Rajeev Namdeo Rana lidhorI

रविवार, 9 मई 2021

ममतामयी माता (काव्य संकलन ई-बुक)- मदर्स डे स्पेशल- संपादन- राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़ (म.प्र.)



                        ममतामयी माता
                  (काव्य संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

                        ममतामयी माता
                  (काव्य संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

ई बुक प्रकाशन दिनांक 9-05-2021
        टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
         मोबाइल-9893520965

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              अनुक्रमणिका-

1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' (टीकमगढ़)(म.प्र.)
2- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
3-अभिनन्दन गोइल, इंदौर
4- डां शरद नारायण खरे, मंडला
5- एस. आर. 'सरल', टीकमगढ़ 
6- डॉ. अनीता गोस्वामी, भोपाल
7-अशोक पटसारिया 'नादान' लिधौरा (टीकमगढ़) 
8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव, टीकमगढ़,(म.प्र.)
9- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
10-कल्याणदास साहू "पोषक",पृथ्वीपुर(निवाड़ी)(म.प्र.)
11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा(म.प्र.)
12-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
13-डां सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा 
14-अरविन्द श्रीवास्तव 'कविराज', भोपाल(म.प्र.)
15-रामेश्वर गुप्त, 'इंदु', बड़ागांव,झांसी (उ.प्र.)
16- डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल(म.प्र.)
17-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)
18- परम लाल तिवारी, खजुराहो (मप्र)
19- नरेंद्र श्रीवास्तव, गाडरवाड़ा 
20- सरस कुमार दोह, खरगापुर
21- पं. सुरेन्द्र कुमार शुक्ल, सागर
22-रामलाल द्विवेदी प्राणेश ,कर्वी चित्रकूट


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1- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़
*कविता- " मां"*

जीवन पथ पर 
अमिट छाप सी लगती है।
अनुभव की रेखाएं
अब माथे पर दिखती है।
दाढ़ी और बत्तीसी भी तो,
अब हिलने लगती है।
सिर पर सफेद चांदी सजी,
अनुभव की मोहर लगती है।
देखा सब कुछ इन आंखों ने,
अब थकन सी लगती है।
मुझे तो यह माता यशोदा,
मरियम, टैरेसा लगती है।।
###

*@ राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com

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2- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मातृ दिवस: हाइकू-

नेह का  घट।
ममता की मूरत,
माँ की सूरत।

माँ का आँचल।
वट वृक्ष की छाया,
जग समाया।

माँ की ममता,
अकूत, अतुल्य है,
नहीं समता।

माँ तेरा नाम,
शब्द नहीं है मात्र,
एक विश्वास।

माँ को नमन,
चरणों में अर्पित,
श्रद्धा सुमन।

माँ की आशीष,
साथ में हो अगर,
नहीं है डर।

***

रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
मौलिक-स्वरचित।

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3- अभिनंदन गोइल इंदौर-
मदर्स डे पर परिवार की सभी माताओं को मेरा नमन
******************************************
             मां         (हाइकु)
                    -----------
मातृत्व तेरा
बल है सृजन का
नेह मन का

दिया जीवन
क्षीरामृतमयी मां
नहीं उपमा

मां का आंचल
ममता का सागर
नेह आगर

करुणामयी
हे संस्कार-सर्जक
धर्म-वर्धक

संस्कार शाला
तूं करुणा दुशाला
है पाठशाला

तूं सुकोमल 
दु:ख में अविचल
सर्व मंगल
           ***              -अभिनन्दन गोइल, इंदौर

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4- डां शरद नारायण खरे, मंडला
=============
माँ पर दोहे
=============
माँ जीवन की हर खुशी,माँ जीवन का गीत। 
माँ है तो सब कुछ सुखद,माँ है तो संगीत।। 
         
