Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 18 मई 2021

मंजुल दोहावली (दोहा संग्रह) प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

                    मंजुल दोहावली
                (दोहा संग्रह) ई_बुक
                दोहाकार-प्रदीप खरे 'मंजुल'
        संपादन - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

प्रकाशन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

दिनांक- 18-5-2021

©कापीराइट- प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़ (मप्र)
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कवि परिचय

पूरा नाम- प्रदीप खरे "मंजुल"

जन्म तिथि व स्थान- 15.09.1963

पिताजी का नाम- श्री शिव नारायण खरे  

माता जी का नाम-श्रीमती सुखदेवी 

शिक्षा- हायर सेकेंडरी, आईटीआई

लेखन की विधा- गीत, लोक गीत, चौकडिया, दोहे,                                कविता, आलेख आदि

सम्मानों की संख्या- एनजेएफआई द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान स्वर्ण, प्रताप नारायण तिवारी सम्मान जंप द्वारा, उज्जैन, झाबुआ, पचमढ़ी, होशंगाबाद, सागर, ओरछा महोत्सव ओरछा, सम्मान समारोह सहित स्थानीय आयोजन।

सम्प्रति- संपादक "त्रिकाल" समाचार पत्र एवं वरिष्ठ पत्रकार

पता-पुरानी टेहरी, टीकमगढ़ (मप्र)

मोबाइल-9893417305
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अनुक्रमणिका

भूमिका- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

खण्ड-1  हिंदी दोहे

खण्ड-2 बुंदेली दोहे
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                         भूमिका- 
                    -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़

          श्री प्रदीप खरे 'मंजुल' बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे जहां एक वरिष्ठ पत्रकार हैं तो वहीं एक श्रेष्ठ कवि है। आपने बचपन में ही शुरुआत रंगमंच में अभिनय से की, फिर लोकगीत गायक के कुशल हो गये मंच पर खूब लोकगीत सुनाकर वाहवाही लूटी। 
        बुंदेली में आपकी चौकडि़या भी गजब की है। पत्रकारिता का एक लंबा अनुभव है। आज जिले में वे एक स्वच्छ छवि वाले वरिष्ठ पत्रकारों में एक हैं। पत्रिका, भास्कर, नवभारत, सत्य कथा जागरण, नई दुनिया, आचरण, जन जन पुकार, देशबंधु, जनकल्याण मेल, डेमोक्रेटिक बर्ल्ड, कृति परिचय पत्रिका,आदि के लिए लिख चुके है और वर्तमान में आप स्वतंत्र  पत्रकारिता में जौहर दिखा रहे हैं तथा इंडियन न्यूज सर्विस दिल्ली आईएनएस एमपी ब्यूरो है।
      साप्ताहिक समाचार पत्र "त्रिकाल न्यूज" के संपादक है अनेक बर्षो से निकालते आ रहे हैं।
 वर्तमान में आप पत्रकारिता के साथ साथ साहित्य लेखन में पुनः सक्रिय हो गये जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ से जुड़ कर श्री रामगोपाल रैकवार जी एवं राजीव नामदेव "राना लिलौरी" के मार्गदर्शन में  हिंदी एवं बुंदेली में नियमित दोहा लेखन में व्यस्त है।
        व्हाटस ऐप ग्रुप जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ में दिये गये नियमित बिषय पर नवरचित दोहों में से इस ई-बुक में यह दोहे संकलित कर मंजुल दोहावली पेश कर रहे है। निश्चित ही पाठकों को हिंदी एवं बुंदेली में लिखे गये श्री प्रदीप खरे "मंजुल" जी के ये दोहे जरुर पसन्द आयेंगे।
        मैं श्री मंजुल जी को इस ई-बुक के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
  ***
--राजीव नामदेव "राना लिधौरी" 
संपादक-'आकांक्षा'पत्रिका
अध्यक्ष -मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष -वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
पूर्व महामंत्री-अभा बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद टीकमगढ़
मोबाइल-+91-9893520965

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खण्ड- 1- हिन्दी दोहे-


बिषय_ महिला
*1*
महिला महिमा है महा,मां है इनकी शान।
माता है काली महा,लक्ष्मी का वरदान।।

*2*

महिला व पुरुष होत है, इक दूजे की जान।
महिलाओं से होत है,पुरुषों की  पहचान।।
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*बिषय-हिलोर*
-------------------------
1- 
पिया गये परदेश खौं, सूनौ है घर दोर। 
 सैयां आवन की खबर,मन में उठी हिलोर।।
2-
विरह अग्नि में जलत है,विरहा दिन औ रैन।
हिय हिलोर नहिं उठत है,पल पल मन बेचैन।। 
3-
अंसुअन जल सींची धरा, धरत न मन जौ धीर।
दुख - हिलोर जिय में उठै,सही न जाबै पीर।। 
4-
सोहै न कछु लाल बिन,जाने कब लौं आय। 
हिय में उठत हिलोर है,कछू न मोय सुहाय।।
5-
उठत हिलोर तन खौं रंगैं,कान्हा पनघट गैल।
श्याम रंग ऐसी रंगौं, छुप जावै सब मैल।।
*****

*बिषय-भाई-बहिन* 💐
🙏🏻Pradeep Khare🙏🏻:
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 1-
कुदरत का उपहार है, भाइ-बहिन का प्यार।
बिन बहिना सूनौ लगै,भईया का संसार।।
2-
करे कदर जो बहिन की,भाई दुःख नहिं पाय।
दोज दिना बहिना घरै,तिलक कराबै जाय।।
3- 
बहिना हाथन दोज खौं,भैया खाबै खीर।
काल अकाल न मारबै,अमर रहत बौ वीर।।
4-
जान लुटाकर करत जो,बहिन की रखवाली।
हरदौल लला सा अमर,हो वीर बलशाली।।
5-
भाई दोज पावन तिथि, आवत मन  हरसाय।
तिलक करावत यम स्वयं,यमुना के घर जाय।।
6-
 बहिन रूठे भाई से, तुरतहिं लियौ मनाय।
बहिना के आशीष तो,बिगड़े काम बनाय।।

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*बिषय-अनंत*💐6.04.2021
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1-💐
ईश्वर ने हमखौं दिये,हैं अनंत उपहार।
उनकी सबहिं रक्षा करो, मानो तो उपकार।
2-💐
प्रीति- रीति निभाए कैं,नाम अमर कर लेत।
अनंत काल दमकत रय,करौ कभउं नहिं हेत।
3-💐
जग में संत अनंत हैं,अनंत कथा अनमोल। 
नाहक नहिं भटकत रहो,मन की गठरी खोल।
4-💐
प्रभु स्वरूप सर्वत्र है,जाकौ आदि न अंत।
सदा ह्रदय में राखियौ,प्रभु चरित्र अनंत। 
5-💐
तिरिया चरित अनंत है,गुन अवगुण की खान।
बनै मोहनी सी लगै,बिगड़ै काली जान। 
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बिषय-बालमन

1-
बाल मन होय चंचला, चितवत चंद चकोर।
नैन जुड़ावत देखकें, नित बालक की ओर।।
2-
हिय हुलसी छवि लाल की, नटखट करत किलोल। 
बाल मन प्रिय लागतौ, जा मन कौ नहिं मोल।।
3-
जन-जन निरखत बालमन,मन भारी हरसात। 
लीला निरखत लाल की,मनहिं उदासी जात।।
4- 
 सुंदर अति है बालमन, क्रीड़ा सबहिं पुसाय। 
मंद मंद मुस्कान जा,सबको रही लुभाय।।
5-
बालमन लख बार बार, लीला ललित ललाम। 
रूप देख येसैं लगत, जैसे हों घनश्याम।।
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   बिषय- एकता

