Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 28 मई 2021

मेरी डायरी- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

                          मेरी डायरी 

                                  -राजीव नामदेव'राना लिधौरी'

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                           मेरी डायरी 
                                       -राजीव नामदेव'राना लिधौरी'

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मेरी प्रिय डायरी  समग्र -राजीव नामदेव:राना लिधौरी'

मेरी प्रिय डायरी  (भाग-1 ) -राजीव नामदेव:राना लिधौरी'

                               दिनांक 23-5-2021 समय रात 9:30

मेरी प्रिय डायरी,
         आत्मिक प्रेम
      हे प्यारी सी डायरी, तो आज मैंने तुम्हें भी अपना बना ही लिया है।
जब अपना बना ही लिया तो चलो मैं सबसे पहले अपना परिचय ही दे देता हूं। मैं राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़ (मप्र) भारत का रहने वाला एक अदना सा इंसान हूं।
           किस्मत का मारा हूं एम.ए.हिंदी, बी.एससी.कृषि और पीजीडीसीए कम्प्यूटर से करने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई। वजह मैं लोकल मैं नौकरी करना चाहता था इसके दो प्रमुख कारण थे।
      पहला मैं घर में इकलौता लड़का था पिताजी जी बाहर जाने नहीं दिया। और दूसरा मैं एक साहित्यकार हूं मेरा जिले में साहित्यिक क्षेत्र में बहुत नाम है। इसलिए मैं खुद बाहर नहीं जाना चाहता था इसके बारे फिर किसी दिन विस्तार से लिखूंगा।
            बहुत पहले शिक्षाकर्मी की नौकरी मिल रही थी शहर से 30 किलोमीटर लेकिन उस समय शिक्षाकर्मी को मात्र 300रुपये मिलते थे और मैं लोकल मैं ही एक प्रायवेट स्कूल में पढ़ाता था वहां 1800रु मिलते थे।
         तो अब आप ही बताइए वो कौन मूर्ख होगा जो 1800रुपये की नौकरी छोड़ कर 300की करेगा वो भी रोज अपडाउन करके और वो भी पक्की नहीं थी। ये बात और है कि बाद में वही पक्की हो गयी।
      और हमने कुछ सालों तक पढ़ाकर अनुभव के आधार पर एक स्वयं का एक छोटा सा स्कूल खोल लिया।
लेकिन हाय री किस्मत दो साल भी ढंग से नहीं संचालित कर पाया कि कोरोनावायरस के कारण लाकडाउन में दो साल से हम ही डाउन हो गये। वो तो ईश्वर की थोड़ी सी कृपा रही कि स्कूल की स्वयं की बिल्डिंग है। वर्ना किराया देते देते मकान बिक जाता।
            तो मित्रों मैं इस मामले में लकी हूं कि कोरोनावायरस की चपेट में नहीं आया हूं और न ही मेरे परिवार का कोई भी सदस्य। हमने मास्क को नहीं छोड़ा और बहुत सावधानी रोज बरतते है इसीलिए अभी तक बचे है वर्ना मेरे हार्ट वाइपास सजर्री  सन् 2012 में हो हो चुकी है।
       फिलहाल मैं एक स्कूल संचालक हूं और एक साहित्यकार हूं। परिवार में बस  दो बेटियां हैं।  और माता-पिता सहित हमलोग कुल 6सदस्य है।
         ये तो हुआ मेरा संक्षिप्त परिचय। धीरे धीरे आप भी मुझे बहुत अच्छे से जानने लगेगें। मैं आपको सब कुछ बताते जाऊंगा।
        बस आप लोग मेरी डायरी को जरुर पढ़िएगा और कमेंट बॉक्स में बताये कि मेरी डायरी कैसी है।
बैसे सच कहूं तो पहली बार डायरी लिख रहा हूं। अब पता नहीं आपको पसंद आती है कि नहीं।
            बाक़ी अगले भाग में बातें होगीं।

   शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना ही-

-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
मोबाइल-91+9893520965
Email- ranalidhori@gmail.com

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मेरी प्रिय डायरी  (भाग-2 ) (साहित्यिक परिचय)
                -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                            दिनांक 24-5-2021 समय रात 8:30

मेरी प्रिय डायरी,

         आत्मिक स्नेह

      हे मेरी प्यारी सी डायरी, कल पहले भाग मैंने अपना सामान्य परिचय दिया था। आज अपना साहित्यिक परिचय दे रहा हूं ताकि तुम मुझे किसी न किसी कोण से सदा याद रखो, मुझे भूलों नहीं।

साहित्यिक परिचय-
नाम :-राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’
जन्म   :-15.06.1972 (लिधौरा)
माता-पिताः- श्रीमती मिथलेश,श्री सी.एल.नामदेव
पत्नी एवं संतानः- श्रीमती रजनी नामदेव ।
कु.आकांक्षा एवं कु. अनुश्रुति
शिक्षा   :-बी.एस.सी.(कृषि),एम.ए.(हिन्दी),पी.जी.डी.सी.ए.(कम्प्यूटर)
विधा :-कविता,ग़ज़ल,हायकू ,व्यंग्य, क्षणिका,लघुकथा,कहानी एंवं आलेख आदि।
प्रकाशन:-  1.अर्चना (कविता संग्रह,1997) 2.रजनीगंधा (हायकू संग्रह 2008)
     3-नौनी लगे बुदेली’ (विश्व में बुंदेली का पहला हाइकु संग्रह, 2010)
4.राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह 2015द्ध 5.लुक लुक की बीमारी’(बुंदेली व्यंग्य संग्रह 2017
6 सहित्यिक वट वृक्ष’ (ई बुक) (गद्य व्यंग्य संग्रह 2018
7.‘सृजन’(संपादन) 8.आकांक्षा पत्रिका (संपादन 2002 से अब तक)9.‘संगम’ (संपादन) 10.अनुरोध (संपादन)
11.‘नागफनी का शहर (व्यग्ंय संकलन) 12.‘दीपमाला’(उपसंपादन) 13. जज़्बात(उपसंपादन)
14 ‘श्रोता सुमन’ (उपसंपादन)
15 पं. दुर्गाप्रसाद शर्मा अभिनंदन ग्रंथ (सह संपादन-2016)
ई-बुक- अब तक 41+13=54 ई-बुक्स का संपादन
एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग दो़ हज़ार रचनाओं का प्रकाशन, कवि-सम्मेलनों एवं मुशायरों  में शिर्कत।
अप्रकाशित:- ग्यारह अप्रकाशित संग्रह
संपादक:- ‘आंकाक्षा’ पत्रिका (सन् 2006 से आज तक)
प्रसारण :-ई टी.व्ही.,दूरदर्शन,सहारा म.प्र.,आकाशवाणी छतरपुर,केन्द्र से प्रसारण।
सम्मान :-18 प्रदेशों से 107 साहित्यिक सम्मान प्राप्त। म.प्र. एवं उ.प्र. केे महामहिम तीन राज्यपालों द्वारा सम्मानित।
विशेष  :-अब तक 271 साहित्यिक गोष्ठियों/कवि सम्मेलनों का सफल संयोजन/आयोजन।
78 देशों के ब्लाग पाठक
संप्रति :-संपादक- ‘आकांक्षा’ पत्रिका,
जिला अध्यक्ष:- म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ (सन् 2002 से आज तक)
जिला अध्यक्ष:- वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
पूर्व महामंत्री    : - अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं सस्ंकृति परिषद, टीकमगढ़ 
एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

पता    :-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,टीकमगढ़ (म.प्र.)पिनः472001 भारत
मोेबाइल :-09893520965  
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - (1) rajeevranalidhori.blogspot.com
(2) ranalidhori15.blogspot.com