माँ है मीठी भावना,माँ पावन अहसास। 
माँ से ही विश्वास है,माँ से ही है आस।। 

वसुधा-सी करुणामयी,माँ दृढ़ ज्यों आकाश। 
माँ शुभ का करती सृजन,करे अमंगल नाश।। 

माँ रोटी,माँ दूध है,माँ लोरी,माँ गोद।
माँ सुख का आधार है,माँ से ही आमोद ।।

माँ सुर,लय,आलाप है,अधरों पर मुस्कान।
माँ सम्बल,उत्साह है,है हर शै की शान।।

माँ सचमुच में देव है,लगती है वह ईश।
माँ के चरणों में झुकें,भगवानों के शीश।।

माँ अवतारों में प्रथम,करती है कल्याण।
माँ से ही उत्थान है,बल पाते हैं प्राण।।

माँ है तो उजियार है,माँ है तो है हर्ष।
माँ है तो हर जीत है,नहीं कठिन संघर्ष।।

माँ जीजा,पुतली वही,नाम यशोदा जान।
कौशल्या बन राम से,जनती पुत्र महान।।

माँ है तो संपन्नता,संतति नित धनवान।
माँ से ही तो स्वर्ग है,माँ से सुत बलवान।।

माँ बिन रोता आज है,होकर 'शरद'अनाथ। 
सिर पर से जो उठ गया,आशीषों का हाथ।। 

       ----प्रो.(डॉ)शरद नारायण खरे
                        प्राचार्य
 शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
        मंडला(मप्र)-481661
         (मो.9425484382)
 ========================
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5-एस आर सरल,टीकमगढ़
#माँ की ममता#

माँ  अपनी  संतानो  पर,
सर्वस्व न्योछावर करती है।
माँ उनके लालन पालन मे,
सुख त्याग समर्पण करती है।।

दुख की चादर ओढ़ स्वयं।
सुख नीदें हमें सुलाती है।
बच्चों के गीले बिस्तर में,
माँ गहन नीद सो जाती है।। 

माँ  ममतामयी  आँचल मे,
खुशियाँ दिन रात बरषतीं हैं।
अपने  दुखड़े  भूल  सभी, 
माँ करुणा लिए हरषतीं हैं।।

माँ भण्डार है वरदानों की,
आशिष  बरषा  करती  है।
माँ संतान की खुशियों मे,
निज खुशियाँ ढ़ूढा करती है।।

मां के आँचल में खुशियों,
का वृहत भरा भंडार है।
माँ का अपनी संतानों पर,
सदा  बरषता  प्यार है।।

माँ ममता का अथाह सागर,
वरदानों  की  देवी  है।
निस्वारथ माँ संतानों को,
शुभाशीष नित  देती है।।
  ***

 मौलिक एवं स्वरचित
     -एस आर सरल,टीकमगढ़      
        
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6- डॉ. अनीता गोस्वामी, भोपाल



"मातृ दिवस"पर
"परिभाषा  माँ"की- -
मैं लिखूँगी माँ- !
  लेकिन क्या- - ?
हर शब्द तुमसे छोटा लगता है- - - - -
मेरी लेखनी लिखना चाहती है- -- - - 
"माँ"की परिभाषा- - - - - - -- - - - - ?
या रिश्तों की भाषा- - - - - - - - -- - - 
"माँ"की -कथा,या कथा की व्यथा- -?
पर मुझे शब्द"नहीं मिलते- - -- --
"माँ "को परिभाषित करने के लिए
आज के परिवेश में,
  माँ बेटे के रिश्ते को
       पारित करने के लिए- - -- - 
              क्योंकि!- - - -
मानव को जन्म, दिया जो तुमने- -
"ममता"कलश भरा जो तुमने- - - -
"जीवन दर्शन"ज्ञान की गंगा- - --- 
मानवता की गौरव गान तुम्हीं हो
इस मानव की शान तुम्हीं हो- - -
"शीत"भोर की,दिन की धूप"- - - -
गोधूलि की "सांझ"तुम्हीं  हो- - -
 कहाँ से लाऊँ माँ की परिभाषा- -?
अब तक नहीं "जन्मी"कोई
    - - - - --- -ऐसी भाषा- - -- -l"
****
 - डॉ. अनीता गोस्वामी भोपाल
 
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7-अशोक पटसारिया नादान ,लिधौरा ,टीकमगढ़ 

