Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 3 जून 2021

कांचुली (हिंदी दोहा संग्रह)- रामगोपाल रैकवार

                             कांचुली

                   (हिन्दी दोहा संग्रह) ई_बुक

                दोहाकार-रामगोपाल रैकवार 'कंवल'

        संपादन - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

 प्रकाशन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

                  दिनांक- 3-6-2021

©कापीराइट- रामगोपाल रैकवार,टीकमगढ़ (मप्र)

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                            कांचुली
                      (हिन्दी दोहा संग्रह)
                      - रामगोपाल रैकवार



                       कवि परिचय

नाम:- रामगोपाल रैकवार
पिता का नाम:- स्व. श्री रामभरोसे रैकवार
माता का नाम:- स्व.श्रीमती मालती देवी
जन्म :- 21-07-1960
शिक्षा :- एम.ए. (भूगोल), बी.एड.
विधा :- गीत , ग़ज़ल, दोहे, व्यंग्य, यात्रा वर्णन,आलेख आदि
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में
प्रसारण :- आकाशवाणी भोपाल एवं छतरपुर से प्रसारण
सम्मान :- अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
* आंचलिक सम्मान-2004 मप्र लेखक संघ, टीकमगढ़ द्वारा सम्मानित।
* गिजू भाई सम्मान, भोपाल
*शिक्षाविद डॉ. गुलाब सिंह चौरसिया सम्मान, भोपाल
* अ.भा. साहित्य परिषद टीकमगढ़ द्वारा सम्मानित।
संप्रति :- कनिष्ठ व्याख्याता डाइट कुण्डेश्वर (टीकमगढ़)
मोबाइल :- 8085153778
पता :-प्रहलादपुरम, तखा टीकमगढ़ (मप्र)

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                   भूमिका-
                           - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

                श्री रामगोपाल जी रैकवार एक बहुत बढ़िया साहित्यकार है साहित्य की दोनों गद्य एवं पद्य पर समान अधिकार रखते है जहां वे गद्य में बेहतरीन व्यंग्य,यात्रा संस्मरण, शैक्षणिक आलेख,लिखते हैं तो वहीं पर पद्य में ग़ज़ल,गीत, दोहे और कविता लिखने में भी दक्ष है। आपके अनेक गीत बहुत सराहे गये हैं जिनमें ढ़ूंढ मत ठाव कोई ढूंढ मत छाव कोई अभी लंबा है सफ़र.... एवं आऔ गुनगुनी धूप में बैठे बहुत उत्कृष्ट गीत हैं।
           आप राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल से जुड़े हुए हैं आपकी अनेक रचनाएं पाठ्य-पुस्तक में शामिल हैं। रेडियो से आपके अनेक बाल उपयोगी शैक्षणिक आलेख प्रसारित होते रहते हैं।
             श्री रामगोपाल जी को भ्रमण करने का बहुत शौक है देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों के दर्शन कर आये है। नेपाल तक घूम आये है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण वर्तमान में गुफाओं पर अन्वेषण का काम कर रहे है खासकर बुंदेलखंड में अज्ञात छोटी-बड़ी  गुफाओं की खोज एवं भ्रमण कर रहे है अब लगभग एक दर्जन गुफाओं पर जा चुके हैं। वहां का उत्पत्ति व वहां का प्राचीन इतिहास पता करके आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं। आपने रिगौरा, घूरा,जतारा,खरों आदि गुफाओं पर वहां भ्रमण कर शोध किया हुआ है।
            श्री रामगोपाल जी ने लाइब्रेरियन श्री विजय मेहरा जी एवं साहित्यकार श्री राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' से साथ टीकमगढ़ जिले में "चलित लाइब्रेरी" का नया प्रयोग भी किया है जिसे काफी सराहना मिली है।
            वर्तमान में आप साहित्यिक संस्था मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ जिले इकाई का सचिव है एवं जिले की अनेक संस्थाओं से जुड़े हुए है। आप अ.भा.साहित्य परिषद टीकमगढ़ के अध्यक्ष भी रहे तथा अ.भा.बुंदेलखण्ड़ साहित्य एवं संस्कृति परिषद टीकमगढ़ के महामंत्री के पद पर भी रहे है।
           आप श्री राजीव नामदेव  'राना लिधौरी',के साथ संयुक्त रूप से 'जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़' के ग्रुप एडमिन भी है। इस पटल ने दो ही साल में बुंदेलखंड में अपनी बिशिष्ट पहचान बना ली है। इस पटल पर हिन्दी एवं बुंदेली में नियमित रूप से दिये गये बिषय पर दोहा लेखन होता है।इस पटल पर लगभग पचास चुने हुए सक्रिय सदस्य है जो निरंतर दोहा लेखन कर रहे है। 
इसी पटल पर दिये गये बिषयों पर श्री रामगोपाल जी रैकवार ने भी अपनी कलम बखूबी चलायी है। इन्हीं में से कुछ हिंदी दोहे 'कांचुली' ई बुक में हम प्रकाशित कर रहे है। ये दोहे कबीर, तुलसी और बिहारी के दोहों की श्रेणी के हैं। इन दोहों को पढ़कर आप स्वयं मूल्यांकन कर सकते है। आशा है पाठकों को जरूर पसंद आयेंगे। 
 अपनी अमूल्य समीक्षा एवं पाठक प्रतिक्रिया देकर लेखक की होंसला अफजाई जरूर कीजिए।
धन्यवाद

- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
संपादक'आकांक्षा'पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र)
मोबाइल-9893520965
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कांचुली
हिन्दी दोहा संग्रह
दोहाकार- रामगोपाल रैकवार
***********

सदा प्रफुल्लित बाल-मन,
रहता सदा प्रसन्न।
चाहे वह धनवान हो,
या हो निपट विपन्न।।
  ***
निर्मल दर्पण बाल-मन,
नहीं कपट छल द्वेष।
रहता है ईश्वर सदा,
धर बच्चों का भेष।।
****

जंगल में चुनाव -

बनी सभासद लोमड़ी,
शेर हुआ सरपंच।
वन-पंचायत में हुआ,
बिना विरोध प्रपंच।।
***
जप्त जमानत हो गईं,
गईं  कोयलें हार।
भारी बहुमत से बनी,
कौओं की सरकार।। 
***
दूर नहीँ अब तक हुई,
'वन्यतंत्र' की खोट।
नहीं पता कब डल गया
'अंतिम पशु' का वोट।।
***
सिंह-घोषणा पत्र में,
मुफ्त घास पर जोर।
हुए समर्थक मृग सभी,
चले सभा की ओर।।
***
'वन' खतरे में आज है,
किया सिंह ने घोष।
'घास' सुरक्षित है नहीं,
बाघों को है रोष।।
***
बहना रूठी भाई से,
भाई करे मनुहार।
गुड़िया ला दूँगा तुझे,
रक्षाबंधन-वार।।

तिलक लगाकर माथ पर,
बहना ईश मनाय।
ईश्वर मेरी उमर भी,
भैया को लग जाय।।
***
भाई है परमातमा
बहन आतमा रूप।
परम ब्रह्म के अंग हैं,
दोनों एक स्वरूप।। 
***
मन मथुरा, मन जमुन-जल,
मन ग्वालिन अरु ग्वाल।
मन होरी, मन रंग है,
मन राधा-गोपाल।
*****
जब उठती है राष्ट्र में,
नूतन-नवल हिलोर।
आता है बदलाव तब,
आती है नव भोर।।
***
जानै कितने चढ़ गए,
बलिवेदी पै लाल।
दमकत भारत मात कौ,
उन लालन सें भाल।
***
मउआ मेवा है मदिर,
गुलगुच मधुर मिठास।
भोजन निर्धन का यही,
और कभी आवास।।

***
'सेवा' ही परितोष है,
'सेवा' ही प्रतिदान।
'सेवा' ही सुखमय सदा,
'सेवा' ही सम्मान।।
*****
'मेवा' पाने के लिए,
जो 'सेवा' अपनाय।
करे कलंकित स्वयं को,
अंत काल पछताय।।
***
'सेवा' सबसे है बड़ी,
अपना आत्म सुधार।
इससे ही युग बदलता,
अरु समाज-परिवार।।
****
लोकोक्ति में लोक का,
विविधामय संसार।
गागर में सागर भरा,
अनुभव, जीवन-सार।।

