Rajeev Namdeo Rana lidhorI

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

ढबुआ (खेतों में बनी झोंपड़ी) बुंदेली दोहा संकलन ई-बुक संपादक-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी', टीकमगढ़ (मप्र)

[26/12, 8:04 AM] Jai Hind Singh Palera: #ढबुआ पै दोहे#

                    #१#
पंचवटी ढबुआ डरो,सिया राम कौ बास।
लछमन बैठै रात में,पैरौ दैबें खास।।

                    #२#
बांसन की कमटीं कड़ीं,बदीं जोइयां तान।
पत्तन ढबुुआ छाय कें,वन मैं खुश भगवान।।

                    #३#
खेतन ढबुआ डार कें,परबें रोज किसान।
बनों बिजूकौ देख कें,उजरन उजरे प्रान।।

                    #४#
खेतन ढबुआ में बसे,रव किसान कौ ठौर।
होटल में कय चल परो,अब ढबुआ कौ दौर।।

                    #५#
ढबुआ में बबुआ परो,होटल के मेंदान।
चश्मा बारीं औरतें,परीं पिछौरा तान।।

                    #६#
ढबुआ बैठीं राधिका,रय बृज रसिया संग।
किशन बजायें बांसुरी,राधा उठत उमंग।।

                    #७#
ढबुआ डारें शहर में,देखें खुश हों लोग।
बैठैं ऊके छांयरें,भोगें छप्पन भोग।।

#जयहिन्द सिंह  जयहिन्द# 
#पलेरा जिला टीकमगढ़ #
#मो०-६२६०८८६५९६#
[26/12, 9:07 AM] Pradeep Khare Patrkar Tikamgarh: *बिषय.. ढबुआ*
26-12-2022
*प्रदीप खरे,मंजुल*
*****************
जग में जो जन आय हैं, 
बिरथा रहे गबाय।
ढबुआ सी जा जिंदगी, 
हवा आय ढय जाय। 
2-
मैंढ़न पै ढबुआ बनें,
 करैं खेत पै छाय।
ता चढ़ बैठे सब जनैं,
 हरिया रहे भगाय।
3-
चारौ, लकरी जोर कैं,
ढबुआ लऔ बनाय।
तामें उन्ना हैं बिछे,
हरिया रये रखाय।।
4-
ढबुआ मेढ़न पै बनौ,
खड़ी फसल लहराय।
होय किसानी जब सही,
परो परो मुसकाय।।
5-
रोटी लै खेतन गई,
 सज धजकें गुलनार।
ढबुआ बिच नित बैठकें,
खुआ रही पुचकार।।
*प्रदीप खरे, मंजुल*
टीकमगढ़
[26/12, 9:19 AM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली दोहा ,, विषय ढबुआ 

ढबुआ  ताने   मैंड  पै , पिसिया  रयी  रखाय |
मुनिया  खौं चिपका धना, गाकैं  रयी‌‌  सुलाय ||

हरिआ-हरिआ   टैरकैं  , गोरी‌   रयी   भगाय  |
हरि आ+कैं ढबुआ घुसै , मुनिया रयै खिलाय‌  ||

ढबुआ  हौतइ खेत पै  , चारौ   तरफ  रखात |
यैसइ ढबुआ  ईश भी  , अपनौ खुदइँ बनात ||

ढबुआ जौ संसार है , पकी फसल तक राँय |
फिर सब ऊकै बाद में , अपने घर खौ जाँय ||

ढबुआ ढाबा हौ गयै , चलनै   लगी   दुकान |
खटिया पै परसन लगौ  , खाबै  कौ सामान ||

सुभाष ‌सिंघई
[26/12, 9:32 AM] Promod Mishra Just Baldevgarh: सोमवार बुंदेली दोहा दिवस
         विषय ,, ढबुआ,,
*****************************
ढबुआ डारें खेत पै ,बैठे मैंड़ किसान
बसकारो रिमझिम करें , अदकच्ची भइ धान
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ढबुआ पत्तन को बना , धरें वरेदी मूंढ़
छिरियाँ चले चरावने, बुंदछैरे में ढूंढ़
*******************************
ढबुआ थुमियन पै कसो , बंधी तरें में खाट
रखवारें पिरमोद भय , बैठे फसलें डाट
*******************************
ढबुआ के तर साँतरीं, कथरी दूनर डार
गुड़मुड़याके ठंड में, परें प्रमोद समार
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धना धना खोंटन चलीं,चटनी बने प्रमोद
बेरी पै रोटी टंगी , तकियो ढबुआ कोद
*******************************
दूद महेरो ठंड में , कोंड़ो तापत खात 
ढबुआ डारें खेत पै , काटें ठंडी रात
*****************************
       ,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
       ,, स्वरचित मौलिक,,
[26/12, 10:40 AM] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: *बुन्देली दोहे*
विषय -ढबुआ
ढबुआ खों चानै परत,पत्ता जूना बांस।।
पैलां सें धर लेत हैं,काट कूट कें कांस।।