😊(((((माँ)))))😊
    ** *** ** *** **
मातु सम कोई न दिखता आज।
माँ है जगजननी घर की लाज।।
माँ तुन्हें शत शत बार प्रणाम।
मां के चरणों में जन्नत ,होती हैआठोयाम।
सभी ने माना है। मर्म यह जाना है।
ना होबे माँ कोई दुखियारी।
ईश्वर से भी माँ का दर्जा,होता है भारी।।1।।
             ###
स्रष्टि का संचालन माँ को,ईश्वर ने दे डाला।
सारी दुनियाँ की ममता का,उसको वर दे डाला।।
उसे करुणा की मूरत मान।
उसी से पूजा और अजान।।
प्रेम को उपज वहीं से जान।
नहीं दुनियाँ में कोई सानी। 
माँ की ममता की तुलना में,राजा ना रानी।।
करो सब सेवा और सभांर।
लुटा दो दुनियाँ भर का प्यार।।
ना होबें माँ कोई दुखियारी।
ईश्वर से भी माँ का दर्जा,होता है भारी।।2।।
              ###
मां के रहते बच्चों पर, संकट ना आते देखा।
माँ लिखती है अपने बच्चों की, किस्मत की रेखा।।
माँ से घर की होती पहचान।
मां से तुलसी है दीपक दान।।
माँ से गैया रोटी पाती।
गौरइया भी फुदक फुदक कर,घर में आ जाती।
ये कुदरत का कैसा दस्तूर।
माँ है बृद्धाश्रम में मजबूर।।
आंख में पीड़ा का पानी।
कब तक और सहेगी माता तेरी मनमानी।
ना होबे माँ कोई दुखियारी,,,,
ईश्वर से भी मां का दर्जा,,होता है भारी।।3।।
               ###
अमृत जैसे दूध को पीकर, तूँ दुनियाँ में आया।
तेरी रगों में आज दौड़ती,माँ की ही प्रतिछाया।।
तेरी स्वासों में उसकी जान।
तुझी पै करती वो अभिमान।।
अरे तूँ कैसा है नादान।
मां ईश्वर का रूप नहीं है,खुद ईश्वर ही जान।।
ना होबे माँ कोई दुखियारी।
ईश्वर से भी माँ का दर्जा,होता है भारी।।4।।
               ###
🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹
               -अशोक नादान ,लिधौरा, टीकमगढ़ 

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8-प्रभुदयाल श्रीवास्तव"पीयूष", टीकमगढ़,(म.प्र.)

मां की ममता

मां की ममता की रही,जब तक शीतल छांव।
कभ‌उं न आंसी ततूरी ,फुटके न‌इंया पांव।।

राहु केतु शनि क्रूर ग्रह,कछू न सकें बिगार।
हांत फेर कें मूंड़ पै, मां ले जब पुचकार।।

मां की सेवा में सुख ल‌इयौ,
                दिल ना कभ‌उं दुख‌इयौ।
सबरे तीरथ धाम जितै उन,
                चरनन   सीस  नब‌इयौ।
नेह सुधा छलकत जिन नैनन,
                नीर  न छलकन  द‌इयौ।
माता ममता की  मूरत  सें ,
                कभ‌उं  कुबोल न क‌इयौ।
कोंन‌उं  खोटौ  काम न करियौ,
                नाम ना कभ‌उं  धर‌इयौ ।
जेइ  अर्ज है  फर्ज  मान प्रभु,
                दूध   कौ  कर्ज  चुक‌इयौ।
    
         ****
         -प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़

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9- संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)


*चार दोहे माँ के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ*

*१*
प्रतिमा में ईश्वर नहीं,
       प्रति माँ ईश्वर वास।
जिस घर में माँ खुश रहे,
       वहीं ईश का वास।।
*२*
माँ से बड़ा गुरु नहीं,
       माँ भगवान समान।
माँ के तप से फल रहा,
        माँ का सकल जहान।।
*३*
अम्मा बिन आखर पढ़े,
     पढ़ लेतीं सब पीर।
सबके मौका साधतीं,
     मन नइं होत अधीर।।
*४*
त्याग, समर्पण माता का,
     जीवन भर बलिदान।
घर भर को खुश राखवे,
     करती जीवन दान।।
***
  संजय श्रीवास्तव, मवई
९/५/२१, दिल्ली, 😊🙏🏻
     

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10-कल्याणदास साहू "पोषक", पृथ्वीपुर, (निवाड़ी)

