Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 24 जनवरी 2023

घिची(गर्दन) बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी',टीकमगढ़ (मप्र)

घिची (गर्दन (बुंदेली संकलन) ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
     घिची (गर्दन (बुंदेली दोहा संकलन) ई-बुक

संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र)
                 
  💐😊 घिची (गर्दन💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                           की 130वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

     ई बुक प्रकाशन दिनांक 23-1-2023

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965
        



🎊🎇 🎉 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

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              अनुक्रमणिका-

अ- संपादकीय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'(टीकमगढ़)

01- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
02-प्रमोद मिश्र, बल्देवगढ़ जिला टीकमगढ़
03-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़
04-अमर सिंह राय,नौगांव(मप्र) 
05-विद्या चौहान (फरीदाबाद)
06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा
07-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़
08-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी
09-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर
10-एस आर सरल,टीकमगढ़
11-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा
12-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर
13-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
14- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
15-संजय श्रीवास्तव* मवई  (दिल्ली)
16-जयहिन्द सिंह जय हिन्द,पलेरा
17-बृजभूषण दुबे बृज, (बक्सवाहा)
18-कल्याण दास साहू पोषक, (पृथ्वीपुर)
19- गोकुल यादव (बुढ़ेरा)
20-सुनीता खरे टीकमगढ मध्य-प्रदेश
21*-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
22- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.
23*सुभाष बाळकृष्ण सप्रे ,भोपाल
24*डां देवदत्त द्विवेदी, बहामलेहरा
25*डां प्रीति सिंह परमार, टीकमगढ़
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                     संपादकीय


               साथियों हमने दिनांक 21-6-2020 को जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ को बनाया था तब उस समय कोरोना वायरस के कारण सभी साहित्यक गोष्ठियां एवं कवि सम्मेलन प्रतिबंधित कर दिये गये थे। तब फिर हम साहित्यकार नवसाहित्य सृजन करके किसे और कैसे सुनाये।
            इसी समस्या के समाधान के लिए हमने एक व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के नाम से बनाया। मन में यह सोचा कि इस पटल को अन्य पटल से कुछ नया और हटकर विशेष बनाया जाा। कुछ कठोर नियम भी बनाये ताकि पटल की गरिमा बनी रहे। 
          हिन्दी और बुंदेली दोनों में नया साहित्य सृजन हो लगभग साहित्य की सभी प्रमुख विधा में लेखन हो प्रत्येक दिन निर्धारित कर दिये पटल को रोचक बनाने के लिए एक प्रतियोगिता हर शनिवार और माह के तीसरे रविवार को आडियो कवि सम्मेलन भी करने लगे। तीन सम्मान पत्र भी दोहा लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रदान करने लगे इससे नवलेखन में सभी का उत्साह और मन लगा रहे।
  हमने यह सब योजना बनाकर हमारे परम मित्र श्री रामगोपाल जी रैकवार को बतायी और उनसे मार्गदर्शन चाहा उन्होंने पटल को अपना भरपूर मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार हमारा पटल खूब चल गया और चर्चित हो गया। आज पटल के  एडमिन के रुप मैं राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (म.प्र.) एवं संरक्षक द्वय शिक्षाविद् श्री रामगोपाल जी रैकवार और श्री सुभाष सिंघई जी है।
           हमने इस पटल पर नये सदस्यों को जोड़ने में पूरी सावधानी रखी है। संख्या नहीं बढ़ायी है बल्कि योग्यताएं को ध्यान में रखा है और प्रतिदिन नव सृजन करने वालों को की जोड़ा है।
     आज इस पटल पर देश में बुंदेली और हिंदी के श्रेष्ठ समकालीन साहित्य मनीषी जुड़े हुए है और प्रतिदिन नया साहित्य सृजन कर रहे हैं।
      एक काम और हमने किया दैनिक लेखन को संजोकर उन्हें ई-बुक बना ली ताकि यह साहित्य सुरक्षित रह सके और अधिक से अधिक पाठकों तक आसानी से पहुंच सके वो भी निशुल्क।     
                 हमारे इस छोटे से प्रयास से आज एक नया इतिहास रचा है यह ई-बुक 'घिची (गर्दन) ' ( 130वीं ई-बुक है। ये सभी ई-बुक आप ब्लाग -Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com और सोशल मीडिया पर नि:शुल्क पढ़ सकते हैं।
     यह पटल  के साथियों के लिए निश्चित ही बहुत गौरव की बात है कि इस पटल द्वारा प्रकाशित इन 130 ई-बुक्स को भारत की नहीं वरन् विश्व के 83 देश के लगभग 99000 से अधिक पाठक अब  तक पढ़ चुके हैं।
  आज हम ई-बुक की श्रृंखला में  हमारे पटल  जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ की यह 130वीं ई-बुक 'घिची (गर्दन)'  लेकर हम आपके समक्ष उपस्थित हुए है। 
ये सभी दोहे पटल के साथियों  ने मंगलवार दिनांक-17-1-2023 को बुंदेली दोहा  प्रतियोगिता-97 में दिये गये बिषय 'घिची (गर्दन)  पर दिनांक- 22-1-2023 को पटल पोस्ट किये गये थे।
  अंत में पटल के समी साथियों का एवं पाठकों का मैं हृदय तल से बेहद आभारी हूं कि आपने इस पटल को अपना अमूल्य समय दिया। हमारा पटल और ई-बुक्स आपको कैसी लगी कृपया कमेंट्स बाक्स में प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करने का कष्ट अवश्य कीजिए ताकि हम दुगने उत्साह से अपना नवसृजन कर सके।
           धन्यवाद, आभार
            ***
ई बुक-प्रकाशन- दिनांक-23-1-2023 टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)