           पढ़कर हंसना नहीं ये तो मेरा क्षणिक परिचय है और भी है बहुत कुछ है मेरे अंदर जो बाहर निकलने के लिए फड़फड़ा रहा है।
फिर  कभी बताऊंगा।

बैसे सच कहूं तो पहली बार डायरी लिख रहा हूं। अब पता नहीं आपको पसंद आती है कि नहीं।
            बाक़ी अगले भाग में बातें होगीं।

शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना -

-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
मोबाइल-91+9893520965
Email- ranalidhori@gmail.com
Blog- rajeevranalidhori.blogspot.com

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मेरी प्रिय डायरी  (भाग-3)
(कोरोनाकाल में मेरी कुछ उपलब्धियां)
                -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                            दिनांक 26-5-2021 समय रात 9:30

मेरी प्रिय डायरी,

         आत्मिक स्नेह
यूं तो कोराना काल बहुत दुखदायी है। लेकिन मैं आज सकारात्मक सोच के साथ आपको मेरी कुछ प्रमुख उपलब्धियां बता रहा हूं कि मैंने इस कठिन दौर में भी घर पर रह कर लाकडाउन का पालन करते हुए बहुत कुछ सीखा है। जैसे - सबसे पहले     1-मैंने मोबाइल पर आकर्षक सम्मान पत्र बनाना एवं डिजाइन बनाना सीख लिया है जिसे बनाने में बज़ार में लगभग 200-300रुपए लगते हैं।
          2- मैंने घर पर ही सेविंग करना दाढ़ी बनाना भी सीख लिया है। पहले मैं सेलून पर बनवाता था। अब लाकडाउन के बाद घरपर ही अपने हाथ से बनाता हूं।
     3- ई-बुक बनाना भी सीख लिया है अब तक 60 से अधिक ई-बुक्स लाकडाउन में ही बना ली है।
4- व्हाट्स ऐप पर एक ग्रुप "जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़" नाम से बनाकर पर हिंदी एवं बुंदेली में दैनिक साहित्य लेखन कर रहा हूं।
5- लाक डाउन से पहले मैं साहित्य में दोहा नहीं लिख पाता था लेकिन अड बहुत बढ़िया तरीके से सीख गया हूं विगत 11माह से प्रतिदिन 3-5 दोहे दिये गये बिषय पर लिखकर अब तक लगभग 400 दोहे लिख चुका हूं। शीघ्र ही दोहे की एक हिंदी में और एक बुंदेली में पुस्तक छपवाने का विचार है।
6- लाक डाउन में आपनी तीन पुस्तकें एक बाल कविता संग्रह,एक लघुकथा संग्रह और एक लोककथा संग्रह, तैयार करके छपने को प्रेस में भेज दी है।
7-घर की बालकनी और छत पर बागवानी करके फूलों से सजा दिया है छत पर गमले में तोरई लगायी जो कि अब फलने लगी है। घर के बगीचे में इस साल अमरूद के साथ साथ पपीते भु खूब फले है। खूब छककर खाये और पडौसियों को भी खिलाये। इस दोरान घर पर ही चायपत्ती एवं प्याज से खाद बनाना सीखा अब बगीचे में वही डालता हूं।
8- जहां लाक डाउन में लोगों का घर में पड़े -पड़े आराम करते हुए वजन बढ गया वहीं मैंने अपनी छत पर ही सुबह शाम नियमित घूमकर बिना डाइटिंग किये सात महीने में लगभग 10किलो कम कर लिया है।
9- बगीचे और घर की छत पर पक्षियों के लिए नियमित ताजा जल भरा तथा गेहूं, चावल, पोहा आदि स्वयं अपने हाथ से रखा, मेरे छोटे से बगीचे में गिलहरी, गोरैया,तोता, कवूतर, कौआ,कोयल, मधुमक्खी, तितलियां, बिल्ली,आदि ने स्कोरे मेसे जल पिया है। तोते और गिलहरियों ने तो खूब अमरूद खाये। तो गेट पर तीन-चार गाय और दो कुत्तों ने रोटियां, सब्जियां के छिलके खाने रोज आने का नियम बना रखा है। गाये तो इतनी होशियार है कि वे बाहर का लोहे का बड़ा सा गेट अपने सिर व सींग से बजाती है। बिना खाने वापिस नहीं जाती है। घर में ऊपरी हिस्से में वेंटीलेटर पर एक जोड़ी जंगली कबूतर कई से रहता है। तो नीचे किचन के एक्जास्ट फैन वाले गोल हिस्से में गोरैया चिड़िया सपरिवार रहती है। नीचे सूखी नाली के पास ही एक बिल्ली रोज रात में सोती है। इन सबको देखकर मन आनंदित होता है। पूरा टैंशन दूर हो जाता है। दिल को एक सुकून मिलता है।
  10-और सबसे बड़ी बात की इस भयानक महामारी कोरोना  से खुद को एवं परिवार को अबतक बचाये रखा है। जबकि कभी किराने फल सब्जी लेने भी घर से बाहर जाना पड़ा लेकिन मैंने डबल मास्क लगाया और पूरी सावधानी बरती। पर वापिस आने पर सेनेटाइजर का उपयोग किया फिर स्नान किया।
और भी बहुत कुछ सीखा है। चलिए अब हमारे सोने का समय हो गया है। बाकी बातें अगले भाग में करेंगे एक नये बिषय के साथ।
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना-

-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
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4)
मेरी प्रिय डायरी  (भाग-4) (पाप या पुण्य)
                -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                            दिनांक 27-5-2021 समय रात 9:30

मेरी प्रिय डायरी,

         आत्मिक स्नेह
     कभी कभी हमें पता नहीं नहीं चलता कि हम पुण्य कमा रहे है कि पाप। आपको स्वयं की एक घटना बता रहा हूं फिर आप निर्णय करना कि मैंने क्या कमाया पुण्य या पाप।
               हुआ यूं कि मैं अपने बगीचे में गुलाब के गमले में चाय बनाने के बाद जो चाय पत्ती बचती है उसे धूप में सुखा कर फिर  गमलों में डाल देता हूं यह गुलाब के लिए एक बेहतरीन खाद है जो कि हमें घर में ही मुफ्त में मिल जाती है। तो इस बार अभी गर्मियों में मैंने अपने छत पर जीना के नीचे धूप से बचाने के लिए पौधौं को रख दिया तब एक दिन मैंने कुछ चाय पत्ती गुलाब के गमले में डाल दी और फिर पानी डाल दिया।
                  शाम को जब मैं छत पर घूमने गया तो देखा कि उस गमले में मिट्टी में कुछ चींटियां दिखी जो संभवतः उस डली हुई चाय पत्ती को खा रही थी, जो कि चाय बनाते समय शक्कर डालने से उसमें मीठा पन अभी भी रहा होगा।
        यह देखकर मुझे खुशी हुई कि चलो इन चींटियों को खिलाने का कुछ पुण्य तो मिलेगा ही। यह सोचकर आत्मिक प्रसन्नता हुई। दो तीन दिनों में इन चींटियों की संख्या बहुत बढ़ गयी।
एक दिन सुबह जब मैं पौधों को पानी देने के लिए आया तो देखा कि गौरैया चिड़िया गमले में बैठकर मजे से चींटियां खा रही थी। ये देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। दिल ने कहा इन चींटियों की हत्या का तो तुम्हारे सिर आयेगा। तुम्हीं ने तो गमले में चाय पत्ती डाली थी नहीं डालते तो चींटियां भी नहीं आती।
    अब मैं यह निर्णय नहीं कर पा रहा हूं कि मैंने पुण्य कमाया है कि पाप। मैंने ठीक किया या गलत।
अब आप सुधी पाठक ही बताये मैंने पाप अधिक कमाया कि पुण्य।
आपके विचार मुझे संबल देगे। आगे दिशा भी देंगे इसलिए कृपया अपने विचार और मत अवश्य कमेंट्स बाक्स में जरूर लिखिएगा ।
धन्यवाद बस आज इतना ही शेष फिर..
 
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना-

-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
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मेरी प्रिय डायरी  (भाग-5) (मेरा खेल जीवन)

                -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                            दिनांक 28-5-2021 समय रात 10:30

मेरी प्रिय डायरी,
         आत्मिक स्नेह
   चलिए आज हम आपको अपने खेल जीवन के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते है। कक्षा आठवीं से मैंने स्कूल में खेलना सीखा मेरे प्रमुख खेल बैंडमिंटन, बास्केटबॉल टेविल टेनिस और क्रिकेट रहे है थोड़ी बहुत फुटबॉल भी खेली है। लेकिन एक दिलचस्प बात बताये कै मेरे पिताजी ने मेरा नाम राजीव एक हाकी खिलाड़ी को देखकर रखा था क्या है कि टीकमगढ़ में अखिल भारतीय श्री वीर सिंह जू देव हाकी टूर्नामेंट हर साल होता है। उसमें अनेक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी आते हैं। सन् 1972 में जब टूर्नामेंट हुआ तो एक हाकी खिलाड़ी राजीव कुमार आये थे उन्होंने ने बहुत बढ़िया खेल दिखाया था उसी से प्रभावित होकर पापा जी ने मेरा नाम भी राजीव रख दिया था जबकि मेरी राशि का नाम हरि शंकर है।
                 और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि मैंने जीवन में कभी हाकी नहीं खेली है। हां लेकिन एक बात जरूर है कि हथ साल हाकी टूर्नामेंट देखने जरूर जाता हूं सेमीफाइनल और फाइनल तो अभी नहीं चूकता हूं।
                खैर स्कूल के मैदान में हर रविवार का पूरा दिन क्रिकेट के नाम रहता था मैं बैटिंग तो राइट हैंड से करता था लेकिन बालिग लेफ्ट हाथ से करता था। मैं उस समय तामिया तहसील  जिला छिंदबाडा में एक बेहतरीन लेग स्पिनर था।
             सुबह 6 बजे से 8 बजे एवं शाम को 4:30से 6बजे तक बास्केटबॉल प्रतिदिन खेला करता था। हम लोग बहुत बढ़िया बास्केटबॉल खेलते थे। उस समय सन् 1988 में  जिला स्तरीय प्राइज मनी टूर्नामेंट दस हजार रुपए का होते थे हमारी टीम तहसील की थी और हमें जिला स्तर पर छिंदवाड़ा खेलने जाना पड़ता था। हम लोग केवल पहली वार ही फाइलन में हारे थे उसके बाद लगातार तीन बार हम लोगों ने फाइनल जीत कर दस दस हजार की राशि जीती थी पहले बार की राशि से हमें स्कूल के प्राचार्य और कोच द्वारा टेक सूट उपहार में मिले थे फिर दूसरी बार की राशि से मैदान जो कच्चा था उसे सीसी बना दिया गया है मैं टीम का तीन साल कक्षा 18,11,12 में कप्तान रहा। मैंने लेफ्ट हैंड से खेलते हुए  कई बार सेंटर लाइन से बास्केट किये हैं।
                हमें दो कोच एक श्री साहू जी और एक चंडीगढ़ के सरदार जी सिखाते थे उनकी मेहनत औ हमारी प्रेक्टिस से मेरा जूनियर वर्ग में तीन  वार संभागीय स्तरीय खेल एवं एक बार स्टेट लेविल तक हुआ था। हमने खूब बास्केटबॉल खेला।
               इसी प्रकार से मैं बैडमिंटन भी बहुत बढ़िया खेलता था मैं बायें हाथ से खेलता था और शोर्ट इतनी जोर से मारता था कि सामने वाले को रिटर्न करने का मौका ही नहीं मिल पाता था। बैडमिंटन में भी मैं दो बार संभाग स्तर तक खेल आया हूं।   
                         होंशगाबाद में संभागीय खेल होता था। मैं दो बार खेलने गया किन्तु हार गया कारण यह भी था कि तामिया में जहां मैं प्रैक्टिस करता था वहां इनडोर मैदान नहीं था। मुझे आउटडोर प्रैक्टिस करना पडती थी लेकिन जब जिला स्तरीय एवं संभाग में खेलने गया तो वहां मैच इनडोर स्टेडियम में हुए। बैडमिंटन में इनडोर और आउटडोर खेलने में बहुत अंतर होता है। यही वजह थी कि मैं बाहर हार जाता था। लेकिन उस समय ओपन टूर्नामेंट होते थे उसमें अनेक बार सिंगल्स जीता हूं डबल्स में भी मैं पीछे खेलता था और जब भी शटल थोड़ी ऊंची दिखी तुंरत साथी को छोड़ दें बोलकर एक जोरदार शोट मार देता था। यदि सामने वाले ने धोखे से सही रिटर्न कर दिया तो फिर दूगनी गति से फिर शोट मारता था कि सामने वाला देखता ही रह जाता था।
                   एक बार जब मै टीकमगढ़ आया तो मैं शुरू में सिविल लाइंस में एक जैन के मकान में किराए से रहता था वहीं पास में  बैडमिंटन का मैदान बनाकर हम लोग रोज रात में खेलते थे। एक दिन मेरे साथ खेलने वाले एक के कालेज के कुछ मित्र उससे मिलने आये तो उस समय मेरे 12 और उसके 2 प्वाइंट बने थे ये देखकर उसके मित्र उसे चिढ़ाने लगे तो उसने भी गुस्से में कह दिया तुम एक ही प्वाइंट बना लो तो मान जिय, उन्हीं मे से एक जो अच्छा खेलता होगा वह बोला मैं खेलता हूं और उसने रैकेट हाथ में ले लिया।
            तब वह पडौसी मेरे पास आकर कान में बोला भाई साहब हमारी कसम है इसके एक भी प्वाइंट नहीं बनने देना। सौभाग्य से मैंने उसके एक भी प्वांइंट नहीं बनने दिया वह 15:0 से हार गया तो बोला भाई साहब माफ करना मैंने आपको यहां पहली बार देखा है आप यहां के नहीं है। मैंने कहा मैं छिंदवाड़ा से आया हूं। अब जब कभी वह मुझे बाज़ार में मिलता है तो शर्म से मुंह झुका लेता है ‌। टेबिल टेनिस मैंने कालेज में खेली लेकिन उचित माहौल नहीं मिलने और समय नहीं मिलने के कारण इसमें आगे नहीं बढ़ पाया।
                 मेरे पास बैडमिंटन और बास्केटबॉल के  प्रमाण पत्र अभी तक सुरक्षित रखे है। लेकिन अब तो सब खेल छूट गया है।
तो ये तो था मेरे खेल जीवन की कुछ झलकियां।
                    शेष फिर कभी। आज बस इतना ही।
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना-
-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
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6)
मेरी प्रिय डायरी  (भाग-6) (मोबाइल को कोराना हुआ)
                -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                            दिनांक 31-5-2021 समय रात 10:30

