Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 14 मई 2021

अक्षय तृतीया और ईद -(आलेख)राजीव नामदेव 'राना लिधौरी", टीकमगढ़ (मप्र) भारत

*अक्षय तृतीया और ईद*

            आलेख- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
अक्षय तृतीया-

              अक्षय तृतीया हिन्दी मास के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनायी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु जी के *नर- नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी*  के अवतार हुए थे, इसीलिए आज के दिन *परशुराम जयंती* एवं *नर-नारायण जंयती* मनायी जाती है।

            कहते हैं इसी दिन से त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। अक्षय तृतीया को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है इस दिन विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है यही कारण है कि इस दिन सर्वाधिक विवाह होते है। नया सामान एंव सोना-चांदी खरीदने के लिए भी यह दिन बहुत शुभ होता है।
_अक्षय तृतीया* (आखा तीज)
आज के दिन बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थी-

१-ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार जी का अवतरण।
२- माँ अन्नपूर्णा का जन्म।

३- *चिरंजीवी महर्षी परशुराम जी का जन्म हुआ था इसीलिए  आज परशुराम जयंती भी हैं।

४*माँ गंगा* का धरती अवतरण हुआ था।

 ५-प्रसिद्ध तीर्थ स्थल *श्री बद्री नारायण धाम* का कपाट खोले जाते है।

६- *कुबेर* को खजाना मिला था।

 ७-जगन्नाथ भगवान के सभी *रथों को बनाना प्रारम्भ* किया जाता है।

८-सूर्य भगवान ने पांडवों को *अक्षय पात्र* दिया।

९- महाभारत का *युद्ध समाप्त* हुआ था।

१०-वेदव्यास जी ने *महाकाव्य महाभारत की रचना* गणेश जी के साथ शुरू किया था।

११- प्रथम तीर्थंकर *आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान* के 13 महीने का कठीन उपवास का *पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया* था।

१२- बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में *श्री कृष्ण चरण के दर्शन* होते है।

१३- आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।

१४-*अक्षय* का अर्थ है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो!!!

१५- "अक्षय तृतीया" अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।

          इस दिन भगवान विष्णु जी विशेष पूजा अर्चना की जाती है गुड्डे-गुड़ियों का विवाह किया जाता है। गांवों में अक्षय तृतीया बहुत धूमधाम से प्राय:हर घर में मनायी जाती है।

****


*ईद*

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार एक साल में दो बार ईद आती है। पहली *"ईद-उल-जुहा"* और दूसरी *"ईद-उल-फितर"*। ईद-उल-फितर" को मीठी ईद और ईद-उल-जुहा" को बकरीद भी कहा जाता है।
         रमजान के पाक महीने में 30वें रोज़े के बाद चांद को देखकर *मीठी ईद* (ईद-उल-फितर) मनायी जाती है।

         मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव मनाना शुरू हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पैगंबर साहब ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थ। इसी जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था। तभी से *"मीठी ईद"* *(ईद-उल-फितर)* मनायी जाती है।

ईद के दिन गरीबों को *"फित्रा"* अर्थात दान दिया जाता है। जिससे गरीबों के प्रति भाईचारा, सहयोग, सहानुभूति की भावना बनी रहे। ईद हमें आपस में गले मिलकर  प्रेम और भाईचारे का पैग़ाम देती है।
***
*आलेख-राजीव नामदेव "राना लिधौरी",*
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र) भारत
मोबाइल-9893520965

कोई टिप्पणी नहीं: