*तांका छंद- बक्सवाहा के जंगल*
*1*
क्यों काट रहे,
बक्सवाहा जंगल।
हीरे से पेड़,
कुछ करो शरम।
कुछ करो रहम।।
***
*2*
बदनसीबी पे,
बक्सवाहा जंगल।
आज है रोते।
राजनीति के बीज।
तुम क्यों रहे बोते।।
***
*3*
बने दुश्मन,
हीरे की लालच में।
अंधे होकर,
करते अमंगल।
काट रहे जंगल।।
***
*4*
वन मिटाते
दौलत की खातिर।
विनाश लाते,
मुफ्त में ऑक्सीजन
फिर कहां से पाते।।
***
*5*
पेड़ बचाएं
पौधारोपण कर।
ऋण उतारे।
हरियाली को लाये।
बीमारियां भगाये।।
***
*कवि- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें