बुंदेलखंड के मेला
(बुंदेलीआलेख संकलन)
संपादक- राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़
(1) *"चलो मेला घूमन चलवी"*
*आलेख- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
जा बात 40साल पुरानी है ऊ समै कि है जब अपुन भौत तनक से हते आठक साल कै हुइये तब नव देवियन कै समै हमौरे बैहर जिला बालाघाट से पने घरे लिधौरा कछू दिनन खों आयते सौ एक दिना हमाय दादा जू ने कइ कै अछरूमाता कै दर्शन करवै चलने है।
ऊ समै मोटरे कम चलत ती सो तीन बैलगाड़ियों में हम सबईघर कै लौग पौच गये पैली दार बैलगाड़ी में झूलवे में भौत मजा आऔ दुपरे पौच कै सबसें पैला मइया कै दरसन करे सो कुण्ड देख कै ऐन अचरज भऔ कै इमें पानी का सें आत,पंडत जू ने कइ माता से मांगलो जो कछू चाने होय जब तनक से हते सो का मांगते, हात जोर लय, कुंड में तनक बुदबुदाहट भइ फिर ऊपरे गरी कौ तनक सौ टुकड़ा ऊपरे उतरान लगो सो पंडत जू ने निकार कर हमाइ गदिया पै धर दओ उर कन लगे मइया नै तुमें जौ परसाद दऔ है। हम जो चमत्कार देखकें बडे हेंरान हो गये उतई ठांडे-ठांडे देखत रय कै और कौनउ खों का निकरत है। पै कछू जनन कौ जवा निकरे। कत है कै ई कुण्ड सें कछू जनन खो, जवा, मलीदा, अठवाई, निबुआ,कोयला तक निकरत हैं।
कुण्ड कौ पानी परसाद के रूप में दऔ हमने गदिया में धरो उर पीवे के लाने जैसइ मौ कै एंगरे ले गय तो ऊ पानी से बसांद आ रइती सौ हमने सबकी नजरें बचा कै उये मूंड में हात फेरत भय डार लऔ। बाद घरे आकै दादा सें पूछौ कै दादाजी कुण्ड कौ पानी बुरव बसात है सो पीवे वारे बीमार नइ परत।
तब दादा जी नै बताऔ कै जैई तो माता की कृपा है जो पानी अमरत कै समान काम करत है। कैउ रोगियन कै लाने दवा कौ काम करत है तबई तो माता के दरसन करवें दूर दूर सैं जनी मांस आउत है।
मइया की कृपा सें हजारन औरतन की सूनी गोद भर गयी। लाखन की मनौती पूरी भइ है।
फिर पने पंडित जू सें बचवाई उर उतई भटा गकरिया खायी फिर फिर जी भर कै मैला घूमें हिडोला में झूले, फुकना लय,चकरी लै गदवद देत रय। संझा बेरा घरे लौट आये पै ऊसै तो हम उतै कैउ बेर गय है पै अबै लौ उ समै कौ बैलगाड़ी से जावो उर मेला घूमवो याद है।
जय अछरूमाता की।
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✍️- *राजीव नामदेव* *"राना लिधौरी*
*टीकमगढ़* (मप्र)472001
मोबाइल-9893520965
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(2) चलौ मेला देखन चलबी----
हमाय राना जू नै आज अच्छौ विषय दऔ। पन्ना कुदाऊँ की बुन्देली कौ पुट दै कें। मेला न सिरफ बुन्देलखण्ड के बरन पूरे देस में जगा जगा देइ-देवतन के स्थान या नदियन के प्रयाग (संगम) पै हजारन बरस सें भरत आ रय हैं। संसार कौ सबसें बड़ौ मेला कुम्भ कौ मेला कऔ जात है । कुंभ मेला के बारे में सब जानतइ हैं । आज बिलात जनन नै अपने बुन्देलखण्ड के भौत से मेलन पै लिखो है । बुन्देलखण्ड के दो जाँगा के मेला असफेर भर में नामी हैं बे हैं बेतवा नदी के लिंगा ओरछा में मकर सँकरात या बुड़की कौ मेला, रामनौमी, ब्याह पंचमी जैसे तेवारन पै भरबेबारे मेला और कूंड़ादेव या कुण्डेश्वर कौ बुड़की कौ मेला । इन दोइ तीरथन पै सिवरात्री, बसंत पाँचै पै सोऊ बड़े मेला भरत हैं । बुडकी के कैऊ दिना पैले सें गाँवन और मुहल्लन में लमटेरा गवन लगत ते। बुडकी के दिना मौ अंदयाय सें बैलगाड़ियन पै जनी मांस कुण्डेश्वर खों कड़न लगत ते । उनन के बे लमटेरा अबै लौं नईं बिसरे।