1-
बारा बाट सब हो गए, कोइ नहीं संग राय। 
एकता अब नहीं रही,नहिं सद्भाव दिखाय।।
2-
एकता जहां भोर है, प्रेम जहां की शाम। 
हर नारी राधा जहां, नर यहां घनश्याम।।
3-
एकता का देत जहां,हर नेता उपदेश। 
अमल खुद नहीं करत ,तोड़त हैं निज देश।।
4-
प्रीत एकता का यहां,रहा सदा से मंत्र।
लाख जतन दुश्मन करे,चला न कोई तंत्र।। 
5-
अमन शांति चाहो अगर, रखिय एकता आप।
 राह सरल हो जायगी, मिटते सब संताप।।
##############

बिषय-धरा
1-
धरा धधक रही आग से, हरे न कोई पीर। 
आरति तज आरी लिये, छाती देते चीर।।
2-
धरा धधक रइ आग सैं, जिया बढ़ो बेचैन। 
मन व्याकुल हमरौ रहै, दिन कटते नहिं रैन।।
3-
धरती धीर न अब धरै, सुन लौ प्रभु पुकार।
बोझ पाप नित बढ़ रहा, करो मेरा उद्धार।।
4-
जननी सबकी है धरा, सबकी पालन हार। 
अंत समय जब आत है,बाहें देत पसार।। 
5-
आंच धरा पर आये न,चाहे निकले जान।
सब पर मां का कर्ज है,रखना इतना ध्यान।।
6-
हरी भरी धरती रखो, करो खूब श्रृंगार। 
जितनी मैया खुश रहे, उतनें दे उपहार।।
*****

 बिषय-पत्रकार

1-

पत्रकार बो पेड़ है, खुद छाया नहिं लेत।
खुद खाये जो ठोकरें,औरन को सुख देत।।
2- 
पत्रकार बे नहिं बचे, जो सांची लिख लेत।
थामत दामन झूठ कौ,करते हरि सैं हेत।।
3-
सेवा जिसका धर्म है, पूजा कर्म महान। 
पत्रकार वो ही सही,देत वतन पर जान।। 
4-
भेद भाव जो नहिं करे, समझे सबहिं समान। 
पत्रकार नींकौ लगै, जो पाये सम्मान।।
5-
कलम कटार से कम नहिं, रखना इसे सभांल। 
पत्रकार गर भ्रष्ट हों, देश होय कंगाल।।

     बिषय-जीवन
1-
मात-पिता को भूलके, गंगा रहा नहाय।
मानव तन पाया मगर,जीवन लिया नशाय ।।
2-
काम,क्रोध करना नहिं,भजन करो उठ भोर।
होत बहुत कमजोर है,जीवन की यह डोर।।
3-
जीवन जीने की कला,सीख लेहिं जो कोय।
आनंदित मन रहे सदा,बीज प्रेम के बोय।।
4-
राम भरोसे डाल दे, जो नैया मझधार।
प्रभु हाथ में सौंप दे,जीवन की पतवार।।
5-
पर नारी नहिं देखिये, पर धन रखें न पास।
जीवन जुआ नशात है,नशा करें हो नाश।।
****

*दोहा हिंदी*बिषय..आंधी 18.05.2021

1-
आंधी में सब उड़ गये, स्वप्न सभी इस बार। 
 लगै न हल्दी हाथ में, न डोली आय द्वार।।
2
कोरोना के काल में, काल खड़ा है द्वार। 
आंधी चलवै मौत की, निकले कई हजार।।
3-
यह कैसी आंधी चली,भये सभी हैरान। 
 डूबे भय में हैं सभी, निकल न जाये जान।।
4-
जन मानस निश दिन यहां, देवी रहे मनाय। 
विनती मेरी माइ है, आंधी दियौ भगाय।।
5-
फुलबगिया के फूल को,आंधी चली उड़ाय। 
हाथ न आबै फूल वह, कितनहिं हाथ बढ़ाय।।
              ****

बिषय-चक्र (25-5-2021)

जौनौ कर रइ बांसुरी, प्रेम रहे बरसाय। 
चक्र हाथ धारन कियौ,प्रेम दियौ बिसराय।। 
2-
धरनी धधकी पाप सें, देव खबरिया लेव।
चक्र चला विपदा हरौ,सबखौं राहत देव।। 
3-
मुरलीधर मुरली धरी, करन लगे संहार। 
चक्र सुदर्शन हाथ में,लिये खड़े करतार।।
4-
भक्त की महिमा है बढ़ी,देव तलक झुक जाय। 
भीष्म प्रतिज्ञा रही अटल,कान्हा चक्र उठाय।।
5-
कोरोना तांडव करे, मचता हाहाकार। 
चक्र चला प्रभु कर दियौ,पल भर में संहार।।
***

*दोहा-बिषय.तंबाकू*

1-
जर्दा चूना साथ ले, बढ़े प्रेम सें खात।
तंबाकू जा तन लगी,  तन तबाह हो जात।
2-
कान दर्द होये कहूं, सुनियौ ध्यान लगाय। 
तम्बाकू रस डारियौ,तुरत दर्द भग जाय।
3-
 दांतन कीड़ा नहिं परै,जो तंबाकू खाय। 
चिलम लगा कै सूटियौ,तुरत गैस भग जाय।
4-
अंडकोश सूजन भई,या पानी भर जाय। 
तल तम्बाकू तेल में, पत्ता दियौ लगाय।
5-
संकोच मिटइ जात है, तमाखू लियौ सीख।
जासें सही न और विधि, मांगन चाहौ भीख।
***
*बिषय-रक्तदान*
हिंदी दोहा..💐
15.06.2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
💐💐💐💐💐💐
🙏🏻:
 रक्तदान के दान सम, नहीं है कोइ दान। 
 जीवन देता और को,होता वही महान।।
🙏🏻:
 रक्तदान सेवा बड़ी, कर ले जो इंसान।
चार धाम तीरथ करे,खुश होये भगवान।।
🙏🏻: 
जीवन रक्षा जो करे, भला वही इंसान।
रक्तदान सा दान कर,दानी बने महान।
🙏🏻: 
रक्तदान से नहिं बढ़ा,जगत में कोइ दान।
पर पीरा हरता वही, हो सच्चा इंसान।
🙏🏻: 
रक्त, नेत्र, धन संपदा, दान करै जो कोय।
बड़भागी मानव वही,सदा अमर वह होय।
****
दोहा शीर्षक.. योगा (हिंदी )
1-
कसरत करत धरत सभी,निज शरीर कौ ध्यान। 
योग बिना नहीं होत है, मानव का कल्यान।।
2-
ईशुर का उपहार है, जप,तप,ध्यान व योग।
जो जन नित यह करत है,काया रहत निरोग।।
3-
मन प्रसन्न चाहो सदा,योग सभी अपनाय। 
सुगढ़ देह रहती सदा,सबके मन को भाय।।
4-
भक्ति के संग योग हो,सबसे नीकौ काम। 
लोक और परलोक में,रहत सदा आराम।।
5-
करवें योग, सिद्धि मिलें, दूर होय सब पीर।
माया है यह राम की, सुंदर रहत शरीर।।
              ***

*बिषय..जामुन*

 तपत धूप में फिर रहे,हुआ जामुनी रूप।
जामुन से करिया भये, बिगड़ गया स्वरूप।।
2-
जामुन जम के खाय जो,उसका पेट पिराय। 
खाये में मीठे लगत, खा खा फिर पछताय।।
3-
शुगर होय तौ खाइयौ, जामुन सुबहो शाम।
जो जामुन नित खात है,होत बहुत आराम।।
4-
जामुन सी सूरत भली,जो देखे मुस्काय। 
मोती से चमकत सदा, दांत निपोरत जाय।।
5-
बिहीं, जामुन, आम सदा,भर अषाढ़ में आय। 
लरका बिटिया रोज ही,भरें कटुरिया खाय।।

पढ़ कबीर बाणी सदा,मनन करौ दिन रैन।
अपने भीतर धार लो, रहै सदा सुख-चैन।। 
2
कबीर जग चाकी कहें, जामें तन पिस जात। 
धर्म कमानी पाट की, पकरे सें बच जात।।
3-
मीठी बानी बोलिये,कह कबीर कर जोर। 
सबई के मन भात हैं,मन में उठत हिलोर।।
4-
मानव तन कछु भेद नहिं,सबरे एक समान। 
जाति-पांति सब छोड़ दे, कह कबीर निज जान।।
5-
लंपट लोभी लालची,रहत यहां चहुँ ओर। 
कबीर मन व्याकुल सदा,जाकौ ओर न छोर।।

*बिषय..विवेक*

1-
सत्य, असत्य व पाप की, जो जग भैया खान।
बिन विवेक नहिं होत है,भले बुरे का ग्यान। ।
2-
विवेक बताये रास्ता,कैसा जीवन होय।
बिन विवेक जो होत है,मुढ़ी पटक कै रोय।।
3-
विवेक से जो काम ले, करे न कभी अनीति। 
 जो चलते हैं नीति पर,रखत सबहिं से प्रीति।।
4-
निर्मल मन रखिये सदा,साफ रखें व्यवहार। 
 नैया बैठ विवेक की,कर ले बेड़ापार।।
5-
विवेक वान नारि सदा,कभउं न मानत हार।
विवेक हीन होय अगर, कर दे बंटाधार।।

*दोहा हिंदी.. बिषय-रूप13-07-2021

1-
निरखत मन खिलते सुमन, निज साजन का रूप।
मन मतंग मचलत सखी,लखतन छटा अनूप। 
2-
रूप रंग देखत सबहिं,सुध-बुध बिसरा देत।
रजनी काया कामना, नींद चैन हर लेत। 
3-
छंद से ढलते प्रिय,पग घुंघरु के बोल।
कमल हिये खिल जात है, लेती पलकें खोल। 
4-
राधा रूप नयन बसो,हीय बसत चितचोर। 
झांकी बांकी है छटा,हिय में उठत हिलोर।
5-
जा काया माटी रची ,माटी में मिल जात। 
मोह न करिये रूप का, सदा एक नहिं रात।।

[20/07, 6:28 PM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: *बिषय.. हिंदी दोहा*
शीर्षक.. अमृत
20-07-2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
*******************
अमृत गंगा नीर होत,जो पीले इक बार।
अंत समय बैकुंठ को, जाता वही सिधार। 
2-
मीठी बानी बोलिए,यह बानी अनमोल। 
अमृत सी लागे सबई रस में बिष न घोल।।
3-
शरद पूर्णिमा इक तिथि,साल भरे में आत।
नभ से आधी रात में, देव अमृत बरसात।।
4-
अमृत सेवन देव करौ, भये अमर जग जानि। 
दानव मदिरा पी गये, भई सबहिं को हानि।।
5-
 चली मोहनी मोह कर,कलश हाथ में धार। 
अमृत देव को बांट के, किया सकल उद्धार।
****

*दोहा ..महादेव*03.08.2021
*
1-
महादेव धुन में रमें, रहे धतूरा खाय। 
भाँग खाय भकुरे फिरें,गौरा रही मनाय। 
2-
आदि शक्ति से शिव लिया,नेत्र तीसरा मांग। 
चंदा माथे पर सजे, खूब चढ़ा ली भांग ।।
3-
घोटत गौरा भांग है,भोले चिलम चढ़ाय। 
महादेव महिमा बढ़ी, घोट धतूरा खाय।।
4-
महादेव सिर चंद है, जटन बह रही गंग।
गौरा ,गणपति साथ में,लिपटे रहत भुजंग।।
5-
सारी सिर पै जब चढ़ै,सुख पत्नी नहिं पाय।
साले भी सँग में रहें,महादेव कह जाय।।
*
धरनी बढ़ते पाप से, करती हाहाकार। 
पाप मिटाने लेत हैं, प्रभु मनुज अवतार।।
2-
रक्त पियें कलिकाल में, करें खूब शैतान।
राक्षस लेहिं अवतार,बन आये हैवान।।
3-
धरा धधकती आग सी, करती आज पुकार।
ले अवतारहिं आइयौ, करियौ प्रभु उपकार।।
4-
नागिन की अवतार है, निशदिन डस रहि मोय। 
कैसें जीवन कट रयौ, क्या बतलाऊं तोय।।
5
अवतार प्रभुहिं लीजिये, बिगड़ रहे सब काम।
धरती आज पुकारती, कब आओगे राम।।
6-
कलियुग में अवतार ले, निशिचर आय हजार।
प्रभु बिलंब क्यों कर रहे, आ जाओ इक बार।।
*दोहा.. भुजरिया*
24.08.2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
1-
कुशल कामना कर रहे, खुशहाली घर होय। 
लयैं भुजरियां द्वार पै, हम आये हैं तोय।।
2-
प्रेम नित येसयी रहें, देत कजलियां तोर। 
घर हरयाली रय सदा,नचे पपीहा मोर। 
3-
राखी कढ़तन आत है, कजली का त्यौहार। 
सभी प्रेम सें जात हैं, इक-दूजे के द्वार।।
4-
नागपंचमी बोत हैं, खोटत राखी बाद। 
इनै कजलियां कात हैं, हरें सभी अवसाद।।  
5-
आल्हा की बहिना हुई, चंदा जाकौ नाम। 
जाकी याद में बटत हैं, कजली आज तमाम।।
6-
प्रथ्वीराज न छू सके, चंद्रवती का हाथ। 
कजलियां लेकर बा गइ,निज सखियन के साथ।।
*


प्रदीप खरे 'मंजुल',टीकमगढ़, (मप्र) 472001

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                  खण्ड -2 बुंदेली
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बिषय-महुआ

महुआ डुबरी अरु लटा, बडे प्रेम से पाय। 
चार रोटियां चाउने, करन मजूरी जाय।।

महुआ डुबरी अरु लटा, बडे प्रेम से पाय।
मंजुल तो पेट पालने,करन मजूरी जाय।।
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: *बिषय-दमकत*
1-
ठाड़ी ओट किवार की, डारें घूंघट नार।
दमकत बूंदा माथ पै,और गरे में हार।।
2-
बाल काल में जप करे, बन गय ध्रुव महान ।
दमकत हैं आकाश में, जानत सकल जहान।।
3-
गगरी धर घर सें चली, धरत पांव बलखाय। 
दमकत बूंदा देखकें, जिया पलोटें खाय।।
4- 
दमकत हीरा सौ लगे, मुखड़ा धना  तुमार। 
निरखत सुध खो जात हैं, जो देखत इक बार।।
5
घरै पांव जीके परैं,खुल जे ऊके भाग।
 चंदा सो दमकत रवै, बिन्नू तोर सुहाग।।
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🌸बुन्देली दोहा🌸विषय= ततूरी 

