*बुंदेली- कुण्डलिया*
दारू में गुन भौत है दारू करती ढ़ेर।
दारू से कई इक मिटे पार लगे न फेर।।
पार लगे न फेर, गृहस्थी चौपट हो गई।
आन,वान और सान, सबई धूरा में मिल गई।।
कह *राना* कविराय दारू है चाल बिगारू।
जो अपनों हित चाय,कभऊं न पीवें दारू।।
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*राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, *टीकमगढ़* (म.प्र.)
मोबाइल -9893520965
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