मेरी प्रिय डायरी,
         आत्मिक स्नेह
                      कल रात जरा सी लापरवाही से मेरे मोबाइल को कोरोना हो गया। हुआ यूं कि मैं प्रतिदिन की तरह रात को 8 बजे अपने घर की बीच वाली छत पर एक-दो घंटे घूमता हूं। तब बीच में प्यास लगती है तो वहीं ऊपर ही पीने वाली टंकी से अलग से नल लगा हुआ है। तो जब आधे घंटे घूमने के बाद मुझे प्यास लगी तो मैं एक हाथ में खाली गिलास पकड़े था और दूसरे हाथ में मोबाइल फिर जिस हाथ में मोबाइल था उसी हाथ से नल की टोंटी खोलने लगा तो मोबाइल सरक कर नीचे पानी भरी बाल्टी में गिर गया एक सेंकेड से भी कम समय में मैंने मोबाइल को बाल्टी में से उठा लिया
               चूंकि कवर लगा था तो शीघ्र ही मैंने कवर निकाला उसे रूमाल से पोंछा साफ किया फिर डरते डरते उसे आन किया तो शुक्र है मोबाइल चालू हो गया मैं बहुत खुश था कि चलो मोबाइल को कुछ नहीं हुआ नहीं तो लाकडाउन में कैसे सुधरता। बैटरी चार्ज थी खूब चलाया और जब रात में ग्यारह बजे बैटरी 30प्रतिशत रह गयी यब मोबाइल को रख दिया मैं रोज सुबह 5 पांच खा अलार्म भर  देता हूं और जब 5 बजते है तो मोबाइल चार्ज पर लगा कर फिर सो जाता हूं और फिर जब मैं 7 बजे उठता हूं तो मोबाइल 100प्रतिशत चार्ज मिलता है। फिर अभी लाकडाउन चल रहा है तो सब काम देर से आराम से होते है सुबह 1घंटे छत पर घूमता हूं।
                   आज जब सुबह सात बजे उठा तो देखा कि मोबाइल चार्ज ही नहीं हुआ था लगता था उसकी पिन में जो छेद होते है उसमें पानी घुस गया होगा इसलिए मोबाइल कुछ सेंकेड बाद चार्ज होना बंद हो गया था।अब मैं बहुत टेंशन में आ गया सोचा मैं तो कोराना से अब तक बचा रहा लेकिन मेरे मोबाइल को पानी में डुबकी लगाने से निमोनिया हो गया जिसके कारण उसे चार्ज होने (सांस लेने में तकलीफ होने लगी)।
                       मैं समझ गया इसे कोरोना हो गया। इसका हीट लेविल कम हो गया है मैंने अंतिम ऊपाय करते हुए उस विटामिन डी को डोज देने के लिए उसे दो घंटे तक धूप में रख दिया। फिर जब मोबाइल उठाया तो वह ओवर हीट का मेसेज दे रहा था मैंने थोड़ी दे उसे छाया में रखकर सामान्य अर्थात ठंडा किया।
                    फिर राम का नाम लेकर मोबाइल पुनः चालू किया मोबाइल चालू हो गया मैं खुश था फिर भी उसे चार्ज करना था और चैक करना था कि वह सही से चार्ज हो रहा है कि नहीं। चैक किया तो वह चार्ज हो रहा है अब मैं बहुत खुश था कि चलो मेरा मोबाइल का कोराना विटामिन डी के डोज से ठीक हो गया।
                 इसीलिए कहते है कि जरा सी लापरवाही बहुत मंहगी पड़ सकती है। ये तो निर्जीव मोबाइल था लेकिन हम मनुष्य है और जुवन बहुत अनमोल है इसकी कद्र कीजिए।
कोरोना का खतरा अभी गया नहीं है हमें सावधानी बरतना जरूरी है। बिना मास्क के घर से बाहर नहीं निकलना है गाइडलाइंस का पूरी तरह से पालन करना है।
घर पर रहे स्वस्थ्य रहे सुरक्षित रहे।

