खावैं राम ।।
2- कलाकंद कौ नाव सुन , मुँह में पानु आय।
खाऊतते जब सब जन, गालन चिकन दिखाय ।।
3- सब भोगन कों भोग जौ, कलाकंद सिरमौर ।
जासैं मैमा भौत है, न बरफी पेड़ा और ।।
4- कलाकंद जब खावतौ, कइये कां तक बात ।।
डालते ही मुँह गया, जल्दी सैं घुरजात।।
5- कलाकंद के खाय सैं, तन मन चेतन राय।।
ई मिठाई के बिना, भोग न एक सुहाय ।।
6- देवी -देवता जन मानस, खांय कलाकंद खूब।
राजाऔं महाराज के, पंगत परसौ खूब।।
***
मौलिक एवं सुरचित रचना
-शोभाराम दाँगी नंदनवारा
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17-पं. डी.पी. शुक्ला 'सरस',टीकमगढ़
🌸🌸कलाकंद🌸🌸
कला कंद की कै रये, वन औषधि है जान ।
वन कलाकंद खात रय, लक्ष्मन सीता राम ।।
कलाकंद सौ भोग है, सुख सी पावन देह।
भरी मिठास जीवन रय,तन मन बरसैे मेह।।
कनक भवन के जाय सें, मँहक देत कलाकंद।
लै लगात श्री राम कों,मिटत पाप के फंद।।
कलाकंद को नाम सुनत। पानी मौं में आत।
जगन्नाथ के भात कों। जगत पसारें हात।।
जात जित जन जवईं जे, जाचक जँह जिय जान।
चाहत चितव चित्त चढ़त, कलाकंद भगवान।।
कलाकंद कैलाश बसें, पर्वत भोले नाथ ।
केसउँ ना चाहत रखें, कौनऊँ भोग प्रसाद।।
स्वरचित एवं मौलिक दोहे
-पं. डी.पी. शुक्ला 'सरस',टीकमगढ़
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18-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
*कलाकन्द*
खोवा मिश्री सें बनी, भली मिठाई खात,
पेट भरै, मन ना भरै, कलाकन्द कहलात ।
कलकन्द नइँ खाव सो, मनई मन ललचात,
खा कैं फिर कछु देर लौं, मौं में रत मिठयात ।
दौर मिठाई कौ थमो, अब नइँ रव वौ चाव,
नइ पीढ़ी खौं का पतौ, कलाकन्द कौ भाव ।
***
अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
मौलिक-स्वरचित
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19- अभिनन्दन गोइल, इंदौर (मध्यप्रदेश)
कलाकंद ( बुंदेली दोहा )
********************
कलाकंद कौ नाव सुन, मों में आबै लार।
ई सें रसना तप्त हो , जौ मिठाई कौ सार।।
ई खों चढ़ा प्रसाद में, भक्त बाद में खाय।
कलाकंद के स्वाद सें, जिन्दै सुरग दिखाय।।
मावा हो ताजौ बनौ, बूरौ लेव मिलाय।
डार लायचीं चिरोंजीं, कलाकंद बन जाय।।
मिठया जू की कला सें, कलाकंद कौ मान।
लडुआ-पेरा छोड़ कें ,परसौ जौ जजमान।।
जे बड़भागी जीव हैं , जिनें नहीं मधुमेह ।
छकवें नइं फिर फिर करें, कलाकंद सें नेह।।
मौलिक, स्वरचित
-अभिनन्दन गोइल, इंदौर (मध्यप्रदेश)
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
20-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा (मप्र)
दोहा
कलाकन्द
कलाकन्द को भोग है, उर तुलसी को पत्र।
इतनै में कान्हा बने,जनम जनम के मित्र।।
कलाकन्द गोरी लगे, देखत मन मिठ आय।
हँस हँस के बातें करे, फिर भी मन न भराय।।
कलाकन्द मीठो लगे, खोवा शक्कर घोल।
सब मिठाई बाजू रखो, कलाकन्द अनमोल।।
