Rajeev Namdeo Rana lidhorI

मंगलवार, 25 मई 2021

दोहा मंजरी (बुंदेली दोहा संग्रह ई बुक)- रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

                             दोहा मंजरी

                       (दोहा संग्रह) ई_बुक

                दोहाकार-रामगोपाल रैकवार 'कंवल'

        संपादन - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

 प्रकाशन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

                  दिनांक- 25-5-2021

©कापीराइट- रामगोपाल रैकवार,टीकमगढ़ (मप्र)

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                            दोहा मंजरी
                      (बुंदेली दोहा संग्रह)
                      - रामगोपाल रैकवार

                       कवि परिचय

नाम:- रामगोपाल रैकवार
पिता का नाम:- स्व. श्री रामभरोसे रैकवार
माता का नाम:- स्व.श्रीमती मालती देवी
जन्म :- 21-07-1960
शिक्षा :- एम.ए. (भूगोल), बी.एड.
विधा :- गीत , ग़ज़ल, दोहे, व्यंग्य, यात्रा वर्णन,आलेख आदि
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में
प्रसारण :- आकाशवाणी भोपाल एवं छतरपुर से प्रसारण
सम्मान :- अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
* आंचलिक सम्मान-2004 मप्र लेखक संघ, टीकमगढ़ द्वारा सम्मानित।
* गिजू भाई सम्मान, भोपाल
*शिक्षाविद डॉ. गुलाब सिंह चौरसिया सम्मान, भोपाल
* अ.भा. साहित्य परिषद टीकमगढ़ द्वारा सम्मानित।
संप्रति :- कनिष्ठ शिक्षक डाइट कुण्डेश्वर (टीकमगढ़)
मोबाइल :- 8085153778
पता :-प्रहलादपुरम, तखा टीकमगढ़ (मप्र)

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                   भूमिका-
                           - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'

                श्री रामगोपाल जी रैकवार एक बहुत बढ़िया साहित्यकार है साहित्य की दोनों गद्य एवं पद्य पर समान अधिकार रखते है जहां वे गद्य में बेहतरीन व्यंग्य,यात्रा संस्मरण, शैक्षणिक आलेख,लिखते हैं तो वहीं पर पद्य में ग़ज़ल,गीत, दोहे और कविता लिखने में भी दक्ष है। आपके अनेक गीत बहुत सराहे गये हैं जिनमें ढ़ूंढ मत ठाव कोई ढूंढ मत छाव कोई अभी लंबा है सफ़र.... एवं आऔ गुनगुनी धूप में बैठे बहुत उत्कृष्ट गीत हैं।
           आप राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल से जुड़े हुए हैं आपकी अनेक रचनाएं पाठ्य-पुस्तक में शामिल हैं। रेडियो से आपके अनेक बाल उपयोगी शैक्षणिक आलेख प्रसारित होते रहते हैं।
             श्री रामगोपाल जी को भ्रमण करने का बहुत शौक है देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों के दर्शन कर आये है। नेपाल तक घूम आये है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण वर्तमान में गुफाओं पर अन्वेषण का काम कर रहे है खासकर बुंदेलखंड में अज्ञात छोटी-बड़ी  गुफाओं की खोज एवं भ्रमण कर रहे है अब लगभग एक दर्जन गुफाओं पर जा चुके हैं। वहां का उत्पत्ति व वहां का प्राचीन इतिहास पता करके आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं। आपने रिगौरा, घूरा,जतारा,खरों आदि गुफाओं पर वहां भ्रमण कर शोध किया हुआ है।
            श्री रामगोपाल जी ने लाइब्रेरियन श्री विजय मेहरा जी एवं साहित्यकार श्री राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' से साथ टीकमगढ़ जिले में "चलित लाइब्रेरी" का नया प्रयोग भी किया है जिसे काफी सराहना मिली है।
            वर्तमान में आप साहित्यिक संस्था मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ जिले इकाई का सचिव है एवं जिले की अनेक संस्थाओं से जुड़े हुए है। आप अ.भा.साहित्य परिषद टीकमगढ़ के अध्यक्ष भी रहे तथा अ.भा.बुंदेलखण्ड़ साहित्य एवं संस्कृति परिषद टीकमगढ़ के महामंत्री के पद पर भी रहे है।
           आप श्री राजीव नामदेव  'राना लिधौरी',के साथ संयुक्त रूप से 'जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़' के ग्रुप एडमिन भी है। इस पटल ने दो ही साल में बुंदेलखंड में अपनी बिशिष्ट पहचान बना ली है। इस पटल पर हिन्दी एवं बुंदेली में नियमित रूप से दिये गये बिषय पर दोहा लेखन होता है।इस पटल पर लगभग पचास चुने हुए सक्रिय सदस्य है जो निरंतर दोहा लेखन कर रहे है। 
इसी पटल पर दिये गये बिषयों पर श्री रामगोपाल जी रैकवार ने भी अपनी कलम बखूबी चलायी है। इन्हीं में से कुछ दोहे 'दोहा मंजरी' ई बुक में हम प्रकाशित कर रहे है। ये दोहे कबीर, तुलसी और बिहारी के दोहों की श्रेणी के हैं। इन दोहों को पढ़कर आप स्वयं मूल्यांकन कर सकते है। आशा है पाठकों को जरूर पसंद आयेंगे। 
 अपनी अमूल्य समीक्षा एवं पाठक प्रतिक्रिया देकर लेखक की होंसला अफजाई जरूर कीजिए।
धन्यवाद

- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
संपादक'आकांक्षा'पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र)
मोबाइल-9893520965
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दोहा मंजरी
बुंदेली दोहा संग्रह
दोहाकार- रामगोपाल रैकवार
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बिषय- छमा

साँसी औषध है छमा,
पूरै मन के घाव।
छमा भाव सें मिटत हैं,
आपुस के दुरभाव।।

वीरन कौ गुन है छमा,
भूषन वीर कहाय।
ऊखों कउं बैरी नईं,
जीखों  छमा सुहाय।।

छमा करत मैं सबइ खों,
छमा करें सब मोय।
जेइ भाव सें सुख मिलै,
सब जग सुखमय होय।।
***

बियय-बब्बा 

बब्बा अनुभव ज्ञान हैं,
बब्बा नेह दुलार।
बब्बा घर की आन हैं,
बब्बा सें परवार।।

बब्बा हम खुद हो गए,
नातन हैं अनमोल।
दादा-दादा कत फिरत,
मीठे नौने बोल।।
**
बब्बा की माटी धरी,
झर-झर रोबै नीम।
जिन्नै लगाइ कर चले,
अंतिम राम-रहीम।।
**
कक्का कयँ सें नइँ लगे
बब्बा कयँ लग जाय।
ऊखों बब्बा हम कयँ,
जो जा किसा बताय।।
*****28-12-2020
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बिषय- उतरन

उतरन जिनकी है पुँजी,
पुज रय हैं चउँ ओर।
बने बिजूका हैं धनी,
की खों देबें खोर।

सजे बिजूका हार में,
हो रई जै-जैकार।
बालें खा रय चौंट कें,
मिट्ठू पैरेदार।।
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बिषय-बसंत

नौन मिरच धनिया हरौ,
चटनी, रोटीं चार।
इक हरदी की गाँठ सें,
भई बसंती दार।।
******

बिषय- कलदार

बिड़ी सूँट कें जो पियें,
मैकें फिर कलदार।
छाती अपनी फूँक कें,
मिटा रये घर-बार।।
***
राज ओरछा के हते,
रुपया गदा उभार।
असली चाँदी के बने,
गजासाई कलदार।।
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बिषय-पाहुने

पाहुन जैसौ जो रयै,
खूब होय सत्कार।
जो अड़कें रै जाय तौ,
मिलबै रोनी दार।।

पटल-पाँवने आ रये
लैकें दोहा खूब।
जैसें पंडत रय चढ़ा,
हरदी-आखत-दूब।।

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बिषय-फुदना

बारे में पैनत हते,
टोपी फुँदनादार।
जनमदिना पै मिलत ती,
गुड़िया- मोटरकार।।

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बिषय-मउआ

मउआ मेवा है मदिर,
गुलगुच मधुर मिठास।
भोजन निर्धन का यही,
और कभी आवास।।
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जानै कितने चढ़ गए,
बलिवेदी पै लाल।
दमकत भारत मात कौ,
उन लालन सें भाल।
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बिषय- ततूरी

मोड़ी-मोड़ा  गैल में,
फिर रय उपनय पाँय।
उनै ततूरी  नइ लगै,
दै रय सबरय दाँय।। 


बारो भगबै बायरें,
लयं मताई कौर।
बेटा,ततूरी हो गई,
खेलौ अपनी पौर।।  


जेठ मास की दुपरिया,
बरो जा रऔ चाम।
धरनी ततूरी सें तपै,
परबै चिलका घाम।।

कर्रे बोल न बोलिए,
तन आगी लग जाय
मन की ततूरी न मिटै,
कोटन करौ उपाय।। 
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बिषय-दुपहर

जेठ मास उपनय फिरौ,
फुटका पर जें पाँव।
दुपहर जा बिलमाय लो,
पाखर-बिरछा छाँव।।

*****
बिषय- होरी

होरी होरी में गई,
घर जब नइँयाँ कंत।
फागुन कौ हम का करें,
मन हो गऔ है संत।।
***

किलकोटी पप्पी करे,
मेमसाब के संग।
मेमसाब पुचकारती,
उयै लगा कें अंग।। 
****

बिषय- मौ फुलाय

तनक-तनक-सी बात पै,
मौ जो लेत फुलाय।
ऐसै विकट सुभाव कौ, 
कोऊ नईं  सुहाय।।

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बिषय-कुतका

मोसें तौ लै जात ते,
वे पइसा जब चाय।
मैंने माँगे एक दिन,
कुतका दऔ बताय।।
***

बिषय-खरियाट

हों छोटे या हों बड़े
खल करबें खरयाट।
सूदे सें मानै नईं,
डंडा इनकी काट।।
***
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बिषय- नैनू

नैंनू सें घी बनत है,
औ घी सें बलबान।
होम-धूप , पूजा-दिया,
मधुर-मधुर पकवान।।
     ***
दूद-दई, माखन सबइ,
मथुरा-हाट बिकाय।
कान्हा मटकी फोर कें,
दीनो बंद कराय।।
***
सीनाजोरी सें मिलै,
या चोरी सें पायँ।
कान्हा अगुआ हैं बने,
नैंनू सब मिल खायँ।।
     ***
मीठी बानी बोलिए,
मन-मक्खन हो जाय।।
काम सादबे कौ 'कँवल',
सीदौ-सरल उपाय।।
     ***
बोइ सफल जो आजकल,
मक्खन खूब लगाय।
इक दूजे की पीठ खों,
या फिर रऔ खुजाय।।
******
बिषय-पथरा

पथरा है जो मील का,
ठाँड़ो एकइ धाम।
मंजिल की देता खबर,
भौत बड़ौ जौ काम।।

पथरा परबत पै बड़ौ,
आय न कौनउँ काम।
पथरा नौनौ बाट कौ,
पंथी खों आराम।।

अक्कल पै पथरा परे,
काट रये हैं रूख।
बरसा में अंतर परो,
नदी- ताल गय सूख।।

पथरा थे जो नींव के,
उनखों दऔ भुलाय।
सज-धज कें ऊपर चढ़ो,
कलस रऔ इतराय।।

पथरा छोड़ो राम नै,
गऔ समन्दर डूब।
राम लिखे तौ तैर गय,
जौ अचरज है खूब।।
***
ठुमक-ठुमक बिटिया निगी,
पैजनिया छनकाय।
कानन में घण्टी बजीं,
सब घर ख़ों हरसाय।।

ठुमक-ठुमक बिटिया निगी,
पैलउँ-पैलउँ बार।
पैजनिया छम-छम बजी,
गूँज उठो घर-द्वार ।।

***

कलाकंद दोहा बने,
मिठया सब कवि वृंद।
पढ़-पढ़ कें गुरया गये,
भऔ पटल आनंद।।

***

डुबरी मउआ की बनी,
फरा डरे हैं ऐंन।
दद्दा,बब्बा, बाइ, बउ,
खा रय भैया-बैंन।।

छोटे मउआ चाउनै,
और फरा खों चून।
संग चिरोंजी हो डरी,
डुबरी बढ़ाय खून।।

हँड़िया में डुबरी चुरै,
बिना दूद की खीर।
लँय कचुल्ला हैं खड़े,
नइँ लड़ेर खों धीर।
***

बुरा खोजता हृदय में
जानै जग की पीर।
जो घर बारै आपनौ,
साँचौ वही कबीर।।

उसके पाछें हरि फिरें,
जो गंगा-सा नीर।
निर्मल हृदय चाहिए,
जैसा संत कबीर।।
***

(मौलिक-स्वरचित)
-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

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