     आज शाम चार बजे गूगल मीट पर कला मंदिर भोपाल की आनलाइन हास्य-व्यंग्य गोष्ठी में काव्य पाठ किया। गोष्ठी के मुख्य अतिथि रायपुर से श्री पंकज गिरीश जी थे एवं अध्यक्ष डां गौरीशंकर गिरीश जी ने की संचालन गोकुल सोनी व कांता राय जी ने किया। 15 लोगों ने पढ़ा।
  आज बस इतना ही, शेष फिर कभी।
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे

आपका अपना-
-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'
संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
पिन कोड-472001 (मप्र) भारत
मोबाइल-91+9893520965
Email- ranalidhori@gmail.com
Blog- rajeevranalidhori.blogspot.com
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मेरी प्रिय डायरी (भाग-7) (नयी विधा में लेखन और पुरस्कार)

           -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

                           दिनांक 9-6-2021 समय रात 8:30

मेरी प्रिय डायरी,

        आत्मिक स्नेह

            मेरे एक मित्र हैं उन्हें अक्सर रात में नींद नहीं आती और जब आती है तो सुबह चार बज जाते है फिर क्या 10 बजे उनका सबेरे होता है उनकी नौकरी भी ऐसी है कि दोपहर 2बजे से 8 बजे तक वो भी वर्क टू होम कहीं जाने का झंझट ही नहीं। जब उन्होंने मुझे अपनी व्यथा सुनायी तो मैंने उन्हें काव्य की नयी नयी विधाएं लिखने के लिए उकसाया बैसे वे दोहा गीत, तो लिख लेते है।

              इसलिए मैंने एक दिन उनसे तांका छंद लिखने को कहा पूरी नियम बता दिये उन्होंने ने रात में अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाये और 5 तांका लिखकर मुझे भेज दिये सबेरे देखा तो पांच तांका पढ़ें अच्छे बन गये थे मैंने उन्हें बधाई दी। कुछ दिन बाद मैंने उनसे कहा पिरामिड कविता लिखने लगो दो-तीन उदाहरण देकर बता दिया कैसे लिखते है फिर क्या है रात में उनने तीन पिरामिड कविता बनाकर मुझे पोस्ट कर दी सुबह मैंने मोबाइल पर देखा तो पढ़कर अच्छा लगा बढ़िया कविता बन गयी थी मैंने फिर से बधाई दी। उन्हें भी अब मज़ा आने लगा जब मैंने देखा कि वे अच्छा लिखने लगे तो मैं भी विधा में दो-तीन रचनाएं लिखकर पोस्ट कर देता इस प्रकार से हम दोनों ही नयी नयी विधाऔ में कलम चलाने लगे बहुत आनंद आया और नयी रचनाएं भी हो गयी।

                     सौभाग्य से एक प्रतियोगिता में इन्हीं नयी रचना पर एक दिन एक हजार एक सौ रुपए का द्वितीय पुरस्कार मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा है। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरा उस अखिल भारतीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान मिला है जब आयोजक ने सम्मान पत्र मोबाइल पर भेजा दिया फिर मेरा खाता नंबर मांगा और कहा की हम राशि आपके खाते में ट्रांसफर कर देते है तो मैं घबरा गया कहीं धोखाधड़ी का शिकार न हो जाऊ।
             अब मैंने दिमाग लगाया और जिसे पहला पुरस्कार मिला था उसको मोबाइल लगाकर पूछा तो उसने कहा सही आदमी है मेरे खाते में राशि आ गयी है तब मैंने भी उन्हें अपना बैंक खाता नंबर भेज दिया शाम उन्होंने राशि मेरे खाते में ट्रांसफर कर दी। मुझे बहुत आत्मिक खुशी हुई।             

कभी कभी ज्ञान देने के साथ साथ उस पय स्वयं भी अमल करे तो हमें फायदा हो जाता है।


आज बस इतना ही, शेष फिर कभी।


शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।

आपका अपना-

-राजीव नामदेव _राना लिधौरी'

संपादक-'आकांक्षा' पत्रिका

अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़

अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़

नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़

पिन कोड-472001 (मप्र) भारत

मोबाइल-91+9893520965

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1 टिप्पणी:

Vidya Chouhan ने कहा…

नमस्कार राजीव जी🙏
डायरी के माध्यम से आपके जीवन से परिचय हुआ।कई रोचक प्रसंग पढ़कर बहुत आनंद आया। आप जैसे साहित्य पुरोधा के संपर्क में आना मेरा सौभाग्य🙏
आप ऐसे ही सफलता के सोपान पर आगे बढ़ते रहें। शुभकामनाएँ🙏💐