              1-
सिर पर मटकी धर चली,गोरी उपनय  पांव। 
परत ततूरी तन बरै, दिखै कितऊं न छांव।।
*****

बिषय-मूसर

कओ कछु अनसुनी करै, मन नहिं मोरे भाय। 
मूसर सौ ठाढ़ो रबै, मूसर चंद कहाय।
.।।।।।।।।।
मूसर बिन पूजा नहीं, भाइ दोज की होय। 
ब्याव हुये जब आपकौ, घर में मूसर होय। 
...................
गोदन बब्बा की पूजा, बिन मूसर नहिं होत। 
बाबा जू खेलत जबै, सो मूसर सैं धोत।
............
मसक मार ब मूसर सैं, देबै जब मन आय। 
खुद हुलकी सी परत है, मोखौं मूसर काय।

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*बिषय-नाच नचाना*
04.04,2021
💐💐💐💐💐💐
1-
काहे खौ इठलात हैं, का ई जग में तोर।
नाच नचत जीवन कढ़ै,विधि हाथ तोरि डोर।।
2-
नाच नचावत और है, तू है नाचन हार।
नाव भंवर में है फंसी,कर ले प्यारे पार।। 
3-
करनी नीकी कर चलौ,नाव जगत में होय। 
नाच नचत कब लौ फिरौ,मिलै कछू नहिं तोय।।
4-
पाप की गठरी लाद कैं, नाच नचत है आज।
कछु नेकी कर कढ़ चलौ,काय न आवत लाज।।

5-
 मंजुल मन की कात हैं, सुनियौ ध्यान लगाय। 
  नाच नचें कछू सार न, सेवा सबखौं भाय।।

        🙏🏻👏🙏🏻👏🙏🏻

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*बिषय-बरा*
05-04-2021
💐💐💐💐💐
1-
न्यौतै जाबें जौन कैं,ठूंस ठूंस कैं पांय।
बेर-बेर मांगत बरा, और कछु नईं खांय।।
2-
बरा की नहिं बराबरी, बरा समान न कोय।
का कानें ऊ भोज की, भात-कड़ी संग होय।।
3- 
परमा तिथि बनबै बरा,बना कलौजी लेत।
गोदन पूजत पैल हैं, पाछें सबखौं देत।।
4-
चार खाय सूके बरा,चार तींते पाये। 
तिसना में तौ पा लये,पाछुं पेट पिराये।।
5-
काऊ कैं नहिं होत है,बिना बरा कैं ब्याव।
मंडवा नैचें बैठकें,कहत कै बरा ल्याव।।
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 *बिषय-किलकोटी*10.04.2021


1-
किलकोटी कर-कर करें,काया जा बेकार। 
काम करे सैं सार है,ठलुआ फिरें न सार। 
2-
भौजी संग देवर करें,किलकोटी दिन-रैन। 
भंवरा से मड़रात हैं,बोलत मीठे बैन।
3-
करमन की गति जानें न,को जानें का होय। 
बिरथा उमर न खोइये,कर किलकोटी रोय। 
4-
प्रीत रंग नौनौ चढ़ै,किलकोटी में बोर।
गांव भरे में पूंछ रै,  जुरे रबैं जन दोर। 
5-
किलकोटी नित करत हैं,छेड़त नर अरु नार। 
पलकन पै राखें सदा, जो मिलहै इक बार। 

💐💐💐💐💐💐
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बिषय-ठलुआ

1-
बेमन जन हो जात हैं, ठलुआ सामू आत। 
कांसें जे पबरे इतै, अब कैसें जे जात।
2-
बिना काज गैलन फिरें,नायं-मायं बतियाय।
ठलुआ बेइ कहात हैं, धेला नहीं कमाय।
3-
ठलुआ ठलवाई करें, जितै चाय ठस जात। 
उल्टी सीधी हांकवें,काऊ नहीं पुसात।
4-
हाड़न खौ हरदी नहीं, ठलुअन खौ लग पाय।
छाती होरा भूंजबै,कुल खौं रहे लजाय।
5-
मन मलीन रहबै सदा,न मुख पै मुस्कान।
ठलुयै सब दुतकारबैं, न पायै सम्मान।।
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💐 *प्रतियोगिता* 💐*दोहा बुंदेली.. सिर्री*
💐 24.04.2021💐

1- 
सिर्री साचूं सरल रय, जो मिल जे सो खाय। 
उनके तौ नखरे बढ़े, खा खाकें बुलयाय। 
2-
सिर्रपना नहि छोड़बैं, सबरे सिर्री कांय।
जेठमास में ताप रय, इनमें लुअर लगाय। 
3-
कैउ दिना सपरत नहीं, फरे चिलरवा अंग। 
बनें अगोरी फिरत हैं, सिर्री बाके संग।
4-
तोसें तौ सिर्री भलौ, कभऊं कछु जिन काय। 
तौपै तौ हुलकी परै, कभउं कितऊं न जाय।
******


1-
सूदौ रय न सार कछू, रहो सदा फरचंट।
चलौ समर कै नैक तौ, बीद न जाबै गंट। 
2-
बनौ काम बिगरत सुनौ, सातिर संगै राय। 
चंट चतुर चमचा रबै, अपनौ हाथ बनाय । 
3-
चंट रबै चमकत रबै, ऊके घर कौ भाग। 
तनक बिलोरा होय सैं, तन में लगहै दाग।
4-
बूढन की जा सीख है, चाय जितै खौ जाव। 
चंट चार जुरबें जितै, उत सें बरके राव। 
5-
चंट चकर घिन्नी करे, होत चतुर चालाक। 
छाया पर जै जौन पै, रै न कोनऊ लाक।
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*प्रतियोगिता* बिषय..घुन

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घरी घरी घुर कें जियें, घुन सौ लग गव देह।
कोरोना हुलकी परी, मसक प्रान हर लेह।।
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बिषय- कुलाट
     
1-
नेता नगरी की कथा, जानत है सब कोय। 
 लपकत लगा कुलाट जे,सब कुर्सी के होय।।
2-
पैलां सैं वे भांप लैं, कितै रनैं हैं ठाट।
मौका पै चौका जड़ें,तुरत लगाय कुलाट।।
3-
जिदना ललन लगात है, पैलां पैल कुलांट।
हाल फूल घर में दिखै,रहे निछावर बांट।।
4-
औसर देख बदल रहे, गिरगिट जैसौ रंग। 
लै कुलाट बंदर लगैं, देखकें रै गयै दंग।। 
5-
सगे काउ के भय नहीं, नहीं काउ के मीत।
पल-पल खात कुलाट हैं,कुर्सी सैं है प्रीत।।
        ******              
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*बिषय..करोंटा*दोहा..बुंदेली, 10.05.21

1: 
नेतन की लीला बढ़ी, रोज भरोसौ देत।
जासें पौचौ दोर पै, तुरत करोटा लेत।
2: 
दधि की लांच दिखा सखी, मोय नचावत नाच।।
कै कै करोटा ले गइ, हाथ लगी नहिं छांच।।
3: 
ता दिन माई लाल की, खूब बलैयां लेत। 
लेत करोटा लाल जब , सो भारी सुख देत।।
 4: 
पन्द्रा लाख जासें सुनी, हाल-फूल भइ मोय। 
आज करोटा लै गये, सिर धुनकें अब रोय।।
 5: 
पैलां कईती लैं नहिं, बिन दहेज करें ब्याव। 
अब करोटा लेत हैं, कांसें पइसा ल्यांव।।