नरबदा मैया ऐसें तौ मिलीं रे ऐसें तौ मिलीं जैसें गय मताई और बाप रे। नरबदा मैया ------।
पैले कुण्डेश्वर की गैल में पक्के गोला के दोउ तरफै बैलगाड़ियन के लानै एकाऊ चौंरे रस्ता हते जिनपै लोगन नै कब्ज़ा कर लऔ है। बुडकी के लडुआ, खुरमा, पपैयन की तौ कनैइ का है । मेला में माटी के, बाँस के और पीतर, काँसे, लौह के बरतन भांडे बिकबे आउत ते। खूब गढिया घुल्ला बिकत ते। डुगडुगी और फिरकनी मोड़ी- मोड़न के खास खिलौना हते।बन्न बन्न की गुर और सक्कर की मिठाई बिकबे आउत ती। बराई के तौ ढेर लगे रत ते। जमडार नदी में तिली लगाकें बुडकी लेत ते। फिर गेंदा के फूलन के बड़े बड़े गजरा चढ़ाकें मादेव बब्बा के दरसन करत ते
। कुण्ड के लिंगा बैठकें तिली लाई, जुनई के फूलन के, और गैऊँ, चावरन के चून के लडुआ, मीठे और नमकीन खुरमा, पपैयन के संगै लुचई आलू या घुइयन की सूखी सब्जी खबत ती। जितै आज नवोदय स्कूल बन गऔ उतै तक बसें दिन भर फेरे लगाऊत ती । भौत से लोग साइकिल सें जात ते। बीटीआई (डाइट) में साइकिल स्टैण्ड रत तो। ऊ समै के मेलन कौ आनंद कछु औरइ हतो।
-✍️@ रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
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(3) 🍁चलो मेला देखन चलें🍁
भारत तीज- त्योहार को देश कुआउत। अगर जा कई जाय के पनो देश मेलन-ठेलन को देश आय तो इमें कौनउं अति न हुइए। बुंदेलखंड में तो कोस-कोस पे बन्न-बन्न के मेला भरत रत। इन मेलन को बड़ो धार्मिक महत्व है। अषाढ़ और साउन के मइना में टीकमगढ़ में हनुमान बब्बा के मंदिरन में मेला भरत हैं। जै मेला राजन के जमाने सें लग रय। जै मेला जात्रा कुआउते।
जै मेला भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के निकरवे के बाद परवे वारे पैले मंगलवार सें लगत हैं।
ऐसो हमाइ नानी बताउत राततीं। धूरकोट, बौरी, रौरइया, हनुमान चालीसा, जरिया वारे बब्बा, झिरकी बगिया में जै मेला हर साले भरत हैं।
इन मेलन में ऐन गदर श्र मचत है। दरशनन के लाजें भुंसारे सें रात लों बड्डीं-बड्डीं लेनें लगीं रातीं। भोग-प्रसादी, बाल-बच्चन के लाजें खेल-खिलौना जैसें फूकना,चकरी,बंसी, गेंदें मिलत हैं। चूंरियां,बूंदा,ईंगुर,माउर,उरसा,
बिल्ला,बिल्नियां,करंइंयां,झारे, थैंतीं,फूकनी सब मिलत हैं।
खावे-पीवे की गल्लन कैरीं चीजें बिकत हैं। इन मेलन सें एक पंथ दो काज हो जात हैं। दरशनन के दरशन और घूमने-फिरवे कौ घूमवो-फिरवो।
✍️ -@ सीमा श्रीवास्तव 'उर्मिल', टीकमगढ़
(4) *मेला*
हमाई तरफ एक भोतई बडो मेला लगत है भीम कुंड को इते की विशेषता जा है कि एक हल्को सो कुंड है जीको पानु कभऊं कमत नइयां चाय कितेकऊ उपाय करो।
ई कुंड के लाने बूढ़े पुराने लोग बताउत है के जब पांडव बारा बरस के बनबास पे गय ते तो उनकी मताई कुंती हा भोत पियास लगी तो बे भीम सें बोलीं बेटा मोय पानु लियादे भोतई पियास लगी तौ भीम ने देखो के ऐंगर कऊं पानु नईं दिखात सो उनने बान मारो जीसे धरती फट गई और पानु निकल आव फिर उनने दूसरो बान मारो जीसे गली बन गई और मताई खां पानु पिबाव। ई कुंड को कऊं ओड छोड़ नई मिलत शासन बारन नें भोत कौशिश करी पर आज लौ ईको पतो नईं चलौ कि जो कितेक गेरो है।