**
-डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा (मप्र)
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
21- राजगोस्वामी , दतिया (मप्र)
1-कलाकंद खा जीभ खो मिल जातइ आनन्द ।
निकरत मीठे वचन तब सबइ कछू सानन्द ।।
2-कलाकंद को देख के आत कला की याद ।
जाखो खा मिट जात है मन की सारी व्याध ।।
3-कलाकंद नमकीन संग खूबइ खब खब जात ।
खात खात जौ लगत है मिलवै और बिलात ।।
-राजगोस्वामी ,दतिया
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
22- लखन लाल सोनी, छतरपुर
कलाकंद खों देख कै,मौ पानी आ जात ।
अदाधुंद जो विकत है, लै के सवरै खात।।
***
🌹लखन लाल सोनी, छतरपुर
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
*215वीं -आज की समीक्षा*
*समीक्षक - राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 14-6-2021
*बिषय- *कलाकंद (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *कलाकंद* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज कलाकंद से मीठे दोहे रचे पढ़के मों में पानू आ गऔ , मन खुश हो गव।सो जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो।
आज सबसें पैला
श्री अशोक पटसारिया जू नादान लिधौरा ने कलाकंद कौ भोग लगाऔ बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
अबै ओड़छे में लगत,कलाकंद कौ भोग।
लगा सरकार खों,पाते हैं सब लोग।।
अब सो कूंडा देव में, कलाकंद भरमार।
बंदरन सें बच जाय सो,पाव पाल्थी मार।।
*2* श्री प्रदीप जू खरे, मंजुल, टीकमगढ़ से लिख रय कै- रामराजा सरकार कौ कलाकंद भौत भाउत है इकौ प्रसाद चढ़ाएं से भगवन जो दंदफंद आत है वे सब मिट जात है। नोने दोहा रचे है मंजुल जी बधाई।
मौ में पानी आत सुन, कलाकंद कौ नाम।
सबसें नौनौ मिलत है,चलौ ओरछा धाम।।
कलाकंद सरकार की,सुनियौ पैलि पसंद।
भक्त भाव सें भेंटता, छूट जात भव फंद।।
*3* राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़ लिखते है कै जो कलाकंद कौ परसाद पाते हैं उनके तन और के सभी कष्ट मिट जाते हैं ।
कलाकंद जो प्रेम सें,प्रसादी है पाव।
मिट जावे ऊके सभी, तन-मन के फिर घाव।।
कलाकंद तो है इतै,राम चन्द्र कौ भोग।
उनकी किरपा से इतै,मिट जाते सब रोग।।
*4* *श्री जयहिन्द सिंह जू जयहिन्द,पलेरा* सांसी कै रय कै जबसें बर्फी बेटी आई है सो कलाकंद कम बिकन लगो है कलाकंद बनावे की विधि भी बता रय है सभी बेहतरीन दोहे है बधाई दाऊ।
कलाकार सब लेत हैं,कलाकंद आनंद।
बरफी बेटी आइ सो,कलाकंद भव बंद।।
शक्कर मावा घोंट कें,मेवा देव मिलाय।
कलाकंद की कला में,भौत मजा आ जाय।।
*5* *श्री परम लाल जू तिवारी, खजुराहो* कलाकंद की पैचान बता रय के सबसे नौनो वो होत है जो दानेदार हो। अच्छे मीठे दोहे रचे है बधाई।
लख मिठाई दुकान में,कलाकंद को ढेर।
मूं में पानी भरत है,खा लें होय न देर।।
कलाकंद अच्छो वही,जो हो दानेदार।
खावो सब मिल बैठ कै,बढै प्रेम परिवार।।
