जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*248- आज की समीक्षा* *दिनांक 16-8-2020*
बिषय- *पठौनी*
आज पटल पै भौतइ नोने दोहा डारे गये है। सबइ जनन ने बढिया कोसिस करी है। पैला तौ सबइ जनन खौ भौत नोनौ लिखवे पै हमाइ मुलकन बधाई।
आज दाऊ जरूरी काम से इंदौर गये है इसलिए उनकी तरफ से आज हम काम चलाऊ समीक्षा लिख रय है।
*1* *श्री *प्रदीप खरे,मंजुल* जू* ने सबसें पैला दोहा डारो उनने लिखो कै -ऐसे पटौनी ल्याय चइए जी खों देख के पडौसी बडवाई करन लगे। अच्छो लिखौ है बधाई।
मैया बोली सुन इतै, हाट बजरै जाऔ।
बिटिया घर पौचाउनें, कछु पठौनी ल्याऔ।।
खेल खिलौनन सें सजी, कजन पठौनी जाय।
पुरा परौसी देखकें, मन भारी हरसाय।
*2*- **श्री अशोक पटसारिया जू* भौत नौनो लिखो वे दोहन में बता रय कै पठौनी में का का दओ जात है। बधाई।
सूपा बिजना दौरिया, पापर बरीं अचार।
बांद पठौनी भेज तइ,मौडी खां ससुरार।।
धरत पठौनी बांद कें,बांद सगुन की गांठ।
बउ बिटिया जाबै कितउ,भेजत नइयां ठांठ।।
*3* *श्री गोकुल प्रसाद यादव , नन्हीं-टेहरी(बुडे़रा)* जू ने किसन अरु सुदामु कौ भौय नोनो वरनन करो है। बधाई।
दैबे गय ते सावनी,मिली पठौनी येंन।
बिजना सूपा दौरिया,चाँवर पिसिया रेंन।।
रीते हाँतन लौटतन, हते भौत बेचैंन।
देख पठौनी किशन की,भरे सुदामा नैंन।।
*4* *श्री शील शास्त्री , ललितपुर* जू लिखत है बिटिया की विदाई में जितैक देव उतैक कम है जब हृदय कौ टुकड़ा सौप दओ तो अब का बचो देवे खौं। भौत नोने भाव है बधाई।
जी दिन बिटिया विदा भई, सूनौ हो गव संसार ।
हियौ काड़कें सौप दव, अब का दै दएं उपहार ।।
जैसईं सावन बीत जै, साजन लैजें ससुरार ।
पठौनी-पुटरियन में बंदें, पापर, बरीं, अचार ।
*5* *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा* से लिखत है श्रीराम के विवाह के टैम की पठौनी कौ नोनो चित्रण दोहन में करो है। बधाई
देत पठौनी अबध खों,रुच-रुच कें मिथलेस।
दान-दायजौ सबइ है,रखो न कौनउँ सेस।।
देत पठौनी मायकौ,चलत बिदा के संग।
लगै सबै हम बाँध दें,देतन उठत उमंग।।
*6* *श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़* सें पैला के टैम पठौनी बैलगाड़ी में धर के जात हती नोनो लिखों है बधाई।
मिली पठौनी सब कुछ ,लुवाबै गये जे पैल।
अब कछु नई आऊत है ,मिट गये गाड़ी बैल ।।
गाड़ी में धर देत ते,सिपी देवल और दार।
सूपा बिजना दोईया ,दई पठौनी डार ।।
*7* *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्त इंदु बडागांव झांसी*.उप्र.ने जनकपुर में जानकी की विदाई के टैम कौ उमदा वरनन करो है।
जनक सें भेजें जब, लाडली खों ससुराल।
देवन सें बार-बार, मनौती मनाउतीं।।
जनकपुर नारियाँ, करतीं विदाई 'इंदु'।
दान मान दे दहेज, पठौती पठाउतीं।।
*8* *राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़* से पाप-पुण्य की पठौनी बता रहे है दोहो में दरसन है।
पाप पठौनी बांद के,ऊपर जाते लोग।
कर्मो का फल पात है,रये बुढ़ापौं भोग।।
ल्यात पठौनी कैसई,टका नई है पास।
बिटिया ल्यावे जान है, रतई भौत उदास।।