****
कोरोना के काल में, जो चाहो तुम चैन।
कानहिं ठैटा दय रहौ,बोल समर कै बैन।।

उठत सकारें चाय तुम, तुरतइ लियौ बनाय। 
हाजिर करियौ जाय कैं,गोरी दियौ पिवाय।।

टउका सब खुद कर लियौ,बिना कयै सरकार।
शान बगारी बिगर जै, फूल जैह गुलनार।।

रोटी पानी जो करे, सो सुख पायै रोज।
तनक थूतरौ जौ चलै,पूजै गुइयां दोज।।

कौराना कै काल में, लो धीरज सैं काम।
दबे रैव तौ सार है,रक्षा करहें राम।।

मंजुल मानौं बढ़न की,रहे तुमैं बतलाय।
कै तुम पांव दवाइयौ,कै बा गरौ दबाय।।
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बिषय- आकती 15-5-2021

अकती की भांवर हती, उचट गई ई दार।
कोरोना के काल में, सूनो भव संसार। ।

अकती आई आ गई, बरा तरे कि बेरा।
आफत परी इ साल जा, अब न होत बसेरा।।
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*बिषय.. खरयाट*
17.05.2021
1*
गये बराते दो जनैं, देत रहे खरयाट।
गद्दा पल्ली फार दय, टो डारी उत खाट।।
2*
खीर बनातन देत है, ऊमें हींग बगार। 
बिन खरयाट मानत नहिं,  सबसें करत बिगार।।
3*
पाप-मतारी रो रहे, देख-देख खरयाट।
लरका ऊदम देत हैं,धरें मुढ़ी पै ठाट।।
4*
बाहर सैं सब ऊजरे, भीतर कारे हौय।।
नेतन लख खरयाट सब,मुढ़ी पटक कैं रौय।।
5
तनक-तनक से चैनुआं, धरैं मूढ़ पै ठाट।
खोज मिटा, खरयाट कर,कर रय बाराबाट।।
------------💐------------
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बिषय-तिड़ी-बिड़ी
1=
तन मन की सुध है नहीं, तिड़ी-बिड़ी सब होय। 
कोरोना के काल में, अमन चैन सब खोय।।
2=
जो तन होबै बावरा, सुध-बुध अपनी खोय। 
बिरह आग में तन जलै, तिड़ी-बिड़ी सब होय।।
3=
तिड़ी-बिड़ी कर देत सब, जब भड़िया घुस जाय।
पूंजी जो घर में हती,उठा सबइ लै जाय।।
4= 
लालन करत किलोल जब,तिड़ी-बिड़ी कर देत। 
देखत लीला लाल की, मन मौरौ हर लेत।। 
5=
तिड़ी-बिड़ी सब जिन करौ, नौनें करियौ काज।
 अपनें दोरें आत हैं, पई-पावनें आज।।
.6.
धूर भरौ तन मन हरै, दधि मुंह में लपटाय।
कांधे कान्हा केश को, तिड़ी-बिड़ी लटकाय।
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🌹बिषय..दोहा बुंदेली🌹शीर्षक- नैनूं ,मक्खन
24.05.2021
1-
नैनूं संग मिश्री मिला, मोहन दियौ खिलाय। 
मोहन की मरजी हुयै, मुंह मांगौ मिल जाय।।
2-
नैनूं मल मुख पै लियौ, नीकौ बौ हो जाय। 
नित भुनसारें पाय जो,रोग लिंगा न आंय।।
3-
नेता अफसर में बढ़ौ, नेनूं को है मोल।
 जितनौ जियै लगात है, वो उतनौ अनमोल।।
4-
 नैनूं सें मटकी भरी,दइ कान्हा ने फोर।
सखियां सब कोसन लगी,देवन लागी खोर।।
5-
नैनूं होबै चीकनौ, जीखौं चाव, लगाव। 
नैनूं की तासीर जा,बिगरौ काम बनाव।।
 🌹

                -प्रदीप खरे,'मंजुल',टीकमगढ़, (मप्र)
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बिषय..दौंदरा

फूटे भाग हमाय तौ, चैन रोज हर लेत।
दरुआ पीकें आत है, खूब दौंदरा देत।।
🙏🏻: 
दरुआ देवै दौदरा, दमचक रऔ मचाय। 
दये दनादन दाबकें, दाऊ लट्ठ बजाय।।
🙏🏻: 
पउआ पीकें पौर में, परो-परो गरयाय।
देत दौंदरा रात भर, कोउ नहीं सो पाय।।
🙏🏻: 
सैयां दारूखोर हैं, देत दौंदरा रोज।
फूटी कौंड़ी नहिं बची,मिटा दऔ है खोज।।
🙏🏻: 
द्वार-द्वार पै दौंदरा,दयं मोरे भरतार। 
दरुआ सबरे कात हैं, देत सबइ दुत्कार।।
🙏🏻
कभउं कलारी पै मिलें,कभउं डरे हैं दोर। 
दिनभर दैबैं दौंदरा, टूटत जीवन डोर।। 
🙏🏻
लाल दौंदरा देत है, माई लो समझाय। 
दहिया लूटन जात है, सखा संग लै खाय।। 
🙏🏻
इन्द्र दीनौ दौदरा, खूब मेघ बरसाय। 
गोवर्धन धारन  कियौ, लीनौ किशन बचाय।।
🌹🌹
*बुंदेली दोहा* बिषय.. छबीली 31.05.2021
................................
1-
छबीली निंदिया छल गइ, आंखन बसी हमाय।
बाकी छवि मन मोहनी,मन मौरो तरसाय।
2-
धर मटकी सिर पै चली, कर सोला सिंगार।
 दधि लै जाये छबीली,घायल करत हजार। 
3-
छवि छबीली की छलती, नित छलछंद दिखाय।
जो देखत सुध खोत है, बिन मारै मर जाय।
4-
 छलकत मदिरा नैन सैं, जो पीलै इक बार। 
सुध बुध सबरी भूलकें, जपत छबीली नार।
5-
लट लटकत झटकत चली, सुगढ़ छबीली नार। 
मंजुल मन में घर करै,जो देखत इक बार।
6-
हाल बेहाल कर गई,नैनन मारे तीर। 
छबीली छैला छल गइ,घाव करे गंभीर।
***
बिषय- डांग

बस्ती डाँग सें बुरई, डाकू बसत अनेक।
भेष बदल डोलत फिरत,धोखा खात हरेक।।
2-
डाँगन में डाकू बसे, बस्ती में गय आय।
पी-पी खून गरीब कौ,जे खूबइ हरयाय।।
3-
हौबै डाँग हरी-भरी, सबके मन खौं भाय। 
राम सिया सालन फिरे, कंद मूल फल खाय।।
4-राम लखन सीता सहित, सनै धरे हैं धूल।
डोलत फिरबै डाँग में, डग-डग चुभ रय शूल।।
5-
डाँगन मड़िया माइ की,उमें भव्य दरवार। 
मौं मांगौ सब मिलत है, जो पूजत इक बार।।
****
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌷🌷
दोहा..बिषय-पथरा

पथ को पथरा पांव में, लगत होय मन पीर। 
पथरानी अंखियां पिय,तुम बिन धरत न धीर।।
2-
पथरा कें पथरा भये,बिन सैयां के नैन।
हिय पै पथरा सौ धरें, नहीं जिया में चैन।।
🙏🏻: 
पथरा प्यारौ कूंख कौ, छतियाँ रहै लगाय। 
प्याबै माई दूध नित, लरका पनौ बताय।।
🙏🏻: 
सुत सत पापी कंस नें,देवकि के दय मार। 
पथरा रकत सैं रचयौ, लियौ कृष्ण अवतार।।
🙏🏻:
 पथरा पूजत देव सम,देव न पूजत कोय। 
पथरा हिय पै धरत हैं,मात पिता नित रोय।।*
***
बिषय-पैजनिया