                     -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
                टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड (भारत)
                   मोबाइल-91+ 09893520965 

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#शनिवार#दिनांक २१.०१.२.२३#
#बुन्देली दोहा प्रतियोगिता ९७#घिची
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01-राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ (मप्र)



**बुंदेली दोहा -घिची (गर्दन)*
*1*
घिची झुकै लगबै शरम  ,  करौ न ऐसौ  काम |
#राना    पंचन   बीच   में ,   नैचौ  हौवें  नाम ||
*2*
#राना  घिची  झुकात  है , गुरुवर  ठाड़ै  हौय  |
राम- राम   उनखौ   करै , जौरे  हाथन   दौय ||
*3*
झुकौ नईं   #राना  उतै ,    खड़पंचौ  जब आय |
सदा सत्य कौ संग दौ ,  घिची  चाय  कट जाय ||

*(खड़पंचौ =बिना मतलब की  पंचायत )*
*4*
घिची कटा गय देश हित , कर गय  अपनौ काम |
#राना  उनखौं  है  करत ,   मुड़िया  झुका प्रनाम ||
*5*
ऊँची   हौतइ  है   घिची ,   हौवें  नौनों  काम |
आतइ #राना है मजा , भलौ करत सब राम ||

*एक शृंगार दोहा-*
*6*
घिची हिला छितरा दयै  , जब गोरी ने बाल |
बदरा छा गय गैल में , #राना  करत  ख्याल ||
~~~~~~~~~~~~~~~~~
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com


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2-*प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़,जिला-टीकमगढ़ (मप्र)


     
घिची पौल कें जोर दइ ,गज मुख हुये गनेश ।
पीठ चुखरवा की डटे , मेंटत सबइ कलेश।।
***

,, अप्रतियोगी दोहा,,
         विषय,, घिची,
*********************************
घिची खिची आँखें मिची , निकरे प्रान प्रमोद
मां ममता मुसकान की , सूनी पर गइ गोद
*******************************
बिटियन की पुल रइ घिची , रोती भारत मात
कपटी छल कर प्रेम सें , करते विश्वा घात
*******************************
घिची पौल कें मूंढ़ लै, अश्वत्थामा दाग 
जरजोधन रोने लगा , आँखन ओलट भाग
*******************************
रुबिका श्रद्धा की घिची , पौलीं करकें प्यार 
कव प्रमोद ई करम को ,को हैं जिम्मेदार
*******************************
घिची फांस दइ फाँस में , कस दइ काड़ें प्रान
भगत सिंह बलिदान को ,जानत सकल जहान
*********************************
पकरें घिची हलाइती , मोरी दुपरे आज
स्वापी सें कस तइ हतो , जो प्रमोद महराज
********************************
        
       -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
           स्वरचित मौलिक
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   3-सुभाष सिंघई,जतारा, टीकमगढ़

मथुरा में   तुलसी  कहैं   , घिची   झुकेगी नाथ  |
ऊँकै   पैलउँ  लौ  पकर,   तीर  धनुइयाँ  हाथ  ||
***
अप्रतियोगी दोहे , विषय - घिची 

माला पैरत ही  तनत  , करतइ कछु ना काम |
हाथ पाँव  मैनत  करैं ,  पातइ  घिची  इनाम ||

तिरिया भी अपनी घिची , करतइ खूब  सँबार |
डारै  फिरतइ   लल्लरी , गुरिया  करैं  निखार ||

जौन घिची में डार दै ,  दुल्लौ  अब  वरमाल |
औइ  गरै में  नौचिया , लैतइ  रत  हर  हाल ||

घिची पकरतइ है पुलिस , बिद जाबै जब  चोर  |