इते संक्रात पे भोत बडो मेला लगत दूर दूर सें आदमी इते मेला देखबे आउत मेला में खेल - तमाशे घर गृहस्थी के सामान और खाबे पीबे की मुलक दुकानें लगी रातीं। इते मेला में भोतई मजा आऊत ई मेला जेसो पौंडा कऊं नईं मिलत इते को पौंडा भोतई जानों मानों है।
-✍️@ राजेंद्र यादव "कुँवर",कनेरा बडा मलहरा, छतरपुर
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(5) चलो मेला देखन चलवीं-
नगर टीकमगढ़ सें तनकई दूर कुण्डेश्वर में हर तीज त्योहार पै मेला भरत लेकिन बुड़की कौ मेला देखबे लाख रत । काय कें ईमें खूब तो दुकानें लगती और खुबईं भीड़ जुरत ।केउ गांवन के आदमीं पैले नदी में बुड़की लेत फिर भोलेनाथ पै जल चढ़ाउत। ईके बाद लड़ुआ खात फिर मेला घूमत और सामान खरीद तई । हमाई भी कैंउंदार मेला में ड्यूटी लगी और कबहुँ माइक सें बोलकें तो कबहुँ मेला में घूमघाम कें लोगन कौ सहयोग करौ । हमाय सँगै स्कूल कै बच्चा भी रत ते और लोगन की सहायता करत ते । एक दारकेँ मेला में स्कूल के बच्चन को एक मौढ़ी मिल गई रौउत , बे उखों पकरकेँ हमाय लेंगर ले आय । हमनें माइक से बोल दई । सुनकें मौढ़ी के बाप मताई आ गय और पनी मौढ़ी खों ले गय । बाद में हमने उन स्कूल के बच्चन खों इनाम दई ।
- वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
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(6) मेला
भैया हमाई तरफ एक बराना मिंदर है बड़ौ तला है उतै संक्रात पै मेला देखवे गय,खेल तमाशे, झूला चकरीं,घर गृहस्थी के सामान, सर्कस मदारी सबई देखे नहावे में आनंद सबसें जादा आव।सकरांत के लडुआ खबे एसई में एक मित्र मिल गय उनने एक कहानी सुनाई जो हम अपुन खों सुना रय।एक गांव मे दो भैया हते खूब मेंनत करबें किसानी कौ काम काज हतो सो फसल आ गई।अब देखौ भैया भैयन कौ प्रेम,बड़े ने सोची कै छोटे कें मोड़ी मौडा हैं घरवारी है इये ज्यादा जरूरत परै,सो अपने हिस्सा मेंसें चार पैली नाज़ ऊ के ढेर में डार दव काय कै वो रडुआ हतो, पनों पनों नाज़ ढोउत रवें कै छोटे के मन में भी आई कै हमनों नाज़ कम परे सो तौ कछु बात नईं सब सोसें कै परवार कौ संग है।पै कजनकीदार बड़े कें कम परे तौ लोग हमें नाव धरें। कै वो रडुआ है ऊकौ ख्याल नईं रखो गव,इसें छोटे ने ऊके ढेर में चार पैली नाज़ डार दव,जा भावना भगवान ने देखी सो बे भौतई प्रसन्न हो गय और दोई भैया ढो ढो कें परेशान हो गई पर नाज़ बडानों नइयां।
ई कहानी सें हम भौत सोच में पर गय के आजकल के भैया कैसे कैसे लड़ मर रय।हमें भी सद्भवना की भौतई जरूरत है।
✍️ अशोक पटसारिया लिधौरा, टीकमगढ़
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(7) विषय -चलो मेला देखन चलवीं -
जब हम छोटे हते ,तबई सें कुण्डेश्वर कौ मेला देखवे जात रये ।पैलां जब कछु साधन नई हते ,तब बैलगाड़ी सें मेला जात ते संगै दो चार गाडी़ और जात तीं सो गैल-गैल टोलियन में बंट कैं बाबा के गीत (लमटेरा)गावत जात ते ।जिनें सुनकें बड़ौ मजा आउत तौ ।जब संकरात कौ टैम आउततौ तब दो चार दिना पैलां सें तिली और चून के लडुआ बन जातते ।सब जनें फूले नई समात ते और एक दूसरे सें कात फिरत ते कै" चलौ मेला देखन चलवीं ।"