पग पैजनियां बाजती,गबत गीत मल्हार।
छनन छनन छन बोलती,नारी का श्रृंगार।।
🙏🏻: 
पिया हिया जे भात हैं,पैजनियां के गीत।
धरा धरत पग मोहनी,मोहत मधुर संगीत।।
🙏🏻: 
बाजै मौरे लाल की,पैजनियां पुरजोर।
लीला ललित ललाम की,लागत नंदकिशोर।।
🙏🏻
बेंदी माथे पै लगी, बूंदा दयें लिलार।
पनियां भरबे जात है,पग पैजनियां धार।।
 🙏🏻
पैजनियां बैरन लगै, छनकत दिन अरु रैन। 
गुइयां सैं लिपटी रहत, पिया रहत बेचैन।।
🙏🏻
मौसें नौने भाग हैं,पैजनियां के तोर।
बा लिपटी है पांव सें,मैं ललचावत दोर।
****
बिषय- कलाकंद

1-
मौ में पानी आत सुन, कलाकंद कौ नाम। 
सबरे नौनौ मिलत है,चलौ ओरछा धाम।। 
2-
अधाधुंध ये तो बिके,मची रये भरमार।
कलाकंद नौनौ लगे, टपकावत सब लार।।
3-
रामलला खौं लगत है, कलाकंद कौ भोग।
दरश करत मिट जात हैं,तन के सबरे रोग।।
4-
कलाकंद सरकार की,सुनियौ पैलि पसंद।
भक्त भाव सें भेंटता, छूट जात भव फंद।।
5-
बिगरे काम बनात है, सेवा अरु उपहार।
कलाकंद लै सौंप दो,समझौ बेड़ापार।।
***
बिषम-दद्दा
1-
दद्दा की सुनबै सबइ, पर मानें ना कोय। 
 मानत उनकी सीख जो,सदा चैन सें सोय।।

2-
दद्दा, देरी, द्वार की,लेत खबरिया रोज। 
दवा दर्द की लेत हैं, मिटा दऔ है खोज।।

*बिषय.. अषाढ़*
26.06.2021
...…..................
1: 
अषाढ़ में पूजा करत , आम तरें जा खाय। 
हुलकी टरै आय खुशी, जो नित देव मनाय।।
2: 
समैया अषाढ़ी परत, मन भारी हरसाय।
घन गरजत  बरसत जलहिं, मन मोरौ बौराय।।
3:
 बेरां बौनी की भई, जुतन लगे हैं खेत। 
अषाढ़ में पानी गिरै, सबखों बौ सुख देत।।
4: 
कोरोना कलिकाल में, सूनौं लगै अषाढ़। 
मेला एकउ नहिं भरे, इत हो गऔ बिगाढ़।।
5
: सावनी सज जात तीं,अषाढ़ माह बाजार। 
लैकैं सब धर लेत ते,बैनन कौ उपहार।।
****

बिषय..डुबरी
28.06.2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
****(******(******
1-
सतुआ, डुबरी अरु लटा, मयरी बिरचुन खाय। 
खातन में नौने लगें, इनसें नौनौ नाय। ।
2-
डुबरी सी फदकत रबै,थूतर रही फुलाय। 
गटा लटा से काढ़बै, गरिया मोय बुलाय।।
3-
डुबरी खा पानी पियौ, लेऔ भूख मिटाय। 
जो चैन सें रये सदा, बोइ परम सुख पाय।।
4-
डुबरी लगै मिठाई सी,गरीब खाय ललचाय।
लटा संग फिर का कनें,जो न खाय पछताय।
5-
नाम लटा, डुबरी सुनत, मौ में पानी आय।
एक बेर जो खात है, बेर-बेर बौ खाय।।

बखरी कौ बंदेज नहिं, नहिं लगे हैं किबार। 
बिधना मरजी होय तब, लइयौ मोय उबार।।

माटी की बखरी बनी, माटी में मिल जात। 
माया मोह मनहि फसो,तिसना जी खौं खात।।

बखरी नौनी बा लगै, जामें सबइ समात।
बूढ़े बिन बखरी नहीं,भैया कितउं सुहात।।

*बुन्देली दोहा*बिषय.. बिजना

1-
 बिजना बिना गरीब खौं,गर्मी में नहिं चैन। 
नीम तरै आड़े डरे, दिन कटबै ना रैन।।

2-बिजना बिना दिन न कटै, गर्मी में हर बार।
बिजली बारे हूक कैं, करबें अत्याचार।।

3-
बिजना बिन नहिं होत है, काउ वर कौ ब्याऔ।
द्वारे दूला पौचतन,  बिजना कहत ल्याऔ।।

4-
बिजना, सूपा, दोरिया, बनत नहीं बिन बांस।
बिन बिजना कैसें बनें,घर में लेतन सांस।।

5-
 गर्मी परतन पौर में,सबहिं पसीना आत।
बिजना जिदना हो नहीं,आफत सी पर जात।।
***
*बिषय.पंगत (दोहा बुंदली)*
12.07.2021

1-
पंगत की जांसें सुनी, हाल फूल भइ मोय। 
काल दिना की बाठ में,आज रात नहिं सोय।।
2-
पंगत पैलां तीन दिना,कोउ कछु नहीं खात।
चौथे दिन न्यौतो करें,खूब सूंट कैं खात।।
3-
पंगत में तो पौनछक, पौन खात छक जात।
कड़ी बरा अरु भात सब,उतइ थरे रै जात।।
4-
आजकाल की पंगतै,मौखौं नहीं पुसात। 
नाय माय ठूसा घलें,सुख सें नहिं खा पात।।
5-
पंगत बा नौनी लगै,सबइ बैठकें खात।
पातर में परसे सबै,बरा कड़ी अरु भात।।

चाट, जलेबी रसभरी,भर भर दोना लेत।
पंगत में सबरौ भकैं,मौं पौछत भग लेत।।

पंगत पाऔ प्रेम सें,चाय जितनौ खाऔ।
जातइ बेरां पर सुनौ, कछु जरूर लिखाऔ।।

 पंगत बिन ब्याऔ करो, न्यौते दय बटवाय। 
पई पाऔने एक न,उनके द्वारें आय।।

 पंगत में जब जात ते,ठास ठास खा लेत। 
नाऊ धरकें खाट पै,घर खौं पौंचा देत।।

पंगत की सुनकें मोय,मौं में पानी आत।
सूटत दम सें माल हैं,बिना दयै कछु जात।।
****

1-
मनरेगा में खुद गईं, तलैयां मोरे गांव।
घाट सुहानौं बन गयौ, अरु पीपल की छांव।
2-
तलैया नियरें चौतरा, जितै लगे दरवार। 
गांव पुरा सबरौ जुरै, सुनबै सब सरकार। 
3-
सूरज चंदा से भले, निज घर में दो लाल। 
तलैयां रय सुखकि भरीं, करबें लाल कमाल।।
4- 
ताल तलैयां देखकें, भर-भर आबें नैन। 
पानी खौं तरसन लगे, कबै मिलत है चैन। 
5-
ताल-तलैयां सूख गय, कर लो गैरौ जाय। 
पानी ज्यादा रै भरौ,फिर न मुशीबत आय।।
गुरु वंदन-
1-
 गुरु चरनन में रहत है, यह सारा संसार।
करबैं गुरु सबका भला,गुरु ज्ञान भंडार।।
2-
गुण अवगुण की गुरु करै, ई जग में पहचान। 
ज्ञान जोत उजयार कैं, बना देत गुनवान।।
3-
मां बचपन दइ सीख जो, जानौ मंत्र समान।
गुरु बानी मन राखियौ, जासें बनत महान।।
4-
 ज्ञान बिना हर जीव कौ,जीवन है बेकार। 
गुरु चरन में रऔ सदा, हो जैहै कल्यान।। 
5-
गुरु बिमुखहिं हो जो रहे, लगत करम में आग।
गुरु किरपा जीपै करें, ऊके खुल जैं भाग।।
6-
देव विनय मौरी सुनौ,गुरु पधारे दुआर। 
पूजत पाछें देव खौं, पैलां गुरु सत्कार।।
***
बिषय..मगौरा