***
*9* *श्री परम लाल तिवारी, खजुराहो* से कत है कै नोनी पटौनी भेजो तो सास खुश हो जात है। उमदा दोहे रचे बधाई
करो इकट्ठी जोर के,कछु पठौनी नेक।
फिर करियो बिटिया विदा,अबे छोड़ दो टेक।।
मिले पठौनी ठीक जब,खुशी रहत है सास।
नहि तो बकबक करत बहु,बहुयें रहत उदास।।
*10* *श्री एस आर सरल, टीकमगढ़* से सांसी कै रय कै आजकाल तो नगद नारायण की पठोनी होत है। शानदार दोहे है बधाई।
बिटिया की करतन बिदा,आँखन असुआ आत।
दार चना चाँउर पिसी, कछू पठौनी जात।।
'सरल' पठौनी की जगा,अब नगदी दइ जात।
चौखी नगदी के बिना, गैल गैल कुल्लात।।
*11* *श्री कल्याण दास साहू "पोषक',पृथ्वीपुर,निवाडी़* जू ने भोत नोनै दोहा रचे हर मां-बाप अपनी हैसियत के अनुसार पठौनी देत है।सभी दोहे बढ़िया है। बधाई
मौडी़ की होवै विदा , देत खूब धन-धान्य ।
इयै पठौनी ही कहत , परम्परा शुभ मान्य ।।
बिना पठौनी की विदा , नही करत है कोउ ।
जी की जितनी हैंसियत , बाँदत-छोरत सोउ ।।
*12* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* जू भौत बेहतरीन बुंदेली शब्दों का प्रयोग करते हैं बधाई।
आइ पठोंनीं बांद कें,चांवर देउल उर दार।
छबला सूपा दौरिया ,पापर बरीं अचार।।
अलफा लै लव ससुर खों,सासो खों इकलाइ।
बांद पठोंनी सान सें ,बहू सासरें आइ।।
*13* *शोभाराम दाँगी नंदनवारा* ने उमदा दोहे रचे है प्रेम पठौनी की बात लिख रय है। बधाई।
भेजत बिटिया जो कोउ, प्रेम पठौनी देत ।
पै लरका वारे कछु जनें, तौऊ उरानौं देत ।।
प्रेम पठौनी जो गहै, बेटी सुक में रांय ।
प्रेम पठौनी के बिना, फीके सब पर जांय ।।
*14* *श्रीअरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल* से करम पठौनी की बात लिखते हैं । सुंदर दोहे रचे है। बधाई
बिदा करत जब कोउ खौं, बाँद देत सौगात,
जाती बेराँ देत सो, उयै पठौनी कात ।
करे करम रत गाँठ में, और जात सब छूट,
पुण्य-पठौनी के बिना, जात विधाता रूठ ।
*15* *श्री संजय श्रीवास्तव, मवई दिल्ली* से प्रेम पठौनी की लेके चलवे की बात कर रय है। बधाई
प्रेम, मान- सम्मान सें,भरी पठौनी आज।
दऔ करेजो काड़ कें, भली करौ महराज।।
पुण्य पठौनी प्रेम की,लैकें चलियो संग।
ध्यान, धरम, सदकरम सब, हों जीवन के अंग।।
*16* *डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल* ने भौत बेहतरीन दोहे रचे बधाई।
धरम खूब सब कोउ करौ, बांध पठौनी जांय।
ईश्वर के दरवार में,जेउ तो देखो जाय।।
बहुधन नोनी आ गई,बांद पठौनी साथ।
सास ननद खुश होत हैं, ऊंचो हो गौ माथ।।
*17* *श्री राजगोस्वामी दतिया* से लिखत है कै पठौनी में मिले व्यंजन अरु अचार की महिमा बता रहे है। बधाई।
बाध पठौनी चल दिये संग मे लै के नार ।
खोल पुटरियन मे मिली पुरी पपरिया दार ।।
बेला आइ बिदाइ की भेट मिले कलदार ।
मिली पठौनी संग मे व्यंजन बिबिध अचार ।।
***
आप सबइ ने पने-पने दोहा पटल पै डारे हम भौत आभारी हैं ऐसइ बुंदेली साहित्य कौ नओ भंडार भरत रइयो।
*जय बुंदेली,जय बुन्देलखण्ड, जय भारत*
*- राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़*