टूटत  है   तब  चामरौ ,  मचत  गाँव  में   शोर   ||

सबखौ हम सम्मान दें , घिची झुका कै आज | 
सबरै  गुनियाँ  है  इतै , जीपै   मोखौ    नाज ||

बुंदेली   कमजौर  थी , अब  भी  है  कमजौर |
घिची  झुका  कै है  कहत , देते  रहियौ   ठौर ||

***

सुभाष सिंघई , जतारा
***
       
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04-अमर सिंह राय,नौगांव, जिला छतरपुर



गलत झूँठ बाढ़ो बिकट, लगी सही की बाट।
लोग भरोसो नइँ करैं, रखौ घिची चय काट।।
****
बुंदेली दोहे, विषय- घिची (गर्दन)

गौरा  गइँ  जब  मायके, उतै भओ अपमान।
घिची काट दइ दक्ष की, आ शंकर भगवान।

परशुराम  जू  ते  छठे,  बिष्नू  के  अवतार।
तात कहे से मात की, करो  घिची  पै वार।।

द्वारपाल ते बिघ्नहर, पितु से भओ कलेश।
काट दई शिव ने घिची, तलफत रहे गनेश।

आसतीन  के  साँप  जो, करते  बारा  बाट।
कई जनें  विश्वास में, देत  घिची  हैं  काट।।

घिची चढ़े रँय रात दिन,जब लौ बनत न काम।
काम सटो दुख गौ बिसर, फिर करवैँ बदनाम।

सिलोचना ती पतिव्रता, जानत सकल जहान।
कटी घिची पति की हँसा,सच को दओ प्रमान।

'अमर' राँय चय जाँय मर, या तन टकै बिकाय।
मुकरैं नइँ हम बात से, घिची भले  कट जाय।।

***

मौलिक/                                                    
             -अमर सिंह राय,नौगांव, जिला-छतरपुर                         
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05-विद्या चौहान (फरीदाबाद)


कटवा कै अपनी घिची, करौ देस आजाद।
वंदन ऐसी  कोख़ खौं, पूत  जनी  फ़ौलाद।।
***
बुंदेली दोहे 
~~~~~~~~
विषय- घिची (गर्दन)
~~~~~~~~~~~~
मोबाइल  नै  हात  से, लओ  लड़कपन  छीन।
घिची झुकी है बाल की, रात दिनाँ तल्लीन।।

मैया  बिटिया  से  कहै, तुम हौ घर की आन।
घिची झुके ना बाप की, रखियो ईको ध्यान।।

अच्छाई   पैलाँ  हती, अब कलजुग घनघोर।
मीठी  छुरी  जबान पै, दे  रय  घिची   मरोर।।

घिची सूदरी रख चलत, जिनके हिय ईमान।
गटा  चुराउत  सत्य से,  लबरन  की  पैचान।।

जब धरती  पै पाप  से, बढ़न  लगो तो भार।
दुर्गा  माँ  नै  दैत्य  की, घिची  उतारी  पार।।

***

✍️ विद्या चौहान,फ़रीदाबाद, हरियाणा

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06-शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा




घिची काट मँहगाइ सैं,है किसान पै भार ।
काँलौं सऐ किसान ये ,कौन लगावै पार ।।
**
१=
मास मदिरा खाये जो ,घिची काटवैं रोज ।
"दाँगी" इनसैं दूर हैं ,मिटै न घरकौ खोज ।।
२=
झहड़ा झाँसौ होय तो ,घिची पकरवै पैल ।
जेल जाँय चाये कछू ,"दाँगी" बनैं हुडै़ल ।।
३=
धर दइ घींच मरोर कैं,जब भइ तनक नियाव ।
कपन लगे मड़वाइ से,बचौ न "दाँगी" ह्याव ।।
४=
घिची पकरवै तनकपै ,मरवे नही डरात ।
भड़या पिड़वै रात में,पाकैं आधी रात ।।
५=
मुर्गा बुकरा काटकैं ,खारय लाखन लोग ।
घिची मरोरत शानसैं ,"दाँगी" फैलौ रोग ।।

                 -शोभाराम दांगी 'इंदु', नदनवारा

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7-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

प्रतियोगी दोहा-

बची न अबला आबरू, धन न बच रऔ आज।
दबा घिची बै लेत हैं,तनक न खा रय लाज।।

***
1-
साहूकारी फाँगटैं, जिन पर जइयौ भूल।
घिची मसक कैं लेत हैं,बढ़े चुभत हैं शूल।।
2-