*6* श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु. बडागांव झांसी उप्र से बता रय के कलाकंद में का का डरत है तब स्वाद बनत है। बढ़िया रचे है। बधाई।
कलाकंद में रय रवा, गुलाब पंखुरी डार।
किसमिस और चिरोंजियां, ऊ में परी हजार।।
कलाकंद देहात में, बर्फी शहर बिकाय।
दाने दार सुवाद खों, कोई भुला न पाय।।
*7* *श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़* से कत है कै मिठाई कौ दद्दा दूद है और कलाकंद कि बैन बर्फी है। कौनउ कम नइयां। उमदा दोहे है बधाई।
कलाकंद की बैन है,मलाई बर्फी ऐक।
कलाकंद से कम नई,भईया खाके देक।।
सबको दददा दुध है,जो माखन बन जात।
कलाकंद परिवार है,बर्फी लड़डु खात।।
*8* *श्री शोभारामदाँगी नंदनवारा* लिखत है कै सड भोगन से नोनो है कलाकंद को भोग। उमदा दोहे है बधाई।
कलाकंद कौ नाव सुन , मुँह में पानु आय ।
खाऊतते जब सब जन, गालन चिकन दिखाय ।।
सब भोगन कों भोग जौ, कलाकंद सिरमौर ।
जासैं मैमा भौत है, न बरफी पेड़ा और ।।
*9* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* से लिख रय कै कलाकंद की खूश्बू ही मनमोह लेत है। शानदार दोहे है बधाई।
खोबा में मेबा मिला,मन सें करी घुटाइ।
कलाकंद के रूप में,साजी बनी मिठाइ।।
कलाकंद की बास सें,मन में घुरी मिठास।
मन मसोस मों मूंद लऔ,पइसा नइंयां पास।।
*10* *श्री डी.पी. शुक्ला'सरस, टीकमगढ़* ने दोहा में अनुप्रास अलंकार का नौनो प्रयोग करो है बधाई।
जात जित जन जवईं जे। जाचक जँह जिय जान।।
चाहत चितव चित्त चढ़त,कलाकंद भगवान।।
कनक भवन के जाय सें। मँहक देत कलाकंद ।।
लै लगात श्री राम कों,मिटत पाप के फंद।।
*12* *श्री अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल* से कै रय कै नयी पीढ़ी कलाकंद कौ नाव नइ जानत सही बडे शहरन में जौ का धरो। अच्छा लिखा है बधाई।
खोवा मिश्री सें बनी, भली मिठाई खात,
पेट भरै, मन ना भरै, कलाकन्द कहलात ।
दौर मिठाई कौ थमो, अब नइँ रव वौ चाव,
नइ पीढ़ी खौं का पतौ, कलाकन्द कौ भाव ।
*13* *श्री एस आर सरल, टीकमगढ़* से लिखते हैं कि- हाट में कलाकंद ऐन बिखत है। अच्छे दोहे है बधाई।
कलाकंद की हाट मे,भौतइ चलै दुकान।
भौजी दम सै बैच रइ,बना बना पैचान।।
कलाकंद खौ बैच रइ,कलाकार भौजाइ।
औनै पौनै तोल कै, उल्लू रई बनाइ।।
*14* *श्री -अभिनन्दन गोइल, इंदौर* से कय रय कै- कलाकंद बनाबौ सोउ कला है जो केवल मिठया ही जानत है । अच्छा लिखा है बधाई ।
मावा हो ताजौ बनौ, बूरौ लेव मिलाय।
डार लायचीं चिरोंजीं, कलाकंद बन जाय।।
मिठया जू की कला सें, कलाकंद कौ मान।
लडुआ-पेरा छोड़ कें ,परसौ जौ जजमान।।
*15- * डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल* से लिखतीं है कै कलाकंद बुंदेलखंड की शाध है सही है। बधाई बेहतरीन दोहे है।
कलाकंद जा बनत है, बड़ी कला के साथ।
पकरें पकरें डेउआ, ठिठुर जात जे हांथ।।
कलाकंद जा बन गई, बुन्देलन की शान।