*अध्यक्ष- मप्र लेखक संघ*, मोबाइल -9893520965
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*218वीं -आज की समीक्षा*
*समीक्षक - राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 21-6-2021
*बिषय- *"बेला" (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *बेला* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज बेला से महकते दोहे रचे पढ़के मन प्रसन्न हो गऔ। सो जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। आज पकल पै दो नये साथी भी जुड़े। उन्होंने ने भी भौत नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा* ने अपने 5 नोने दोहा पटल पर रखे- आफने अपने दोहे में यमक अलंकार का शानदार प्रयोग किया है बधाई।
बेला आयी टोर कें,बेला भर जब फूल।
बेला महकन सें लगै,गलियन महकी धूल।।
बेला कली खिली नहीं,बेला खिल खिल जाँय।
बेला के गजरा पहिन,बेला मन मुस्काँय।।
*2* - *राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़* ने लिखा है कि जब सोलह सिंगार करके और बेला को गजरा लगा के गोरी कड़ती हैं तो दिल के सितार अपने आप ही बज उठत है।
बेला से महकें सदा,मन को जो हर्षाय।
खुश्बू ऐसी होत है,दिल में जो बस जाय।।
बेला कौ गजरा सजो,कर सोलह सिंगार।
उनको रूप निहारते,दिल के बजत सितार।।
*3* *श्री सरस कुमार जी ,दोह खरगापुर* ने अपने दोहों में बगिया का सुंदर चित्रण किया है बधाई।
बेला बगियन में खिले, हरसत भौरा,मोर ।
मेंढक, चिड़ियाँ, तितलियाँ, बोल रहे घन - घोर ।।
खुशबू फेली है इते, बेला की है बेल ।
भौरा, तितली खेलते, बना बना कर रेल ।।
*4* *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु बडागांव झांसी* उप्र. से कै रय कै बेला से सजी सेज और जूडे में बेला घायल कर देत है। श्रृंगार के बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
बेला चुन चुन के रखे, उसने फूल सहेज।
प्रिय के आते ही सजा, फिर गोरी का सेज।।
होंठों पर मुस्कान है, नैना तीर कमान।
जूड़े में बेला गुथी, घायल मन नादान।।
*5* *श्री अशोक पटसारिया जी नादान* खुश्बूदार पौधे के नाम बता रय है-उमदा टकसाली दोहे है बधाई।
बेला चंपा चमेली, गुड़हल पारिजात।
गंधराज मधुकामनी,जुही सुंगंध लुटात।।
बेला कहै गुलाब से,सुन रंगीन मिजाज।
तुमसे ज्यादा मोंगरा,पारिजात कौ राज।।
*6* *श्री शोभारामदाँगी नंदनवारा* से सुंदर दोहे लिखते हैं-
बेला सैं बेला कहे, छोड़ न दइयो संग ।
अपन साजे लगैं, पर मन होवैं चंग ।।
बेला बेला ले चली, चंपा चमेली द्वार ।
गुलाब जूही संग हैं, ये पारिजात कचनार।।
*7* - *प्रदीप खरे,मंजुल* पुरानी टेहरी, टीकमगढ़ बेला शब्द का नोनौ प्रयोग करो है। बधाई।
बेला जूड़े में बदो, महक जात है मीत।
नारी सज नौनी लगे,होबै गाड़ी प्रीत।।
बेला की बेरा गई, बेलहिं बेरा आइ।
चौथेपन संगे रहे, लाठी, तेल, दवाइ।।
*8* *श्री परम लाल तिवारी, खजुराहो* से सीता जी के गिरजा पूजन को भौत नौनौ दृष्य दोहा में खींचा है बधाई।
बेला की माला धरी, और सजाई थाल!