1-
दार दरे पीसें उये, लैबें नौन मिलाय। 
मिरची धनियां डार कें, सेंक मगौरा खाय।।
2-
लागी लत मगौरा की, मैया लियौ बनाय। 
चटनी नौनी पीसियौ,ओई संगे खाय।।
3-
 प्याज कटी चटनी मिरच, संग मगौरा होय। 
तबियत सें सब खायकें, तान पिछौरा सोय।।
4-
हरि मगौरा बेंचबें, अरु चिप्पे की चाट।
मथुरा की टिकियाँ भली, दोना लैबें चाट।।
5-
पानी बरसो हूक कें, लगत मगोरा खाय। 
डार दार मां फूलबे, लइयौ आज बनाय।।
***

🙏🏻:
 बिजुरी सी दमके धना, जिया पलोटें खाय। 
जिया जरै जो नहिं मिलै,गोरी लफ लफ जाय।।
🙏🏻: 
बिजुरी चमकै सो डरै, लिपट लिंगा खौ आय। 
बिजुरी यसयी चमकियो,मौखों संग सुहाय।।
🙏🏻: 
गरजे बदरा जोर सें, चमकी बिजुरी तेज। 
पानी बरसो जोर सें, गीली हो गइ सेज।।
🙏🏻:
 सावन मइना जब लगै,घटा छाय घनघोर। 
बिजुरी चमकै डर लगै,पवन मचावै शोर।।
🙏🏻: 
बिजुरी सी दमकै धना, तौरी घुंघटा कोर। 
नैन नचत बाके लगैं,हरत जिया चितचोर।।
****

दोहा बिषय..चौमासौ
*1
 चौमासौ जां सें लगो, बदरा पानी लाय। 
अँगना नित बरसन लगे, रुत सावन मन भाय। 
2-
संत साधना करत हैं, लग चौमासौ  जाय। 
एक जगा डेरा डरे, कभउं कितउं जिन जाय।
🙏🏻: 
चौमासे में छा गई, हरियाली चहुँ ओर।  
बदरा कारे आ गये, बरसत मोरे दोर।।
🙏🏻: 
गोरी सज धज कें चली,चौमासे निज गांव। 
मंहदी हाथन में लगी, माहुर रच गऔ पांव।
🙏🏻:
 पिया पांव तोरे परें, परदेशै न जाऔ।
चौमासौ अब लग गऔ, नदी नीर भराऔ।।
***

*बिषय.. आदिवासी* 
*09.08.2021*
*प्रदीप खरे, मंजुल*
%%%%%%%%%%%%
1:
 वनवासी वन में रहें,रूखी सूखी खाय।
करन मजूरी जात हैं,आदिवासी कहलाय।।
2-
जंगल में मंगल करें,अदिवासी दिन रैन। 
मेंपर लकड़ी बेंच कें,करें सदा जे चैन।।
3-
बिना पढ़े नेता बनें,फिर मंत्री बन जात।
अदिवासी सबसें भले,बिना करें मिल जात।
4: 
हरि खौं जै नीके लगे,जाकें गरे लगाय।
आदिवासी संगें फिरे,रस्ता रहे बताय।।
5: 
सबरी जूठे बेर खा,रहे राम हरसाय।
अदिवासी है भीलनी, मां कौ दर्जा पाय।।
***

🙏🏻: बिषय.. साउनी( दोहा )
संशोधित
23.08.2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
******************
1-
समधी से मिलबे सजे, लगायँ तेल फुलेल।
लैकें दद्दा साउनी, कढ़ गय पैलां पैल।।
2-
साउन में लै साउनी, समधी सजकें जाय।
हालफूल भारी भई, समधन सें बतयाय।।
3-
पुरा परोसी जुर गये, लगे सावनी देख।
सबरे ताली ठोकबें, पढ़ समधन कौ लेख।।
4- 
डब्बा सें बब्बा कढ़ो, दयै मूंछ पै ताव।
सबरे मिल कहने लगै, जैइ सावनी ल्याव।।
5-
खेल खिलौना संग में, मिला प्रेम कौ रंग।
देख सावनी रै गई, सबइ समधनें दंग।।
6-
साउन में लै साउनी, दद्दा भय तैयार। 
सज धजकें मिलबे गये, निज समधी के द्वार।।

*दोहा.. भुजरिया*
24.08.2021
*प्रदीप खरे,मंजुल*
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1-
कुशल कामना कर रहे,खुशहाली घर होय। 
लयैं भुजरियां द्वार पै, हम आये हैं तोय।।
2-
प्रेम नित येसयी रहें, देत कजलियां तोर। 
घर हरयाली रय सदा,नचे पपीहा मोर। 
3-
राखी कढ़तन आत है, कजली का त्यौहार। 
सभी प्रेम सें जात हैं, इक-दूजे के द्वार।।
4-
नागपंचमी बोत हैं, खोटत राखी बाद। 
इनै कजलियां कात हैं, हरें सभी अवसाद।।  
5-
आल्हा की बहिना हुई, चंदा जाकौ नाम। 
जाकी याद में बटत हैं, कजली आज तमाम।।
6-
प्रथ्वीराज न छू सके, चंद्रवती का हाथ। 
कजलियां लेकर बा गइ,निज सखियन के साथ।।

*प्रतियोगिता दोहा*
28-09-2021
********************
1-
हलछठ जिदना आत है, सबइ उपासीं रात। 
गाय दूद अरु हर जुतो, जा दिन कोउ न खात।। 

2-
हरछठ आइ मौर पिया, चाउर पसाइ ल्याव। 
दूध भैस कौ होय अरु, खड़न ककरी खुआव।।
3-
प्रसव वेदना सह रही, भारी हुई अधीर। 
गाय श्राप नारी दयी, तुम सैहो अब पीर। 
4-
हलछठ हल कौ छोड़ियौ,  सदा करत उपवास। 
संतान सुखी रात है,काम बनत हैं खास।।
5-
बलदाऊ पैलां भयै, कान्हा पाछें आय।
हलछठ खौं पैदां भये, सो हलधर कहलाय।।
***
2-
खबर सदाँ जा राखियौ,पर धन धूर समान।
पर नारी निज बैन सम,राखौ करम महान।
3-
ममता की मूरत लगै,मधुर लगै मुसकान।
बुरी नजर ना राखियौ,नारी पर इंसान। 
 4-
प्रानन सैं प्यारी रबै,प्रीत करत है तोय।
नैन पुतरिया राखियौ,बहिना कभउँ न रोय।
5-
कभउँ बैर जिन राखियौ,छाती रहौ लगाय।
टीका दोजन खौं करै,बहिना खीर खुआय।।