****
कहते उसे विज्ञान हैं,
जो है ज्ञान विशेष।
मोह पुरातन से नहीं,
नव से करे न द्वेष।।

बिड़ी सूँट कें जो पियें,
मैकें फिर कलदार।
छाती अपनी फूँक कें,
मिटा रये घर-बार।।
***
पतझड़ी दोहे-
पीत पत्र  पर है लिखा
पतझड़ का संदेश।
सखे बसंत आकर नया,
रचना तुम परिवेश।।
***
पतझड़ भी एक पक्ष है,
दूजा पक्ष बसंत। 
एक नया आरंभ है,
एक पुराना अंत।।
***
आज जिसे पतझड़ कहा,
कल था वही बसंत।
फिर बसंत पतझड़ बने,
है ये चक्र अनंत।।
***
झरे पात भूलें नहीं,
लख बसंत को द्वार।
नवयुग लाने को तजा,
है इनने घर-बार।। 
***
स्वागत मित्र बसंत का, 
बिछा दिए हैं पात।
शूल चुभें न पाँव में, 
दुखें न कोमल गात।।

***
साहस तजने का करे,
वृक्ष पुराने पात।
तब जाकर मिलते कहीं,
बासंती सौगात।।
***
आत्मा है इक चेतना,
नहीं रूप है मूर्त।
बनकर के भगवान-सम,
पुजते हैं बस धूर्त।।

***
भव्य राम मंदिर बने,
गौरव राष्ट्र प्रतीक।
राम जन्म भूमि रचे,
राम राज्य रमणीक।।

दिव्य राम मंदिर बने,
भव्य रचे प्रतिमान।
राम राज्य में था सदा,
गण का भी सम्मान।

जन तो धन सम्पन्न हो,
गण हो गुण से युक्त।
मन में शुभ विश्वास हो,
भारत हिंसा मुक्त।।

***
प्रशंसा 'पर', अमृत सरिस,
'निज' है गरल समान।
एक बढ़ाती मान है,
दूजी बस अभिमान ।।
***
स्वार्थ-प्रशंसा से बचें,
महापतन की राह।
स्वीकारें सत्यार्थ को,
रखें न इसकी चाह।।
***
प्रशंसा कभी स्वार्थमय,
करते नहीं सुजान।
मधुर सत्य कहते सदा,
हित-अनहित पहचान।।
***
प्रशंसा फल सत्कर्म की
बिन माँगे हो प्राप्त।
यही शास्त्र निष्कर्ष है,
यही वचन है आप्त।।

***
प्रेम भावना ही नहीं,
प्रेम ईश का रूप।
प्रेम कभी  छाया घनी,
प्रेम कभी है धूप।।

***
'प' से पवित्र 'त्र' त्रयगुणी
जन ही उसका दैव।
'का' से काम अवाम का,
'र' से रत है सदैव।।
***
धरा क्षमा अरु धैर्य है,
धरा शेष पर भार।
धरा यहीं रहना सभी,
धरा जो धर्म विसार।।

(मात्रा पतन नियम सहित) 
****
पृथ्वी माता जगत की,
धरा धरे है भार।
वसुधा उद्गम है सुधा,
अचला है आधार।
***
धरती सब धारण करे,
भू भूधर मैदान।
क्षिति से है यह तन बना,
भूमि सदैव महान।।
***

वसुंधरा सब कुछ धरा,
उर्वी उर्वरा खान।
रत्नागर्भा है मही,
धरणी धरित्री ध्यान।।
***
मृगतृष्णा संसार यह,
मृग हैं सारे लोग।
जिनके पीछे भागते,
झूठे हैं वे भोग।।
***