गिरजा पूजन को चली, सीय सहित सब बाल!!
आवन की बेला भई, गिरिजा पूजन सीय!
बेला, तुलसी बाग से, लावो चुन कमनीय!!
*9* *श्री संजय श्रीवास्तव, मवई, (दिल्ली)* से कमल और बेला की तुलना की है। सभी दोहे बढ़िया है बधाई।
बेला बोली कमल से,तुम सत्ता आसीन।
मैं रानी खुशबू भरी,तुम खुशबू सें हीन।।
मन बेला- तन मोगरा,जीवन बने गुलाब।
करमन की खुशबू उड़े,बनकें पर सुरखाब।।
*10* *श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* ने श्रृंगार के नौनै दोहे रचे है बधाई।
बेला कीं कलियां खिलीं,भोंर रये गुंजार।
बेला सुखद सुहावनी , प्रीतम लेव निहार।।
बेला तौ फूलन लगी,हो गइ आदी रात।
बेला बैठीं बाट में ,बेदरदी कब आत।।
*11* *राजगोस्वामी दतिया* बेला की बेल के गुण बता रहे हैं-
बेला की जा महक मे ऐसी महकी गंध ।
डूबे जा की गंध मे पा दूनौ आनंद ।
दीवारन पै फैल गइ लंबी बेला बेल ।
हरी भरी फूली फली करत अनोखौ खेल ।।
*12* *श्री कल्याण दास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर* कत हैं के बेला की महक चारो और फैलती है। अच्छे दोहे है बधाई।
महकत रावै मोगरा , महके बाखर-दोर ।
फूलन की शोभा-सुरभि , फैलत रय चहुँओर ।।
फूलै बेला - मोगरा , छायी रबै बहार ।
महकत रय परयावरन , महके घर-संसार ।।
*13* *श्री रामानन्द पाठक नन्द नैगुवां* से लिखते है कै बेला की खुशबू आदमी तो क्या सांपो तक को बहुत भाती है।
बेला में है महक अति,मन प्रसन्न हो जाय।
मानस की तौ बात का,सर्प निबास बनाय।।
बेला सें नारी सजी,जूडौ गजरा भाय।
सुन्दरता संग महक सें,सोभा अति बड जाय।।
*14* *श्री वीरेन्द्र चंसौरिया जी* लिखते है कै बेला की खुशबू रात भर आती रहती है।
बेला खुशबू दार है,सबके मन खों भाय।
सबरे फूला टोर कें, माला लेव बनाय।।
महका बेला रात में,खुशबू रव फैलाय।
इसकी खुशबू सूंघकें,मन हरषित हो जाय।।
*15* *श्री मनोज कुमार सोनी रामटौरिया* बेला के औषधीय गुण बता रय है बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
बेला पत्ता टोरकें,काढौ़ लेव बनाय।
करौ गरारे चार दिन,मुख विकार मिट जाय।।
बेला जर खौं पीसकें,धर लो लेप बनाय।
मुदी चोट कौ दरद हरै,मोच शमन हो जाय।।
*16* *श्री डी.पी.शुक्ल'सरस' जी* ने अच्छे दोहे लिखे है बधाई।
बेला माला लैे खसत,मेलत मां के कंठ ।।
गै बेला तरेर नयन, दर्शनै करकें अंट।।
रातन में बेला कली । खिलत चांदनी देख ।।
मँहक देत अंगना रहत।फरतै फूल सफेद ।।
ई तरां सें आज पटल पै 16कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से बेला से दोहा पटल पै पटके, सभइ दोहाकारों को बधाई।
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)*
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#
*211वीं -आज की समीक्षा*
*समीक्षक - राजीव नामदेव राना लिधौरी'*
*दिन- सोमवार* *दिनांक 07-6-2021
*बिषय- *पथरा (बुंदेली दोहा लेखन)*