एक दार जब हम मेला देखवे जारये ते तौ हमाए बब्बा नैं गाडी़ में बैठें-बैठें बताऔ कै जमडार नदी के करकैभौत पैलें एक पहाड़िया हती जी पै खटीक जात के मान्स रत ते ।एक दिना उनई की एक जनीं उखरी में मूसर से धान कूट रई ती ,तबई ऊकी उखरी खून समय सें भर गई । वा घबडा़नी और जल्दी पल्दी में कूढे सें ढाँक कें बायरे आई और आदमियन खों बुला कें उतै लुआ गई ।जब उननें देखौ तौ उमें से भोलेनाथ की पिण्डी निकरी ।उन सबनें मिलकें उतई ऊ पिण्डी की थापना कर दई ,तबई सें जौ स्थान कूढादेव कहान लगो ।
कछु बूढे पुराने जा बात सोऊ बताउत कै जा पिण्डी हर साल एक चाउर के दानें बिरोबर बड़ जात ।अब इतै भौत बडौ़ मंदिर बन गऔ और कैऊ धरमशालाऐं बन गई ।एई मंदिर के ऐंगर जमड़ार नदी पै एक बडौ गैरौ कुण्ड है ,जीके बारे में बताउत कै जौ सात सिमुडि़यां गैरौ है ईकी कोऊ थां नई लै पाउत ।
इतै हर साल संकरात पै भौत बडौ मेला लगत ।जीमें पूरे बुन्देलखण्ड की मनई आउत ,जो कुण्ड में बुडकी लैकें भोलेबाबा खों जल चढाउत और उनके दर्शन करत ।फिर सब जनें लडुआ लुचई खात ।फिर मेला घूमत कछु जनें हिडोलना झूलत तौ कछु नाटक नोटंकी देखत ।मोडी़ मोड़न खां खेल खिलौना और जनीं मांसन खां उनके जरुरत की चीजें मेला में सें लै देत ।मेला घूमकें सब जनें अपनें अपनें घर खों लौट जात ।
अब कूढादेव कौ नाम कुण्डेश्वर हो गऔ ।और प्रसिद्ध स्थानन में ईकौ नाम जुड़ जाबे सें पूरौ देश जानन लगो ।
-सियाराम अहिरवार ,टीकमगढ़ ।
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(8) कहानी मेला जाबै छैला
हमाई सबई जनन खो सबई साल भरे के मेलन की राम2पैचे अपने टीकमगढ़ जिले में कैऊ मेला पैला से भरत रये है ब आज भी भरत जारये हैं कुडादेव जिने आज कुडेश्वर कई जात है ओरछा बिन्दबासनी बलदोगढ दुनातर लार छोटी देबी टीकमगढ़ बौरी करमासन घाट ग्वालबाबा सबई
गाँवन के ददखाना मेला ब नौदुगा,जबारन के मेला गाँवन2 भरत है।
पै पेला के मेलन में भौत मजा,अऊतो कुडेश्वर बुडकी के मेला खो जान लगत ते पैला मेला खो
बैलगाड़ी पे बेठके कहोरोवा गाऊत जात ते निकर चलो दैके टटिया रे दैके टटिया रे हिरदै में
बसालो भोले नाथ हो एसे 2 सबई
गाड़ी बान गाऊते मेला में घर गिरस्ती को सबई चीजे बिकत हती कोनऊ चीज बाकी नई रत ती पैला मेला खो जान लगत ते तो खाबै के लानै खुरमा खुरमी बतिया कसरो लुचई टडुला कैऊ तरा के पकबान ले जात ते मोडी मोडा बजाबै खो ढिग ढिगिया मेला मे सबई चीजे मेला जाबै
बारे लेत हते शहर के लोग गाँवन के लोगन से कन लगत ते , धुरया मेला देखन जाये। चुटई झन्डा सी फहराये
पैला के मेलन में भौत मजा अऊत हतो अब तो मेला की ,मौज नई बची मेला की का का बखान करे जेतैक करे ऊतेकऊकम है
-लेखक - गुलाब सिंह यादवभाऊ, लखौरा, टीकमगढ़
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(9) विजरोठे के पास भनवारे के मेला-