अपना सब कुछ करत निछावर ,
                   बच्चों के उद्धार में ।
नेह लुटाती सन्तानों पर ,
           कमी  न  लाड़-दुलार में ।
परमेश्वर से ऊँचा दर्जा ,
                परम पूज्य माता का ।
माँ की ममता की समता तो ,
                दिखती ना संसार में ।
        ***

 -कल्याण दास साहू "पोषक"पृथ्वीपुर,निवाडी़ (मप्र)
  ( मौलिक एवं स्वरचित )

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11-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा
                    
माँ की ममता
******************
माँ की ममता के हम हैं पुजारी,
माँ की ममता के पाले हुये हैं।
पैतरे जो बताये थे माँ ने,
उसमें जीवन को ढाले हुये हैं।
                    #1#
जिसने उगली थाम चलना सिखाया।
अगर फिसले गले से लगाया।
माँ की ममता का साया जो छूटा,
तबसे पांवों में छाले हुये हैं।
माँ की ममता.......
                     #2#
रोज मौसम था तब का सुहाना,
माँ जाने तब मन का मिलाना।
गोरे हम पैदा हुये थे,उसके खोने से काले हुये थे।
माँ की ममता...........
                     #3#
जब माँ थी बरसते थे सावन,
बर्ष रहता था पूरा मन भावन।
खुशियों की उजली दिवाली,
रोशनी नैंनों डाले हुये है।
माँ की ममता.........
                    #4#
कभी देखा था चेहरा मुरझाया,
प्यार पुचकार करके सहलाया।
जयहिन्द आनंद आया,ज्योति जली तो उजाले हुये हैं।
माँ की ममता............
               -**
#मौलिक एवम् स्वरचित#
-जयहिंद सिंह 'जयहिन्द',पलेरा, (टीकमगढ़)

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12-प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)

बिषय..मां की ममता
*शीर्षक.. मां तो है मां*
09.05.2021
*प्रदीप खरे, मंजुल*🌹
=================
मां की ममता का कोई मोल नहीं, 
वो बाइबिल गीता कुरान होती है।
ममता की मूरत, मां होती है,
गुनाह हम करते, मां रोती है।
मां का प्यार दुआ है, दवा है,
मां की लोरी जीवन ज्योति है।
मंदिर जाने की जरुरत क्या है,
मां भगवान की सूरत होती है।
मां से बढ़कर कोई नहीं यारो,
 आशीष मां की, सारे पाप धोती है। 
मां की ममता से बढ़कर कोई,
 दुनिया में दौलत नहीं होती है। 
जिसने भी ठुकरा दिया मां को,
उसकी इज्ज्त कहां होती है। 
मां की ममता अजीब पूंजी है,
यह कभी चोरी नहीं होती है।
मां की ममता से बढ़कर के,
न कोई हीरा है, न मोती है।
बिन मां का यहां सम्मान किये, 
कभी जन्नत नहीं मिलती है।
****

*-प्रदीप खरे मंजुल*,टीकमगढ़ मप्र💐

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13-डां सुशील शर्मा, गाडरवाड़ा 


माँ
(मातृदिवस पर विशेष)
नवगीत

तेज धूप में बरगद जैसी छाया माँ। 
झुर्री वाली प्यारी प्यारी काया माँ।

मेरे मानस की लहरी में,
सदा सुहागन मेरी माँ
मेरी जीवन शैली में ,
सुरभित मधुवन मेरी माँ।

धन दौलत की प्यासी होगी ये दुनिया,
मेरी जीवन की सारी पूँजी माया माँ।

मेरे सुख में खुश हो जाती,
मेरे दुःख को पीती माँ।
कष्ट कंटकों को हर लेती,
मेरे अंदर जीती माँ।

कर्म योगिनी स्वत्व स्वामिनी,
कर्मठ शक्ति साया माँ।

मेरे बचपन के सपनों को,
अबतक रखे संभाले माँ।
शिशु सा सदा समझती मुझको,
रखे दूध के प्याले माँ।

चरणों में शत शत है वंदन,
ईश्वर की प्रति छाया माँ।

- ***
               -डॉ सुशील शर्मा ,गाडरवारा

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14-अरविन्द श्रीवास्तव 'कविराज', भोपाल(म.प्र.)

*मातृ दिवस*

माँ की ममता
किसने बनाई ?
ईश्वर ने
या प्रकृति ने ?