 धन धीरज की लालसा,गदिया रहे खुजाय।
मन मलीन नहिं राखियौ,ईशुर देय मिलाय।।

लाल कजन ऊदम करै,बाप ताव रय खाय।
गदिया परबै गाल पै,गाल लाल हो जाय।।

 सरदी होबै लाल खौं,कछु नहिं काउ सुहाय।
गदिया पै मालिश करैं,रोग अवश भग जाय।

लठिया मार लाल करीं,गदियाँ मोरी दोइ।
गुरू डाट सुन आज तौ,अखियाँ भारी रोइ।।

 गदिया फेरी गाल पै,रइ गोरी सरमाय।
गुइयाँ टुइयाँ सी लगै,लइ बालम भरमाय।।

 1-
न्याय बिगत बाजार में, बोली मन की होय। 
लाबर की साँची कहें,साँचौ लाबर होय।।
2-
दौंदा दौंदत रय सुनौ,लाबर लबरी काय।
बात करत सब न्याय की,न्याय न काऊ भाय।।
 1-
न्याय बिकत बाजार में, बोली मन की होय। 
लाबर की साँची कहें,साँचौ लाबर होय।।
2-
दौंदा दौंदत रय सुनौ,लाबर लबरी काय।
बात करत सब न्याय की,न्याय नहिं काउ भाय।।
3-
पहले के नहिं पंच हैं,नहिं हैं बे सरपंच।
न्याय तमाशा है बना,होता अब प्रपंच।।
4-
मन के लोभी हो गये,तन से कामी लोग।
न्याय माँगती बेटियाँ,फैला कैसा रोग।।
5-
न्याय आज अंधा हुआ,बहरे हो गय पंच।
जग में पैसा बोलता,अंट संट सब मंच।।

जा जग में जो आय हौ,करियौ नौने काम।
नौटंकी तुम जिन करौ,हो जेहौ बदनाम।
2-
कर नाटक तुम जाव ना,छोड़ौ ना हरी दुआर।
नौटंकी में नहिं धरो,सुन लो कौनउ सार।।
3-
नौटंकी करबे लगे,जा जग में सब लोग।
अंत काल ही छूटबै,लगो बढ़ौ जौ रोग।।
4-
नौटंकी करबे लगे,करें लोग सब भोग।
माया के सब फंद में, फँसकें रै गय लोग।
5-
कठपुतली सब लोग तौ,ईश हाथ है छोर।
नौटंकी नहिं होत है, टूट जात जब डोर।।
*
 किलकिल भोरइ सें करै,चैन मिलत नहिं मोय। 
जीवन जौ बिरथा कटै,  सभी उमर भर रोय। 
*
रहिये किलकत हे सखे,किलकिल में नहिं सार।
 मरघट कूका देत है, करौ सबइ सैं प्यार।।
*
जितै परौसी हो बुरौ, उतै न रहियौ कोय।
सब दिन किलकिल में कटै,चैन सैं बौ न सोय।।
*
घरवारी घर में सुनौ,दिन भर गारीं देत।
रात-दिना किलकिल करै,चैन न तनकउ लेत।।
*
घरै मंथरा कैकयी,सी कुलटा जब नार। 
कोउ ता घर नहीं सुखी,होबै बंटाधार।।
*
चायै पुल बनवाइयौ,चायै बनें मकान।
बजरी सोने सी बिकै, लैबौ नईं आसान।

 करत दलाली ठग रहे,बजरी बैंचें ठोक।
कोऊ रोकत है नहीं,भलै लगी है रोक।।

 धरती सीना चीर कैं,बजरी रहे निकार।
नदियाँ सूखी तौ डरीं,गूंजो हाहाकार।

 बजरी बन नकली रही,खेतन सैं रइ आय।
भाव सुनै छाती फटै,सबै पसीना आय।।
***
1-
बैरौ पबरत ससुर कौ,सुनत न कौनउ बात।
कैबैं जय गोपाल की,कय भोपालै जात।।
2-
बतियानें है जोर सैं,बढ़े अजब हैं ढंग।
बैरै सैं तो जिन करौ,भैया कबहूँ संग।
3-
साँसी कत तोसैं सखी,का का तुमें सुनायैं।
बैरौ घर सैं मिल गयौ,सला करइ न पायैं।
4-
कंडा माँगे तै सुनौ,डंडा वौ लै आव।
बैरौ बरतइ का कबैं,कानौ मैं चिचयाँव।।
5-
मूसर मौरे भाग में,बदो सखी जौ डूँढ़।
बैरौ पा पछता रयी,खा रव मोरौ मूँढ़।
1-
अंत समय कौ होत है,साचौं जाकें भान।
तीरथ नौनौ मरगटा, जितै मिलत है ग्यान।
2-
मोह लोभ काये फँसो,जौ तन जन कौ भाइ।
खाली हाथहिं मरगटा, सब अब तक हैं जाइ।।
3-
शिव बैठे हैं मरगटा,धूनी रहे रमाय।
पूरी होती कामना,जो जन मरघट जाय।।
4-
राम नाम जपते जहाँ,शिव गौरा के साथ।
आँग लपेटी मरगटा,धूनी भोलेनाथ।
5-
जहाँ भेद नहिं होत है,सब समान हैं लोग।
जाँगा येसी मरगटा,जाबै सुख दुख भोग।।

 कजरारे नैना लगैं,बाँके मीठे बोल।
लाली अधरन पै सजी,नीके लाल कपोल।।
3
लाली चली लगाय कैं,लगै लुभावन यैन।
कजरारे नैना लगैं,मीठे बाके बैन।।
2
काजर आँखन आँजियौ,कर लो चुरियाँ पैर।
बिंदियाँ लगा लिलार पै,माउर रचियौ पैर।।
1
गोरी की गोदी भरी, बैठी घूँघट डार।
हाथ गरी गोला लयै, गरे फूल कौ हार।।
2-
गरी बुरादा डार कैं, लौंग लायची डार।
मीठौ पान खबाइयौ, भैया अबकी दार।
3-
सरसौं तेल लगायकें,मालिश करौ हमेश।
गरी तेल नित डारियौ,जासैं झरैं न केश।
4-
गरी गिरी गर हाथ सैं,गुरगा लेत उठाय।
पौंछ पाँछ फिर लेत हैं,अपनें गाल दबाय।
5-
गरी तेल में डारियौ,थौरौ रोज कपूर।
लगा लियौ निज माथ पै,दरद होत है दूर।।

बिषय.. तिली
1-
तिली लगा तन में लयी,बुढ़की भेड़ाघाट।
लडुआ तिल के सूटते,खूब खात रय चाट।।
2-
गुर परिया लै हाथ में,पूँछत भाव कुरेद।
तिली तराजू में तुलै, करिया और सफेद। 
3-
तिली मिला गुर में लयी,पपड़ी लयी बनाय।
लडुआ डिब्बा धर लयै,सबखौं दयै खबाय।
4-
बुढ़की कौ त्यौहार तौ,आतन मन हरसात।
तिली लगा सपरें सभी,खूब सूटकें खात।।
5-
तिली बिना होता नहीं,बुढ़की कौ त्यौहार।
लमटेरा की तान बिन,सूनौ पर्व हमार।।
**

प्रदीप खरे, मंजुल*
    टीकमगढ़🌷🌷

 🌹 🌹#####धन्यवाद##############  🌹🌹

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