आज पटल पै *पथरा* बिषय पै *दोहा लेखन* कार्यशाला हती।आज भौत जनन ने दोहा रचे उर भौतई नोने दोहा रचे गये, पढ़ कै मन खुश हो गव।सो जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो।
आज हमारे दाऊ जयहिंंद सिंह जी मोटरसाइकिल पै से गिर परे हाथ में चोट लगी है। ईश्वर का शुक्र है कि अधिक चोट नहीं लगी हे। उनका मोबाइल आया था इसलिए लिए आज की चलताऊ समीक्षा हम लिख रय है।
आज तो हम मिल्ला बन गये सबसें पैला हमई ने तीन दोहा पटल दोहा पै फटकार दये- आज जनी मांस पथरा के हो गये कछु दया ममता नइ रई-
*1* राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ से लिखत है-
पथरा से वे हो गये,नइ पिघले वे जात।
जितनइ प्यार दऔ उनै,उतनइ वे गर्रात।।
जनी मांस तो हो गये,पथरा के हैं आज।
कौनउ कौ अब भय नहीं,कर रय निर्भय राज।।
*2* *श्री अशोक पटसारिया नादान जू लिधौरा* से कै रय कै- हम तौ डांग के पथरा हते हमें गुरु ने आदमी बनाओं सासी है गुरु की कृपा से ही चेला बडों बन जात है। नोने दोहे रचे बधाई।
हम पथरा ते डांग के,गुरु ने हमें बनाव।
संगत सें दिल में भरे,जीव दया के भाव।।
भवन भले उम्दा बनो,सबरे सुख सें सोत।
नीं के पथरा नइ दिखत,बजन उनइ पै होत।।
*3* *श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा* से लिख रय कै- पथरा में भगवान राम को नाम लिख देवे से वे डूबत नइया,आपने दोहन में बन्न बन्न के पथरा बताये है भौत नोने दोहा रचत है दाऊ बधाई पौचैं जू।
पथरा पगडंडी परे,पग पग परत पिटाइ।
शालिगराम शिला सबयी,सिंहासन सजवाइ।।
पथरा पथरा राम लिख,सागर पुल उतराय।
राम रेत रामेश्वरम्,शिव पूजन करवाय।।
*4* *श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा* लिखत है कै पथरा भौत खतरनाक होत है खेत में पर जाय तो कछु नइ होत। नोनौ लिखों। बधाई।
पथरा खतरा जानिवो,जा जैसें पर जाय।
खेत परे मिट जात है,मारे से जी जाय।।
दया धर्म न जानबै,पथरा बने शरीर।
ई दुनिया में देख लो,कैऊ है बे पीर।।
*5* *श्री प्रदीप खरे, मंजुल जू टीकमगढ़* से वियोग श्रृंगार में भौत अच्छै दोहा लिखत है- बधाई।
पथ को पथरा पांव में, लगत होय मन पीर।
पथरानी अंखियां पिय,तुम बिन धरत न धीर।।
पथरा कें पथरा भये,बिन सैयां के नैन।
हिय पै पथरा सौ धरें, नहीं जिया में चैन।
*6* *श्री संजय जी श्रीवास्तव,मवई (टीकमगढ़)* दिल्ली ने कन्यादान कौ भौत मार्मिक दृश्य दोहा में खैंचों है। भौत नोने दोहा रचे है। बधाई।
जी पे पथरा बाँद कें, कर दओ कन्यादान।
मोड़ी के सँग विदा भइ, घर की शोभा, शान।।
पथराई अँखियन बसी, परदेसी की प्रीत।
पल-पल,युग-युग सो लगे,पास नहीं मनमीत।।
*7* *श्री परम लाल जू तिवारी,खजुराहो* ने अपने दोहा में हास्य रस प्रयोग करते भये कुत्तन खौ खदेरवे को नोनो उपाय बताऔ है। पतरा हीरा बनकर अंगूठी में जड़ जात है। सुंदर दोहे है। बधाई महाराज।
कुत्ता भोंके गैल में,पथरा लेव उठाय।
देखत पथरा हाथ में,तुरत दूर भग जाय।।