ईश्वर ने;
क्योंकि
जड़ प्रकृति द्वारा
यह सम्भव ही नहीं है ।

अर्थात्
माँ की ममता भी
ईश्वर के अस्तित्व का
एक प्रमाण है ।
**
मौलिक व स्वरचित
                -अरविन्द श्रीवास्तव 'कविराज',भोपाल(म.प्र.)


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15-रामेश्वर प्रसाद गुप्त, बड़ागांव, झांसी


गीत गुँजन..माँ की ममता.
माँ.......

माँ मेरी कितनी है भोली ।
सखी, सहेली है हमजोली।।
अलख सुवह से उठकर पहले,
दे आवाजें हमें जगाती ।
घर आँगन की करेंं सफाई,
कपडे़ घर के सभी उठाती ।
एक सांस में दौड़ ,दौड़ कर,
काम करे फिरती है डोली।।
सबके कपडे़ धोकर रखती,
बोझ काम का हर पल सहती।
चूल्हा,चौका,वर्तन, पौंछा,
नहीं कभी माँ मेरी थकती।।
काम तले भी खिलता चेहरा,
कोयल सी मीठी है बोली।
घर में दीपक रोज जलाती,
खुद हँसती है और हँसाती।
सबको भोजन सरस कराकर
थपकी देकर नित्य सुलाती।।
मीठी लोरी गीत कहानी,
माँ, होंठों की हँसी ठिठोली ।
तेरा ख्याल न रखता कोई,
तुम सबका मन भी रखती हो।
कोई काम नहीं हो छोटा,
मन के चित्र सदा गढती हो।।
माँ हँसती तो हँसता ईश्वर,
तुम अमृत की प्यारी गोली।
माँ, हर काम अकेले करती,
आओ माँ का हाथ बटायें।
थके हुये उसके चेहरे पर,
इक मुस्कान जरा सी लायें।।
माँ, से पर्व बने यह जीवन,
इंदु दिवाली उससे होली।
         
***

-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी (उप्र.)

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16 -  डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल 

'माँ की ममता' 
   ✍️✍️✍️✍️✍️   
 माँ तेरी ममता की छाया
बनी रहे इस जीवन में
बन प्रसून बगिया का तेरा
सदा खिलूं इस मधुवन में 
नैसर्गिक स्नेह सदा तुम 
प्रभु सा मुझको देती हो
सदा रहूँ मैं मन मंदिर में 
ममता के इस आंचल में 
स्वयं जलाकर अपने को
निर्मल शीतलता देने वाली 
कितने कष्ट झेलती रहतीं 
कभी बयां ना कर पातीं
सदा लिए प्यारा सा चेहरा
सबके कष्ट दूर करतीं 
सदा ईश्वर से वर मांगा 
मेरे अपने रहें सही
मैं तुमसे ये प्रश्न पूंछती
अपने को क्या मांगा है? 
क्योंकि तुम्हारे शब्दकोश में 
कहीं नहीं नाम तुम्हारा है 
सारे घर की धुरी तुम्ही हो
तुम पर घर आधारित है 
माता तेरे बिन जीवन की
कल्पना भी निरर्थक है। 
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️              
  
            ✍️-  डॉ रेणु श्रीवास्तव, भोपाल 


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17-शोभाराम दांगी इंदु, नदनवारा (मप्र)

बिषय - "मां की ममता "स्वतंत्र विधा 
           "  गीत "

तर्ज =श्याम तेरी बंशी पुकारे राधा नाम 

 ममता मयी मां तुझे शत -शत प्रणाम ।
बार -बार नमन मैं हूँ, चरणों का गुलाम ।।

1- मां की ममता का स्नेह न कोइ जाने ।
लाड -प्यार दुनिया में, कोई देकर न जाने ।।
पल -पल हर घडी देती है सुखों कि तू धाम ।बार -बार **।

2 - सात जन्म तेरा रिन चुका नही पाऊं ।
किया लालन -पालन इसे ,कैसे भर पाऊं ।।
करती उपकार मेरा तुझे लाखों सलाम ।बार -बार ***।

3- भूख -प्यास में मां की ममता हजार गुनी ।
हो जाती अपनी संतानों के प्रति सुनी ।।
वेद -शास्र करते "मां की ममता "
को सलाम /बार -बार ***/