और दूसरे शहर में, ई की ना पहचान।।
*16* *श्री कल्याण दास साहू "पोषक" पृथ्वीपुर* से कै रय- कलाकंद कौ परसाद आदमी दोर दोर के लेत है छोडत नइयां। ऊमदा दोहे है। बधाई।
खोवा बूरौ सानकें , मधु-मेवा संजोग ।
ठाकुर-जू खों भौत प्रिय , कलाकंद कौ भोग ।।
जितै बँटत दिख जात तौ , कलाकंद परसाद ।
दौर - दौर कें लेत ते , भूलत नइंयाँ याद ।।
*17* *श्री संजय श्रीवास्तव, मवई, दिल्ली* से लिखते हैं- आदमी कौ सुभाव कलाकंद सौ मीठो और नरम भव चाहिए। सुंदर चिंतन मय दोहे है बधाई।
कलाकंद सौ भाव हो,मीठो होय स्वभाव।
मन में मिश्री घुरी हो, होत सरस बतकाव।।
कलाकंद सौ आदमी, जौन दिना हो जाय।
लगे गुरीरौ रामधइ,भीतर घुर-घुर जाय।।
*18* *डॉ सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा* से गोरी की तुलना कलाकंद से करते हुए लिखते हैं कै-
कलाकन्द गोरी लगे, देखत मन मिठ आय।
हँस हँस के बातें करे, फिर भी मन न भराय।।
कलाकन्द मीठो लगे खोवा शक्कर घोल।
सब मिठाई बाजू रखोकलाकन्द अनमोल।।
*19* *श्री लखनलाल जी सोनी छतरपुर* से कत है कै-
कलाकंद खों देख कै,मौ पानी आ जात ।
अदाधुंद जो विकत है, लै के सवरै खात।।
*20* *श्री हरिराम राय खरगापुर* से लिखते हैं कै- कलाकंद के भौत अर्थ होत है। अच्छे दोहे है बधाई।
गायन, वादन, नाचना, कला कंद संगीत।
लिखना, पढ़ना, बोलना, कला की नोनी नीत।।
कंद अर्थ भी बहुत हैं, कलाकंद के संग।
फल, समूह, रस, मूल गुण, हरि हैं रामानंद।।
*21* *श्री राजगोस्वामी दतिया* से के रय कै कलाकंद कितैकइ खाव मन नइ भरत है।
कलाकंद खा जीभ खो मिल जातइ आनन्द ।
निकरत मीठे वचन तब सबइ कछू सानन्द ।।
कलाकंद नमकीन संग खूबइ खब खब जात ।
खात खात जौ लगत है मिलवै और बिलात ।।
*22* *श्री वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़* से कै रय कै जब वे दतिया जात सो उतै से कलाकंद ल्यात है-
कलाकंद कौ नाव सुन,मौ सें टप कत लार।
खाबे जो देगा मुझे,उसकी जय जयकार।।
कलाकंद कौ स्वाद तौ , सबखों खूब सुहात।
घर पै लै कें आत हैं,जब भी दतिया जात।।
ई तरां सें आज पटल पै 22कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से पतरा से दोहा पटल पै पटके, पै जै दोहा बिल्कुल कलाकंद से हते। बुंदेली दोहे के इतिहास में ये दोहे अपना स्थान जरुर बना लेंगे ऐसा मुझे विस्वास है। सभइ दोहाकारों को बधाई।
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)*
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#
😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄
5 टिप्पणियां:
सभी दोहे बहुत सुंदर सार्थक सटीक सभी को नमन
धन्यवाद नेमा जी आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण ।बहुत मजेदार ।खाने के लिए अवसर प्रदान तो करे
बहुत सुंदर और सारगर्भित प्रस्तुतिकरण ।बधाई ।
धन्यवाद जी
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