Rajeev Namdeo Rana lidhorI

शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

बुन्देलखण्ड कौ पावन प्राकृतिक तीर्थ-‘‘अछरूमाता’’:- -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’’ टीकमगढ़

बुन्देलखण्ड कौ पावन प्राकृतिक तीर्थ-
‘‘अछरूमाता’’:-   
  -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’’   

   हमाओं बुन्देलखण्ड प्राकृतिक संपदाओं उर तीर्थ क्षेत्रन से भौत संपन्न है। इतै पै एनई पावन तीर्थ स्थान उर प्राकृतिक स्थान है।  बुन्देलखण्ड में एक खास बात जा है कै इतै जितैक भी प्राकृतिक स्थान है उन सभइ स्थानन में कोउ न कोउ तीर्थ जरूर हुइये, जैसे- चित्रकूट में भगवान राम कों मंदिर, छतरपुर जिले में जटाशंकर में भगवान भोलनाथ कौ मंदिर, दतिया के रतनगढ़ में प्रसिद्ध रतनगढ़ माता कों मंदिर, टीकमगढ़ में बेतवा नदी के करके बसो ओरछा में श्री राम राजा कौ मंदिर, अछरूमाता जी कौ मंदिर एवं बल्देवगढ़ में विंध्यवासिनी माता जी कांे मंदिर, सोनागिरी में पहाड़ पै  तनक-तनक से बन्न-बन्न के एक साथ लगभग 100जैन मंदिर बने है, उन्नाव बालाजी में नदी के करके सूर्य मंदिर है,जबलपुर में भेड़ाघाट में नर्मदा नदी पै संगमरमर की चट्टान के बीचा भौत नोनो जलप्रपात है। भीमकुंड, आदि ऐसइ बिलात प्राकृतिक स्थान है।   
   ऐसई बुन्देलखण्ड के टीकमकढ़ जिले में एक भौत नोनो तीर्थ इस्तान है  ‘अछरूमाता’। इतै पै एक प्राकृतिक कुण्ड में से अपने आप पानी निकलता है उर इ कुंण्ड को पानी कभउ नई सूखत है। जो तीर्थ बुन्देलखण्ड के टीकमगढ़ जिला मुख्यालय सें  टीकमगढ़-पृथ्वीपुर गैल पै 40 किमी. की दूरी पै स्थित है  सन् 1907 में प्रकाशित गजेटियर में सोउ इ इस्थान कौ उल्लेख करो गओ है। अब से लगभग 72 वरस पैला झाँसी संे 3-4 जनन की एक मित्र मण्डली अछरूमाता के दर्शन करवे के लाने आयी हती। इ जात्रा कौ वर्णन करत भए श्री वीर ने लिखौ है कै-‘‘सर्वप्रथम हम लोग एक पहाड़ी पर चढ़े। ऊपर पहुँचकर एक युवक ने एक पत्थर को हिलाया तो उसमें से जोर की आवाज निकली। फिर उसकी धूल को मस्तक पर लगाते हुए उसने बताया कि मंदिरों में जैसे घण्टा होता है वैसे ही यहाँ पत्थर है। यात्री लोग इसे बजाकर अपने आने की सूचना देते है। हम लोगों ने भी उसे हिलाया और पहले जैसी आवाज हुई।  
  इसके पश्चात् हम लोग चोटी पर पहुँचे। वहाँ मिट्टी के दो घर बने हुए है और  क मंदिर के पास एक जगह पत्थरों से घिरा हुआ एक छोटा सा घेरा था। अनेकों नये-पुराने झंडे वहाँ फहरा रहे थे। यहाँ आकर मेरे मन में उत्सुकता उत्पन्न हुई उस कुण्ड को देखने की, जिसके बारे में, एक विस्मय जनक बात सुनता रहता था। पूछने पर मालूम हुआ कि यह घेरा ही कुण्ड है। कुण्ड की परिधि लगभग एक फुट के लगभग होगी। मैला सा पानी उसमें भरा था। हम लोगों ने भेंट चढ़ाकर प्रसाद माँगा और पण्डा जी ने हमारी ओर से विनती की। पहले पहल तो पानी में कुछ बुलबुले आये, तदानन्तर अपने आप ऊपर आकर प्रसाद तैरने लगा। किसी को गिरी मिली, किसी को जवा, गेहूँ, देवल और किसी को मलीदा। हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा।’’  इतने ऊँचे स्थल पर कहीं भी पानी नहीं है पर इस कुण्ड में पानी कैसे आ गया। इस पानी के ऊपर तरह-तरह का प्रसाद अपने आप कैसे तैरने लगता है ? पास खडे़ लोगों से मैंने इसका भेद पूछा तो एक ने कहा- ‘भैया जी, जगदम्बा महामाई को प्रभाव आय’।    ई कुण्ड की गैराई के विषय में बिलात किंवदंतियाँ प्रसिद्ध है। कओ जात है कै एक दार एक राज्य कर्मचारी ने इमें अपनौ भालौ डारो हतो तो वो भालो तीन मील दूर पै वीर सागर के तला में निकरौ हतो। अछरूमाता के सम्बन्ध में भौतइ तरां की कथाएँ प्रचलित है। कछू जनन कौ कैवो  है कै अनेक महिलाओं कों माता बनवे कौ सौभाग्य इनई माता जू की कृपा से प्राप्त भओ है।    इ इस्थान कौ अछरू माता नाँव पड़वे की एक जनश्रुति है कै दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जब कुपित होकै सती जू ने अग्नि कुण्ड में अपनी स्वयं की आहुति दयी तो भगवान शंकर सती जी के अधजरे शरीर कांे अपने कंदां पै धरकै निकरे। हते तो कई जात  है कै सतीजी के अँसुवाँ इतई गिरे हते।  