चंदन-

लहू शहीदों का गिरा,
चंदन है वह धूल।
सदियों तक महका करे,
सके न कोई भूल।।
***
चंदन घिसकर भी सदा,
करे गंंध का दान।
सर्पों के संपर्क से,
नहीं छोड़ता आन।।
****
चंदन धारण पुण्य है,
करे पाप का नाश।
हरता है यह आपदा,
हो लक्ष्मी का वास।।
(चंदन धारण मंत्र का छायानुवाद)

'च' से चन्द्रमा सम बनो,
'न' से नेह सद्भाव।
'द' से दान की गंध हो,
'न' से नम्रता भाव।।

'चंदन' उसकी रीत है,
'चंदन' उसकी प्रीत।
'चंदन' उसका नेह है,
'चंदन' उसका मीत।।
****

स्वस्थ, सबल जो जन, करे,
सतत रक्त का दान।
रक्त दान का मान है,
शत-शत यज्ञ समान ।।

महा दान है रक्त का,
इससे बचती जान।
रक्त दान जो भी करे,
उसका काम महान।

रक्त जीव का सार है,
रक्त करे बलवान।
रक्त  प्राण रक्षा करे,
रक्त दान मह दान।।

रक्त प्राण आधार है,
रक्त बिना निर्जीव।
रक्त बिना तन सून है,
रक्त दान संजीव।।

रक्त दान अभियान से
बचें सैकड़ों प्राण।
आगे आकर के युवा,
दें कष्टों से त्राण।।
****
जामुन से ही है पड़ा,
जम्बु द्वीप का नाम।
नदी जामुनी भी सुनी,
जामुन का है धाम।।

***
बाहर से काला भले,
अंदर उजला रूप।
गुण भारी हैं रंग पर,
जामुन रस का कूप।।
*****



दशावतार
1-
सृष्टि बचाने के लिए,
लिया मत्स्य-अवतार।
नीर-प्रलय से था किया,
जीवों का उद्धार।
2-
मंथन हेतु समुद्र का,
लिया मेरु का भार।
दिव्य रत्न तब थे मिले,
था कच्छप-अवतार।।
3-
हिरण्याक्ष ने जब किया,
पृथ्वी का अपकार।
रूप धरा जो ईश ने,
था वराह-अवतार।।
4-
दुष्टों की पूजा बड़ी,
भक्त हुए लाचार।
उनकी आर्त्त पुकार से,
हुआ नृसिंह-अवतार।।
5-
भोग वृत्ति में लिप्त था,
सतयुग में बलि-भूप।
तीन पगों में विजय की,
धर वामन का रूप।।
***
दशावतार-२
6-
धरती पर जब बढ़ गया,
भारी अत्याचार।
परशुराम के रूप में,
हुआ ईश अवतार।।
7-
रावण का जब बढ़ गया,
पग-पग पापाचार।
मर्यादा को थापने,
हुआ राम-अवतार।।
8-
स्वार्थ-सिद्धि प्रमुख हुई,
हुआ अनीति प्रसार।
धर्म थापना के लिए,
लिया कृष्ण अवतार।।
9-
करुणा जब विचलित हुई,
हिंसा का विस्तार।
बढ़ती हिंसा रोकने,
हुआ बुद्ध अवतार।।
10-
बढ़ता ही नित जा रहा,
वर्ग-भेद, संघर्ष।
अवतारेंगे कल्कि जब,
छाएगा तब हर्ष।।
***
बिषय- कजलियां

करते बोकर कजलियाँ,
फसलों का अनुमान।
शौर्य-वीरता से जुड़ा,
यह त्योहार महान।

आया चंद्रावलि-हरण,
करने जब चौहान।
दिवस कजलियों के रखी,
आल्हा-ऊदल आन। 

गाँव-गाँव दिन-कजलियाँ
होता आल्हा-गान।
नहीं गवैये वे रहे।
और न वैसी तान।

आल्हा गायन के समय,
शस्त्र न रखते पास।
बावन आल्हा समर में
युद्ध कजलियाँ खास।।

अब तो होती जा रहीं
परंपराएँ लुप्त।
अब न कजलियाँ खुट रहीं,
लोक हो गया सुप्त।।

रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़


रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़ मौलिक और स्वरचित

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