चमकीला पथरा इतै,हीरा लौ बन जात।
वह अमूल हो जात है,जड़ो अँगूठी रात।।
*8* *श्री शोभाराम जी दाँगी नंदनवारा* से लिखरय है- कै कजन की दार श्रृद्धा हो तो पतरा में भगवान दिखत है। श्रृपा से मनुष्य भी पतरा बन जात है । नोने दोहे लिखे बधाई।
पथरा में भगवान बसैं, सिददा जीखों होय ।
सिददा सैवो भीलनी ,राम की भकतन होय ।।
सिरापत गौतम नारी ये ,भई "पथरा "में लीन ।
राम जूं के चरन छुवतइं, सजी नार बनदीन ।।
*9* *श्री डी.पी. शुक्ला'सरस' जी टीकमगढ़* से कय है कै यदि पथरा बनने तो रामेश्वरम और मंदिर के बनना चाइए ताकि सदा पूजे जाऔ। उमदा दोहे। बधाई।
वे पथरा देखन चले,रामेश्वरम स्थान ।
नल नील चले बना पुल, वानर जूथ महान ।।
पथरा बनें मंदिर जहां,कारीगर अनुसार ।।
ना फूटियौ मद में तनक, मूरत बनवौ सार।।
*10* *श्री कल्याण दास जी साहू "पोषक"पृथ्वीपुर* से लिख रय कै- भगवान श्री राम की कृपा से पतरा भी तर जात है भौत नोने धार्मिक दोहे रचे। बधाई पोषक जी।
प्रभु-पग पथरा पै छुबे , चमत्कार सें युक्त ।
गौतम ऋषि की भार्या , भयी शाप सें मुक्त ।।
राम-नाम महिमा अजब , चमत्कार दिखलात ।
मानुष की तो बात काॅ , पथरा भी तिर जात ।।
*11* *श्री एस आर जी सरल,टीकमगढ़* ने अनुप्रास अलंकार का भौत नौनो परयोग दोहन में करो है शानदार दोहे रचे है। बधाई सरल जी्
पग पग पै पथरा परे,पाँव पाँव पै घाव।
परख परख पथरा पुजै,पनै पनै हैं भाव।।
पथरा परखै पारखी,पड़ पड़ पूरै मंत।
पल पल पथरा पूजकै,सिद्धा रखें अनंत।।
*12* *श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र*.से लिखत है-मूर्ति को तराश कर उसमें प्राण फूंक देता है मूर्तिकार। अच्छे दोहे है। बधाई।
कलाकार कारीगरी, कर- कृति का निर्मान।
पाथर की मूरत लगे, जैसे हो भगवान।।
पाथर- पाथर पर लिखा, उसने जयश्रीराम।
सागर पर वह तैरते, पुल बनकर अभिराम।।
*13-* *श्री रामगोपाल जी रैकवार, टीकमगढ़* के क्या कहने बेहतरीन दोहे रचते है- वे कत है कै मील के पथरा बनो ताकि पथिक खों मंजिल को पतो परत रय। उत्कृष्ट दोहे रचे है बधाई।
पथरा है जो मील का,ठाँड़ो एकइ धाम।
मंजिल की देता खबर,भौत बड़ौ जौ काम।।
पथरा थे जो नींव के,उनखों दऔ भुलाय।
सज-धज कें ऊपर चढ़ो,कलस रऔ इतराय।।
14* श्री प्रभु दयाल जी श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़* लिखत है कै नदियां के पतरा सालिगराम बन जात है और पूजे जात है। उमदा दोहे है बधाई।
पथरा नदी धसान के,बट्टूं बने दिखांयं।
दरबटना बनबें कछू, सालिगराम सुहांयं।।
कछु तौ पथरा गैल के,सब की ठोकर खात।
कछु मूरत के रूप में, घर घर पूजे जात।।
*15* *डॉ रेणु जी श्रीवास्तव भोपाल* से लिखतीं है कै पतरा में भौत ताकत होत है नीलम,हीरा आदि पथरा भाग बदल देत है। उमदा दोहे रचे है बधाई डॉ रेणु जी।
नक्काशी खजुराव की, पथरा भये सजीव।
ऐसे शिल्पी होत हैं,पथरन में दै जीव।।
पथरन में गुन भोत हैं, भाग बदल जे देत।