उ अँसुउन सेइ कुण्ड कौ जनम भऔ उर अँसुवाँ शब्द सेइ मुख सुख की प्रवृत्ति शिकार होकै असरू उर फिर असरू से बिगडकै अछरू हो गऔ। पन जा बात गले नइं उतरत कि अधजरी देह से अश्रुपात होना तो कोनउ भी दशा में संभव नइयाँ कजन की दारं शंकर जू की इ दुख की घड़ी में अश्रुपात होवो बताओ गओ है तो कछू अंशों में विचार करो जा सकत तो।    अछरूमाता कौ नाँव पड़ने के कारण कौ उल्लेख करत भए टीकमगढ़ के जनवा डाॅ. काशी प्रसाद त्रिपाठी ने लिखौ है कै ‘अछरूमाता कौ नाँव अछरू यादव नाँव के एक चरवाहे की खोज के कारण भओ हैं 
ऐसी लोक किंवदंती है कै अछरू नाँव कौ एक बरेदी (चरवाहा) प्राचीन काल में इतै के घन जंगल में टौरियाऊ चट्टानी जगां पै बैठकै ढोर चराओं करततो। जितै वो बैठौ हतो, उतई पै एक कुण्ड हतो जीमें उनै जल भरौ देखौ। अछरू ने उ कुण्डी में और जादां जल डारौ, पै कुण्ड कौ पानी जितैक हतो,उतेकइ रओ, बल्कि जो कछू वो डारतो उ के विपरीत उये कछू भोग प्रसाद मिल जाततो। अछरू ने इये देवी माता कौ चमात्कार उर सिद्धि मानौ। उके बाद में उतै के भक्त जनन ने इय अछरू की माता अथवा अछरूमाता नाँव दऔ। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जो सिद्ध क्षेत्र अछरूमाता के नाँव से प्रसिद्ध है।    
इतै एक खास बात जा है कै इतै कुण्ड कों पानी परसाद के रूप में दओ जात है जिसे भौतई बुरई बसांद सोउ आत है पै फिर भी भक्तजन माता कौ परसाद मान कै  पियत है उर अबै तक कोउ उ पानी को नह कै बीमार नई परौ है, बल्कि कुण्ड कौ पानी माता की कृपा सें दवा कौ काम करत है। जेई कारण है कै इतै की प्रसिद्धी एनई है। सब माता की कृपा मानत है। तबई तौ जो एक बुन्देलखण्ड कौ एक पावन तीर्थ बन गओ है।             प्राचीनकाल में केवल इतै जलकुण्ड के कारण ही अछरूमाता नाँव मान्यता प्राप्त रओ। परंतु अबै अछरूमाता एक सिद्ध क्षेत्र के रूप में विकसित हो गऔ है। कुण्ड पै एक सुंदर आधुनिक मंदिरमय सभा मण्डप,गर्भगृह एवं खुली प्रदक्षिणा कौ निर्माण हो गऔ है। गर्भ में संगमरमर की देवी की दर्शनीय प्रतिमा प्रतिष्ठित है। विशाल परिक्षेत्र में शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, नौ देवियों की मूतियाँ, बनी है। श्रद्धालुअन कौं ठहरावे के लाने कैउ धर्मशालाएँ, विशाल पक्के प्रांगणों कौ फर्शीकरण,करके टीन शेड लगा दय गये हैं क्षेत्र के विशाल अंलकृत प्रवेश द्वार, जलापूर्ति के लिए कुआँ उर नल की व्यवस्था है। एक बड़ौ सौ प्रवेश द्वार सोउ बन गओ उतई पै नारियल फोरवे के लाने उर अगरबत्ती लगावे के लाने बाहरे गेट के एंगरें पै एक इस्थान बना दओं गओ है उतई पै सबई जने नारियल फोर के भीतर मंदिर में ले जाके परसाद चड़ाउत है। गेट के बायरे के समाज के लोगन ने पनी-पनी धर्मशालाएँ बना लयी है। जीमें निःशुल्क रैवे की व्यवस्था है। उतई पे उ समाज के लोग टीका-पटा करत है।    
              इतै पै नौ देवियन के समय मेला लगत है लाखों लोग अछरूमाता के दरसन करवें आत है उन मन्नत माँगत हैं। अपनी मनोकामना पूरी होवे में नाच गाने के साथ फिर के आकै अपनी हाजिरी लगाउत हैं। इतै पै कजन की दार सच्चे मन से जनानी मन्नत माँगे तो उकी सुनी गोद भर जात है सैकड़ों की गोद माता जी की कृपा सें भरी है। इतै पे आके माता के दरबार में ऐंगरें के केउ गाँव के लोग व्याव रचाउत हैं शादी ब्याब के लाने इतै बुलाके माता के सामू मोड़ा-मोडी दिखाउत उर पसंद करत है। रिश्ता पक्कौ कर है उर गरीब जने इतई पै पने बच्चन कौं व्याब करत है। दिवारी के समय पै कैउ मोनिया माता के दरवाज में आके इतई पै अपनो मौन तोरत है।  
   ई तरां सें आज अछरूमाता एक पावन उर परसिद्ध तीर्थ इस्तान हैं। इतै पै सैंकड़ो जने रोजउ दरसन करने आत है।
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  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’  
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका   
 शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)    
 पिनः472001 मोबाइल-9893520965   
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