प्यांर बिछा कें रात भर, ढबुआ में पय रांय।
दर्रे कौ ऐरौ‌ मिलौ, गुथना झट्ट उठांय।।

ढबुआ में कौंड़ौ लगौ, लगर‌इ धीमी ऑंच।
उत‌इ तमूरा सें गबैं,भजन कबीरी पाॅंच।।

जौ ढबुआ में रात हैं, उन्हें महल नै भांय।
सूखी -सूखी प्रेम सें,भाजी रोटी खांय।।

जौ किसान ‌खेती करत, मड़वा गाड़त खेत।
लफे नब‌इयॅंन पै उत‌इ, ढबुआ खों धर लेत।।

भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[26/12, 11:55 AM] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा विषय - ढबुआ
(१)
ढबुआ में हम भी परे, खूबइॅं मजा  उड़ाय।
पड़ौ सबइ जन गौर सैं,दोहा आज बनाय।।
(२)
ठाट  बड़ैरौ  बांस कौ , थुमियाॅं  गाड़ीं चार ।
घांस पूस अरु कांस कौ, ढबुआ लेबैं डार।।
(३)
नेंचैं   डारी  साॅंतरी  , अतफर  टाॅंगी  खाट ।
रमसइॅंयाॅं के देख लो , नय ढबुआ में ठाट।।
(४)
सित्ती लच्छी गौइया ,ढबुआ में घुस जांय।
सकलन कौ ओंदा बना ,चटनीं सॅंगै खांय ।।
(५)
ढबुआ में बसकाय की ,बूंद न भीतर जाय।
देखत में  नोंनों  लगै , ठंड  लगै नइॅं  बाय ।।

आशाराम वर्मा "नादान " पृथ्वीपुर
( स्वरचित ) 26/12/2022
[26/12, 12:10 PM] Rajeev Namdeo Rana lidhor: *बुंदेली दोहा बिषय- ढबुआ*

*1*
सबकै  ढबुआ  आज   तौ , हुइयै  आलीशान |
सबखौं  पढकै सब जनै , #राना कर लौ गान ||💐
*2*
#राना   ढबुआ   तान  कै  , दूजै   देखौ आन |
नईं  पिछौरा   औढ़  कै , सोंनैं   है    श्रीमान ||🙃🙏
*3*
ढबुआ  ढीलौ हौय तौ , गिरवै   कौ  डर रात |
यैसइ दोहा हौ अगर , #राना मजा न आत ||😚
*4*
कसौ अगर ढबुआ लगै , हवा हिला ना पात |
दोहा  हौय विधान  सै ,#राना खिलौ दिखात ||💐
*5*
बुरब न कौनउँ मानियौ , लैंय  बनाकै ठौक |
#राना दोहा  चाय‌ हौ , या ढबुआ की  रौक ||🙏
*6*
बुंदेली   ढबुआ  तरै ,  हम सब  लिखै  बिलात |✍️
#राना  लिखकै जाँच लौ , करियौ  नईं उलात |🙏
*7*
#राना  मानैं  हम  इतै ,   चूकत   दोहा    भार |
पर तेरह यति  भूलबौं  , ढबुआ -सौ  है   द्वार || 🤔🙏
*8*
दोहा  या ढबुआ   बनै ,    गौड़े  लगतइ  चार |
ऊँचै    से   नीचै   रखत , #राना  ऊकौ  ढार ||🙆‍♂️
           ***दिनांक-26-12-2022
*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*
           संपादक- "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
Blog-rajeevranalidhori.blogspot.com
[26/12, 1:16 PM] Brijbhushan Duby Baxswahs: दोहा
विषय- डबुआ
1-लग लगाम सब जोर लयी,
ढबुआ कर तइयार।
बृजभूषण लय मूड़पे,
घर से चलदव हार।
2-हार खेत में पहुंचकर,
लई मड़इया गाड़।
ढबुआ छालव ऊपरे,
परवें पिंयार खुवार।
3-ढबुआ में बृज परेरत,
आंगू कोंड़ौ बार।
रात रात भर जगत रत,
हो ना सकत उजार।
4-रखवारी रोजऊ करत,
खेतन डेरा डार।
का मजाल खा जाय बृज,
फसलें सुअर सियार।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[26/12, 4:14 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: बुंदेली  दोहे  ‌  विषय  ढबुआ

ढबुआ डारें मेंड़  पै , फसल  रखात  किसान।
उजरा फिरत उजार खों,करत  भौत हैरान।।

    जुनरी कीं रोटीं बनीं  , उर  सेंमें  कड़याइ।
ढबुआ में  भ‌इया  डटे,  परस र‌ईं  भौजाइ।।