रामादल की का कनें,जोश छाव भरपूर।
घिची मसक मारे सभी,निशचर मिल लंगूर।।
3-
लूट मची चहुँ ओर है,जाऔ भैया चेत।
नेता, अधिकारी इतै,घिची दवा कै लेत।
4-
लूट पाट चहुँ ओर है,बचौ न कौनउँ ठौर।
दबा घिची जे छीनते,मौरे मौं कौ कौर।।
5-
बची न अबला आबरू,न धन बच रऔ आज।
दबा घिची बै लेत हैं,तनक न खा रय लाज।।
***
             --प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

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  8-अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत ,निवाड़ी

प्रतियोगी बुन्देली दोहा 
21-01-23

घिची दबा कें दीन की,जो पर धन हर लेत।
दीनबंधु  भगवान जी, नरक  ओइ खों देत।।
*****************************
अप्रतियोगी दोहे-

घरबारी दाबें घिची, सारौ पकरें हाँत।
ढक्का दै दव सास नें, टूटे सबरे दाँत।।

कुत्ता  आपस  में लरें, दाँत घिची में देत।
चाट  न पावै  वौ उतै,  सोउ मौत लै लेत।।

लिख लइती पैलें घिची,जब नइँ भव तौ टैम।
अब  भेजें  का  होत  है,  लगी  पटल पै रैम।

***

   -अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकान्त निवाड़ी

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 09-आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर


 सीमा पै दिख ग व कितउॅं , सुनलै बेटा मोइ। 
मुर्गी घाईं दाब  कैं  , घिची  मसक  दैं  तोइ।।
***
आशाराम वर्मा  "नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 17/01/2023
                   ***
                    
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10-एस आर सरल,टीकमगढ़



सज्जतिया पंच्यात में ,जुल्मी है बिन्त्वार।
सिर झुकायँ डारै घिची,ठाँड़ौ सभा मजार।।
          ***
          
                 -एस आर सरल,टीकमगढ़

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*11*-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा

घिची प्याज सी काट कें,नीचट ‌लरी‌ लराइ।
गोरन पै भारी परी,रानी  लक्ष्मीबाइ ।।
***
अप्रतियोगी दोहा
विषय:-घिची

गाय भैंस छिरिया सुॅंगर,साॅंमर छिकरा रोज।
हत्यारे काटत घिची,मिटो जात है खोज।।

बिटियॅंन की काटत घिची,जनम लेन न‌इॅं देत।
  घरती पै हैं ‌भार जे, उन्ना पैरें ‌सेत।।

बसन सेत मांथें तिलक, करैं गुरीरी बात।
दिन डूबें काटें घिची,गीद देख शरमात।।

राम -राम झुक कें करी,रो- रो मांगे वोट।
अब बे काटत हैं घिची,मन में भारी खोट।।

अपनों नै काटी घिची,है गवाह इतिहास।
जी नै मारौ जौन खों,भय हैं दुश्मन खास।।
                  ***"
-भगवान सिंह लोधी "अनुरागी" हटा दमोह
                         ***           
             
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12-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर



**
-रामसेवक पाठक हरिकिंकर, ललितपुर

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*13*आशा रिछारिया जिला निवाड़ी



घिची मसक कें लूट रय,जनता है बेहाल। 
नेता नगरी है सफल, हो गई मालामाल।।
***

-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी

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14- प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़