4- भले -बुरे समय में भी साथ नही छोडती ।
शराबी जुआरी सुत से भी न मुख मोडती ।।
पलना में सुलाकर खुद फुटपाथ ले आराम ।
मां के आँचल से जो मुझे प्यार मिला ।
चंपा चमेली अतर जैसा बहार मिला ।।
शोभारामदाँगी रहा मां को इनाम /बार -बार ।।
****
मौलिक एवं सुरचित रचना 
7610264326
***
-शोभाराम दाँगी नंदनवारा

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18- परम लाल तिवारी, खजुराहो

मां के चरणों की छाहों में बसते चारों धाम है
उन पावन चरणों में मेरा 
बारम्बार प्रणाम है
मां ही ईस्वर मां पैगम्बर
मां ही पीर हमारी
मां का आँचल मेरी जन्नत
जिसने तक़दीर सँवारी
मां का नाम स्मरण करने से
बन जाते सब काम है.उन पावन...
मां की ममता का कर्ज कभी
कोई चुका नहीं पाये
राम कृष्ण भी आये धरा पर मां के गुण ही गाये
मां की आशीषों से चमका
मेरा भाग्य ललाम है
उन पावन चरणों में मेरा
बारम्बार प्रणाम है
*****
                  -परम लाल तिवारी,खजुराहो        

 😄😄😄 जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़😄😄😄

19- नरेंद्र श्रीवास्तव, गाडरवाड़ा 

आज सिर्फ़  *माँ* के लिए

आँखें रोयीं हैं
और
दिल फूट-फूट कर रोया है

उन बच्चों के लिए 
मेरी गहन संवेदना

जिन्होंने
इस कोरोना-आपदा में
अपनी
" माँ " को खोया है।
    *
-नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवाड़ा

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20- सरस कुमार दोह, खरगापुर

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21-सुरेंद्र शुक्ला सागर
माँ

अनुभूति, स्नेह और वत्सल्य
 की मूर्ति माँ होती है.  

सब ठीक हो जायेगा 
कह देने भर से बहुत 
कुछ ठीक हो जाता है. 
यह ताकत माँ मे ही होती है.

चोट लगने पर फूँक देने भर से
दर्द गायब हो जाया करता था एसी ताकत माँ मे ही होती हैं.

जिससे लगी हो चोट उसे मार, दिया है कह देने भर से दर्द चोट का गायब हो जाया करता था
ऐसा जादू सिर्फ माँ मे ही होता है

रात भर खुद  गीले मे सो कर बच्चों को सूखे मे सुलाने वाली
 माँ ही होती है.

पूरी जिंदगी हर पल बेटों के लिए जीने वाली माँ ही तो होती है

प्रथम गुरु माँ ही तो होती है.
स्वयम भगवान भी माँ से उत्पन्न हुए और माँ के गुणगां किये हैं

माँ के ऋण से कोई कभी भी उऋण नहीं हो सकता

माँ के श्री चरणो मे नत मस्तक

सुरेंद्र शुक्ला सागर

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22-रामलाल द्विवेदी प्राणेश ,कर्वी चित्रकूट
🙏सभी माताओं के सम्मान में दोहे 🙏

जिस दर है विश्वास दृढ़, जहं अपनत्व महान ।
आशीषें मां की करें ,सारे कष्ट निदान ।१।
वृद्ध पेड़ मम आंगना ,यद्यपि झर गए पात।
 छांव धनी देता सुखद, ममता हर्षित गात।२।
मां की ममता के तले ,सूत रहे कर्ज चुकाय।
 फर्ज से बढ़ जो पूजता ,भू - सुख आपुहि आय।३।
 जगत - जननि देखा नहीं, श्रद्धा रख निज मात।
 पिता स्वर्ग से पूज्यतर, सो सुत धन्य कहात।४।
🙏🙏🙏
दिनांक ८/५/२१

-रामलाल द्विवेदी प्राणेश ,कर्वी चित्रकूट

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                        ममतामयी माता
                  (काव्य संकलन) ई बुक
          संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन-जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
© कापीराइट-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

         ई_बुक प्रकाशन दिनांक 9-05-2021
            टीकमगढ़ (मप्र)भारत-472001
                 मोबाइल-9893520965

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