नीलम औ पुखराज जे, पन्ना हीर समेत।।
*16* *श्री राजगोस्वामी जू दतिया* से कत है के आस्था में इतनी दम है के पतरा के पूजवे से हरि मिल जात है। आचछे दोहे है। बधाई।
पथरा पटके पाव पै दूजिन को दे दोष ।
को समझाबै जाय के ऊ खो नइया होश ।।
पथरा पूजत हरि मिलत हरि मिलतन कल्यान ।
कह गए अपने व्यास जू रच गए वेद पुरान ।।
*17* *श्री लखनलाल जी सोनी छतरपुर* से लिखत है के सीना पै पथरा धरके लोग झूंटी कसम तक खा जात है। अच्छा लिखा है बधाई।
सीना पै "पथरा" धरो, तनकउ नही डरात ।
पाप कमाई करत में, झूंटी कसमें खात ।।
*18* *श्री अभिनन्दन गोइल जू इंदौर* से लिखत है कै- अक्कल पै पथरा परे तो मानव अभिमानी हो जात है सही है। नौनो लिखो है बधाई।
अक्कल पै पथरा परे, गयौ अखारथ ज्ञान।
जानों बूजों कछु नहीं,तोउ करों अभिमान।।
पथरा दिल की का कबें,का जानें वौ पीर।
भये भोंतरे छूट कें, कामदेव के तीर।।
*19* -श्री रामानन्द जी पाठक नंद नैगुवां* लिखत है कै मेनत करके आदमी पथरा पे भी कर खात है पै आलसी कछु नई कर पात है। बढ़िया दोहे है बधाई नंद जीऋ
मेंनत करि करतूतरौ,पथरा पै कर खात।
विन करें सब चाउत हैं, है अजगर की जात।।
इक पत्थर गडवांस कौ,सबकी ठोलें खात।
बइ पथरा मूरत बनें,जग के सबइ पुजात ।।
*20* *डॉ. सुशील शर्मा जी गाडरवाड़ा- से लिखत है कै- ककराज्ञपथरा जोर के झूठी शान के लिए हवेली तान लेत है। अच्छा लिखा है। बधाई।
पथरा सो हिरदय भओ,उनसे लड़ गए नैन।
आंखों में अंसुआ नहीं,लुट गओ जो सुख चैन।
ककरा पथरा जोर के,लइ हवेली तान।
हंसा फुर फुर उड़ गओ,रह गई झूठी शान।
*21* श्री वीरेन्द्र जी चंसौरिया टीकमगढ़ से कत है कै- जीके दिल में पथरा होत है वो दया, धरम कछु नई जानत है। नोनौ लिखो है। बधाई।
पथरा पै श्रद्धा जगी,पथरा भव भगवान।
सुबह शाम पूजा करत, करकें हम इसनान।।
दया धरम जानें नहीं,पथरा दिल इनसान।
फिर भी कैरय रोजउ,करौ मोव सम्मान।।
22- श्री रामलाल जी द्विवेदी प्राणेश ,कर्वी चित्रकूट जी ने बढ़िया दोहे रचे है परदेशी पिय की बाट जोहते हुए आंख पथरा गयी है।
हिय मंदिर में भाव हैं, तो पथरा में ईश।
भाव बिना ढूंढत फिरत, दीखें ना जगदीश।
परदेसी पिय जोहते ,पथ पथराए नैन ।
गुमसुम जीवन जी रई,टोकत मुश्किल बैन।
ई तरां सें आज पटल पै 22 कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से पतरा से दोहा पटल पै पटके, पै जै दोहा तराशे भय पथरा हते जो हमाय दिल के मंदिर में बस गये है। पढ़ के भौत आनंद आ गऔ। निश्चित ही आज कछू दोहे कालजयी रचे गये है। बुंदेली दोहे के इतिहास में ये दोहे अपना स्थान जरुर बना लेंगे ऐसा मुझे विस्वास है। सभइ दोहाकारों को बधाई।
👌*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*👌
*समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)*
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़*
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