निसरी नैंनू  खाव  सो  , खूब दिखादव जोर।
दंतवक्र   चाणूर   की  , द‌इ  ती   घिची  मरोर।।
***
              
           प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

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15-संजय श्रीवास्तव, मवई  (दिल्ली)


घिची मसक कैं सत्य की, बेजाँ हँस रव झूँठ।     
बेइमान बरगद बने,सच्चे हो गय डूँठ।।
       ****
*अप्रतियोगी दोहे*

*१*
घिची काट प्रतियोगिता,
        राना जू करवायँ ।
शनिवार के दिना हमें,
      आपस मे लरवायँ।।
   
*२*   
घिची काटकैं रख दयी,
     तौ लौं नइँ विश्वास।
अपने बैरी से बुरे,
   कीसैं करबैं आस।।
***
  *संजय श्रीवास्तव* मवई 
     २१-१-२३😊दिल्ली
     
     

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16-जयहिन्द सिंह जय हिन्द,पलेरा


घिची काटने काट लो,मानो मोरी बात।
लौटा दो सीता पिया,बात नीत की कात।।
***
#अप्रतियोगी  दोहे#घिची#

                    #१#
मरे जवानों की घिची,काटी पाकिस्तान 
अन्न बड़ा गव देश कौ,का ग‌इ ऊकी शान।।

                    #२#
घिची कटी आंखें मिचीं,लाश डरी संग्राम।
उनें शहीद बखानियें,करें देश कौ नाम।।

                    #३#
मुर्गा बुकरा की घिची,काटत कैसें लोग।
आबै ना उनखों दया,बनें काटबे जोग।।

                    #४#
राइ घटै ना तिल बड़ै,जियन जोइया होय।
घिची कटे सें ना मरै,राखै उमर सजोय।।

                    #५#
अड़ियल और गंवार कौ,लोभी कौ धन सूर।
घिची कटे पै ही मिलै,र‌इयौ इनसें दूर।।
***
#जयहिन्द सिंह 'जयहिन्द',पलेरा जिला टीकमगढ़# 

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17-बृजभूषण दुबे बृज, बक्सवाहा


अप्रतियोगी दोहे
1-
घिची काट दइ बैठवे,कहत गड़त हैं बार।
जस करतन अपजस बनत,बृज देखो संसार।
2-
सुनत सुनत जब ऊब गय,गारी सईं  नंदलाल।
घिची काट शिशुपाल की,मा डारो तत्काल।
3-
घिची काट दइ छल करो,बृजभूषण कय नीक।
बर्बरीक का युद्ध में,नेई पहुंचवो ठीक।
4-
कुनर मुनर ठूटा करी,थापर हन दव छूट।
बृज मथुरा के लाल पे,घिची गई है टूट।
5- 
राहू ने चुपचाप जब,अमृत पी लव झट्ट।
चक्र सुदर्शन से हरी,घिची कटी हैं कट्ट।
***
- बृजभूषण दुबे बृज, बक्सवाहा

🎊🎇 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़🎇🎉🎊

18- गोकुल यादव (बुढ़ेरा)


पइसा की तौ  ई बखत, ऐसी  फैली  छूत।
घिची काटबे बाप की,तुले कलजुगी पूत।।
*******
अप्रतियोगी दोहे,विषय-घिची🌹
*************************
रिस्ते-नातों   में   भरो,
               बिष की नाँइ खटास।
घिची काटकें धर दिऔ,
              तौ  नइयाँ   विस्वास।।
*************************
अफसर नेता दोइ मिल,
                ऐसी    बाँदें    बान।
घिची दबा रय छोड़ रय,
             कड़न नि दै रय प्रान।।
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जो  मोंड़ी-मोंड़ा  चलत,
              घिची   नवाकें   राह।
उनके  लानें  ही  कड़त,
               सबके मुँह सें  वाह!!
*************************
घिची  दबा  लैबू  करे,
              मूर-ब्याज पै  त्याज।
अब रिनियाँ हैं  चैन में,
             जबसें आव स्वराज।।
***
✍️ गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी,बुडेरा