बुड़की कों सुकनैई नदी के किनारे महादेव मंदिर पर मेला लगत है। जितै मुहारा, लिधौरा,चंदेरा, सतगुआँ,और अगल बगल के गाँवन के और मौऊ, गुरसराँय, गुलगंज,दूर दूरई के दुकानदार एक दिन पहले से आकें रूकत और उतई बुड़की लेत और भोलेनाथ के दर्शनन कौ लाभ लेत रात।
भनवारे के मेला में खेल खिलौनन के संगै हँसिया कुलैया,हडा़, कसैडी़ के संगै माटी के वर्तन तवा ,चपियां और बांस के वर्तन सूपा दौइया,सोउ मिलत है।
मेला मे हिडोला ,चकरी , और भौतै लोगन से मिलवे कौ आनंद भोलेनाथ के दर्शनन के संगैसब्जी सें लैकें फल भी उतै मिल जात बराई कौ आनंद मोंडी़ मौड़ा भौत उठाउत।
भौतै भीड़ जिन मौड़ी मौड़न ने नै देखीं, वे देखत और भौतै
वे देखत और भौतैइ वाहन बैलगाड़ी, ट्रेकटर, साईकिल,मोटर साईकिल,की भीड़ैई भीड़ दिखात।
भनवारे के मेला मे मोड़ी मौड़ा घर से आउत और घरै दौरत जात उनें मेला कौ भौतैइ मजा आत।और मेला मे नदिया के किनारे देखकें भौत खुश होत दिखात सोउ जेउ मेला कौ आनंद होत। और कैउ जनें लमटेरा गाउत जात।
-डीपी शुक्ला, टीकमगढ़
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(10) कहानी -*मेला*
लाली के दोई लरका, बड़ौ छै साल कौ और छोटौ तीन साल कौ, स्कूल सें लौट खैंई मेला जाबे के लाजें तैयार हो गय और पापा की बाट जोउन लगे ।उनकी ख़ुशी कौ पार नईं तो, उछलत फिर रय ते बायरैं-भीतर ।
लेकिन छै बजबे खौं हो गय औ पापा अबै तक नईं आय । बच्चन की ख़ुशी पैले व्याकुलता में बदली, फिर उदासी में बदल गई; वे निराश हो खैं बैठ गय ।
लाली नैं बच्चन कौ हाल देखो सो झुँझला उठी । लै नईं जानै तौ, तौ बच्चन खौं आस काय बँधा गय ते ? अबै तक नईं लौटे, अब कबै जैं ? फिर बच्चन की सोबे की बेरा भइ जा रइ । ऊनैं मनइ मन ठान लइ - "अब नईं जान दें उनके संगै बच्चन खौं । गुस्सा में बच्चन सें बोली - "अब नईं जय्यौ पापा के संगै मेला देखबे । उनै लै जानें होतौ तौ जल्दी आ जाते । अगर तुम दोई गय तौ हम टाँगें टोर दैं ।" बच्चा भी पापा के न आबे सें मनईं-मन बुरव मान रय ते सो मताई सें सैमत हो गय । मन में तै कर लई, पापा कैं - "चलौ मेला देखबे" सो हम कै दैं - हमें नईं जानैं ।"उतै लाली के पति के हांत काम पै तेज चल रय ते । आज बौ जल्दी-जल्दी काम निबटा रव तौ । ऊनैं बच्चन सें वादा करो तौ के शाम खैं मेला देखबे चलें ।ऊ खौं उम्मीद हती कै आज मेहनताना मिल जै । दिन भर मालिक की बैल्डिंग की दुकान पै, एंगिल-सरिया काट-जोर खैं, सई नाप के जंगला बनाउत रव, शाम खौं पार्टी के मकान में लगाबे गव ।ऊ कौ मन तौ कर रव तौ कै कल लगा दैं, पै कल लगाय सो मैनतानौ भी कल मिलै ।मैनताने के रुपय्या लै खैं बौ तेज-तेज कदमन सें घर की ताउँ चल दव । बच्चन नैं बाप खौं आउत देखो सो सब भूल गय, ख़ुशी सें उछल परे, -"पापा ! मेला देखन चलौ ।" पापा नैं हव कई और लाली खौं आवाज दै खैं धुली कमीज माँगी । लाली जाबे सें मना करबे के लाजैं, बिना कमीज लँय गुस्सा में बायरैं आई, पै बच्चन खौं ख़ुशी सें उछलत देख कैं मना नईं कर पाई । धुली कमीज ल्या खैं पति खौं दै दई
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
(मौलिक व स्वरचित)
बुंदेलखंड के मेला
(बुंदेलीआलेख संकलन)
संपादक- राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़
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