सनन सनन सर्रात है,  सुर्रक  सो   दिन रैन।
ढबुआ में कैसें  परै  , जड़कारे  में  चैन।।

ठिठुरे जा रय ठंड सें, बजन  लगे  हैं  दांत।
ढबुआ  सें  कैसें  कड़ें,  जेबे   जाने   पांत।।

हम तौ पल्ली  में परे ,  तौउ  न  आत तताइ।
ढबुआ में कैसें  उनें , ‌आर‌इ   हु‌इयै   राइ।।

             प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[26/12, 4:52 PM] Kalyan Das Sahu Prithvipur: काठ बकोंडे़ बल्लियाँ , झकडा़ पत्ता काँस ।
ढबुआ कृषक बनात हैं , लेत चैंन की साँस ।।

कछू जनें ढबुआ कहत,कइयक कहें मचान ।
खाट जोइया की बुनी,फिट कर लेत किसान ।।

खूब परौ बैठौ - उठौ , कछू परत नइँ कूत ।
भौत सुरक्षित ठौर है , ढबुआ रत मजबूत ।।

वसकारौ  आँसै  नईं , आँसत नइंयाँ घाम ।
ढबुआ में कथरी बिछा , करौ खूब आराम ।।

ढबुआ की मैमा अजब , होय पूस की रात ।
कुकरे परत पिआँर में , मजा खूब ही आत ।।

ढबुआ कमइँ दिखात अब,बनन लगे आवास ।
आम  आदमी  बन  रये , धीरें - धीरें खास ।।

   ---- कल्याण दास साहू "पोषक"
      पृथ्वीपुर जिला-निवाडी़ (मप्र)

         ( मौलिक एवं स्वरचित )
[26/12, 4:56 PM] Amar Singh Rai Nowgang: बुन्देली दोहे - ढबुआ (संशोधित)

ढबुआ अगर बनाउने, ढूंँढ़ो  पत्ता  काँस।
ढबुआ नोनो तब बनै, होंय  हरीरे  बाँस।।

ढबुआ से तजबीज रय, खेतै चारउँ ओर।
हो उजार तौ नइँ रहो, हैं तो  नइँया  ढोर।।

ढबुआ में अधपर बँधी, रखवारे  की खाट।
सुर्रक  चलवै  रात में, लेटत बिना कपाट।।

अच्छो ढबुआ होय तौ, पानी नहीं चुचात।
चाहै जैसी झिर लगै, बूंद न अंदर आत।।

खाना ढबुआ बैठ कैं, इत उत हेरत खाय।
रूखी सूखी भी उतै, मनखां भौत हिताय।

निसफिकर मन होय तौ,का कमरा का खेत।
ढबुआ ढेलन जाँय सो, बिछा सेज कँकरेत।।

काम किसानी को कठिन,जा सोचैं की बात।
ढबुआ में  कैंसें  कटत,  जड़कारे  की  रात।।

मौलिक/
                   अमर सिंह राय
                 नौगांव, मध्य प्रदेश
[26/12, 6:30 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: बुन्देली दोहे
विषय ढबुआ
26 12 22

ढ़बुआ डार पियाँर कौ,सोव ओड कें खोर।
यैरौ मिलतन दो भगा, पिडें खेत में ढोर।।

ढबुआ  में  कुत्ता परौ,कमरा उयै उड़ाव।
बचै रात भर ठंड सें, तुमसें रखै जुड़ाव।।

ढ़बुआ  डारौ  हार  में,  राते  परवे  जाव।
फसल  उजारें ढोर सब,फिर पाछें पछताव।।

कंड़न  में भूँजौ भटा, लेव  गकइयाँ सेंक।
ढबुआ भीतर खाव तुम,जइयौ ना तुम चेंक।।

ढबुआ ऊपर डारियौ, घास फूस तिरपाल।
चलै हवा जब तान कें, उड़ जै सब तत्काल।।

अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[26/12, 8:15 PM] Vidhaya Chohan Faridabad: बुंदेली दोहे
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विषय- ढबुआ 
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राहर खेतन में लगो, चट कर जातइं ढोर।
ढबुआ  में  दद्दा  परे,  देख  मचाउत  सोर।।

पत्तन   से  सागौन   के,  ढबुआ   है   तैयार।
बिछो काँस को बिस्तरा, कोदौं डलो पियाँर।।

दुपरैं चलियो तुम सजन, अपने ढबुआ हार।
उतइं  नीम  के   छाँयरे,  खैहैं   रोटी   दार।।

गर्मी   कित्तउ  ठंड   हो,  चौमासे   बरसात।
राहत तुरतइं मुंस खाँ, ढबुआ में मिल जात।।

आँदी  बदरा  धूप  में , झूलत  एक मकान।
सुख  दुख ईके  फेर में, ढबुआ  सो इंसान।।

~विद्या चौहान, फरीदाबाद

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