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19-सुनीता खरे टीकमगढ मध्य-प्रदेश

सौदा समर सदाँ कीजिये,लूट मची चहुँ ओर।
दया धरम न कोउ करें,दै रयै घिची मरोर।।
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सुनीता खरे टीकमगढ मध्य-प्रदेश
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*20*-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.

सेवा कोने में धरी,भय बूढे बीमार।
घिची मसक कें मांग रव, बेटा अब अधिकार।।
***
अप्रतियोगी दोहे... 

घिची झुकी उनकी रये,लख मौंडन बैहार/
बूढ़े दादा बाइ पे, कर रय अत्याचार/

 बात-बात में ऐंठ है, गाली और गलौंच/
बडबोले अपनी घिची, उठा दिखा रय पौंच//

ठुसी घिची में लल्लडी़,सीता रामी हार/
गोरी खौं गुलुबंद की, बनी रहे दरकार//

मैंगाई दाबै घिची, और न हैं रुजगार/
वादे करे लुभावने,दिशा हीन सरकार//

हती घूसखोरी इतै,दय आतंकी तोड़/
शासन ने कुछ तो दई, उनकी घिची मरोड़//

***

-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.

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*21*- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.

घिची दूख रइ काल सें, कुजने काय पिरात। 
भौजी बिलना फेर दयँ, आपहुँ सइ हो जात ।।
***
- श्यामराव धर्मपुरीकर ,गंजबासौदा,विदिशा म.प्र.

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*22*सुभाष बाळकृष्ण सप्रे ,भोपाल
"मम्मा खडे ते,खेत में,फ़सल देख हरषाय।
घिच्ची पकडे,चोर की, लठिया से गरियाय।।
***
घिच्ची(गर्दन)
1
"मम्मा खडे ते,खेत में,फ़सल देख हरषाय।
घिच्ची पकडे,चोर की, लठिया से गरियाय।
2

"आसों जाडो,भोतई,    ठंडो पडो सरीर।
घिच्ची पिरानी,रात भर, जुडा गओ सब नीर।।
3

"घिच्ची जिनकी होत है, नोनी सुराहिदार।
तुरतइ  पिरान लगत है, धरत तनक सो भार।।
4.

"दद्दा बेठात,रोज़ई, बच्चा कन्धा भार।
मोडा घिच्ची,पकड़ के,गिरबे नइ घबरात।।

***

सुभाष बाळकृष्ण सप्रे ,भोपाल

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*23*डां देवदत्त द्विवेदी, बहामलेहरा

मेरइ बारे आज तौ,मिलकें देबें मार।
घिची काटकें बे सुनों, पलकन देबें पार।
            ***
डां देवदत्त द्विवेदी, बहामलेहरा
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*24*डां प्रीति सिंह परमार, टीकमगढ़
घिची नई झुकने दई,लक्ष्मी बड़ी महान।
देश को मान बड़ गऔदुश्मन हो बेजान।।
***
डां प्रीति सिंह परमार, टीकमगढ़

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                          संपादन-
-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)

               

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 💐😊 घिची (गर्दन) 💐
                
    संपादन-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

              जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ 
                    की 130वीं प्रस्तुति  
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

   ई बुक प्रकाशन दिनांक 23-1-2023

        टीकमगढ़ (मप्र) बुंदेलखंड,भारत-472001
              मोबाइल-9893520965

2 टिप्‍पणियां:

सुभाष सिंघई जतारा ने कहा…

बेहतरीन संकलन

rajeev namdeo rana lidhori ने कहा…

धन्यवाद श्री सिंघई जी