Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 7 मई 2021

बुंदेली लोककथा-सं. राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

बुंदेली लोककथा -‘कछु तुम समजे, कछु हम समजे ’

बुंदेली लोककथा -‘कछु तुम समजे, कछु हम समजे ’

                              -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

             एक बेर की बात है कै इक राहगीर माल की गठरी मूँड  पै धरे कऊ जा रऔ हतो। इतैक में पाछे से एक घुरसवार निकरौ। गठरी एनई भारी हती अरु राहगीर सोउ तनक हार गओ हतो, ईसे ऊने सवार सें अपनी गठरी कौं अगाऊँ के ठौर तक घुरवा पै धरवे के लाने कइ, पै घुरसवार नैं मना करदइ और अगाउँ कड़ गऔ।
           तनक देर में इतै घुरसवार नें सोंसी कै बेकार में ई हात में आऔ माल छोड़ दओ,उतै उ राहगीर ने जा सोंसी कै चलो जौं नौंनो भओ,जोन ऊनें मना कर दइ कऊ वो गठरी लैंकें भाग जातो तौ अपुन ऊकौ कितै ढूँढ़त राते। 
         संयोग से कछु दूरी पै फिरकै उन दोइयन की भैंट हो गई, ई दार सवार नें राहगीर सें कइ इतै ल्याओ, तुमाई गठरी घुरवा पै धर लें, अपुन भौत हार गये हुओ,तो राहगीर ने कइ ‘बस रान दो, भाई, कछु तुम समजे कछु हमई समजे’।
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शिक्षा- यह जा कैं सकत के जो होत नोनो होत। इकदम से कोनउ खौ मना नइ करवो चइए और फिर बेइ आदमी बाद में उपत कै मान जाये तो समजो कछु गडबड है उके मन में खोट है।
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             © -राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
                  संपादक 'आकांक्षा' पत्रिका
              अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी टीकमगढ़ (मप्र) भारत
                  मोबाइल- 91+9893520965

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